वर्षों से यह धारणा चली आ रही है कि हमारे देवी-देवताओं के पशु या पक्षी के रूप में अपने-अपने वाहन होते हैं। जैसे माँ दुर्गा का सिंह, शिवजी का नंदी बैल, विष्णुजी का गरुड़, गणेशजी का चूहा, कार्तिकेयजी का मोर, लक्ष्मीजी का उल्लू इत्यादि-इत्यादि !
शायद इसीलिए इन देवी-देवतओं के साथ यह पशु-पक्षी चित्रित किए जाते रहे हैं। पर सोचने की बात यह है कि जैसी मान्यता है, हमारे देवी-देवता तो कहीं भी कभी भी क्षणांश में आने-जाने में सक्षम हैं। फिर यह भी धारणा है कि देव जाति दया, वात्सल्य तथा ममता से सराबोर है तो वे क्यों निरीह प्राणियों को ऐसे काम में ला उन्हें कष्ट देंगे।
हाँ, ऐसा हो सकता कि इन मूक, निरीह, प्रकृति की सुंदर रचनाओं को मनुष्य के हाथों बचाने के लिए उनके प्राणों की रक्षा हेतु उनका सम्बंध देवी देवताओं से इस रूप में जोड़ दिया गया हो। क्योंकि हो सकता है कि प्राचीन समय में किसी कारणवश भूमि से शाकाहार उतना प्राप्त ना किया जा सक रहा हो या मनुष्य उतनी मेहनत ना कर आसानी से उपलब्ध मांसाहार पर ज्यादा निर्भर रहने लगा हो और यही सब देख कर हमारे भविष्यदृष्टा ऋषि-मुनियों ने, आगत को ध्यान में रख, निर्दोष जीव-जंतुओं का जितना भी संभव हो बचाव हो सके, इसलिए यह बात आम जन के मन में वैसे ही बैठाने की कोशिश की हो जैसे पेड़-पौधों में देवताओं का वास बता उनके अंधाधुंध विनाश पर रोक लगाने के लिए की गयी थी।
कभी ध्यान से श्री कृष्णजी के पास खड़ी उनकी पांव की तरफ मुग्ध भाव से झुकी गाय को देखा है। कितने कोमल भाव हैं कितनी ममता है। भगवान दत्तात्रेयजी के साथ सदा मुग्धा गाय, काले कुत्ते या कबूतर को देख किसके मन में हिंसा उपज सकती है। ईसा की बाहों में मेमना, घायल हंस को अश्रुपूरित आंखों से तकते सिद्धार्थ, माँ सरस्वतीजी का हंस, शिवजी के पूरे परिवार का विभिन्न पशु-पक्षियों के साथ सानिध्य, गुरु गोविंद सिंहजी का बाज यह सभी तो एक ही संदेश दे रहे हैं। दया का, ममता का, धरा के सारे प्राणियों के साथ प्रेम-भाव का।
12 टिप्पणियां:
जीवों पर दया दृष्टि बनी रहे
मूढ़ मनुष्य की ||
बधाई |
बढ़िया प्रस्तुति ||
हमें भी यही लगता है, ये निरीह पशु बचे रहें।
आपने तो सच्चाई ढून्ढ निकाली. बधाई और आभार भी.
सोचने का एक पहलू यह भी है कि गीता में श्री कृष्ण जी ने सभी प्रधान चीज़ों में स्वयं का प्रतिरूप बताया है जैसे कि नक्षत्रों में स्वयं को चन्द्रमा बताया है, हालांकि यह बात और है कि चन्द्रमा को नक्षत्र कोई भी नहीं मानता। पेड़ों में ख़ुद को पीपल बताया है और आज पीपल पूजा जा रहा है। जब पशु-पक्षियों की बात आई तो उन्होंने स्वयं को सिंह, मगरमच्छ और गरूड़ बताया है। ये सभी मांसाहारी हैं।
श्री कृष्ण जी ने स्वयं को व्यक्त करने के लिए श्रेष्ठ पशु-पक्षियों के नाम पर मांसाहारी जीवों को ही क्यों चुना ?
सुब्रमनियनजी, ऐसे ही एक ख्याल आया था मन में कि शायद उस समय भी मानव की हवस को नियंत्रित करने के उपाय किए गये हों, बस।
अनवरजी, धर्म और राजनीति पर बहस करनी बेकार है। दोनों का कोई अंत नहीं होता।
गगन शर्मा जी ! यह पतन का काल चल रहा है। इसीलिए आप ऐसी बात कह रहे हैं। प्राचीन भारत में आपके जैसा मिज़ाज नहीं था यहां के लोगों का। वे हरेक बात पर बहस और शास्त्रार्थ करते थे और सत्य को सामने लाने की हद भर कोशिश करते थे। एक पहलू तो यहां आपने रख ही दिया है, दूसरा हमने रख दिया। अगर यहां पहला पहलू न होता तो हम दूसरा भी न रखते।
आप क्या चाहते हैं कि केवल एक पहलू ही सामने आए और दूसरा सामने न आने पाए ?
इस तरह कभी किसी सभ्यता ने विकास नहीं किया और न ही कभी सत्य सामने आ पाया।
कृप्या विचार करें।
धन्यवाद !
शायद यही सच्चाई हो बहुत बहुत आभार
Aapke is behtareen article ke liye badhai. Maine http://fresh-cartoons.blogspot.com par iska link joda hai.
अनवरजी,आपकी नाराजगी की वजह क्या है यह साफ पता नहीं चल रहा। मेरा विषय पशु-पक्षी संरक्षण का था पता नहीं आप क्या समझ रहे हैं।
वैदिक काल में शिल्पकार अभियंता पशु पक्षियों की विशेषता को ध्यान में रखकर वाहनों का निर्माण करते थे। फ़िर उसी विशेषता के आधार पर उनका नामकरण भी होता था।
मानव को विमान एवं वाहन बनाने की प्रेरणा अपने आस-पास रहने वाले पशु पक्षियों से ही मिली। इस विषय पर एक पोस्ट और बनती है।
रही कृष्ण जी द्वारा सिंह, मगरमच्छ और गरुड़ का उल्लेख करने की बात तो इस संदेश के शब्दार्थ एवं तत्वार्थ में जमीन आसमान का फ़र्क है। इसके तत्वार्थ को समझने से प्रश्न का उत्तर मिल जाएगा।
ललितजी, सिर्फ छिद्रावेंषण ही किसी का लक्ष्य हो तो आप उसे समझा नहीं सकते। अब देखिए जिसकी खोज सिंह, गरुड़ या मकर तक ही सीमीत हो उसे कैसे आप समझाएंगे कि अधुरे ज्ञान से बात का बतंगड़ बन जाता है। अब किसी को विष्णु, वामन, सूर्य,वायु, इंद्र, सुमेरु,बृहस्पति, कार्तिकेय, समुद्र, उच्चैश्रवा, ऐरावत, कामधेनु इत्यादि-इत्यादि प्रतिरुप नजर ना आएं या जानता ही ना हो या अगला जानना ही ना चाहे तो आप लाख जोर लगा लें कुछ होने वाला नहीं। तो छोड़िए क्यों दिमाग और समय खराब करना।
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