आंसू, दुख के, पीड़ा के, ग्लानी के, परेशानी के या फिर खुशी के। मन की विभिन्न अवस्थाओं पर शरीर की प्रतिक्रिया के फलस्वरुप आंखों से बहने वाला जल। जब भावनाएं बेकाबू हो जाती हैं तो मन को संभालने, उसको हल्का करने का काम करता है "अश्रु"। इसके साथ-साथ ही यह हमारी आंखों को साफ तथा कीटाणुमुक्त रखता है।
आंसू का उद्गम "लैक्रेमेल सैक" नाम की ग्रन्थी से होता है। भावनाओं की तीव्रता आंखों में एक रासायनिक क्रिया को जन्म देती है, जिसके फलस्वरुप आंसू बहने लगते हैं। इसका रासायनिक परीक्षण बताता है कि इसका 94 प्रतिशत पानी तथा बाकी का भाग रासायनिक तत्वों का होता है। जिसमें कुछ क्षार और लाईसोजाइम नाम का एक यौगिक रहता है, जो कीटाणुओं को नष्ट करने की क्षमता रखता है। इसी के कारण हमारी आंखें जिवाणुमुक्त रह पाती हैं।
वैज्ञानिकों के अनुसार आंसूओं में इतनी अधिक कीटाणुनाशक क्षमता होती है कि इसके छह हजार गुना जल में भी इसका प्रभाव बना रहता है। एक चम्मच आंसू, सौ गैलन पानी को कीटाणु रहित कर सकता है।
ऐसा समझा जाता है कि कभी ना रोनेवाले या कम रोनेवाले मजबूत दिल के होते हैं। पर डाक्टरों का नजरिया अलग है, उनके अनुसार ऐसे व्यक्ति असामान्य होते हैं। उनका मन रोगी हो सकता है। ऐसे व्यक्तियों को रोने की सलाह दी जाती है।
तो जब भी कभी आंसू बहाने का दिल करे (प्रभू की दया से मौके खुशी के ही हों) तो झिझकें नहीं।
इस ब्लॉग में एक छोटी सी कोशिश की गई है कि अपने संस्मरणों के साथ-साथ समाज में चली आ रही मान्यताओं, कथा-कहानियों को, बगैर किसी पूर्वाग्रह के, एक अलग नजरिए से देखने, समझने और सामने लाने की ! इसके साथ ही यह कोशिश भी रहेगी कि कुछ अलग सी, रोचक, अविदित सी जानकारी मिलते ही उसे साझा कर ज्यादा से ज्यादा लोगों तक पहुंचाया जा सके ! अब इसमें इसको सफलता मिले, ना मिले, प्रयास तो सदा जारी रहेगा !
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15 टिप्पणियां:
अभी कल ही इन आंसूऒ पर एक खबर ओर पढी थी कि नारी के आंसू, मर्द के लिये खतरनाक होते हे???
बहुत सही लिखा आपने!
काबिलेतारीफ़ है प्रस्तुति ।
आपको दिल से बधाई ।
ये सृजन यूँ ही चलता रहे ।
साधुवाद...पुनः साधुवाद ।
satguru-satykikhoj.blogspot.com
आपने आँसुओं के अलग ही पहलू को उजागर किया
यह एक अच्छा संयोग ही है कि हमने भी "अश्क " के बारे मे कल ही लिखा
www.aprnatripathi.blogspot.com
आंसुओं पर बढिया पोस्ट और जानकारी अच्छी लगी जी, धन्यवाद
94 प्रतिशत पानी और बाकि रसायनिक तत्त्व
बाऊजी ये भी तो बताते कि भाव (खुशी-गम) कितना प्रतिशत होता है :)
प्रणाम
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"आँसू" के अन्य फायदे.
— अधिक रोने वालों की आँखे सुन्दर होती हैं.
— जिन बच्चों को शैतानी-शरारतों पर अधिक डांट-फटकार पडती है उनकी आँखें चमक लिये होती हैं. बच्चों को पिटायी-चिकित्सा द्वारा भी खूबसूरत बनाया जा सकता है.
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कभी मैंने 'काव्य-थेरपी' शुरू करते हुए कहा था कि ...
शारीरिक उत्सर्जन से भी आराम मिलता है। स्वास्थय लाभ होता है। मतलब - हँसना, रोना, छींकना, खाँसना, स्वास्थ्य के लिए फायदेमंद है लेकिन संतुलित मात्रा में ही.
— हंसने से पेट को
— रोने से आंखों को
— छींकने से मांसपेशियों को
— खाँसने से ग्रंथियों को व्यायाम मिलता है।
शरीर के रोम-रोम को व्यायाम देने के दो रास्ते हैं- शीतल जल स्नान और
भाव उत्तेजक कविता पाठ
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इसका मतलब यह कतई न लिया जाये कि जापानियों और चीनियों को पीटने से उनकी आँखें अधिक खुल जायेंगी अथवा सुन्दर हो जायेंगी.
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गगन जी क्या आपने कभी अश्रु-भस्म के बारे में सुना है?
इसका सेवन करने वाले कठोर-ह्रदय भी संवेदनशील हो जाते हैं.
यदि आप जिज्ञासु हैं तो इसके उत्तर के लिये आप 'दर्शन-प्राशन' पाठशाला में अवश्य आयें.
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आपसे सहमत हूँ।
प्रतुल जी,
अश्रु-भस्म के बारे मे तो नहीं सुना पर 'अश्रु शक्ति' के बारे मे जरुर सुना है। गौर फरमाएं :-
Tears : The hydrolic force through which Masculine will power is defeated by Feminine water power. :-)
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गगन जी,
आप एक सामाजिक सत्य को सामने ले आये.
"अश्रु-शक्ति" — स्त्रियों के अश्रुओं से पाषाण ह्रदय पुरुषों की शक्ति भी परास्त हो जाती है.
(अश्रु) नयन जल-कणों से (ह्रदय) पत्थर का पिघलना किसी चमत्कार से कम नहीं.
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आपने पन्त जी का एक प्रसिद्ध छंद सुना होगा :
वियोगी होगा पहला कवि/ आह से उपजा होगा गान / निकलकर आँखों से चुपचाप/ बही होगी कविता अनजान.
"अश्रु-भस्म" — काव्य का एक प्रकार ऐसा है जो अश्रुवत बहता नहीं. हृत-घावों पर मरहम बनकर लेपित हो जाता है. जो वियोगी हृदयों के लिये औषधि का कार्य करता है. वासना-विकारों का संक्रमण होने से रोकता है.
एक प्रसिद्ध उक्ति है 'विरह अग्नि में जल गये मन के मैल-विकार'. विरह में जब अभीष्ट की कामना भी समाप्त हो जाये तब कोमलतम भावों की समस्त पीड़ा 'अश्रु-भस्म' में रूपांतरित हो जाती है.
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