संख्या प्रणालियां शून्य के आविष्कार के बहुत पहले से अस्तित्व में थीं ! जैसे कि रोमन प्रणाली में दस को ''X'' और सौ की संख्या को ''C'' से दर्शाया जाता रहा है। ब्राह्मी लिपि में भी दस, सौ, हजार जैसी संख्याओं के लिए विशेष चिन्ह हुआ करते थे, हालांकि इनसे गणना करना कुछ कठिन होता था पर बिना शून्य के भी सारी संख्याएं आसानी से लिखी जाती रही थीं ! परंतु ''शून्य'' के आ जाने से छोटी-बड़ी हर तरह की संख्याओं की गणना करना आसान हो गया..............!
#हिन्दी_ब्लागिंग
कुछ लोग देसी घी को हजम नहीं कर पाते ! वे बहकावे या प्रलोभन में आकर तरह-तरह के विदेशी कारखानों से नि:सृत चिकनाई को सेहतवर्द्धक मान, अपने उत्पाद को हीन सिद्ध करने पर तुले रहते हैं ! यहीं के रहने-खाने वाले, यहीं की हवा-पानी-मिट्टी में पलने-बढ़ने वाले, जिनका यहां के बिना और कहीं ठिकाना भी नहीं है, वे अपने ही देश की संस्कृति, संस्कार, आस्था, मान्यताओं का मजाक उड़ाने से बाज नहीं आते ! बार-बार सिद्ध होने के बावजूद उन्हें अपने ग्रंथ, अपना इतिहास, अपने महापुरुष, अपनी मान्यताएं दोयम दर्जे की मालूम होती हैं ! बिना गहन अध्ययन, बिना उचित जानकारी, आधी-अधूरी, सुनी-सुनाई बातों को लपक, ऐसी अधजल गगरियां जहां-तहां छलकती रहती हैं !
इन्हें इस बात का गर्व महसूस नहीं होता कि भारत ने विश्व को एक नायाब विधा सौंपी है ! इनको इस बात से भी कोई फर्क नहीं पड़ता कि अंकों के मामले में संपूर्ण जगत भारत का ऋणी है ! इन्हें ज्ञान ही नहीं है कि 2500-3000 पुराने हमारे ग्रंथों में गणित में की गई खोजों का विस्तृत विवरण है ! उस समय दशमलव प्रणाली तथा रेखागणित के साथ-साथ अंकगणित के नियम भी विकसित हो चुके थे !
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महान खगोलशास्त्री और गणितज्ञ आर्यभट्ट |
किसी भी देश और जाति की आत्मा होती है उसकी संस्कृति, उसका ज्ञान, उसका समृद्ध इतिहास जिस पर उसको गर्व होता है ! कोई भी आक्रांता पहले उसी को खत्म या नष्ट करने की कोशिश करता है ! हमारे साथ भी यही हुआ ! हजार साल की पराधीनता की अवधि में हमारे इतिहास को हमारी संस्कृति को, हमारे संस्कारों को बदलने की कोशिश होती रही ! सफलता भी मिली उन लोगों को, क्योंकि रीढ़विहीन लोग हर युग में हर देश में पाए ही जाते हैं ! इन लोलुपों को वही समझाया गया जो उनके आका चाहते थे ! इनको दिया जाने वाला ज्ञान इनके आकाओं द्वारा निर्मित और वहीं तक सिमित था, जहां तक उनकी इच्छा थी ! देश पर हुकूमत के लिए यह जरुरी था नहीं तो देश और बाकी देशवासियों को काबू करने के लिए फौज कहां से आती !
दासता तो खत्म हो गई पर कुछ लोगों की मानसिक गुलामी अभी भी बरकरार है ! ऐसे ही लोगों का एक प्रिय विषय ''शून्य यानी जीरो'' है ! ये यह प्रचार नहीं करते कि शून्य, जो सिर्फ कहने भर को शून्य है पर इसकी क्षमता अपार है, जो एमें इनके कुतर्क आज के सोशल मीड़िया पर छाए रहते हैं ! ये वही लोग हैं जो आजादी के बाद से ही अपने पूरे मनोयोग से हमारी संस्कृति, हमारे इतिहास को तोड़-मरोड़ कर विकृत कर वर्तमान और आने वाली पीढ़ी क को दस, हजार, लाख, करोड़, अरब-खरब कुछ भी बना सकता है, इसे हमने दुनिया को दिया ! उलटे इसके बारे को गुमराह करने में जी-जान से जुटे हुए हैं ! मजाक उड़ाने की तर्ज पर इनका तर्क होता है कि जब आर्यभट्ट ने करीब 1500 साल पहले ही शून्य का आविष्कार कर गणित में इसे पहली बार प्रस्तुत किया और इसे गणितीय समीकरणों और संख्याओं में शामिल किया, तो पौराणिक युग में रावण के दस सिरों और महाभारत में सौ कौरवों की गिनती कैसे कर ली गई ? ऐसे अधकचरे विद्वानों के लिए देवदत्त पटनायक जी ने, जो पौराणिक कथाओं के लेखक और जाने-माने विश्लेषक हैं, इस बात का विस्तार से वर्णन किया है।
उनके अनुसार संख्या प्रणालियां शून्य के आविष्कार के बहुत पहले से अस्तित्व में थीं ! जैसे कि रोमन प्रणाली में दस को ''X'' और सौ की संख्या को ''C'' से दर्शाया जाता रहा है। ब्राह्मी लिपि में भी दस, सौ, हजार जैसी संख्याओं के लिए विशेष चिन्ह हुआ करते थे, हालांकि इनसे गणना करना कुछ कठिन होता था पर बिना शून्य के भी सारी संख्याएं आसानी से लिखी जाती रही थीं ! परंतु ''शून्य'' के आ जाने से छोटी-बड़ी हर तरह की संख्याओं की गणना करना आसान हो गया।
हमारे यहां से इसे अरब व्यापारी यूरोप ले गए। शुरू में हर नई चीज की तरह वहां इसका विरोध भी हुआ, क्योंकि उनका तथ्य ज्ञान और आख्यान ईसाई धर्म से प्रभावित था, जिसमें शून्य या अनंत जैसी धारणाओं का कोई स्थान नहीं था। पर धीरे-धीरे यह प्रणाली अपनी विशिष्टताओं की वजह से वहां भी लोकप्रिय हो गई।
विडंबना यह है कि विपरीत विचार धारा, अलग सोच, अलग निष्ठा के बावजूद, अपनी खासियतों के बल पर जो विधा विदेशों में भी स्वीकार्य हो गई, उसी का अपने यहां के पश्चिमी सभ्यता में रचे-पगे, मूढ़ मति, लोग मजाक उड़ाने से गुरेज नहीं करते ! भले ही इससे उनकी बुद्धिमत्ता का स्तर जग जाहिर हो जाता हो ! पर गुलामी की इस मानसिकता की जकड़ से आजाद होने की किसी भी तरह की चेष्टा या इच्छा फिलहाल ऐसे लोगों में अभी तक तो नहीं ही दिखती.......!
@आभार - देवदत्त जी, अंतर्जाल