मंगलवार, 18 जनवरी 2011

शायद प्रारब्ध की हर घटना का स्थान और समय निश्चित होता है.

इस बार जैसी ठंड तब भी पड़ी थी। क्या इंसान क्या पशू-पक्षी सभी बेहाल हो गये थे। ऐसे ही में एक गिद्धराज अपनी सर्दी दूर करने के लिए धूप में एक वृक्ष की फुनगी पर बैठे थे। उसी समय उधर से यमराज का निकलना हुआ। उनको जैसे ही पेड़ पर बैठा गिद्ध नजर आया उनकी भृकुटी पर बल पड़ गये पर उन्होंने कहा कुछ नहीं और अपनी राह चले गये। वे तो अपनी राह चले गये पर उनके तेवर देख गिद्ध की जान सूख गयी। उसके सारे के सारे देवता कूच कर गये। अब वह ठंड से नहीं ड़र से कांप रहा था। इतने में उधर से 'नारायण-नारायण' उच्चारते नारद जी आ पहुंचे। नारद जी ने कांपते हुए गिद्ध को देखा तो रुक कर पूछने लगे, गिद्धराज तबीयत तो ठीक है? बहुत बुरी तरह से कांप रहे हो, क्या बात है? किसी सहायता की जरूरत हो तो मुझसे कहें।
ड़र से लरजते गिद्ध ने बड़ी मुश्किल से बताया कि अभी-अभी इधर से यमराज निकले थे। मैंने तो जाने-अनजाने कोई भूल भी नहीं की फिर भी वे बड़ी टेढी नजर से मुझे देखते हुए गये हैं। बहुत गुस्से मे लग रहे थे। इसीसे मुझे बड़ा ड़र लग रहा है। नारद जी ने दो मिनट विचार कर कहा कि तुम एक काम करो। यहां से सौ योजन की दूरी पर रामटेक नामक पहाड़ी है। उसकी कंदरा में जा कर छिप जाओ तब तक मैं यमराज से बात कर उनकी नाराजगी का कारण पूछता हूं।
गिद्ध ने उनकी बात मान रामटेक की पहाड़ी में शरण ले ली। इसी बीच नारद जी ने यमराज के पास जा पूछा कि महाराज आज क्या बात हो गयी जो सबेरे-सबेरे उस गरीब गिद्ध पर आपकी कोप दृष्टी जा पड़ी थी। यमराज बोले, अरे कुछ नहीं, जैसे ही मैं बाहर निकला तो सामने वह गिद्ध नजर आ गया। आज रात उसकी जिंदगी का समापन है जिसे सौ योजन दूर रामटेक की पहाड़ियों में सम्पन्न होना है। मैं यह सोच रहा था कि इसे तो वहां होना चाहिए यहां क्या कर रहा है।

नारद जी को यह समझ नहीं आ रहा था कि उन्होंने अच्छा किया या बुरा।

11 टिप्‍पणियां:

G.N.SHAW ने कहा…

laakh karo chaturayi,jo likha hai wahi hoga. bahut badhiya prastuti sir.thank you.

Harshad Jangla ने कहा…

jab jab jo jo hona hai tab tab so so hota hai.........

HARSHAD JANGLA
atlanta, usa

राज भाटिय़ा ने कहा…

नारद जी ने क्या किया जी होनी तो हो कर रहेगी ना

प्रतुल वशिष्ठ ने कहा…

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नारद जी को यह समझ नहीं आ रहा था कि उन्होंने अच्छा किया या बुरा।
@ नारद जी ने मीडिया-धर्म निभाया.

आज का मीडिया चुनाव के समय वोटर को वोट देने की ओर धकेलता है.
उस मतदान से उम्मीदवार नेता, फिर मंत्री आदि बनते हैं... समर्थ होकर जन-कल्याण के लिये तय धन का गबन, घोटाला, स्व-अर्थ प्रयोग आदि करते हैं.

क्या मीडिया जनता से मतदान को कहकर अच्छा करता है या बुरा?
मैंने पिछली बार अपने पत्रकार पिताजी के कहने में आकर सत्तापक्षी पार्टी को वोट दिया ........ क्या मैंने ठीक किया अथवा ग़लत?

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पी.एस .भाकुनी ने कहा…

achchi prastuti hetu abhaar....

ब्लॉ.ललित शर्मा ने कहा…

नारायण नारायण

Sushil Bakliwal ने कहा…

कोई लाख कर चतुराई, करम का लेख मिटे ना रे भाई.

संगीता स्वरुप ( गीत ) ने कहा…

होनी को कोई नहीं टाल सकता ...मुझे तो यही लगता है की सब पूर्वनिश्चित होता है

गगन शर्मा, कुछ अलग सा ने कहा…

सुनते आ रहें हैं कि सब कुछ होना तय है। पर पूर्ण विश्वास कहां है। कभी पूरी तरह छोड़ा है अपने आप को ऊपर वाले के सहारे।
कभी धड़धड़ाते हुए सड़क पार कर पाते हैं बिना दाएं-बाएं देखे :-)

नीरज मुसाफ़िर ने कहा…

हाथ बहुत लम्बे हैं उसके।

गगन शर्मा, कुछ अलग सा ने कहा…

शॉ जी, बहुत दिन हो गए , कथा-वार्ता नहीं हो पा रही !

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