पेहोवा, भारत के प्राचीनतम स्थानों में से एक 'कुरुक्षेत्र' जहां महाभारत का युद्ध लड़ा गया था, के पास का एक कस्बा है जो अब धीरे-धीरे छोटे शहर में तब्दील होता जा रहा है। कुरुक्षेत्र से 27 की. मी. तथा 'थानेसर' से 12 की.मी. की दूरी पर स्थित अपने धार्मिक मुल्यों के कारण यह तीर्थ स्थल के रूप में विख्यात है। ऐसी धारणा है कि यहां प्राण त्यागने से मोक्ष की प्राप्ति होती है। इसीलिए देश भर से लोग हरिद्वार में अस्थी विसर्जन करने के पश्चात यहां पिंड़-दान करने आते हैं। ऐसा माना जाता है कि यदि किसी की मौत किसी दुर्घटना में, अस्पताल में या बिस्तर पर हुई हो तो उसकी क्रिया यहां करनी जरूरी होती है। यहां का नजदीकी रेल-स्टेशन कुरुक्षेत्र का है। सड़क मार्ग से ने.हाईवे ६५ द्वारा यह सारे देश से जुड़ा हुआ है।
कनिंघम ने इसे 882 ई.पू. का बताया है जबकि यहीं के एक मंदिर के शिलालेख में इसके 895 ई.पू. के होने का उल्लेख मिलता है।
ऋगवेद के अनुसार यहां का नामकरण राजा पृथू के नाम पर "पृथूदक" किया गया था। जो बदलते-बदलते अब "पेहोवा" के नाम से जाना जाता है। राजा पृथू ने अपने पिता की अंतिम इच्छा को पूरा करने के लिए उनका अंतिम संस्कार यहीं पर किया था। जिससे उन्हें मोक्ष की प्राप्ति हो सके। तभी से सद्गति के लिए लोग यहां अपने पूर्वजों का पिंड़ दान करते आ रहे हैं।
वामन पुराण और महाकाव्य महाभारत में भी इस स्थल की अपार महिमा का वर्णन मिलता है। यहां पर समय-समय पर किए गये उत्खनन और मंदिरों में लगे अभिलेखों से भी इस जगह के अति प्राचीन होने का प्रमाण मिलता रहा है।
विदेशी आतातायियों के आक्रमणों और विध्वसों का यहां के मंदिरों और पूजा स्थलों को भी सामना करना पड़ा था। पृथ्वीराज चौहान की महमूद गजनी के हाथों पराजय के बाद यह क्षेत्र पूरी तरह से मुसलमानों के कब्जे में चला गया था। पर मराठों के आगमन से यहां की स्थिति में फिर परिवर्तन आया। उसी दौर में सही मायनों में पृथूदक के धार्मिक महत्व की पुनर्स्थापना हो पाई। मराठों ने ही पृथूकेश्वर, सरस्वती तथा कार्तिकेय मंदिरों का जिर्णोद्धार करवाया।
पहले लोग सिर्फ कर्मकांड़ करवाने यहां जाते थे पर अब कुरुक्षेत्र जाने वाले लोग पृथूदक यानि पेहोवा भी पहुंचने लगे हैं।
इस ब्लॉग में एक छोटी सी कोशिश की गई है कि अपने संस्मरणों के साथ-साथ समाज में चली आ रही मान्यताओं, कथा-कहानियों को, बगैर किसी पूर्वाग्रह के, एक अलग नजरिए से देखने, समझने और सामने लाने की ! इसके साथ ही यह कोशिश भी रहेगी कि कुछ अलग सी, रोचक, अविदित सी जानकारी मिलते ही उसे साझा कर ज्यादा से ज्यादा लोगों तक पहुंचाया जा सके ! अब इसमें इसको सफलता मिले, ना मिले, प्रयास तो सदा जारी रहेगा !
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7 टिप्पणियां:
कुछ फोटो होते तो और अच्छा लगता...
अविश्वसनीय लगता है कनिंघम द्वारा 882 ई.पू. का बताया जाना.
बहुत सुंदर जानकारी जी धन्यवाद
पेहोवा नाम पहली बार पता चला
बहुत सुन्दर जानकारी
आपको एक-दो चित्र भी देने चाहिए थे
आभार
गणतंत्र दिवस की मंगलकामनाएं
पेहोवा मंडी प्रसिद्ध हैं जी
गणतंत्र दिवस की शुभकामनाएं
आभार
यहां दुखद यादों के साथ ही जाना हुआ है। नेट पर भी अच्छी फोटो नहीं मिल पाई।
kurukshetr to gaya tha par yaha n ja saka.yah janakari hoti to,ho aata tha.aap ko republicday ki bahut badhayi.
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