गुरुवार, 7 जुलाई 2011

कहां हमारे गुरुघंटाल, कहां उनके नमकहराम

"ग्लोबल फाइनैंशल इंटीग्रिटी" की सूचना के अनुसार हमारे देश का करीब 210 अरब रुपया स्विस बैंकों में जमा है। यह रिपोर्ट 2008 की है। यह बेकार पड़ा जमा धन हमारी जीड़ीपी के पचास प्रतिशत के बराबर है। ये बैंक ही वहां की अर्थ व्यवस्था को संभालते हैं हमारे पेट को काट कर। चूंकी वहां के लोगों की रोजी-रोटी ही ऐसा धन जुगाड़ करवाता है सो वहां खाता खोलने में भी आपको ढेरों सहूलियतें मुहय्या करवाई जाती हैं। बस आपके पास "माया" होनी चाहिए। बिना ज्यादा झंझटों और दस्तावेजों के सिर्फ पासपोर्ट से ही 15-20 मिनट में आपका खाता खोल आपके हाथ में डेबिट कार्ड़ थमा दिया जाता है। भविष्य में भी एक ई-मेल से आप अपना धन उनके सदा खुले मुख में उडेल सकते हैं।

हम-आप अंदाज भी नहीं लगा पाएंगे कि स्विस बैंकों में पड़ी सडती रकम यदि वापस अपने देश आ जाए तो क्या कुछ हो सकता है। इससे पैंतालिस करोड़ गरीब करोड़पति बन सकते हैं। हमारे सर पर लदा अरबों का विदेशी कर्ज चुकता कर देने के बावजूद बहुतेरे आधे-अधूरे प्रोजेक्ट पूरे किए जा सकते हैं। इतनी रकम को किसी ढंग की जगह लगा दिया जाए तो उसके ब्याज से ही सालाना बजट पूरा हो सकता है।

ऐसे धन का ढेर बनाने में वे लेन-देन सहायक होते हैं जो हवाला के जरिए किए जाते हैं। बड़े रक्षा और बहुतेरे सौदों का कमीशन ले बाहर ही छुपा दिया जाता है। आयात-निर्यात के उल्टे-सीधे बिल बना, उससे प्राप्त पैसे को बाहर बैंकों के अंधेरे लाकरों में गर्त कर दिया जाता है। बिना किसी रिकार्ड़ के देश से पैसा बाहर भेज दिया जाता है। ये सारा काम क्या आम इंसान के वश का है? सब जानते हैं कि कैसे लोग ऐसे तरीके से वैसा धन इकट्ठा कर सकते हैं।

ऐसा भी नहीं है कि सिर्फ हमारे यहां से ही वहां धन पहुंच रहा हो। दुनिया के दूसरे देशों में भी नमकहराम बैठे हुए हैं। कम्यूनिज्म के पैरोकार रूस का इस मामले में दूसरा स्थान है, पर वह क्या खा कर हमारे चंटों का मुकाबला करेगा, दूसरा स्थान होने के बावजूद उसके धन की मात्रा हमारे से एक चौथाई भी नहीं है। जबकि हर जगह अपने को सर्वोच्च मानने वाला, धन कुबेर अमेरिका पहले के पांच स्थानों में भी जगह नहीं बना पाया है। हम उसकी ऐसी नकल क्यों नहीं करते?

8 टिप्‍पणियां:

vidhya ने कहा…

bahuth sundar lekhi hai

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

लूट सको तो लूट...

ब्लॉ.ललित शर्मा ने कहा…

गुरुघंटाल अमर रहें, इनके कारनामों से देश का नाक ऊंचा हो रहा है। इतिहास में नाम लिखाने के लिए सुवर्ण की आवश्यकता होती है। उसी का जुगाड़ कर रहे हैं गरीब। :)

प्रतुल वशिष्ठ ने कहा…

एक बार फिर 'विश्व गुरु' हो जायेगा भारत ......... सोचा न था.
और इसका श्रेय आजादी बाद के गुलाम मानसिकता के नेताओं को दिया जाना चाहिए.
गियासुद्दीन गाजी की संतानों ने मतलब गांधी नाम के यूज़रों ने देश को उन्नति का जो रास्ता दिखाया है वह
मूल्यों को तेज़ी से उन्नत करता आ रहा है.
[यहाँ मूल्य से तात्पर्य .... कीमतों से है न कि आचरण को शोभित करने वाले दिव्य उत्प्रेरकों से.]

Roshi ने कहा…

sach ujagar kiya hai aapne....

प्रतुल वशिष्ठ ने कहा…

मेरी तरह ही न जाने कितने लोग अब तक ये समझते रहे कि हमारी मेहनत में ही कमी थी जो हमारी दुर्दशा का कारण है.
देश का किसान और मजदूर जी-तोड़ मेहनत करने के बाद भी आधे पेट या भूखा क्यों रह जाता है...??
मध्यम वर्ग का व्यक्ति ....... क्यों जीवन भर संघर्ष करता रह जाता है? दो टाइम नौकरी करके भी उसका गुजारा नहीं चलता.
कहीं तो कुछ जरूर गड़बड़ है ......... अब दोषी नज़र आने लगे हैं.

रविकर ने कहा…

एक बार फिर 'विश्व गुरु' हो जायेगा भारत ||

बधाई ||

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

वाह क्या बात है सर!

विशिष्ट पोस्ट

विडंबना या समय का फेर

भइया जी एक अउर गजबे का बात निमाई, जो बंगाली है और आप पाटी में है, ऊ बोल रहा था कि किसी को हराने, अलोकप्रिय करने या अप्रभावी करने का बहुत सा ...