शनिवार, 23 जुलाई 2011

न नौ मन तेल होगा न राधा नाचेगी। ऐसा क्यों?

एक मुहावरा हैना नौ मन तेल होगा ना राधा नाचेगी काफी दिनों के बाद भी यह कोई नहीं बता पाया है कि नाच और तेल का आपस का क्या सम्बंध है। फिर यह राधा कौन है जो नाचने के लिए ऐसी ऊट-पटांग शर्त रख रही है। सोचने की बात यह भी है कि वह नाचेगी ही क्यूं ? बिना मतलब के तो कोई नाचता नहीं। हो सकता है कि कोई खास आयोजन होगा, पर यदि ऐसा है तो नौ मन तेल की शर्त क्यूं रखी गयी है ?

नौ मन तेल तो नहीं पर दिमाग का तेल निकालने के बाद ऐसा लगता है कि ये राधाजी कोई बड़ी जानी-मानी डांसिंग स्टार होंगी और किसी अप्रख्यात जगह से उन्हें बुलावा आया होगा। हो सकता है कि उस जगह अभी तक बिजली नहीं पहुंची हो और वहां सारा कार्यक्रम मशाल वगैरह की रोशनी में संम्पन्न होना हो। इस बात का पता राधा एण्ड़ पार्टी को वेन्यू पहुंच कर लगा होगा और अपनी प्रतिष्ठा के अनुकूल हर चीज ना पा कर आर्टिस्टों का मूड उखड़ गया होगा और उन्होंने ऐसी शर्त रख दी होगी जिसको पूरा करना गांव वालों के बस की बात नहीं होगी। पर फिर यह सवाल उठता है कि नौ मन तेल ही क्यूं ? राउंड फिगर में दस या पन्द्रह मन क्यूं नहीं ? तो हो सकता है कि यह आंकड़ा काफी दर-मोलाई के बाद फिक्स हुआ हो।

ऐसा भी हो सकता है कि पेमेन्ट को ले कर मामला फंस गया हो। वहां ग्रामिण भाई कुछ नगद और कुछ राशन वगैरह दे कर आयोजन करवाना चाहते हों पर राधा के सचिव वगैरह ने पूरा कैश लेना चाहा हो। बात बनते ना देख उसने इतने तेल की ड़िमांड रख दी हो जो पूरे गांव के भी बस की बात ना हो।

तो मुहावरे का लब्बो-लुआब यही निकलता है कि एक ख्यातनाम ड़ांसिंग स्टार अपने आरकेस्ट्रा के साथ किसी छोटे से गांव में अपना प्रोग्राम देने पहुंचीं। उन दिनों मैनेजमेंट गुरु जैसी कोई चीज तो होती नहीं थी सो गांव वालों ने अपने हिसाब से प्रबंध कर लिया होगा और यह व्यवस्था "राधा एण्ड कंपनी" को रास नहीं आयी होगी। पर उन लोगों ने गांव वालों को डायरेक्ट मना करने की बजाय अपनी एण्ड़-बैण्ड़ शर्त रख दी होगी। जो उस हालात और वहां के लोगों के लिये पूरा करना नामुमकिन होगा। इस तरह वे जनता के आक्रोश और अपनी बदनामी दोनों से बचने में सफल हो गये होंगे।

इसके बाद इस तरह के समारोह करवाने वाले अन्य व्यवस्थाओं के साथ-साथ नौ-दस मन तेल का भी इंतजाम कर रखने लग गये होंगे। वैसे किस तेल की फर्माईश की जाती रही है यह भी पता नहीं चल पाया है, क्योंकि फिर कभी राधाजी और तेल के नये आंकड़ों की खबर नहीं आयी है।

इस बारे में नयी जानकारियों का स्वागत है।

13 टिप्‍पणियां:

रविकर ने कहा…

तेल मालिश की जरुरत
सदियों से रही है --
हो सकता है कि
तिलहन के बजाय चना ही उगाते हों
उसके नगर वाले ||
अब तेल तो कई काम आता है न --
बिग बी भी लगे रहते हैं
इसी तेल की महिमा समझाने में ||

बढ़िया प्रस्तुति ||

बधाई ||

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

आजकल तो विकास की भी यही शर्त है।

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

वाह बहुत खूब अच्छी बाल की खाल खींची है आपने!

ब्लॉ.ललित शर्मा ने कहा…

बहुत अच्छी खाल खींची है आपने :)

चंद्रमौलेश्वर प्रसाद ने कहा…

सीधी सी बात है . आंगन टेड़ा है :)

संगीता स्वरुप ( गीत ) ने कहा…

बात तो सोचने वाली है ..बढ़िया प्रस्तुति

P.N. Subramanian ने कहा…

निश्चित ही यह शोध का विषय है. सुन्दर प्रस्तुति.

vidhya ने कहा…

बहुत अच्छी खाल खींची है आपने :)

Chetan ने कहा…

haha..hahaha..hahaha...

गगन शर्मा, कुछ अलग सा ने कहा…

पर सोचने की बात है, राधा और तेल का रिश्ता क्या है ?

Pawan Sharma ने कहा…

बात तो सोचने वाली है परंतु किसी ने आज तक सोचा ही नहीं है राधा क्या है राधा एक जाति है जिसका काम नाचने गाने रामलीला करने का होता है इस जाति के अंतर्गत सिर्फ पुरुष रामलीला रासलीला का काम करते हैं यह जातियां सीतापुर बहराइच लखीमपुर बाराबंकी लखनऊ शाहजहांपुर उत्तर प्रदेश में पाई जाती हैं जिनका का सांस्कृतिक और पुराना काम रामलीला रासलीला करने का होता है यह जाति जगह जगह पर राधा व कथिक व गौर ब्राहमण के नाम से प्रचलित हैं जिनका ना तो कास्ट सर्टिफिकेट बना और नाही गवर्नमेंट के सूची में इनका कहीं नाम दर्ज है यह जातियां इधर उधर रामलीला रासलीला करने का कार्य करती हैं शायद इसीलिए इनका नाम सूची में नहीं सलंग है यह राजनीति आर्थिक और शैक्षिक में बहुत पिछड़ी हैं राजनीति से कोई लगाव नहीं रखती दरअसल मैं इसीलिए इनका किसी सूची में नाम नहीं रखा गया है यह आज भी रामलीला और नाचने गाने का काम पुरुष करते हैं पहले जब मनोरंजन के साधन कोई नहीं थे तब यह राधा जाते नाटक नौटंकी रामलीला रहस्य लीला का काम करके मनोरंजन के काम आते थे और यह लोग राजा महाराजाओं की तरह खानपान रहता था काम करते नहीं थे खेती करना नहीं चाहते थे क्योंकि इधर उधर खाने का सामान मिल जाता था तभी इनको नचाने वा कार्यक्रम करवाने के लिए तेल चावल इत्यादि इकट्ठा करना पड़ता था इसीलिए लोग कहते थे की ना नौ मन तेल जूरी और ना राधा नचहाय

Pawan Sharma ने कहा…

और यह जाति राधा वाली जहां जहां पाई जाती हैं हम जानते हैं तो जिसके जिसके वहां हम गए हैं सबके वहां किसी के वहां तो ढ़ोलक किसी के हारमोनियम किसी के यहां कुछ संगीत के साथ कोई न कोई साज रखा मिलेगा और कोई न कोई इसमें कार्य से लिप्त मिलेगा सीतापुर बहराइच लखीमपुर कुछ जिले ऐसे हैं जहां पूरे घर के परिवार के लोग नाचने गाने का काम करता है महिलाओं को छोड़ कर के पुरुष चले जाते हैं प्रदेश छोड़ करके डिस्टिक छोड़ कर के और गांव गांव में मंडली नाटक मंडली जाती है उसी में यह अपना कलाकार हुनर का प्रदर्शन करते हैं और महीनों के बाद सालों के बाद अपने घर वापस आते हैं आज से नहीं हम अपने बाप बाबा के जमाने से यह देख रहे हैं हमारे घर में भी पिताजी और बाबा यही काम करते थे और बाबा के भी पिताजी और बाबा उनके भी यही काम करते थे हमारे पूछने पर बताया गया लेकिन यह जाति इतनी पिछड़ी है कि ना तो कोई ज्यादा अधिक पड़ा मिलेगा और ना कोई राजनीति में होगा ना कोई धन दौलत में ज्यादा होगा गरीब जाती है और जो लोग यह काम इस जाति के छोड़ दिए हैं लेकिन पूछने पर उनके पिताजी या बाबा अभी भी करते थे या करते हैं यह जाति अलग-अलग नामों से जानी जाती है परंतु शादी कामकाज हम उन्ही जातियों में से करते हैं और इनका जाति सर्टिफिकेट भी नहीं बनता है यह बहुत बहुत पिछड़ी हैं हमको तो यह लगता है अन्य जितनी जातियां हैं उनसे सबसे यह पिछड़ी जाति है अनुसूचित जाति में अगर बहुत पिछड़ी जाति हैं उससे भी इसकी बराबरी किया जाए तो शिक्षा में आर्थिक में राजनीतिक में सब काहे में यह पिछड़ी है इस जाति में कोई सरकारी नौकरी करता व्यक्ति नहीं मिलेगा कोई मजदूरी करके कोई नाचने गाने या कोई साज बजाकर कोई ड्राइवरी करके अपना काम चलाता है कोई कंपनी फैक्ट्री में काम करकेl जितने जिलों में हम गए हैं और हम जानते हैं कि राधा के नाम से प्रचलित है और इनके पूरी स्थित हम जानते हैं बाकी हम ज्यादा नहीं घूमे मेरा नाम पवन शर्मा है और टाइटल में शर्मा का शब्द लगाते हैं पूरे जिलों में हमने देखा है कोई दूसरा टाइटल नहीं लगाएंगे लगाएंगे शर्मा ही
बाकी छोड़ो सब हम इसलिए इतना लिख दिए हैं कि लोग कहावत कहते हैं और राधा नहीं जानते हैं कि कौन है की जगह है कोई कि नाम है कि कोई व्यक्ति है कि कोई जाति है कि कोई धर्म है कि कोई भगवान है राधा, कोई व्यक्ति नहीं जानता है और हम भी किसी तरह इधर-उधर से काम चला रहे हैं जाति बनवा के

अनिल पाण्डेय (anilpandey650@gmail.com) ने कहा…
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