दुनिया वैसे चाहे जितनी छोटी होती जा रही हो पर फिर भी बटी पड़ी है तरह-तरह की सीमाओं में। जगह-जगह तरह-तरह की वर्जनांऐं मौजूद हैं। ऐसा नहीं है कि कोई किसी भी देश में ऐसे ही मनमर्जी से चला जाए और लौट आए। ठीक भी है, भाई उनका घर है ऐसे ही कैसे कोई मुंह उठाए चला जा सकता है। इसीलिए किसी भी देश में जाने-आने के लिए वहां की इजाजत लेना बहुत जरूरी होता है। लुके-छिपे, गैर कानूनी रूप से किसी भी देश में घुसने की कोशिश करने पर तरह-तरह के दंड़ों की व्यवस्था कर रखी है सभी ने।
जैसे :-
उत्तरी कोरिया की सीमा लांघने पर 12 साल के सश्रम कारावास का प्रावधान है। वह भी किसी सुनसान इलाके में।
ईरान में ऐसा करते पकड़े जाने पर उस व्यक्ति को असीमित समय के लिए कारावास में ठूंस दिया जाता है।
अफगानिस्तान में तो सीधे गोली मार दी जाती है।
अरबियन देशों में सश्रम कारावास सुना दिया जाता है।
चीन में जिसने ऐसा दुस्साहस किया वह तो ऐसा गायब कर दिया जाता है जिसका फिर कभी पता ही नहीं चलता।
वेनेजुएला में ऐसा करनेवाले को जासूस समझा जाता है और सीधे जेल की हवा खिला दी जाती है।
क्यूबा तो ऐसे ही खासा बदनाम रहा है। वहां ऐसे व्यक्ति को जेल में अमानुषिक यत्रंणाएं दी जाती हैं।
योरोप के देशों में जेल में रख कर मुकदमा चलाया जाता है।
चूँकि हम "अतिथि" को भगवान मानते हैं इसीलिए अपने देश में यदि कोई ऐसी हरकत करता है और थोड़ा सा भी 'चंट' होता है तो देखिए उसे क्या-क्या मिलता है -
*राशन कार्ड़, *पास पोर्ट, *पूरे देश में घूमने के लिए ड़्रायविंग लायसेंस, *वोटर आई.डी.,*क्रेडिट कार्ड़, *धार्मिक यात्राओं में किराए में भारी छूट, *नौकरी में आरक्षण, *सरकार द्वारा मुफ्त शिक्षा, दवा-दारू, घर, *कुछ भी बोलने की स्वतंत्रता, *अपने वोट द्वारा भ्रष्ट लोगों को चुनने की सहूलियत, जो जीत कर उनके हितों की रक्षा कर सकें।
क्या कुछ कहना चाहेंगे आप, इस बारे में ?
इस ब्लॉग में एक छोटी सी कोशिश की गई है कि अपने संस्मरणों के साथ-साथ समाज में चली आ रही मान्यताओं, कथा-कहानियों को, बगैर किसी पूर्वाग्रह के, एक अलग नजरिए से देखने, समझने और सामने लाने की ! इसके साथ ही यह कोशिश भी रहेगी कि कुछ अलग सी, रोचक, अविदित सी जानकारी मिलते ही उसे साझा कर ज्यादा से ज्यादा लोगों तक पहुंचाया जा सके ! अब इसमें इसको सफलता मिले, ना मिले, प्रयास तो सदा जारी रहेगा !
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6 टिप्पणियां:
अतिथि देवो भव: की परम्परा का पालन कर रहे हैं..
घुस पैठिया बनकर न आए तो अतिथि का स्वागत है।
आप कही उन के आका के बारे पुछते तो नाम मै बता देता कि यह तो अपनी कां????? ही हे जी, जो इन्हे जमाई बन कर गले से लगती हे, ओर हमे जलीळ करवाती हे, आओ इस बार हम सब मिल करे इसे जलील करे अगले साल
अब हमें भी जाग जाना चाहिए।
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जीवन के लिए युद्ध जरूरी?
आखिर क्यों बंद हुईं तस्लीम पर चित्र पहेलियाँ ?
इसी का फल तो हम भुगत रहे हैं !!
अजी कहना क्या है...हम तो बस आतिथ्यधर्म का पालन कर रहे हैं। चाहे बिना तिथि के आके हमारे यहां कोई मुंबई जैसा या फिर संसद पर छोटा-सा पटाखा फोड़ जाए, और उस पटाखे से अरबों की जनसंख्या में से थोड़े से मर भी जाएं तो क्या फर्क पड़ता है !! हम तो फिर भी अफजल या कसाब की तरह उनका आतिथ्य-सत्कार ही करेंगे।
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