अमेरिका भी अब पहले जैसा नहीं रह गया है। दुनिया भर से सपने संजोये लोगों की आमद, बढ़ती जनसंख्या, दुनिया भर में फैली मंदी ने वहाँ भी अराजकता फैलाने में कोई कसार नहीं छोडी है....................................................
अमेरिका, दुनिया का सबसे शक्तिशाली, अपने आप को संसार का मुखिया मानने वाला, पर हरेक के फटे में टांग अड़ाने वाला, धन कुबेरों का देश कहलाता है इसकी हर क्षेत्र में चाहे कृषि हो, विज्ञान हो, व्यवसाय हो, सुरक्षा हो सब जगह तरक्की का कोई सानी नहीं है।
इसीलिए हमारे जैसे अनेकों पिछड़े या अर्द्ध विकसित या विकासशील देशों के युवाओं के लिए वह धरती के स्वर्ग के समान है। ऐसी सोच है कि वहां जाते ही जाने वाले की हरेक इच्छा पूरी हो जाती है।
पर सिक्के के दो पहलुओं की तरह इसका भी एक अंधेरा पक्ष है।
यहां की आबादी का एक अच्छा खासा हिस्सा या तो अनपढ है या बहुत कम पढा लिखा है। यह बात वहीं की अखबारों की खोज का नतीजा है। करीब 26 प्रतिशत परिवार ऐसे हैं जिनके पति-पत्नि के संबंधों में दरार के कारण परिवार का जिम्मा या तो माँ के ऊपर है या फिर पिता के ऊपर। हजारों ऐसे लोग हैं जिनके सौतेले माँ या बाप हैं। एक तरह से व्यभिचार को कानूनी मान्यता मिल चुकी है। यहां तक कि पादरी भी विवाहेतर संबंधों को स्वीकृति देने लगे गये हैं। बेरोजगारी का ग्राफ दिनों दिन बढता ही जा रहा है जिससे समाज में अराजकता के पैर जमने लगे हैं। अरबपतियों की बात न करें तो करोड़पतियों की संख्या आबादी के लिहाज से बहुत कम है।
यह तो सिर्फ एक बानगी है।
इस ब्लॉग में एक छोटी सी कोशिश की गई है कि अपने संस्मरणों के साथ-साथ समाज में चली आ रही मान्यताओं, कथा-कहानियों को, बगैर किसी पूर्वाग्रह के, एक अलग नजरिए से देखने, समझने और सामने लाने की ! इसके साथ ही यह कोशिश भी रहेगी कि कुछ अलग सी, रोचक, अविदित सी जानकारी मिलते ही उसे साझा कर ज्यादा से ज्यादा लोगों तक पहुंचाया जा सके ! अब इसमें इसको सफलता मिले, ना मिले, प्रयास तो सदा जारी रहेगा !
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8 टिप्पणियां:
"दूर का अमेरिका सुहाना लगता है..." अच्छा लिखा है आपने धन्यवाद! इस पोस्ट के लिए ... आगे भी लिखते रहे
दूसरे पहलू पर पहले ध्यान देने की जरूरत है।
क्योंकि लोग सिर्फ पहले पहलू के बारे में सोचकर ही खुश होते हैं।
अमेरिका सिर्फ़ हमीं लोगो का एक सपना है, जब की वहां रहने वालो से पुछॊ एक नर्क से कम नही, गुंडा दर्दी भारत से १०० गुणा ज्यादा है, बतमीजो की कोई कमी नही, भुखे नंगे भी वहां आप को हद से ज्यादा मिलेगे
इन सारी बातों के बाद भी कानून का राज है और सच्ची डेमोक्रेसी और धर्म निरपेक्षता भी.. न कि हमारी तरह की छद्म डेमोक्रेसी और धर्मनिरपेक्षता..
मैं राज भाटिया जी के विचारो का समर्थन करते हुए उसमे इतना और जोड़ना चाहूँगा की सारी गंदगी हमारे देश में अमेरिका के द्वारा ही फैलाई जा रही है /ओबामा हो या सिंह इज किंग ये कुछ नहीं कर सकते, जब तक इनको गद्दी पर बैठाने वाले इंटरनेश्नल सत्ता के दलाल ,जो इनके आका हैं ,इनको आदेश ना दे दे /ब्लॉग हम सब के सार्थक सोच और ईमानदारी भरे प्रयास से ही एक सशक्त सामानांतर मिडिया के रूप में स्थापित हो सकता है और इस देश को भ्रष्ट और लूटेरों से बचा सकता है /आशा है आप अपनी ओर से इसके लिए हर संभव प्रयास जरूर करेंगे /हम आपको अपने इस पोस्ट http://honestyprojectrealdemocracy.blogspot.com/2010/04/blog-post_16.html पर देश हित में १०० शब्दों में अपने बहुमूल्य विचार और सुझाव रखने के लिए आमंत्रित करते हैं / उम्दा विचारों को हमने सम्मानित करने की व्यवस्था भी कर रखा है / पिछले हफ्ते अजित गुप्ता जी उम्दा विचारों के लिए सम्मानित की गयी हैं /
ढोल की पोल!
दूर के ढोल सुहावने लगते हैं!
door ke dhol suhavan bhaiya...
बिल्कुल सही कहा आपने.
रामराम.
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