हम भारतीयों की एक विशेषता है कि हम देसी घी को छोड़ हर विदेशी चीज का आंख मूंद कर स्वागत, उपयोग तथा आदर करते हैं फिर चाहे वह विदेशी वस्तु, विचार या इंसान "रीडायरेक्ट" हो कर ही क्यूं ना हमारे पास आया हो।
हमारे ऋषी-मुनियों तथा विद्वानों ने अवाम की जिंदगी को सुंदर, सुखमय, निरोग बनाए रखने के लिए जितने उपाय हो सकते थे उन्हें खोज कर हमें सौंप दिया था। पर समय के साथ-साथ हमारी निष्ठा व सोच विदेशों की चकाचौंध में गुम होती चली गयी और हम राम में नहीं रामा में, कृष्ण में नहीं कृष्णा में, योग में नहीं योगा में, राग में नहीं रागा में सुख खोजने में खोते चले गये।
"बाजार" की ताकतें पुराने स्वरुपों को नये-नये "डिजाइनर" आवरणों में लपेट-लपेट कर फिर हमारे सामने पेश करती गयीं और हम आंख मूंद कर उन्हें अपनाने में गौरव महसूस करने लगे।
योरोप और अमेरिका की तो छोड़ें कल तक का अफीमची देश चीन भी आज हमारी इस कमजोरी का फायदा उठा अपने वतन वासियों को समृद्ध बनाने पर तुला हुआ है। खुद कम्युनिस्ट विचारधारा का होते हुए भी उसने हमारे पर्वों पर हमारे देवी-देवताओं की मुर्तियां बना-बना कर हमें बेच ड़ालीं और हम सस्ते में मिलते भगवान खुशी-खुशी घर ले आए। वहीं की एक देन है 'फेंगशुई'। जिसके पीछे आज हजारों लोग पागलों की तरह पड़ कर पता नहीं क्या-क्या सस्ती मंहगी चीजें ला-ला कर अपने घर को भरे जा रहे हैं।
इस चीनी ज्योतिष के कुछ नियम यहां दे रहा हूं आप बताएं कि इसमें ऐसा क्या है जो आप को पहले पता नहीं था या उस हिदायत का हम पालन ना करते हों।
फेंगशुई के अनुसार पांच तत्व होते हैं जिन्हें घर में ला कर रखना चाहिए, वे हैं - पृथ्वी, पानी, आग, धातु और लकड़ी। हमारे पंच तत्व में धातु और लकड़ी की जगह आकाश और वायु सम्मलित हैं। तो कौन ज्यादा प्रकृति के नजदीक हुआ।
फेंगशुई के अनुसार कुड़ा-कचरा इकट्ठा नहीं होना चाहिए, घर में चीजें व्यवस्थित होनी चाहिए, बेकार की वस्तुएं नहीं रखनी चाहिएं, रसोई घर तथा चुल्हा साफ-सुथरा होना चाहिए, वहां रोशनी तथा सामग्री प्रयाप्त मात्रा में होनी चाहिए। बाथरूम तथा टायलेट के दरवाजे सदा बंद रखने चाहिए। इत्यादि-इत्यादि।
मुद्दा यह है कि घर साफ सुथरा तथा व्यवस्थित हो। माहौल उल्लासमय हो। घर के दरो-दिवार खुशनुमा हों जिससे दिलो-दिमाग परेशानियों से मुक्ति पा सके, सोच सकारात्मक हो सके। ऐसी सोच ही हर बाधा से लड़ने की ताकत प्रदान करती है।
यह सब कहने का मेरा अभिप्राय फेंगशुई विधा को नीचा या बेकार ठहराना नहीं है। बाहर की किसी भी संस्कृति या ज्ञान की अच्छाईयों को अपनाना बुरी बात नहीं है। पर आंख मूंद कर आधी अधूरी जानकारी ले किसी के भी पीछे चल देना कोई अक्लमंदी भी नहीं है।
इस ब्लॉग में एक छोटी सी कोशिश की गई है कि अपने संस्मरणों के साथ-साथ समाज में चली आ रही मान्यताओं, कथा-कहानियों को, बगैर किसी पूर्वाग्रह के, एक अलग नजरिए से देखने, समझने और सामने लाने की ! इसके साथ ही यह कोशिश भी रहेगी कि कुछ अलग सी, रोचक, अविदित सी जानकारी मिलते ही उसे साझा कर ज्यादा से ज्यादा लोगों तक पहुंचाया जा सके ! अब इसमें इसको सफलता मिले, ना मिले, प्रयास तो सदा जारी रहेगा !
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6 टिप्पणियां:
आज तो देसी वास्तु और विदेशी फेंग्शुई के पागल हैं सम्पन्न लोग क्योंकि उन्हें ही तो खतरा है कि सम्पन्नता की देवी उन्हें छोड़ कर चली जाए :)
यह हमारी मानसिकता की स्थिति को प्रकट करता है!
आदत जो पड़ गई है ..
बहुत सुंदर बात कही आप ने, मै शास्त्री जी से सहमत हुं
सच में मैं भी आप की बात का समर्थन करता हु बाहर की किसी भी संस्कृति या ज्ञान की अच्छाईयों को अपनाना बुरी बात नहीं है। पर आंख मूंद कर आधी अधूरी जानकारी ले किसी के भी पीछे चल देना कोई अक्लमंदी भी नहीं है
पर देसी घी से तो कोई समझौता नहीं होता :-)
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