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शनिवार, 13 जून 2020

चीन की बंदूक, नेपाल की गोली और गुर्गों की बोली

चैनहीन के पालतू गुर्गे और खरीदे हुए  गुलाम अपने आकाओं  को खुश करने के लिए अपने ही गांव  में  वैमनस्य फैलाने में  जुटे हुए  थे ! भाराव  के लोगों के हर  काम की  आलोचना, उसकी बुराई, उसकी नाकामी की अफवाहें फैलाना ही उनका धर्म बन गया था। ऐसे ही माहौल में एक दिन खबर आई कि ढाणी  के लोगों ने  भाराव के  कुछ बच्चों  को  पीट दिया है !  खबर मिलनी थी  कि  चैनहीन  के गुर्गों  को मौका  मिल गया भाराव के करता - धर्ताओं के विरुद्ध विष वमन करने का ! उन्होंने  चिल्लाना शुरू कर दिया कि  वह ढाणी वाले जिनकी  हिम्मत नहीं होती थी  हमारे सामने आँख  उठा कर  बात  करने की, वही आज हमारे बच्चों पर हाथ उठा रहे हैं......!

#हिन्दी_ब्लागिंग    
पहाड़ों की  सुरम्य वादियों और लोहित नदी  के अंचल में अलग-अलग आस्थाओं को मानने वाले कई गांव बसे हुए हैं। जिनमें  सबसे बड़े, विशाल और रसूखदार गांवों का नाम भाराव और चैनहीन है। दोनों के पुरातन  होने के बावजूद  उनकी आपस  में कभी नहीं बन पाई। इधर आबादी का विस्फोट व उसके मुखियों की  महत्वकांक्षाएं चैनहीन  गांव के लिए मुसीबत बन चुकी थीं। इसीलिए वह बार - बार भाराव के क्षेत्रों में आ कर अतिक्रमण और लूट-पाट की हरकतें करता रहता था।अपने  मंसूबों को पूरा करने और अपने  नापाक इरादों  को पूरा करने  हेतु उसने  भाराव में अपने गुर्गे भी  पाल रखे थे !  जो पनपते, खाते-पीते, रहते तो भाराव में थे पर माल कमाते थे, पड़ोसी से ! इन लोगों का काम था, गलत - सलत अफवाहें फैला, अस्थिरता, असंतोष, अशांति, असहिष्णुता का  कुचक्र रच  लोगों को आक्रोषित गांव में विरोध और विद्रोह का माहौल बनाए रखने का !  इधर भाराव गांव का काम जबसे नए सरपंचों ने संभाला था, तब  से  चैनहीन  की नापाक हरकतें  और  भी बढ़ गईं  थीं। भाराव  गांव  के  लोगों  की अपनी परेशानियां  ही कुछ  कम नहीं  थीं,  सो वे  चैनहीन वालों के कुचक्रों का विरोध तो करते थे, पर कोई नई मुसीबत मोल लेने से कतराते भी थे। उनका कतराना ही द्वेषियों का संबल बन गया था !    
 
पहाड़ी की तराई में इन दोनों बड़े गांवों के बीच एक ढाणी भी बसी हुई है। जो राजपाल की ढाणी कहलाती है। इसमें थोड़े से मेहनती, शांतिप्रिय पर कुछ-कुछ मतलबपरस्त लोगों का बसेरा है। उनके अपने संसाधन बहुत ही कम हैं, इसलिए वे दूसरे गांवों में जा मेहनत-मजदूरी कर किसी तरह अपना गुजारा करते हैं। एक तरह से उनकी निर्भरता अपने पड़ोसी गांवों पर ही टिकी हुई है। यही कारण भी था कि वे किसी को भी नाराज ना कर कुल्हाड़ी से अपने पैर बचाए रखने में ही विश्वास करते थे। पर उनका झुकाव या दोस्ताना, भाराव वालों के साथ ही ज्यादा रहा है । इस बात से भी चैनहीन के आका चिढ़े रहते थे, और सदा इस नाते में दरारें डालने की कोशिश करते रहते थे। इधर कुछ दिनों से उनके प्रमुख जमींदारों ने ढाणी के लोगों को तरह-तरह के प्रलोभन दे अपने प्रभाव में कर लिया था। सो उनके कुछेक लोग भाराव के लोगों से कुछ उखड़े-उखड़े से रहने लगे थे। इन मुठ्ठी भर लोगों का उदाहरण दे भाराव और ढाणी के बिगड़ते संबंधों की खबरें उड़ाई जाने लगीं थीं। जिससे भाराव की लोकप्रियता, बढ़ते प्रभाव था उसकी शांतिप्रियता पर सवाल खड़े किए जा सकें।  

इसी बीच एक बार सारे इलाके में भयंकर अकाल पड़ गया ! सारी फसलें नष्ट हो गईं ! अन्न और चारे की कमी से चारों ओर मनुष्यों-पशु-पक्षियों की मौतें होने लगीं। चहूँ ओर त्राहि-त्राहि मच गई ! ऐसी हालत में भी भाराव गांव वालों द्वारा, जिस से जितना और जैसा बन पड़ रहा था, जैसे भी हो रहा था, आस-पास के सब लोगों की सहायता करनी शुरू कर दी। पर इस विषम और संकट की घडी में भी चैनहीन के पालतू गुर्गे और खरीदे हुए गुलाम अपने आकाओं को खुश करने के लिए अपने ही गांव में वैमनस्य फैलाने में जुटे हुए थे ! भाराव के लोगों के हर काम की आलोचना, उसकी बुराई, उसकी नाकामी की अफवाहें फैलाना ही उनका धर्म बन गया था। ऐसे ही माहौल में एक दिन खबर आई कि ढाणी के लोगों ने भाराव के कुछ बच्चों को पीट दिया है ! खबर मिलनी थी कि चैनहीन के गुर्गों को मौका मिल गया भाराव के करता-धर्ताओं के विरुद्ध विष वमन करने का ! उन्होंने चिल्लाना शुरू कर दिया कि वह ढाणी वाले जिनकी हिम्मत नहीं होती थी हमारे सामने आँख उठा कर बात करने की, वही आज हमारे बच्चों पर हाथ उठा रहे हैं। बात उतनी गंभीर नहीं थी पर विरोधियों ने उसे अलग ही रंग देना शुरू कर दिया था ! लोगों में गलत संदेश जा रहा था, चिंता की बात यह भी थी। 

भाराव वालों का मानना था कि बच्चे शैतानी करते ही हैं उन्होंने कुछ गलत किया होगा तो ढाणी वाले किसी बुजुर्ग ने डांट लगा दी होगी ! पर जब गुर्गों ने अधिक शोर मचाया तो सरपंचों द्वारा एक निरपेक्ष तथा माननीय बुजुर्ग को पूरी बात का पता लगाने ढाणी भेजा गया। तो वहां के जिम्मेदार लोगों ने जो बात बताई वह इस तरह थी कि, ''पिछले दिन नदी में नहा कर आए, भाराव तथा ढाणी के कुछ लड़कों को गीले बदन और कपड़ों सहित खलिहान में खेलने के लिए रोका  गया था ! पर लड़के तो लड़के; मना करने पर भी नहीं माने तो दो-तीन को पकड़ कर चपतियाना पड़ा ! उनमें हमारे भी बच्चे थे। अब आप ही बताइए, इस संकट के समय में अनाज कैसे खराब होने देते और वह भी आपके द्वारा ही भेजा हुआ है। हमने किसी दुर्भावनावश ऐसा नहीं किया। हमारा आपका नाता तो सदियों पुराना है ! हम कभी अपने संबंध बिगड़ने नहीं देंगे ! आपके उपकारों को हम कैसे भूल सकते हैं। फिर भी कोई भूल हुई हो तो हम सब क्षमाप्रार्थी हैं।" 
 
यह सब सुन विघ्नसंतोषियों के गाल पर करारा चांटा तो जरूर पड़ा पर वे सब चिकने घड़े ठहरे ! उन पर बेइज्जत या जलील होने का कोई असर नहीं होता ! क्योंकि उनकी इज्जत-आबरू- मान-सम्मान-धर्म, सब सिर्फ पैसा ही है। सो कुछ दिन चुप रह वे फिर किसी मौके की तलाश में जुट जाएंगे ! 

बुधवार, 29 अप्रैल 2020

समय पर दोषी को दंड मिलना भी जरुरी है

चौथा वर्ग समाज और देश के दुश्मनों का है ! ये जान-बूझ कर अवाम को खतरे में धकेलने का उपक्रम करता है। बेवजह घर के बाहर निकलना, रक्षा कर्मियों के साथ बदसलूकी, अक्खड़पन, उद्दंडता से भरपूर ये लोग बार-बार समझाने को अपनी जीत और व्यवस्था की कमजोरी समझने की भूल करने लगते हैं। ऐसे शठों को उन्हीं की भाषा में समझाना जरुरी है। लंका अभियान पर समुंद्र के आड़े आने पर तीन दिन बाद ही प्रभु राम ने और शिशुपाल के हद लांघने पर श्री कृष्ण जैसे अवतारी पुरुषों ने भी दंड देने में कोताही नहीं बरती थी ! ज्ञात्वय है कि उनका बैर सिर्फ एक इंसान से था ये लोग तो पूरी जात-बिरादरी और समाज के दुश्मन हैं फिर इतनी ढिलाई क्यों ...........? 

#हिन्दी_ब्लागिंग  
देश या दुनिया में यदि कभी कुछ अप्रत्याशित घटता है तो हर बार उसके कई तरह के परिणाम देखने को मिलते हैं ! अब जैसे इस कोरोना रूपी दानव के आतंक से विश्व भर में त्राहि-त्राहि मची हुई है ! आबालवृद्ध सभी आक्रांत हैं, भयभीत हैं !  तथाकथित विश्व के अग्रणी, शक्तिशाली, विकसित देश भी आज घुटनों पर आ गए हैं। वहीं गरीबी, अशिक्षा, बेरोजगारी, भूख, असंतोष, भ्रष्टाचार, षडयंत्र, चिकित्सा साधनों की कमी से त्रस्त हमारे देश ने इस विकट आपदा में बहुत बड़ी हद तक अपने को इस संकट से बचा, अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर मिसाल कायम की है। जिसके कारण विश्व भर में उसकी सराहना की जा रही है। साथ ही पचास से ऊपर देशों को कुनैन  की दवा भेज एक त्राता के रूप में भी उभर कर सामने आया है। यह कोई छोटी-मोटी उपलब्धि नहीं है। परंतु अपने ही देश में कुछ लोगों के लिए यह बात अपच का कारण बन गई है।   

आज लगभग सारे राज्य और उनके मुख्य मंत्री केंद्र की सलाह को मान उसका पालन कर रहे हैं, पर एक-दो कुतर्की, पूर्वाग्रही अभी भी जनता की सहायता के बदले उसे मिल रही सुविधाओं में कमियां खोजने में लगे हुए हैं। हालांकि उनकी बेढब बातों पर कोई ध्यान नहीं देता फिर भी वे अपने बचे-खुचे अस्तित्व के प्रदर्शन और सिर्फ विरोध के लिए विरोध करने को अपना बेतुका राग अलाप देते हैं। इन छुटभइयों और इनके आकाओं को यह समझ नहीं आता कि यही समय अवाम की सहायता कर उसके दिल को जीतने का है। ये मुफ्त में राशन, बिना काम वेतन, कर्ज माफ़ी, मजदूरों की वापसी की मांग तो करते हैं पर उसके लिए पैसा कहां से आएगा ये नहीं बता पाते ! यदि पैसों के इंतजाम के लिए सरकार कुछ करती है तो फिर ये बुद्धिहीन उसका विरोध शुरू कर समझते हैं कि हमने लोगों का दिल जीत लिया जबकि होता बिल्कुल विपरीत है। काश दूसरों की मीन-मेख निकालने और बातें बनाने की जगह की जगह कुछ अपनी तरफ से भी सकारात्मक सहयोग की पहल की होती। 

इसी जमात के साथ समाज के चार और वर्ग इस दौर में सामने आए हैं। पहला, जो सबसे आदरणीय है वह है सेवा कर्म में जुटे लोग ! फिर वे चाहे डॉक्टर हों, सेवाकर्मी हों, सफाईकर्मी हों, जरुरत का सामान बेचने वाले हों या बेसहारा लोगों को भोजन प्रदान करने वाले ! वे सब आज देवतुल्य हैं।

दूसरे वर्ग में वे तमाम आम जन हैं जो स्वस्थ रहने के लिए दी गई हिदायतों का पूरी तरह पालन करते हैं। ये सब भी प्रशंसा के पात्र हैं क्योंकि इन्हीं की वजह से आज देश अपने आप को संभालने में सफल हो पाया है। 

तीसरे वर्ग में वे मासूम लोग आते हैं जो हाल-बेहाल हो परिस्थितिवश अपने आश्रय से निकल बाहर आने को मजबूर हो जाते हैं। इनका ध्यान रखना सरकार और समाज दोनों की प्राथमिकता होनी चाहिए। यही वे लोग हैं जो सबसे ज्यादा उपेक्षित होते हुए भी समाज की रीढ़ हैं।

चौथा वर्ग समाज और देश के दुश्मनों का है ! ये जान-बूझ कर अवाम को खतरे में धकेलने का उपक्रम करता है। बेवजह घर के बाहर निकलना, रक्षा कर्मियों के साथ बदसलूकी, अक्खड़पन, उद्दंडता से भरपूर ये लोग बार-बार समझाने को अपनी जीत और व्यवस्था की कमजोरी समझने की भूल करने लगते हैं। ऐसे शठों को उन्हीं की भाषा में समझाना जरुरी है। पता नहीं क्यों व्यवस्था ने इतनी ढ़ील दे रखी है। लंका अभियान पर समुंद्र के आड़े आने पर तीन दिन बाद ही प्रभु राम ने और शिशुपाल के हद लांघने पर श्री कृष्ण जैसे अवतारी पुरुषों ने भी दंड देने में कोताही नहीं बरती थी ! ज्ञात्वय है कि उनका बैर सिर्फ एक इंसान से था ये लोग तो पूरी जात-बिरादरी और समाज के दुश्मन हैं फिर इतनी ढिलाई क्यों  ? 

आज जनता प्रत्यक्ष हर चीज देखना चाहती है चाहे वह छूट हो, सहायता हो या फिर दंड ! दोषी को दंड मिलता देख ही दूसरे दोषियों को सबक मिलेगा और भय रहेगा कुकर्म करते समय और समाज को संतोष और विश्वास की प्राप्ति होगी व्यवस्था के प्रति !!    

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