शुक्रवार, 7 जनवरी 2011

खून, कितना जानते हैं हम इसके बारे में ?

रक्त, खून, लहू, रुधिर कितने नाम हैं इस जीवनदायी तरल के, जो जन्म से लेकर मृत्यु प्रयंत हमारे शरीर में अनवरत दौड़ता रहकर हमें जिन्दगी प्रदान करता रहता है। फिर भी हम इसके बारे में ज्यादा नहीं जानते {डाक्टरों के अलावा}। मेरे पास कुछ जानकारियां हैं जिन्हें बांटना चाहता हूं। इनके अलावा यदि आपके पास हों तो सबको जरूर बतायें---

हमारे शरीर में करीब पाँच लीटर रक्त विद्यमान रहता है। इसकी आयु कुछ दिनों से लेकर 120 दिनों तक की होती है। इसके बाद इसकी कोशिकाएं तील्ली में टूटती रहती हैं। परन्तु इसके साथ-साथ अस्थी-मज्जा {बोन मैरो} में इसका उत्पादन भी होता रहता है। यह बनने और टूटने की क्रिया एक निश्चित अनुपात में होती रहती है, जिससे शरीर में खून की कमी नहीं हो पाती। रक्त वाहिनियों में प्रवाहित होने वाला यह गाढ़ा, कुछ चिपचिपा, लाल रंग का द्रव्य, एक जीवित उत्तक है। यह प्लाज़मा और रक्त कणों से मिल कर बनता है। प्लाज़मा वह निर्जीव तरल माध्यम है जिसमें रक्त कण तैरते रहते हैं। प्लाज़मा के सहारे ही ये कण सारे शरीर में पहुंच पाते हैं और वह प्लाज़मा ही है जो आंतों से शोषित पोषक तत्वों को शरीर के विभिन्न भागों तक पहुंचाता है और पाचन क्रिया के बाद बने हानीकारक पदार्थों को गुर्दे तक ले जा कर उन्हें फिर साफ़ होने का मौका देता है।

रक्तकण तीन प्रकार के होते हैं, लाल, सफ़ेद और प्लैटलैट्स। लाल कण फ़ेफ़ड़ों से आक्सीजन ले सारे शरीर में पहुंचाने का और कार्बनडाईआक्साईड को शरीर से फ़ेफ़ड़ों तक ले जाने का काम करते हैं। इनकी कमी से अनिमिया का रोग हो जाता है। सफ़ेद कण हानीकारक तत्वों तथा बिमारी पैदा करने वाले जिवाणुओं से शरीर की रक्षा करते हैं। प्लेटलेट्स रक्त वाहिनियों की सुरक्षा तथा खून बनाने में सहायक होते हैं।

मनुष्यों में रक्त ही सबसे आसानी से प्रत्यारोपित किया जा सकता है। पर भिन्न-भिन्न रक्त कण तरह-तरह एटीजंस वाले होते हैं। इन्हीं एटीजंस से रक्त को विभिन्न वर्गों में बांटा गया है और रक्त दान करते समय इसी का ध्यान रखा जाता है। महत्वपूर्ण एटीजंस को दो भागों में बांटा गया है। पहला ए बी ओ तथा दुसरा आर-एच व एच-आर। जिन लोगों का रक्त जिस एटीजंस वाला होता है उसे उसी एटीजंस वाला रक्त देते हैं। जिन पर कोई एटीजंस नही होता उनका ग्रुप "ओ" कहलाता है। जिनके रक्त कण पर आर-एच एटीजंस पाया जाता है वे आर-एच पाजिटिव और जिनपर नहीं पाया जाता वे आर-एच नेगेटिव कहलाते हैं। ओ वर्ग वाले व्यक्ति को सर्वदाता और ए बी वाले को सर्वग्राही कहा जाता है। परन्तु ए बी रक्त वाले को ए बी रक्त ही दिया जाता है।

जहां स्वस्थ व्यक्ति का रक्त किसी की जान बचा सकता है, वहीं रोगी, अस्वस्थ व्यक्ति का खून किसी के लिये जानलेवा भी साबित हो सकता है। इसीलिए खून लेने-देने में बहुत सावधानी की आवश्यकता होती है। वैसे अब वैज्ञानिकों ने प्रयोगशाला में भी कृत्रिम रक्त का निर्माण कर लिया है और आशा है कि निकट भविष्य में रक्त की अनुपलब्धता से किसी की जान नहीं जाएगी।

7 टिप्‍पणियां:

राज भाटिय़ा ने कहा…

अति सुंदर जानकारी दी दी, धन्यवाद

dhiru singh { धीरेन्द्र वीर सिंह } ने कहा…

लहु को आज ज्यादा ही जाना

Harshad Jangla ने कहा…

Gaganji

Very informative writeup. Thanx.

-Harshad Jangla
Atlanta USA

Harshad Jangla ने कहा…

Gaganji

Very informative writeup. Thanx.

-Harshad Jangla
Atlanta USA

चंद्रमौलेश्वर प्रसाद ने कहा…

गालिब साहब ने कभी कहा था- जो आंख ही से न टपका वो लहु क्या है :)
अच्छी जानकारी के लिए आभार॥

anshumala ने कहा…

अच्छी जानकारी दी आपने उसके लिए धन्यवाद |

भारतीय नागरिक - Indian Citizen ने कहा…

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