शुक्रवार, 24 अप्रैल 2020

सागर कभी अपनी मर्यादा नहीं लांघता, पर...

भारत में मरीन ड्राइव से लगी सड़क और करीब की इमारतों को बचाने के लिए 1958 में आस्ट्रेलिया से 6500 शिलाखंडों का आयात किया गया । जिनका प्रत्येक का वजन दो टन और कीमत 5000/- थी। उस समय के अनुसार जो निश्चित तौर पर एक भारी-भरकम रकम  थी। वह एक अलग विषय है.......................!

#हिन्दी_ब्लागिंग 
मुंबई जाने वाले हर पर्यटक का मरीन ड्राइव पर जाना लगभग तय होता है ! वहां जा सागर तट पर किनारे के साथ पड़े नक्षत्र रूपी पत्थरों पर  बैठ फोटो लेना भी एक पसंदीदा शगल है ! ये पत्थर या शिलाएं हैं क्या ? और यहां क्यों हैं ? कई इसका उत्तर खोजते हैं और कई इसे सागर तट का ही एक अंग मान  वापस हो लेते हैं। 
हम 
मुंबई, जिसके अतीत का छोर पाषाण युग तक चला गया है, असल में सात द्वीपों, बम्बई, कोलाबा, लिटिल कोलाबा, माहिम, मझगांव, परेल और वर्ली से बना भूभाग है। मुंबई का वर्तमान शहर इन सब क्षेत्रों को मिला कर बनाया गया है। इन क्षेत्रों को जोड़ने के लिए इनके बीच पसरे पड़े दलदली क्षेत्र को ठोस भूमि बनाने के लिए समुद्र के आधिकारिक क्षेत्र को हस्तगत किया गया ! जिसके लिए आस-पास की पहाड़ियों को काट कर छिछले स्थानों को भरने और द्वीपों को आपस में जोड़ने के काम में लाया गया !

लहरों का आक्रोश 
समुद्र के बारे में यह ध्रुव सत्य है कि वह कभी भी अपनी मर्यादा नहीं लांघता ! पर मुंबई ने उसके क्षेत्र में दखल दिया है शायद इसी लिए अक्सर यह इलाका उसके कोप का भाजन बनता रहा ! खासकर बरसात के मौसम में तो उसकी उत्ताल तरंगें रौद्र रूप ले तटीय क्षेत्र को नुक्सान पहुंचाने लगीं। इस समस्या का निदान विदेशों में प्रयोग में लाए जा रहे टेट्रापॉड के रूप में सामने आया। इसे सन 1950 में फ्रांस ने विकसित किया था जो अपनी उपयोगिता के चलते दुनिया भर में प्रसिद्ध हो गया। जापान के लगभग आधे समुद्र तट पर टेट्रापॉड का उपयोग करके सागर जल से छरण को कम किया जाता है। 
सागर, टेट्रापॉड और..हम 
टेट्रापॉड - टेट्रा यानी चार और पॉड यानी पैर ! दो शब्दों के मिलने से बना यह शिलाखंड कंक्रीट से बनाया जाता है। अपनी बनावट की विशिष्टता के कारण ये एक दूसरे में फिट हो जाते हैं। जिस वजह से जब लहरें इनसे टकराती हैं तो उनकी विध्वंसक शक्ति बहुत ही कम हो जाती है और एक हद से आगे नहीं जा पातीं। इनकी बनावट की विशेषता के कारण इनके बीच बनी जगह से तीव्र गति से आते पानी को आगे, पीछे, ऊपर, नीचे जाने का मार्ग भी आसानी से मिल जाता है। अपने भार और विशिष्ट आकार के कारण अत्यंत विषम मौसम की स्थिति में भी ये अपनी जगह पर बने रहते हैं।  जिससे समुंद्र के तट से लगी सड़क या अन्य इमारतों का बचाव हो जाता है।
टेट्रापॉड
भारत में मरीन ड्राइव से लगी सड़क और करीब की इमारतों को बचाने के लिए 1958 में आस्ट्रेलिया से 6500 शिलाखंडों का आयात  किया गया था। जिनका प्रत्येक वजन दो टन और कीमत 5000/- थी। उस समय के अनुसार जो निश्चित तौर पर एक भारी-भरकम रकम  थी। वह एक अलग विषय है !   
मरीन ड्राइव पर पड़े टेट्रापॉड
अपनी तमाम विशेषताओं के बावजूद, समय के साथ इनकी अनेक हानियां भी उजागर हुईं हैं ! जो ज्यादा व्यापक हैं ! भले ही प्रत्यक्ष रूप से ये इंसान के लिए फायदेमंद हों पर अप्रत्यक्ष रूप से ये प्रकृति और पर्यावरण को हानि पहुंचाने वाले ही साबित हो रहे हैं ! एक तरफ जहां ये समुद्र की लहरों की अबाध व प्राकृतिक बहाव में अड़चन डालते हैं। वहीं तेज़ लहरों के साथ किनारे की ओर आने वाले समुद्री जीवों से टकरा उन्हें चोटिल कर उनकी दुखद मृत्यु का कारण भी बनते हैं ! इसके साथ ही प्रकृति के नैसर्गिक सौंदर्य को भी ख़त्म कर एक अप्राकृतिक दृश्य की रचना कर परिदृश्य को बोझिल सा बना देते हैं ! इसलिए बहुत सारे देशों में इन्हें प्रतिबंधित कर दिया गया है ! पर हमें तो होश बहुत देर बाद ही आता है !

11 टिप्‍पणियां:

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

अच्छी जानकारी

अनीता सैनी ने कहा…

जी नमस्ते,
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा शनिवार(२५-०४-२०२०) को 'पुस्तक से सम्वाद'(चर्चा अंक-३६८२) पर भी होगी
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का
महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
आप भी सादर आमंत्रित है
**
अनीता सैनी

गगन शर्मा, कुछ अलग सा ने कहा…

आभार¡शास्त्री जी

Sudha Devrani ने कहा…

सुन्दर सचित्र जानकारी...।

गगन शर्मा, कुछ अलग सा ने कहा…

आभार, सुधा जी

सुनीता अग्रवाल "नेह" ने कहा…

वाकई सागर को इस तरफ बांधा जाना उसके स्वाभाविक स्वभाव और अधिकार का हनन है । मुझे इसलिए मुम्बई के समुद्र तट लुभाते नही ।परइन पत्थरों के बारे में अच्छी जानकारी दी आपने

गगन शर्मा, कुछ अलग सा ने कहा…

सुनीता जी
"कुछ अलग सा" पर आपका सदा स्वागत है

विकास नैनवाल 'अंजान' ने कहा…

टेट्रापोड के विषय में रोचक जानकारी मिली। इनसान की भूख प्रकृति को नुक्सान पहुंचाकर ही शांत होती है। यह भी उसका एक उदारहण है। लेकिन प्रकृति हमेशा ही जीतती आई है। आगे भी जीतेगी। आपने सही कहा कि हमे होश काफी देर में आता है। आभार।

गगन शर्मा, कुछ अलग सा ने कहा…

विकास जी
आपका सदा स्वागत है

मन की वीणा ने कहा…

बहुत शानदार आलेख नवीन जानकारियां समेटे।

गगन शर्मा, कुछ अलग सा ने कहा…

कुसम जी
"कुछ अलग सा" पर आपका सदा स्वागत है

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