गुरुवार, 30 सितंबर 2010

जब ध्येय एक ही है तो फिर विवाद क्यों ?

विड़ंबना है या देश का दुर्भाग्य। ध्येय एक ही होने के बावजूद दसियों सालों से अयोध्या का विवाद क्यों है? जबकि हर पक्ष वहां पूजा, अर्चना ही करना चाहता है।
जिसकी पूजा करनी होती है वह श्रद्धेय होता है। उसके सामने झुकना पड़ता है। अपना बर्चस्व भूलाना पड़ता है।यहां लड़ाई है मालिक बनने की। अपने अहम की तुष्टी की। वही अहम जिसने विश्वविजयी, महा प्रतापी, ज्ञानवान, देवताओं के दर्प को भी चूर-चूर करने वाले रावण को भी नहीं छोड़ा था।
या फिर नजरों के सामने हैं - तिरुपति, वैष्णव देवी या शिरड़ीं ?

बुधवार, 29 सितंबर 2010

प्रख्यात फ़िल्म अभिनेता मोतीलाल को सिर्फ एक सिगरेट के कारण फ़िल्म छोड़नी पड़ी थी.

पहले के दिग्गज फिल्म निर्देशकों को अपने पर पूरा विश्वास और भरोसा होता था। उनके नाम और प्रोडक्शन की बनी फिल्म का लोग इंतजार करते थे। उसमे कौन काम कर रहा है यह बात उतने मायने नहीं रखती थी। कसी हुई पटकथा और सधे निर्देशन से उनकी फिल्में सदा धूम मचाती रहती थीं। अपनी कला पर पूर्ण विश्वास होने के कारण ऐसे निर्देशक कभी किसी प्रकार का समझौता नहीं करते थे। ऐसे ही फिल्म निर्देशक थे वही। शांताराम। उन्हीं से जुड़ी एक घटना का जिक्र है :-

#हिन्दी_ब्लागिंग 
उन दिनों शांतारामजी डा. कोटनीस पर एक फिल्म बना रहे थे "डा. कोटनीस की अमर कहानी।" जिसमें उन दिनों के दिग्गज तथा प्रथम श्रेणी के नायक मोतीलाल को लेना तय किया गया था। मोतीलाल ने उनका प्रस्ताव स्वीकार भी कर लिया था। शांतारामजी ने उन्हें मुंहमांगी रकम भी दे दी थी।
शांताराम 
पहले दिन जब सारी बातें तय हो गयीं तो मोतीलाल ने अपने सिगरेट केस से सिगरेट निकाली और वहीं पीने लगे। शांतारामजी बहुत अनुशासन प्रिय व्यक्ति थे। उनका नियम था कि स्टुडियो में कोई धुम्रपान नहीं करेगा। उन्होंने यह बात मोतीलाल से बताई और उनसे ऐसा ना करने को कहा। मोतीलाल को यह बात खल गयी, उन्होंने कहा कि सिगरेट तो मैं यहीं पिऊंगा। शांतारामजी ने उसी समय सारे अनुबंध खत्म कर डाले और मोतीलाल को फिल्म से अलग कर दिया। फिर खुद ही कोटनीस की भूमिका निभायी।
मोतीलाल 
इक्के-दुक्के निर्देशक को छोड़ क्या ऐसी हिम्मत है आज किसी निर्माता या निर्देशक में ?

मंगलवार, 28 सितंबर 2010

आस्कर रूपी छलावे के पीछे दौड़ते आमिर

बहुतों का मेरी इस सोच से इत्तफाक नहीं होगा। पर जितना ही आमिर जाहिर करते रहे हैं कि उन्हें पुरस्कारों से लगाव नहीं है उतना ही उनका झुकाव आस्कर की ओर नजर आने लगा है। जैसे वही एक लक्ष्य रह गया है उनके लिये। लगता है कि उनकी दिली तमन्ना है कि वे अपने प्रतिद्वदियों को दिखा दें कि क्या तुम और तुम्हारे "इंडियन एवार्ड" देखो मैं आस्कर ले कर आया हूं।
वैसे भी इस पुरस्कार की दौड़ में शामिल होते ही सुर्खियां बटुरने लगती हैं। यह साल में इक्का-दुक्का फिल्म करने वाले आमिर को खबरों में बनाये रखने के लिए संजीवनी सा काम भी करती रहती है। यह तो सच है कि आमिर की फिल्में अपने विरोधियों से सदा 21 ही रहती हैं भले ही कभी-कभी टिकट खिड़की पर उतना पैसा ना बटोर पाएं। पर इस बार जिस फिल्म पर उन्होंने आशा बांधी है वह पूरी होती नहीं लगती। 'पिपली लाइव' उस स्तर की फिल्म नहीं बन पाई है जो आस्कर को भारत ला सके। यदि इस फिल्म से आमिर का नाम हट जाए तो वह किस स्तर की रह जाती है ?

इस फिल्म को लेकर जो भी जो भी शोर-शराबा हुआ (36 गढ को छोड़ कर, यहां तो इससे भावनाएं जुड़ गयीं) यह जो भी रंग जमा सकी वह सिर्फ आमिर के नाम, दाम और प्रचार के कारण ही संभव हो पाया था। अब विदेश में भी पैसा और प्रचार आंधी-पानी की तरह बहेगा पर कोई सकारात्मक परिणाम निकलेगा इसमें................

काश आमिर "इकबाल" या "बम-बम भोले" जैसी फिल्मों से जुड़े होते।

सोमवार, 27 सितंबर 2010

नए भवनों पर बहुधा लगी "बजरबट्टू" की आकृति आखिर है किस की ?

अधिकांश नये और सुंदर बने भवनों पर एक ड़रावना कले रंग का चेहरा किसी हांडी या तख्ती पर बना छत के पास टंगा नजर आता है। जिसमें बड़ी-बड़ी मूंछें, लाल-लाल आंखें और बाहर निकले दांत दर्शाए गये होते हैं। ऐसी सोच है कि यह नये बने भवन को बुरी नजर से बचाता है। इसे ज्यादातर बजरबट्टू के नाम से जाना जाता है।
कौन है यह बजरबट्टू ? और कैसे यह बचाता है बुरी नजर से, यदि होती है तो?

पुराणों में इसके बारे में एक कथा है। जालंधर नाम का एक दैत्य हुआ करता था। उसने ब्रह्माजी को अपने तप द्वारा प्रसन्न कर असीम बल प्राप्त कर लिया था। जिसकी बदौलत उसने देवताओं को भी पराजित कर स्वर्ग पर अपना अधिकार जमा लिया था। इससे उसे अत्यधिक घमंड़ हो गया था और वह अपने समक्ष सबको तुच्छ समझने लग गया था। अहंकारवश वह नीति अनीती सब भुला बैठा था। हद तो तब हो गयी जब उसने अपने दूत के द्वारा भगवान शिव को पार्वतीजी को अपने हवाले कर देने का संदेश भिजवाया। स्वभाविक ही था शिवजी भयंकर रूप से क्रुद्ध हो उठे और उन्होंने अपना तीसरा नेत्र खोल दिया। नेत्र से भीषण तेज की ज्वाला निकली जिससे एक भयंकर दानव की उत्पत्ति हुई। उस ड़रावनी आकृति ने जैसे ही दूत पर आक्रमण किया वह तुरंत शिवजी की शरण में चला गया। इससे उसकी जान तो बच गयी पर उस दानव की जान पर बन आयी जो भूख से बुरी तरह व्याकुल था। उसने भगवान शिव से अपनी क्षुधा शांत करने की विनती की। तत्काल कोई उपाय ना हो पने के कारण शिवजी ने उसे अपने ही अंग खाने को कह दिया। भूख से विचलित उस दानव ने धीरे-धीरे अपने मुख को छोड़ अपना सारा शरीर खा ड़ाला।

वह आकृति शिवजी से उत्पन्न हुए थी इसलिए प्रभू को बहुत प्रिय थी। उन्होंने उससे कहा, आज से तेरा नाम कीर्तीमुख होगा और तू सदा मेरे द्वार पर रहेगा। इसी कारण पहले कीर्तीमुख सिर्फ शिवालयों पर लगाया जाता था। धीरे-धीरे फिर इसे अन्य देवालयों पर भी लगाया जाने लगा। समयांतर पर इसे बुराई दूर करने का प्रतीक मान लिया गया और यह आकृति बुराई या बुरी नजर से बचने के लिए भवनों पर भी लगाई जाने लगी। पता नहीं कब और कैसे यह मुखाकृति हड़िंयों या तख्तियों पर उतरती चली गयी। जैसा कि आजकल मकानों पर टंगी दिखती हैं। जिनकी ओर नजर पहले चली जाती है। इनके लगाने का आशय भी यही होता है।

इसी का बिगड़ा रूप ट्रकों या गाड़ियों के पीछे लटकते जूते भी हो सकते हैं।

शनिवार, 25 सितंबर 2010

कहते हैं तस्वीरें बोलती हैं, पर कौन सी भाषा :-)

कहते हैं तस्वीरें बोलती हैं। लो कर लो बातआप तो आनंद लीजिए इन बेंगलुरू तस्वीरों का। समझ में आए तो समझाने का कष्ट करें :-)





आज इतनी ही पचाईये कल कुछ और गरीष्ट का इंतजाम करता हूँ।



शुक्रवार, 24 सितंबर 2010

वृक्ष अकडा था या अन्याय के सामने तना था ?

वर्षों से एक कहानी पढाई/सुनाई जाती है कि एक घना वृक्ष था। विशाल, मजबूत, जिसकी छाया में इंसान हो या पशु सभी गर्मी से राहत पाते थे। उसकी ड़ालियों पर हजारों पक्षियों का बसेरा था। उस पर लगने वाले फल बिना भेदभाव के सब की क्षुधा शांत करते थे।

पर समय का फेर। एक बार भयंकर तूफान आया। ऐसा लगता था कि सारी कायनात ही खत्म हो कर रह जाएगी। लागातार पानी बरसता रहा। हवाओं ने जैसे सब कुछ उड़ा ले जाने की ठान रखी थी। प्रकृति के इस प्रकोप को वह वृक्ष भी सह नहीं पाया और जड़ से उखड़ गया।

दूसरे दिन उधर से एक ज्ञानी पुरुष अपने शिष्यों के साथ निकले। वृक्ष का हश्र देख उन्होंने अपने शिष्यों को उसे दिखा कर कहा कि देखो अहंकारी का अंत ऐसा ही होता है। घमंड़ के कारण यह विनाशकारी तूफान के सामने भी अकड़ा खड़ा रहा और मृत्यु को प्राप्त हुआ। उधर वह कोमल घास विपत्ति के समय झुक गयी और अब लहलहा रही है। इसे कहते हैं बुद्धिमत्ता।

बहुत बार मन में आया कि उस ज्ञानी पुरुष ने अपने शिष्यों को जो सबक सिखाया क्या वह सही था। वह यह भी तो बता सकते थे कि इसे कहते हैं वीरता, बहादुरी, अन्यायी के सामने ना झुकने का संकल्प। देखो और सीखो इस वृक्ष से। जिसने मरना मंजूर किया पर अन्याय के सामने झुका नहीं। वहीं यह मौकापरस्त घास है, जो लहलहा तो रही है पर हर कोई उसे रौंदता चला जाता है।

बुधवार, 22 सितंबर 2010

कामनवेल्थ खेल? नहीं जी, कामन-वेल्थ यानी सार्वजनिक धन

लगता है राष्ट्रमंडल खेलों को आयोजित करने की जबरन कोशिश गले की हड़्ड़ी बन गयी है। ठीक सांप-छछुंदर की दशा हो गयी है ना निगलते बनता है ना उगलते। हड़बड़ी का काम शैतान का होता है कहावत सही होती लग रही है। कभी कोई कमी उजागर होती है तो कभी कोई। आज पुल गिरा, कल सड़क उधड़ी थी, परसों पानी भर गया था। मुझे तो ड़र है कि बेचारा कोई जिमनास्ट अपनी हड़्ड़ी ना तुड़वा बैठे किसी कमजोर उपकरण पर करतब दिखाते हुए।

ये कामनवेल्थ खेल ना होकर सिर्फ कामन-वेल्थ यानी सार्वजनिक धन रह गया है। मौका है जो जहां है बटोर ले। बदनामी का क्या है, लोगों की यादाश्त बहुत कमजोर होती है, साल-छह महीनों में सब भूल भाल जाएंगे। नहीं भी भूले तो कौन किसका क्या बिगाड़ लेगा?

सोमवार, 20 सितंबर 2010

एक अनोखा संग्रहालय, शौचालयों का




दुनिया के हर देश मे तरह-तरह के संग्रहालय हैं। जिनमें कोशिश की गयी है अपने-अपने देश के इतिहास, विज्ञान, कला-संस्कृति को सहेज कर रखने की। पर कभी आपने किसी ऐसी चीज के म्यूजियम के बारे में सुना है जो जिंदगी तो क्या रोजमर्रा में काम आने वाली अहम वस्तु है। शायद सुना भी हो।
"शौचालयों का म्यूजियम।" जिसे अंजाम दिया है देश में इंसान को अपने सर पर ‘मैला’ ढोने के अभिशाप से मुक्ति दिलवाने के लिये “सुलभ शौचालयों” की श्रृंखला बनाने वाले डा विंधेश्वरी पाठक ने। अपने एन.जी.ओ. द्वारा।
बिहार से शुरुआत कर सारे देश में धीरे-धीरे स्वच्छता का विस्तार करने वाले पाठकजी के मन में एक ऐसा संग्रहालय बनाने की बात आई जिसमें इस अहम वस्तु के इतिहास और समय-समय पर हुए बदलाव के बारे में पूरी जानकारी हासिल हो। इस योजना को मूर्त रूप देने में इनको अपना अमूल्य समय और ऊर्जा खपानी पड़ी। उन्होंने देश विदेश में आधुनिक और पुरातन काल में काम मे आने वाले शौचालयों के बारे में छोटी से छोटी जानकारी हासिल की। इसके लिये वह जगह-जगह विशेषज्ञों, जानकारों के अलावा अलग-अलग देशों के दूतावासों, उच्चायुक्तों से मिले जिन्होंने उनकी पूरी सहायता कर उन्हें इस क्षेत्र में समय-समय पर आए बदलाव, तकनिकी और शोध की विस्तृत जानकारी तथा फोटो वगैरह उपलब्ध करवाए। जो दिल्ली में "पालम-दाबड़ी मार्ग पर स्थित महावीर एन्कलेव" मे बने संग्रहालय में आम जनता के लिए उपलब्ध हैं। इस अजायबघर का उद्देश्य है, इस क्षेत्र में समय-समय पर आए बदलाव और विकास की लोगों को जानकारी देना । जिससे इस क्षेत्र से सम्बंधित लोगों को अपनी वस्तुएं बनाने में उपयोगी जानकारी मिल सके। जिससे वातावरण को दुषित होने से बचाया जा सके और प्रकृति को स्वच्छ रखने मे मदद मिल सके।
इस जगह का उचित प्रचार नहीं हो पाया है। यही कारण है कि दुनिया के इस एकमात्र अजूबे को देश-विदेश की तो क्या ही कहें, अधिकाँश दिल्ली वासियों को भी इसकी खबर नहीं है।










रविवार, 19 सितंबर 2010

पढ़िए, गुदगुदाएंगे जरूर,

आज सबेरे की अखबार में छपे कुछ चुटकुले गुदगुदा गए। सोचा खुशी बाँट ली जाए।

# पति - हमारी शादी को इतने साल हो गये पर तुम्हारा तेरा-मेरा खत्म नहीं हुआ। हर समय यह मेरे पैसे, मेरे गहने, मेरे बच्चे मेरा घर करती हो। कभी तो यह हमारा है, कहा करो।अब इतनी देर से क्या खोज रही हो अलमारी मे?हमारा पेटीकोट। पत्नी ने जवाब दिया।

# शर्माजी ने अपने पोते से कहा, बेटा एक ग्लास पानी ले आ। पोता बोला मैं अपना काम कर रहा हूं, मैं नहीं जाता।पास बैठा दूसरा पोता बोला, दादू ये बहुत बदतमीज है, बात नहीं सुनता। आप खुद ही जा कर ले लीजिए।

# छेदी लाल अपनी कार के लोन की किस्त नहीं चुका पाया था जिसके फलस्वरूप बैंक वाले उसकी कार उठा कर ले गये थे। वह बैठा-बैठा सोच रहा था कितना अच्छा होता यदि उसने अपनी शादी के लिए लोन लिया होता।

क्या आपने किसी ऐसे संग्रहालय के बारे में सुना है जो सिर्फ शौचालयों को समर्पित हो? वह भी अपने देश में? कल देखते हैं, कैसा है यह अनोखा, अनूठा म्यूजियम जिसमे प्राचीन काल से लेकर आधुनिक काल तक का इतिहास समेट रखा है दिनचर्या की इस अहम् वस्तु का।

शनिवार, 18 सितंबर 2010

हवाई जहाज और नेता महाराज

बाल दिवस पर सरकार की तरफ से बच्चों को हवाई जहाज की सैर करवाने का इंतजाम किया गया। छोटे प्लेन में पाइलट के अलावा एक टीचर के साथ तीन बच्चों को एक बार में घूमाने की व्यवस्था थी। एक-दो उड़ानों के बाद वहां एक नेताजी आ पहुंचे और समझाने के बावजूद, हम तो नेता हूं। हम भी मजा लूंगा बोले और जबरन प्लेन में सवार हो गये। उनके कारण दो बच्चों को नीचे ही रहना पड़ा। ऊपर पहुंचते ही प्लेन में कुछ खराबी आ गयी। पाइलट ने कहा कि सिर्फ तीन ही पैराशूट हैं एक मेरा है मैं तो कूद रहा हूं, और वह ये गया वो गया। बचे दो में से एक नेताजी ने उठा लिया बोले, हम तो नेता हूं, देश को हमरा बहूत जरूरत है, और दन से कूद गये। जहाज तेजी से नीचे की ओर जा रहा था। गुरुदेव बोले, बेटा हम दोनों में से एक ही जान बचा सकता है, मैंने तो अपनी जिंदगी जी ली है। तुम्हारे सामने भविष्य बाहें फैलाये खड़ा है। बचे हुए पैराशूट को बांधो, और जल्दी से अपनी जान बचा लो। बच्चा बोला, हम दोनों को कुछ नहीं होगा सर, यहां दो पैराशूट हैं। नेताजी तो मेरा स्कूल बैग ले कूद गये हैं।

जहाज ने जैसे ही उड़ान भरी नेताजी जनरल क्लास से उठ पहले दर्जे में जा विराजे। होस्टेस ने उन्हें बहुत समझाया कि आपका टिकट इस दर्जे का नहीं है आप अपनी जगह जा कर बैठें। नेताजी उसकी जुर्रत पर आग-बबूला हो गये, बोले तुम जानती नहीं हम कौन हैं? एक इशारा करेंगे और तुमरा ई उड़न खटोला बंद हो कर रह जाएगा, समझी, जाओ अपना काम करो।बेचारी होस्टेस घबरा गयी उसने जा कर पाइलट को इसकी जानकारी दी। पाइलट उठा उसने नेता को कुछ कहा, नेता महाराज उसी समय उठ कर अपनी जगह जा विराजे।इतनी जल्दी और इतनी शांति के साथ सब हो जाने पर आश्चर्यचकित एयर-होस्टेस ने पाइलट से पूछा कि सर आपने ऐसा क्या कह दिया जिससे वह बंदा बिना किसी हील-हुज्जत के यहां से उठ गया? अरे कुछ नहीं मैंने उससे कहा, सर आपको तो दिल्ली जाना है, यह ट्रेन तो है नहीं कि सारी की सारी गाड़ी एक ही जगह जाती हो। यह तो हवाई जहाज है और आपकी सीट दिल्ली जा रही है यह वाली नहीं।

शुक्रवार, 17 सितंबर 2010

मेरे शेव करने पर तो आपकी भाभी ही नोटिस नही करतीं, पर वहाँ.....

मेरे मित्र त्यागराजनजी बहुत सीधे, सरल ह्रदय और खुशदिल इंसान हैं। किसी पर भी शक, शुबहा करना उन्होंने तो जैसे सीखा ही नहीं है। अक्सर हम संध्या समय चाय-बिस्कुट के साथ अपने सुख-दुख बांटते हुए दुनिया जहान को समेटते रहते हैं। पर कल जब वह आए तो कुछ अनमने से लग रहे थे, जैसे कुछ बोलना चाहते हों पर झिझक रहे हों। मैंने पूछा कि क्या बात है? कुछ परेशान से लग रहे हैं। वे बोले नहीं ऐसी कोई बात नहीं है। मैंने कहा कुछ तो है जो आप मूड़ में नहीं हैं। वे धीरे से मुस्कुराए और बोले कोई गंभीर बात नहीं है कुछ शंकाएं हैं, पर आप बोलोगे कि पता नहीं आज कैसी बातें कर रहा हूं। मैंने कहा, अरे हमारे बीच ऐसी औपचारिकता कहां से आ गयी? खुल कर कहिये क्या बात है। वे बोले टी.वी. में इतने सारे विज्ञापन आते हैं तरह-तरह की हरकतों के साथ। उनमें से अधिकांश को समाज के शिखर पर बैठी बड़ी-बड़ी हस्तियां पेश करती हैं। पर अधिकतर विज्ञापनों के दावे गले नहीं उतरते। सच तो प्रस्तुत करने वाले भी जानते ही होंगे फिर उनकी क्या मजबूरी है, ना उन्हें पैसे की कमी है ना ही शोहरत की, फिर क्यूं वे ऐसा करते हैं? अब जैसे मैं रुक्षता के बचाव की खातिर एक क्रीम शाहरूख के समझाने के वर्षों पहले से लगा रहा हूं, पर मेरा रंग वैसे का वैसा ही सांवला है। मुझे लगा कि इतना बड़ा हीरो झूठ थोड़े ही बोलेगा। मेरी स्किन में ही कोई गड़बड़ी ना हो। मैं अपनी हंसी दबा कर बोला, क्या महाराज आप भी किसकी बातों में आ गये? अरे वहां सब पैसों का खेल है, उसकी बातों में सच्चाई होती तो उस क्रीम के निर्माता अपनी फैक्टरी अफ्रिका में लगाए बैठे होते, जहां चौबिसों घंटे बारहों महीने लगातार उत्पादन कर भी वे वहां की जरूरत पूरी नहीं कर पाते पर करोंड़ों कमाते। त्यागराजनजी कुछ उत्साहित हो बोले, वही तो, मैं समझ तो रहा था पर ड़ाउट क्लियर करना चाहता था। अब देखीए एक विज्ञापित ब्लेड़ से मैं दाढी बनाते आ रहा हूं, पर बाहर किसी कन्या ने तो क्या ही कहना आपकी भाभी ने भी कभी नोटिस नहीं लिया कि मैंने शेव बनाई भी है कि नहीं। और उधर शेव बनने की देर है और कन्या हाजिर। वैसे आप तो मुझे जानते ही हैं कि यदि ऐसा कोई हादसा मेरे शेव करने पर होता तो मैं तो शेव बनाना ही बंद कर देता। मैं बोला यह सब बाजार की तिकड़में हैं जिनमें रत्ती भर भी सच्चाई नहीं होने पर भी लोग बेवकूफ बनते रहते हैं। इनका निशाना खासकर युवा वर्ग होता है। आप एक बात बताईये, आप इतना घूमते रहते हैं। हर छोटे-बड़े शहर में आपका जाना होता है। जहां तरह-तरह के लोग किस्म-किस्म के परफ्यूम लगाए मिलते होंगे। पर कभी आपने किसी एंड़-बैंड़-मोटरस्टैंड़ छोकरों के पीछे बदहवास सी कन्याओं को दौड़ते देखा है? अरे महिलाएं अच्छे-बुरे की पहचान मर्दों से ज्यादा रखती हैं। मुझे तो आश्चर्य है कि महिलाओं की प्रगति की बात करने वाले किसी भी संगठन ने ऐसे घटिया विज्ञापनों पर रोक लगाने की कोशिश तक नहीं की है अब तक। अच्छा बताईये भाभीजी के साथ साड़ी वगैरह तो लेने गये होंगे कभी? किसी भी दुकान में लटके-झटकों के साथ साड़ी बिकते देखी है कभी? कभी किसी बीमा एंजेंट को बस या ट्रेन में बिमा पालिसी बेचते देखा है? किसी भी पैथी की दवा खा कर कोई शतायू हो सका है? किसी पेय को पी कर किसी बच्चे को ताड़ बनते देखा है? कुदरत ने हमें जैसा बनाया है वही अपने आप में अजूबा है हमें अपनी कमजोरियां दिखती हैं पर अपनी खूबियों को हम नजरंदाज करते रहते हैं। हमें लगता है कि मैं ऐसा हूं तो लोग क्या कहेंगे, अरे कौन से लोग? दुनिया में कौन है जो पूरी तरह से देवता का रूप ले पैदा हुआ है? यह जो पैसा लेकर उल्टी-सीधी बातें हमें समझाते हैं, वे खुद पच्चीसों बिमारियों से घिरे हुए हैं। दुनिया में गोरों की संख्या से कहीं ज्यादा काले, पीले, गेहुंयें रंग वालों की तादाद है। एक अच्छी खासी तादाद नाटे लोगों की है। करोंड़ों लोगों का वजन जिंदगी भर पचास का आंकड़ा नहीं छू पाता। लाखों लोग मोटापे की वजह से ढंग से हिल-ड़ुल नहीं पाते। पर आप अपनी ओर देखीये आज भी आप पांच-सात कि.मी. चलने के बावजूद थकते नहीं हैं यह भी तो भगवान की अनमोल देन है आपको। आप जो हैं खुद में एक मिसाल हैं इन टंटों में ना पड़ मस्त रहिए बिंदास होकर प्रभू द्वारा दी गयी जिन्दगी का आनन्द लीजिए। मेरे इतने लंबे भाषण से त्यागराजनजी को कुछ कुछ रिलैक्स होता देख मैंने अंदर की ओर आवाज लगाई कि क्या हुआ भाई, आज चाय अभी तक नहीं आई? तभी श्रीमतीजी चाय की ट्रे लिए नमूदार हो गयीं। चाय का पहला घूंट लेते ही त्यागराजनजी बोले, भाभीजी यह वही ताजगी वाली चाय है ना जिसमें पांच जड़ी बूटियां पड़ी होती हैं? बहुत रोकते, रोकते भी मेरा ठहाका निकल ही गया।

गुरुवार, 16 सितंबर 2010

प्रेम की पराकाष्ठा











भगवान से प्रेम बहुत से लोग करते हैं। पहुंचे हुए संतों ने उनकी उपस्थिति भी महसूस की है, कहते हैं। हमने उसे सदा सर्वशक्तिमान ही माना है। उसके थकने की तो कोई कल्पना भी नहीं कर पाया है। पर विदेशी भक्तों का प्रेम सराहनीय है जिनकी सोच ने, प्रेम ने, ममता ने लगातार एक ही स्थिति में खड़े प्रभू को जरा आराम देने की सोची, उनकी बांह के नीचे सहारा देकर।




उसपर छवि कितनी सुन्दर हैं, आखें ही नहीं हटती।

मंगलवार, 14 सितंबर 2010

लागोस से ई-मेल पर मिली एक मार्मिक घटना का ब्योरा. एक नजर जरूर डाल लें

जिस मित्र ने यह ब्योरा भेजा है उनका कहना है कि यह सच्ची घटना है। इसे मैंने कल पोस्ट किया था पर मुझे लगा कि इसे ज्यादा लोगों तक पहुंचाना चाहिए इसीलिए आज फिर आपके सामने रख रहा हूँ।
अन्यथा न लें।

शनिवार का दिन था। मैं कुछ सामान लेने ‘बिग बाजार’ गया हुआ था।वहीं एक खिलौने की दुकान पर दुकानदार और एक 6-7 साल के बच्चे की बातचीत सुन कर ठिठक गया। दुकानदार बच्चे से कह रहा था कि बेटा तुम्हारे पास इस गुड़िया को लेने के लिए प्रयाप्त पैसे नहीं हैं। बच्चा उदास खड़ा था। तभी मुझे वहां देख वह मेरे पास आया और अपने पैसे मुझे दिखा पूछने लगा, अंकल क्या यह पैसे कम हैं? मैंने उसके पैसे गिने और उसके हाथ में पकड़ी गुड़िया की कीमत देख उससे कहा, हां बेटा पैसे तो कम हैं। फिर उससे पूछा तुम यह गुड़िया किस के लिए लेना चाहते हो? उसने जवाब दिया इसे मैं अपनी बहन को उसके जन्म दिन पर देना चाहता हूं। मैं इसे ले जा कर अपनी मम्मी को दूंगा जो मेरी बहन के पास जा रही है। बोलते-बोलते उसकी आंखों में आंसू भर आए। वह कहता जा रहा था, मेरी बहन भगवान के पास चली गयी है और मेरे पापा ने बताया है कि मेरी मम्मी भी जल्दी ही उसके पास जा रही है। तो यह गुड़िया अपनी बहन के पास भेजनी है। मैं पापा से कह कर आया हूं कि जब तक मैं वापस ना आऊं, मम्मी को जाने मत देना।
यह सब सुन मैं धक से रह गया। इतने में उसने अपना एक सुंदर सा फोटो निकाला जिसमें उसके हंसते हुए की तस्वीर थी। मुझे दिखा कर बोला इसे भी मैं गुड़िया के साथ भेजुंगा जिससे मेरी बहन मुझे याद रख सके। मैं अपनी मम्मी से बहुत प्यार करता हूं वह मुझे छोड़ कर जा रही है मुझे बिल्कुल अच्छा नहीं लग रहा है पर वहां मेरी बहन भी अकेली है। उसने फिर हाथ में पकड़ी गुड़िया को देखा और उसकी आंखों से आंसू बहने लगे। मैंने उससे छिपा कर अपना पर्स निकाल कर कुछ पैसे अपनी मुट्ठी में ले लिए और उससे कहा कि आओ एक बार फिर पैसे गिन कर देखते हैं। उसने अपने पैसे मेरी ओर बढा दिए। मैने अपने पैसे भी उन पैसों में मिला दिए। इस बार गिनने पर रकम गुड़िया की कीमत से कुछ ज्यादा ही निकली। यह देख बच्चा बोला मैं जानता था कि भगवान जरूर पैसे भेजेंगे। कल रात ही मैंने गुड़िया खरीदने के लिए उनसे पैसे भेजने की प्रार्थना की थी। मेरी मम्मी को सफेद गुलाब बहुत अच्छे लगते हैं पर उसके लिए मैंने भगवान से पैसे नहीं मांगे मुझे ड़र था कि ज्यादा मांगने से वे नाराज हो जाएंगे पर उन्होंने अपने आप ही और पैसे भेज दिए।

उस दिन मैं और कोई काम नहीं कर पाया और घर वापस आ गया। तभी मुझे दो दिन पहले स्थानीय अखबार में छपी एक खबर की याद आयी जिसमें बताया गया था कि एक शराबी ट्रक चालक ने हाई-वे पर एक कार, जिसमें एक युवती और एक बच्ची सवार थी, को रौंद ड़ाला था। बच्ची की वहीं मृत्यु हो गयी थी और युवती कोमा की हालत में अस्पताल में दाखिल थी।
क्या यही वह परिवार तो नहीं?

दूसरे दिन की अखबार में उस युवती की मौत का समाचार था। मैं अपने को रोक नहीं पाया और सफेद गुलाबों का एक गुच्छा लेकर अखबार में दिए गये पते पर चला गया। वहां अंतिम यात्रा की तैयारियां हो रही थीं। एक ताबूत में एक युवती का शव अंतिम दर्शनों के लिए रखा हुआ था। युवती के एक हाथ में एक सफेद गुलाब का फूल था, उसकी बगल में एक गुड़िया रखी हुए थी तथा उसके सीने पर उसी बच्चे की हंसती हुई तस्वीर पड़ी थी। मैं अपने आंसू नहीं रोक पा रहा था, पुष्प गुच्छ चढा तुरंत वहां से निकल आया।

सोच रहा था कि कैसे एक लापरवाह शराबी की शराब की लत ने उस मासूम बच्चे, जिसे मौत का अर्थ भी नहीं मालुम, उसका अपनी मां से लगाव अपनी बहन से प्यार और एक हंसते खेलते परिवार को पल भर में बर्बाद कर रख दिया।

कब समझेंगे लोग शराब की बुराईयां?
कम से कम गाड़ी चलाते समय अपने और दूसरों के परिवार का तो ख्याल करें।

सोमवार, 13 सितंबर 2010

लागौस से ई-मेल द्वारा मिली एक मार्मिक घटना का ब्योरा.

शनिवार का दिन था। मैं कुछ सामान लेने ‘बिग बाजार’ गया हुआ था।
वहीं एक खिलौने की दुकान पर दुकानदार और एक 6-7 साल के बच्चे की बातचीत सुन कर ठिठक गया। दुकानदार बच्चे से कह रहा था कि बेटा तुम्हारे पास इस गुड़िया को लेने के लिए प्रयाप्त पैसे नहीं हैं। बच्चा उदास खड़ा था। तभी मुझे वहां देख वह मेरे पास आया और अपने पैसे मुझे दिखा पूछने लगा, अंकल क्या यह पैसे कम हैं? मैंने उसके पैसे गिने और उसके हाथ में पकड़ी गुड़िया की कीमत देख उससे कहा, हां बेटा पैसे तो कम हैं। फिर उससे पूछा तुम यह गुड़िया किस के लिए लेना चाहते हो? उसने जवाब दिया इसे मैं अपनी बहन को उसके जन्म दिन पर देना चाहता हूं। मैं इसे ले जा कर अपनी मम्मी को दूंगा जो मेरी बहन के पास जा रही है। बोलते-बोलते उसकी आंखों में आंसू भर आए। वह कहता जा रहा था, मेरी बहन भगवान के पास चली गयी है और मेरे पापा ने बताया है कि मेरी मम्मी भी जल्दी ही उसके पास जा रही है। तो यह गुड़िया अपनी बहन के पास भेजनी है। मैं पापा से कह कर आया हूं कि जब तक मैं वापस ना आऊं, मम्मी को जाने मत देना।
यह सब सुन मैं धक से रह गया। इतने में उसने अपना एक सुंदर सा फोटो निकाला जिसमें उसके हंसते हुए की तस्वीर थी। मुझे दिखा कर बोला इसे भी मैं गुड़िया के साथ भेजुंगा जिससे मेरी बहन मुझे याद रख सके। मैं अपनी मम्मी से बहुत प्यार करता हूं वह मुझे छोड़ कर जा रही है मुझे बिल्कुल अच्छा नहीं लग रहा है पर वहां मेरी बहन भी अकेली है। उसने फिर हाथ में पकड़ी गुड़िया को देखा और उसकी आंखों से आंसू बहने लगे। मैंने उससे छिपा कर अपना पर्स निकाल कर कुछ पैसे अपनी मुट्ठी में ले लिए और उससे कहा कि आओ एक बार फिर पैसे गिन कर देखते हैं। उसने अपने पैसे मेरी ओर बढा दिए। मैने अपने पैसे भी उन पैसों में मिला दिए। इस बार गिनने पर रकम गुड़िया की कीमत से कुछ ज्यादा ही निकली। यह देख बच्चा बोला मैं जानता था कि भगवन जरूर पैसे भेजेंगे। कल रात ही मैंने गुड़िया खरीदने के लिए उनसे पैसे भेजने की प्रार्थना की थी। मेरी मम्मी को सफेद गुलाब बहुत अच्छे लगते हैं पर उसके लिए मैंने भगवान से पैसे नहीं मांगे मुझे ड़र था कि ज्यादा मांगने से वे नाराज हो जाएंगे पर उन्होंने अपने आप ही और पैसे भेज दिए।

उस दिन मैं और कोई काम नहीं कर पाया और घर वापस आ गया। तभी मुझे दो दिन पहले स्थानीय अखबार में छपी एक खबर की याद आयी जिसमें बताया गया था कि एक शराबी ट्रक चालक ने हाई-वे पर एक कार, जिसमें एक युवती और एक बच्ची सवार थी, को रौंद ड़ाला था। बच्ची की वहीं मृत्यु हो गयी थी और युवती कोमा की हालत में अस्पताल में दाखिल थी।
क्या यही वह परिवार तो नहीं?

दूसरे दिन की अखबार में उस युवती की मौत का समाचार था। मैं अपने को रोक नहीं पाया और सफेद गुलाबों का एक गुच्छा लेकर अखबार में दिए गये पते पर चला गया। वहां अंतिम यात्रा की तैयारियां हो रही थीं। एक ताबूत में एक युवती का शव अंतिम दर्शनों के लिए रखा हुआ था। युवती के एक हाथ में एक सफेद गुलाब का फूल था, उसकी बगल में एक गुड़िया रखी हुए थी तथा उसके सीने पर उसी बच्चे की हंसती हुई तस्वीर पड़ी थी। मैं अपने आंसू नहीं रोक पा रहा था, पुष्प गुच्छ चढा तुरंत वहां से निकल आया।

सोच रहा था कि कैसे एक लापरवाह शराबी की शराब की लत ने उस मासूम बच्चे, जिसे मौत का अर्थ भी नहीं मालुम, उसका अपनी मां से लगाव अपनी बहन से प्यार और एक हंसते खेलते परिवार को पल भर में बर्बाद कर रख दिया।

कब समझेंगे लोग शराब की बुराईयां?
कम से कम गाड़ी चलाते समय अपने और दूसरों के परिवार का तो ख्याल करें।

शनिवार, 11 सितंबर 2010

शुक्र है पत्थर तो उछला, आसमां में सुराख हो ना हो

आजादी के पहले देश के वाशिंदों के लक्ष्य, भावनाएं, इच्छाएं करीब-करीब एक जैसे ही थे। एक ही उद्देश्य था अंग्रेजों को निकाल बाहर करना। पर विभाजन के बाद दोनों पड़ोसी फिर कभी एकमत ना हो पाए। कहते हैं कि खेल दिलों को जोड़ने का काम करते हैं। पर यहां तो खेलों से भी तनाव बढता ही दिखा है। चाहे हाकी हो या क्रिकेट, आपस के मैचों के दौरान फिजा में तलखी ही घुली रहती है। लगता है खेल नहीं युद्ध हो रहा हो। इस समय भावनाएं अपने चरम पर होती हैं। जिसमें जीतने वाला ऐसे जश्न मनाता है जैसे विश्वविजय प्राप्त कर ली हो। हारने वाला ऐसे शोकग्रस्त हो जाता है जैसे घर में गमी हो गयी हो। पर लंबे अर्से के बाद तनाव की तपती धूप में हल्के बादलों के छाने का एहसास हो रहा है। ठंड़ी ब्यार के रूप में दो ऐसी बातें सामने आईं हैं जो जले पर फाहे का काम कर रही हैं। उन्होंने वर्षों से सुप्त झील में लहरें भले ही ना उठा दी हों पर एक छोटी सी हलचल तो पैदा कर ही दी है।

पहले नम्बर पर है भारत के बेंगलुरु में जन्मे रोहन बापन्ना और पाकिस्तान के लाहौर में पैदा हुए एसाम कुरैशी जो 2007 से टेनिस के ड़ब्लस में एक दूसरे के जोड़ीदार बन कर धीरे-धीरे इस खेल में उचाईयों की ओर अग्रसर हैं। अभी-अभी अमेरिकी ओपेन में दोनों ने फायनल में जगह बना एक नया मुकाम बनाया है। दोनों युवक प्रेम और सौहाद्र की भावना से भरपूर हैं। उनकी दिली ख्वाहिश है कि दोनों देशों के बीच प्रेम का दरिया बहे। उनका पसंदिदा वाक्य है "युद्ध रोको, टेनिस खेलो"।
जाहिर है जब दोनों मैदान में होते हैं तो दोनों देशों के रहवासी उनकी जीत की प्रार्थना एक साथ करते हैं।

मैं टी.वी. बहुत ही कम देखता हूं। पर इस जानकारी के बाद कोशिश करूंगा उस "शो" को देखने की जिसके बारे में बताने जा रहा हूं। सुनने में आया है कि छोटे पर्दे पर एक अलग तरह का शो चल रहा है "छोटे उस्ताद-दो देश एक आवाज।" इसमें भारत और पाकिस्तान के बच्चे हिस्सा ले रहे हैं। पर आपस में प्रतिद्वंदिता नहीं कर रहे हैं बल्कि साथ गा रहे हैं। इसमें टीमें ऐसे बनाई गयीं हैं कि हर टीम के दो बच्चों में एक भारत का है तथा दूसरा पाकिस्तान का। दोनों मिल कर अपनी टीम को जिताने की कोशिश करते हैं ।
अब चूंकी टीम में बच्चे दोनों देशों के हैं तो अपनी पसंदिदा जोड़ी को जिताने के लिए दोनों देशों के नागरिल एकजुट हो वोट करेंगे। तो चाहे जैसे भी हो स्नेह की ड़ोर तो बंधेगी ही। यह जिसके भी दिमाग की उपज हो, बधाई का पात्र है।

इतिहास गवाह है कि देशों ने, अवाम ने तभी तरक्की की है जब संसार अमन, चैन, प्यार और भाईचारे की प्राण वायु में सांस लेता रहा है। नफरत और ईर्ष्या की कोख से तो सदा तबाही ने ही जन्म लिया है।

शुक्रवार, 10 सितंबर 2010

३६गढ़ की सही तस्वीर सामने आने लगी है.

खुशी की बात है, देर से ही सही, लोग सच्चाई जानने तो लगे हमारे प्रदेश की।
दिल्ली से मिली एक ई-मेल :-

RAIPUR: In the news more for its chronic insurgeny and tribal poverty, Chhattisgarh will soon boast of one of India's most advanced, eco-friendly modern cities that will be the new capital of the mineral-rich state.

Located about 20 km east of the present capital Raipur, Naya Raipur has been designed on the lines of Malaysia's hi-tech capital complex at Putrajaya, outside Kuala Lumpur, and is expected to cater to the infrastructural needs of industry and trade in the region।

"Some 90-95 percent land acquisition has been completed and we are shifting to a new state secretariat building in Naya Raipur, the 21st century's first high-tech modern city of India, any time late this year, followed by head of department buildings within the next three-four months,
N. Baijendra Kumar,
vice-chairman of the Naya Raipur Development Authority (NRDA),

बुधवार, 8 सितंबर 2010

माने या ना माने पर यह सच ! ! !

विश्वास क्या है और अंधविश्वास क्या है इसके झमेले में नहीं पड़ें तो अच्छा। अरे भाई जिसकी जैसी मर्जी उसे वैसे जीने दो। बड़े-बड़े संत, महात्मा, अवतार आ-आ कर चले गये। समझाते-समझाते सदियां बीत गयीं पर क्या सोच बदली? पर आज भी किसी के विश्वास को अंधविश्वास बता या किसी को दकियानूसी कहने का प्रचलन खत्म नहीं हो पाया है। दोनो पक्ष जुटे हुए हैं एक दूसरे की ऐसी की तैसी करने में। हमें क्या लगे रहो। आज एक ऐसी घटना का जिक्र कर रहा हूं जिसके प्रत्यक्षदर्शियों से तो मुलाकात नहीं हो सकी पर सुने हुए को सुनाने वाले बहुत मिले। अब यह आप पर है कि इस सारी घटना को आप सच माने या फिर तार्किकता के तराजू पर तौलते रहें।

बात किसी पिछड़े प्रदेश की ना हो कर बंगाल की है। उत्तर 24परगना के कांकीनाड़ा, दक्षिण वाला काकीनाड़ा नहीं, कस्बे में विभूति नाम का एक आदमी रहा करता था। परिवार के नाम पर सिर्फ दो ही प्राणी थे, विभूति और उसकी पत्नी तारा। विभूति सम्पन्न था। भगवान की दया से किसी चीज की कमी नहीं थी, सिवाय औलाद के। बहुतेरे इलाज, टोने-टोटके, झाड़-फूंक के बावजूद घर में बच्चे की किलकारी नहीं गूंज पाई थी। उम्र के साथ-साथ दोनों की हताशा भी बढती जाती थी। यही दिन थे त्योहारों का समय शुरु होने वाला था कि एक दिन शक्तिपीठ से घूमते-घूमते एक सन्यासी कांकीनाड़ा आ पहुंचे। दैवयोग से उनका ठहरना भी विभूति के यहां ही हुआ। सारी दिनचर्या स्वाभाविक, सरल तरीके से होने के बावजूद साधू महाराज ने दम्पत्ति की उदासी को भांप लिया। कुरेदने पर विभूति के सब्र का बांध टूट गया और उसने अपने दुख को साधू के सामने खोल कर रख दिया। उन्होंने कुछ सोचा फिर ध्यान लगाया और कुछ देर बाद बोले, तुम्हारे दुख का निवारण हो सकता है पर तुम्हें थोड़ा प्रयास करना होगा। विभूति तो कुछ भी करने को तैया था। उसने हां की तो साधू ने बताया कि बंगाल-बिहार की सीमा पर रेल की हावड़ा दिल्ली मेन लाइन पर झाझा नामक एक जगह है। उसके रेल्वे स्टेशन से लगी हुई एक भगवा रंग लिए हुए लाल रंग की पहाड़ी है। उस की चोटी पर मनोकामना देवी का मंदिर है। उस मंदिर में तुम्हें अखंड़ ज्योति जलानी होगी। तुम जाकर दीपक जला किसी को उसका ध्यान रखने का भार सौंप कर आ सकते हो। प्रभू ने चाहा तो तुम्हारी इच्छा जरूर पूरी होगी। इतना कह साधू महाराज अपनी यात्रा पर आगे बढ गये। विभूति को कहां चैन था दूसरे दिन ही वह अपने गंतव्य की ओर रवाना हो गया और दीपक जला उसकी देखभाल का जिम्मा पुजारी को सौंप कर वापस आ गया। भगवान की अद्भुत माया, सालों से विरान उसके घर में अगले साल ही पुत्र रत्न का जन्म हो गया।

समय बीतता गया। तीन साल कैसे बीत गये पता ही नहीं चला। अचानक एक दिन वही सन्यासी बाबा फिर विभूति के घर आ पहुंचे। तारा ने खुशी-खुशी उनका स्वागत किया। सारा घर बच्चों की किलकारियों से गूंज रहा था। तारा भी बहुत खुश नजर आ रही थी। साधू महाराज ने चारों ओर नजर दौड़ाई पर विभूति कहीं नजर नहीं आ रहा था। उन्होंने तारा से उसके बारे में पूछा तो उसने कुछ झिझकते हुए कहा, महाराज आपके आशिर्वाद से पहले साल हमें एक पुत्र की प्राप्ति हुई। फिर दूसरे साल जुड़वां बच्चों ने जन्म लिया। तीसरे साल जब एक साथ तीन बच्चे हमारी गोद में आये तो हम दोनों को कुछ चिंता और घबड़ाहट हो गयी। इसीलिए विभूति उस जलती ज्योति को ठंड़ा करने गये हैं।

मंगलवार, 7 सितंबर 2010

कैसा कैसा ऐसा भी होता है :-)

अरजेंटाइना के ब्यूनस आयर्स के एक मदिरालाय में श्रीमान गोमेज ने एक अनोखी शर्त जीती। उसने शीर्षासन करते हुए बीयर की दस बोतलें पी ड़ालीं।

अपने यहां जनहित में अखबारों में बहुत कुछ छपता रहता है। ऐसे ही जरमनी की एक पत्रिका में अपने पाठकों के लाभ के लिए एक लेख छापा "बिना टिकट लिए रेल यात्रा कैसे करें"। यह अलग बात है कि रेलवे ने पत्रिका पर हजारों पौंड़ का मामला दायर कर दिया, अपने नुक्सान की भरपाई के लिए।

मलेशिया के ब्रिलियंट यंग ने अपने नाम को सार्थक कर दिया। 68 साल की उम्र में उनके तीसरी बार दांतों की पंक्ति निकली।

टोंगा के मछुआरे एलोटे साबू ने अपनी प्रेमिका को मछली पकड़ने वाले जाल में ड़ाल कर समुद्र में फेंक दिया, इतना ध्यान रखा कि ड़ूबे नहीं, पर धमकी देता रहा कि जब तक उससे विवाह को राजी नहीं हो जाएगी वह उसे समुद्र से बाहर नहीं निकालेगा। अदालत ने साबू पर भारी जुर्माना ठोक ड़ाला।

सलमान खान कुछ कहना चाहेंगे ????? :-)

रविवार, 5 सितंबर 2010

शिक्षक दिवस पर ई-मेलीय गुरु मन्त्र

When Snake is alive, Snake eats Ants. When Snake is dead, Ants eat Snake. Time can turn at any time. Don't neglect anyone in your life........ .

Never make the same mistake twice, There are so many new ones, Try a different one each day.

A good way to change someone's attitude is to change our own. Because, the same sun melts butter, also hardens clay! Life is as we think, so think beautifully.

Life is just like a sea, we are moving without end. Nothing stays with us, what remain is just the memories of some people who touched us as Waves.

Whenever you want to know how rich you are? Never count your currency, just try to Drop a Tear and count how many hands reach out to WIPE that- that is true richness.

Heart tells the eyes see less, because you see and I suffer lot। Eyes replied, feel less because you feel and I cry a lot.

Never change your originality for the sake of others, because no one can play your role better than you। So be yourself, because whatever you are, YOU are the best.

Baby mosquito came back after 1st time flying. His dad asked him "How do you feel?" He replied "It was wonderful, Everyone was clapping for me!" Now that's what I call Positive Attitude...............!

इंसान का दिमाग एक अजूबा है.

जापान, तरक्की का दूसरा नाम। एक ऐसा देश जिसने सालों-साल तरह-तरह के अजूबे आविष्कारों को जन्म दिया। भिन्न-भिन्न प्रकार के रोबोट, मशीनें, कम्पयूटर, टच स्क्रीन और न जाने किस-किस चीज की वहाँ इजाद हुई। पर वहीं अजीबोगरीब अंधविश्वास भी अपना अस्तित्व जमाए बैठे हैं। शायद हमारी ही तरह।

वहीं एक ऐसा स्मार्ट टायलेट बनाया गया है जो उसके अंदर पैर रखते ही आपका वजन, तापमान और रक्तचाप ज्ञात कर लेता है। उसका उपयोग करते-करते आपके शुगर लेवल और यूरीन की भी जांच हो जाती है। इतना ही नहीं यह सारी जानकारी तुरंत आप के कम्पयूटर तक पहुंचा दी जाती है। यह है जापान की कंपनी टोटो का करिश्मा।

दूसरी ओर क्या आपने ऐसी कोई तस्वीर या चित्र देखा या खींचा है जिसमें तीन जापानी एक साथ हों?
क्योंकि यह एक बहुत ही कठिन कार्य है। जापान में यह अंधविश्वास गहरे से पैठा है कि फोटो खिंचवाते समय दो लोगों के बीच में बैठने से अपशकुन होता है और बीच में बैठने वाले की मृत्यु हो जाती है। इसीलिए कोई भी जापानी फोटो खिंचवाते समय बीच में बैठना पसंद नहीं करता।

शनिवार, 4 सितंबर 2010

एक मंदिर जहां राजा का आना वर्जित है.

नेपाल में विष्णु भगवान का एक ऐसा मंदिर है जिसमें वहां के राजा को भी प्रवेश की मनाही है। जिसका कारण राजा खुद है।

राजधानी काठमांड़ू से नौ कि.मी. दूर भगवान विष्णु की करीब 12 फुट लम्बी लेटी हुई अवस्था में एक मूर्ती पानी के कुंड़ में स्थापित है। जिसे बूढा नीलकंठ के नाम से जाना जाता है। इसकी रोज विधिवत पूजा अर्चना होती है पर यहां नेपाल के राजा और उनके परिवार का आना वर्जित है।
कहते हैं कि 17वीं शताब्दी में राजा प्रतापमल्ल रोज भगवान के दर्शन करने हनुमान ढोका स्थित अपने महल से यहां आया करते थे। फिर उन्हें रोज नौ-दस कि.मी. आना-जाना असुविधाजनक लगने लगा तो उन्होंने नीलकंठ भगवान की एक प्रतिमूर्ती अपने महल में स्थापित करवा ली। इससे भगवान नाराज हो गये और उन्होंने राजा को श्राप दे दिया कि अब से तुम या तुम्हारा कोई भी उत्तराधिकारी यदि बूढा नीलकंठ हमारे दर्शन करने आएगा तो वह मृत्यु को प्राप्त होगा। तब से आज तक राजपरिवार का कोई भी सदस्य वहां जाने की हिम्मत नहीं जुटा पाया है।

भगवान विष्णु के इसी स्वरूप की एक और मूर्ती राजधानी के निकट बालाजू उद्यान में भी स्थित है जो पहली मूर्तियों से अपेक्षाकृत कुछ छोटी है। राजपरिवार के सदस्य यहां दर्शन करने जाते हैं। नवम्बर माह में यहां बड़ा भारी मेला लगता है जहां दूर-दूर से लोग अपनी मनौतियां ले कर आते हैं। इस मंदिर की भी काफी मान्यता है।

शुक्रवार, 3 सितंबर 2010

जादू-टोने से ग्रस्त हैं बहुतेरे देश

जादू-टोने का चलन हमारे ही देश में नहीं विश्व के बहुतेरे देशों में व्याप्त है। इसकी परंपरा दुनिया की प्राय: सभी आदिम जातियों में पायी जाती रही है। आज भी जहां-जहां ऐसी जातियों का अस्तित्व है वहां-वहां टोने-टोटके का भी वर्चस्व मिलता है।

अमेरिका में किये गये एक सर्वेक्षण के अनुसार ज्योतिष, भूत-प्रेत, आत्माओं, टोने-टोटके पर पुरुषों से ज्यादा महिलाएं विश्वास करती हैं।

इंग्लैंड़ में जादू-टोने की परंपरा अठारहवीं सदी तक बहुत प्रचलित रही। सरकार द्वारा कठोर कानूनी प्रतिबंध लगाये जाने के बावजूद इसे खत्म नहीं किया जा सका। सत्रहवीं सदी में यहां जादूगरनियों पर सर्वाधिक मुकदमे चलाये गये।

आज भी विश्व में हवाई द्वीप एक ऐसा देश है जहां टोने-टोटकों पर सर्वाधिक विश्वास किया जाता है। वहां लोगों का मानना है कि द्वीप पर सदा दुष्ट आत्माएं मंड़राती रहती हैं। यहां के पुलिस वाले भी अपने साथ हथियारों के अलावा "टी" नामक पेड़ की पत्तियों को नमक लगा कर रखते हैं। ऐसी मान्यता है कि इससे बुरी आत्माएं पास नहीं आतीं।

हमारे यहां सम्राट अशोक के समय में जादू-टोने का बहुत प्रचलन था। इसके बढते प्रभाव से अशोक चिंतित रहा करता था। उसने इसके विरुद्ध आदेश पारित किये तथा शिलालेखों पर भी खुदवाया कि यह सब बेकार की बातें हैं इन पर विश्वास ना किया जाये। पर प्रजा ने इस ओर ज्यादा ध्यान नहीं दिया।

मध्य युग मे भी जब राजपूत युद्ध में लड़ने जाते थे तो वे अपनी विजय के लिये तंत्र-मंत्र व जादू-टोने का भी सहारा लेते थे। इसके लिए वे विभिन्न तरह के कवच धारण किया करते थे। इनमें शिव कवच, देवी कवच, नारायण कवच तथा पंचमुखी हनुमान कवच प्रमुख थे।

गुरुवार, 2 सितंबर 2010

प्रेम प्रसंग, फिल्मी दुनिया के

आजकल फिल्मी दुनिया में इश्क भी एक जरिया या माध्यम हो गया है। अपनी सहूलियत, अपने मतलब, अपने फायदे के लिये इसका उपयोग होने लगा है। इश्क में से प्रेम की गहराई गायब हो गयी है। मौजूदा पीढी की वफादारी एक शुक्रवार से दूसरे शुक्रवार तक सीमित हो कर रह गयी है। सामाजिक या पारिवारिक मर्यादाओं का इस दुनिया में कोई स्थान नहीं रह गया है। हमारा लचर कानून भी इनके दरवाजे की दहलीज लांघने की हिम्मत नहीं कर पाता है। आज किसी विवाहित प्रेमी का बसा बसाया घर उजाड़ने में किसी अभिनेत्री को कोई परहेज, ड़र या गम नहीं होता। अब तो बात और भी आगे बढ गयी है "लीव इन रिलेशनशिप" तक।

ऐसा नहीं है कि प्रेम प्रसंग पहले नहीं होते थे। समझ लीजिए कि फिल्मों की शुरुआत के साथ-साथ ही इस रोग का भी जन्म हो गया था। पर उस समय यह मतलब पूरा करने का जरिया ना हो कर आपसी समझ थी, लगाव था, साथ-साथ रहने की ललक थी। बहुत पीछे ना जाते हुए आजादी के बाद के कुछ जाने-माने नामों का जिक्र करते हैं। जिनमें कुछ सफल रहे तो कुछ दुखांत।

जद्दन बाई और मोहन बाबू : जद्दन बाई सुप्रसिद्ध अभिनेत्री नर्गिस की मां थीं। वह अपने समय की मशहूर गायिका थीं। मोहन बाबू पंजाब से थे। दुनिया, धर्म, परिवारवालों की इच्छा के विरुद्ध जा कर दोनों ने विवाह कर लिया था। जो सदा सुखमय रहा था।

किशोर शाहू तथा स्नेहप्रभा प्रधान : किशोर शाहू जाने माने अभिनेता (दम मारो दम, गाइड) तथा फिल्म निर्माता थे तथा स्नेहलता उनकी नायिका, दोनों ने प्रेम विवाह किया था जो सफल नहीं हो सका था। दोनों में तलाक हो गया था।

राज कपूर और नर्गिस : शादी-शुदा होने के बावजूद राज कपूर का नर्गिस के साथ लगाव जग जाहिर था। पर सामाजिक-पारिवारिक दवाब के कारण यह कोई और नाम धारण ना कर सका था।

शम्मी कपूर व गीता बाली : शम्मी कपूर शुरु से ही विद्रोही स्वभाव के रहे थे। हजार अड़चनों के बावजूद उन्होंने गीता बाली से विवाह रचा ड़ाला था। पर गीता बाली की कुछ समय बाद बिमारी से मृत्यु हो गयी थी।

देवानंद और सुरैया : शायद फिल्मी दुनिया की यह सबसे दुखद कहानी रही है। दोनों के लाख प्रयासों के बावजूद उनकी शादी नहीं हो सकी। देव ने तो बाद में शादी कर ली पर सुरैया जीवनपर्यंत कुवांरी ही रही।

दिलीप कुमार और मधुबाला : मधुबाला का प्रेम प्रसंग पहले प्रेमनाथ के साथ था। पर अपने दोस्त दिलीप कुमार के कारण प्रेम नाथ ने अपने पैर पीछे खींच लिए थे। पर फिर भी मधुबाला के घर वालों की वजह से दिलीप और उसका निकाह नहीं हो सका था।
नाम तो बहुत सारे हैं, रणधीर कपूर-बबीता, ऋषी कपूर-डिंपल, अमिताभ-रेखा, अक्षय-रविना, अभिषेक-करिश्मा, और और और, जो साथ साथ काम करते-करते एक दूसरे में अपना जीवन साथी खोजते रहे। जिसमे कुछ सफल रहे तो कुछ असफल । बहुतों ने लायक ना होते हुए भी अपनी प्रेमिकाओं के लिए ढेरों फिल्में गढ डालीं जैसे चेतन आनंद और प्रिया राजवंश या व्ही. शांताराम और संध्या। यह दुनिया ही अजूबा है जिसमें ऐसी बातें होती रही थीं, होती रही हैं और होती रहेंगी।

बुधवार, 1 सितंबर 2010

है मथुरा तीनों लोकों से न्यारी पर वृन्दावन की है बलिहारी

दिल्ली से करीब 150 कि. मी. की दूरी पर स्थित मथुरा भगवान श्रीकृष्ण की जन्म भूमि है। पर उनका कर्म स्थल वृंदावन है जो मथुरा से सिर्फ 10 कि.मी. उत्तर-पश्चिम में यमुना के किनारे बसा हुआ है। तुलसी के पौधों की भरमार होने के कारण इस जगह का नाम वृंदावन पड़ गया। यह ब्रज का ह्रदय स्थल है। भक्तगण यहां आकर आनंद सागर में ड़ुबकी लगा कर कृत्य-कृत्य हो जाते हैं। हर कृष्ण भक्त की इच्छा होती है जीवन में कम से कम एक बार यहां आकर धन्य होने की।
यही वह जगह है जहां प्रभू ने अपने बाल्यकाल और किशोरावस्था में अनगिनत लीलाएं कर जन जीवन को सुगम बनाया था। यहां आकर पता चलता है कि प्रेम और भक्ति का साम्राज्य किसे कहते हैं। दर्शनार्थियों के लिए यहां बहुत सारे नये और प्राचीन मंदिर हैं।

श्री गोविंद मंदिर : यह बहुत प्राचीन मंदिर है। इसे जयपुर के राजा मानसिंह ने बनवाया था।

श्री रंगजी का मंदिर : दक्षिणी स्थापत्य शैली पर बने इस अति सुंदर और विशाल मंदिर को बनने में करीब सात साल लगे थे। मंदिर प्रांगण में स्थित सोने का ध्वज स्तंभ देखने लायक है।

बांके बिहारीजी का मंदिर : स्वामी हरिदासजी द्वारा निर्मित यह एक और दर्शनीय मंदिर है। यहां स्थापित अति आकर्षक मूर्ति को चमत्कारी माना जाता है।

राधा गोविंदजी का मंदिर : इसे ग्वालियर के महाराज जीवाजी राव सिंधिया ने अपने गुरु के आदेश पर 1860 में बनवाया था। इसे ब्रह्मचारीजी का मंदिर भी कहते हैं।

युगल किशोर मंदिर : इस मंदिर की मूर्ति भी बहुत सुंदर और मनोहारी है।

लाला बाबू का मंदिर : बंगाल के मुर्शिदाबाद जिले के जमींदार कृष्णचंद्र द्वारा निर्मित यह मंदिर भी देखने वालों को मोह लेता है। अपने निर्माता के उपनाम पर यह मंदिर प्रसिद्ध है।

श्रीकृष्ण-बलराम मंदिर : इसे कृष्ण भावना संघ समुदाय द्वारा बनवाया गया है। यहां अनेक विदेशी भक्त वैष्णव धर्म में दीक्षित होकर निवास करते हैं। इसीलिए इसे अंग्रेजों का मंदिर भी कहा जाता है।

इन प्रमुख मंदिरों के अलावा भी अनेकोंनेक मंदिर वृंदावन में देखने लायक हैं जैसे जयपुर वाला मंदिर, पगला बाबा का मंदिर, जानकी-वल्लभ मंदिर, शालिग्राम मंदिर, गोपेश्वर मंदिर, राधा रमण मंदिर तथा कांच का मंदिर आदि।
इसलिए जब भी जाएं समय हाथ में रख कर जाएं हड़बड़ी में बहुत कुछ देखने से छूट सकता है।

जय श्रीकृष्ण।
बोलो बांके बिहारी की जय।
सबको जन्माष्टमी की ढेरों शुभकामनाएं।

विशिष्ट पोस्ट

"मोबिकेट" यानी मोबाइल शिष्टाचार

आज मोबाइल शिष्टाचार पर बात करना  करना ठीक ऐसा ही है जैसे किसी कॉलेज के छात्र को पांचवीं क्लास का कोर्स समझाया जा रहा हो ! अधिकाँश लोग इन सब ...