मंगलवार, 14 जनवरी 2025

पत्रकारिता, लोकतंत्र का चौथा बंबू

पत्रकारिता के लिए एक बात बहुत उछाली जाती है कि यह लोकतंत्र का चौथा खंभा है ! कहां से आई यह उक्ति ? संविधान में तो जनतंत्र की सहायक एक तिपाई, TRIPOD, कार्यपालिका, विधायिका और सिर्फ न्यायपालिका का ही उल्लेख है, मीडिया का कोई जिक्र नहीं है, तब इस स्वयंभू चौथे बंबू की बात कैसे और किसके द्वारा थोपी गई ? जाहिर है कुटिल, सत्तालोलुप नेताओं, काला बाजारियों, भ्रष्ट व्यापारियों, बिचौलियों इत्यादि को ही इसकी जरुरत थी ! जिससे आम इंसान को बेवकूफ बना उनकी छवि बेदाग बनाए रखी जा सके ..............!!         

#हिन्दी_ब्लागिंग                                     

कुछ साल पहले तक समाचार पत्रों में छपी खबरों पर आम इंसान आँख मूँद कर विश्वास कर लिया करता था ! क्योंकि उसे मालूम था कि इन समाचारों को उन तक पहुंचाने वाले इंसान निर्भीक, निष्पक्ष, निडर व सत्य  के पक्षधर हैं ! रेड़िओ पर पढ़ी जाने वाली सरकारी खबरें भी बहुत हद तक दवाब-विहीन ही होती थीं ! पर धीरे-धीरे इस विधा में भी मतलबपरस्त, चापलूस, धन-लोलूप खलनायकों का दखल शुरू हो गया और आज हालत यह है कि संप्रेषण के किसी भी माध्यम पर, चाहे वह छपने वाला हो या दिखने वाला, किसी को भी पूर्ण विश्वास नहीं है ! इसी बीच व्हाट्सएप, युट्यूबर जैसी एक और खतरनाक मंडली भी उभर कर आई हुई है ! जिसका भ्रामक असर अति व्यापक, घातक और मारक है !

आज के समय में तकरीबन हर अखबार, हर टीवी चैनल, किसी ना किसी राजनैतिक दल का भौंपू बन कर रह गया है ! उनकी भी अपनी मजबूरी है ! आज कौन चाहेगा निष्पक्ष पत्रकारिता या सच को उजागर करने के चक्कर में अपना तंबू-लोटा समेट घर बैठना और तन-धन को जोखिम में डालना ! जबकि जरा सी चापलूसी, जी-हजूरी के बदले गाड़ी, घोड़ा, बंगला, जमीन, विदेशयात्रा, संरक्षता, मान-सम्मान, पुरस्कार, प्रतिष्ठा सभी कुछ हासिल हो रहा हो ! इसीलिए ऐसी गंगा में सभी हाथ धोने की बजाय पूरी डुबकियां लगाने से परहेज नहीं करते !

आम जनता भी अब जानकारी के लिए नहीं बल्कि समय गुजारने या मनोरंजन के लिए खबरिया चैनलों के सामने बैठने लगी है ! पर वहां की स्तरहीन, मक्कारी भरी, तथ्यहीन वार्ता और उसमें विभिन्न दलों के तथाकथित वार्ताकारों का ज्ञान, उनकी मानसिकता, उनकी शब्दावली, उनकी कुंठा, उनकी चारणिकता, उनके पूर्वाग्रहों को देख दर्शकों का रक्त-चाप ही  बढ़ता है ! मेहमान पर नहीं मेजबान पर कोफ्त होती है !
    
अर्से से पत्रकारिता के लिए एक बात बहुत उछाली जाती है कि यह लोकतंत्र का चौथा खंभा है ! कहां से आई यह उक्ति ? संविधान में तो जनतंत्र की सहायक एक तिपाई, TRIPOD, कार्यपालिका, विधायिका और सिर्फ न्यायपालिका का ही उल्लेख है, मीडिया का कोई जिक्र नहीं है ! तब इस स्वयंभू चौथे बंबू की बात कैसे और किसके द्वारा थोपी गई ? जाहिर है कुटिल, सत्तालोलुप नेताओं, काला बाजारियों, भ्रष्ट व्यापारियों, बिचौलियों इत्यादि को ही इसकी जरुरत थी ! जिससे आम इंसान को बेवकूफ बना उनकी छवि बेदाग बनाए रखी जा सके ! सो एक मंच तैयार किया गया, पर वही आज सच्चाई, विश्वास, नैतिकता, निष्पक्षता यहां तक कि देशहित को भी भस्मासुर की तरह स्वाहा करने पर उतारू है ! 

एक कहावत है कि हर चीज के बिकने की एक कीमत होती है ! तो कीमत लगी, माल खरीदा गया और उसे तरह-तरह के नाम और अलग-अलग तरह की थालों में रख, दुकानों में सजा दिया गया ! इधर पब्लिक अपनी उसी पुरानी भेड़चाल के तहत, अपने-अपने मिजाजानुसार उन दुकानों पर बिकते असबाबों की परख किए बगैर, उनकी गुणवत्ता को नजरंदाज कर, उनके रंग-रूप-चकाचौंध पर फिदा हो अपने सर पर लाद अपने-अपने घरों तक लाती रही ! भले ही बाद में पछताना ही पड़ रहा हो !

घोर विपरीत परिस्थितियों के बावजूद यह आशा बनी हुई है कि अभी भी  ऐसे लोग जरूर होंगे, जिनमें अभी भी जिम्मेवारी का एहसास बचा हुआ होगा ! जिनकी आत्मा रोती होगी आज के हालात देख कर ! जिनकी कर्त्तव्यपरायणता अभी भी सुप्तावस्था में नहीं चली गई होगी ! क्या ऐसे लोगों का जमीर उन्हें कभी कचोटता नहीं होगा ? क्या उनकी बची-खुची गरिमा उन्हें सोने देती होगी ? क्या कभी उन्हें अपनी उदासीनता पर ग्लानि नहीं होती होगी ? क्या उन्हें कभी ऐसा विचार नहीं आता होगा कि जिस विधा का काम समसामयिक विषयों पर लोगों को जागरूक करने और उनकी राय बनवाने में बड़ी भूमिका निभाना है और जिस कारणवश आज विश्व में मीडिया एक अलग शक्ति के रूप में उभरा है, उसी का अभिन्न अंग होते हुए भी वे उसका दुरूपयोग होते देख रहे हैं ! ऐसे लोगों को तो आगे आना ही पड़ेगा ! इस घोर अंधकार को मिटाने के लिए सच का दीपक प्रज्ज्वलित करना होगा ! छद्म संप्रेषण का चक्रव्यूह नष्ट कर निडर, निर्भीक, निर्लेप, विश्वसनीय निष्पक्षता का आलम फिर से स्थापित करना होगा !  

पर क्या ऐसा होगा ? क्या कोई ऐसी हिम्मत जुटा पाएगा ? क्या वर्तमान ताकतों का मायाजाल छिन्न-भिन्न हो सकेगा ? ऐसे बहुत सारे क्या हैं ! क्या इन क्याओं का उत्तर मिल पाएगा ? क्या अपने हित को दरकिनार कर, अपने नुक्सान की परवाह ना कर, देश, समाज, अवाम के हितार्थ सच के पैरोकार आगे आएंगे ? सुन तो रखा है कि बुराई पर अच्छाई की और झूठ पर सच की सदा विजय होती है ! 
देखें.........!!

शुक्रवार, 10 जनवरी 2025

कड़कड़ाती ठंड में नहाना, किसी पराक्रम से कम नहीं

नहाना.....! उसका तो सोच कर ही नानी-परनानी-लकड़नानी और ना जाने कौन-कौन याद आने लगती है ! उजले तन को क्या साफ़ करना; मन की मैल धोनी जरुरी होती है, जैसे विचार आ-आकर आदमी को दार्शनिक बनाने से नहीं चूकते ! ना नहाने के सौ बहाने गढ़ लिए जाते हैं ! पर कभी-कभी किसी पवित्र पर्व या दिन पर ना नहाने के अनिष्ट के डर से यह क्रिया सम्पन्न करने का अति कठिन संकल्प लेना ही पड़ता है......!

#हिन्दी_ब्लागिंग       

इस बार धरती के कुछ स्थानों पर शीत ने प्रचंड प्रकोप दिखा अपना राज्य स्थापित कर लिया ! प्रकृति के सारे रंग बेरंग हो गए, घर-द्वार, महल-झोंपड़ी, जल-थल, जंगल-पहाड़ सब पर सफेदी का आलम छा गया ! चहुं ओर कुहासे की सफेद चादर बिछ गई ! पारा किसी रीढ़विहीन नेता की तरह भूलुंठित होता चला गया ! उधर सूर्यदेव तो पहले ही दक्षिणायन हो निस्तेज से हुए पड़े थे, उस पर यह कहर ! उन्होंने भी अपना यात्रा पथ छोटा कर लिया और अपने रथ को चारों ओर से कोहरे के मोटे लिहाफ से ढक, कंपकपाते हुए मजबूरी में किसी तरह एक चक्कर लगा जल्द अस्ताचल में जा छिपने लगे !  

कोहरा ही कोहरा 
जब देवों का यह हाल था, तो धरा के निर्बल आम इंसानों पर क्या बीत रही होगी ! पर दिनचर्या किसी तरह चलानी-निभानी पड़ती ही है ! भले ही घरों, दफ्तरों, बसों, कारों, ट्रेनों में ऊष्मा-यंत्र लगे हुए हों, पर बाहर तो निकलना पड़ता ही है, पेट जो जुड़ा हुआ है साथ में ! ऐसे में तापमान में बड़े बदलाव के कारण, गर्म-सर्द हो, तबियत बिगड़ने की आशंका भी बनी रहती है ! खासकर बड़ी उम्र के लोगों में ! 
बहुते ठंडी है भई  
हमारे ग्रंथों में स्वस्थ बने रहने के लिए कहा गया है कि सौ काम छोड़ कर भोजन और हजार काम छोड़ कर स्नान करना जरुरी है ! अब इस भीषण ठंड में खाना तो बिना काम छोड़े भी इंसान कर लेता है, वह भी तरह-तरह की ग़िज़ाओं वाला, पर नहाना.....उसका तो सोच कर ही नानी-परनानी-लकड़नानी और ना जाने कौन-कौन याद आने लगती है ! उजले तन को क्या साफ़ करना, मन की मैल धोनी जरुरी होती है, जैसे विचार आ-आकर आदमी को दार्शनिक बनाने से नहीं चूकते ! ना नहाने के सौ बहाने गढ़ लिए जाते हैं ! पर फिर किसी पवित्र पर्व या दिन पर, ना नहाने के अनिष्ट के डर से यह क्रिया सम्पन्न करने का अति कठिन संकल्प लेना ही पड़ता है !
शुभ्र हिम चहुँ ओर 
ऐसी ही एक घड़ी में और बुजुर्गों की लानत-मलानत के बाद अपुन को भी इस शुद्धिकरण की क्रिया के लिए संकल्पित होना पड़ा ! भाग्य प्रबल था, शायद इसीलिए उस दिन सुबह-सबेरे से ही धूप खिली हुई थी ! शुक्र मनाया और सबसे पहले पानी गर्म किया ! फिर जिनके नाम याद थे उन सारे देवी-देवताओं-उपदेवताओं को स्मरण कर, शरीर को ना छोड़ने वाले प्रेममय लिहाफ को ''उसकी इच्छा'' के विरुद्ध, अकड़े हुए शरीर से अलग किया ! फिर ऊनी टोपी उतारी ! कुछ नहीं होगा जैसी सांत्वना देते हुए सर को सहलाया ! गुलबंद खोला ! शॉल हटाया ! सिहरते हुए स्वेटर उतारा ! दस्ताने खोले ! कमीज को किनारे किया ! फिर धीरे से ऊपर का इनर हटा गंजी तो उतारनी ही थी, उतारी ! पायजामे को मुक्ति दी ! फिर उसके बाद इनर का नंबर आया ! अंत में जब मौजा उतरा तब कहीं जा कर बारह बजे दोपहर को कई दिनों से बिन नहाया शरीर धुल पाया ! कांपते-कंपकपाते फिर अपने उन सारे हितैषियों के समकक्षों को धारण कर, इस भीषण परिक्षण से सही-सलामत उत्तीर्ण करने के लिए प्रभु को धन्यवाद दे, धूप में जा बैठा ! 
प्राण दाता भुवन-भास्कर 
एक होता है पराक्रम ! जो कई तरह का होता है जैसे शौर्य, शक्ति, बल, सामर्थ्य इत्यादि ! विकट या विपरीत परिस्थितियों में ही इसका परिक्षण होता है। इसमें उत्तीर्ण हो जाने वाले को पराक्रमी कहा जाता है ! सोच रहा था खुद को, खुद से ही अलंकृत कर लूँ इस उपाधि से ! आप क्या कहते हैं, इसका इन्तजार रहेगा !

हर-हर गंगे !       

@गलत फैमिली में ना जाएं, इक्का-दुक्का दिन छोड़, रोज नहाता हूँ भाई------खुद के हित में जारी। 

@सभी चित्र अंतर्जाल के सौजन्य से 

बुधवार, 1 जनवरी 2025

फौवारे और तालियों की जुगलबंदी

अब वहां उपस्थित सभी लोग फौवारे पर दिए गए अपने-अपने समझदारी भरे आकलनों पर खिसियानी हंसी हंस रहे थे ! राज और माली की इस युगलबंदी ने सभी का जो मनोरंजन किया उसके लिए माली का पारितोषिक पर हक तो बनता ही था, इसके अलावा उद्यान से निकलते समय सभी का ख्याल था कि ''राजू'' गाइड को दी गई रकम फिजूल नहीं गई............!

#हिन्दी_ब्लागिंग

कभी-कभी कुछ पेचीदा से लगने वाले वाकये का यथार्थ जब सामने आता है तो हंसी छूट जाती है कि लैsss, यह ऐसा था ! अभी पिछले दिनों दल-बल के साथ झीलों के सुंदर शहर उदयपुर जाने का मौका फिर हासिल हुआ था ! घूमते-घामते हम सब पहुँच गए वहां के प्रसिद्ध उद्यान सहेलियों की बाड़ी ! पहले तो जरुरत नहीं समझी गई पर फिर सर्वसम्मति से एक हंसमुख, मिलनसार, नवयुवक 'गाइड', राज मेवाड़ी जी की सेवाएं ले ली गईं। उनके अनुसार बाड़ी में एक संग्रहालय के साथ ही फवारों के पांच विभिन्न विषयों पर हिस्से बने हुए हैं ! जैसे वेलकम फाउंटेन, रासलीला, बिन बादल बरसात, सावन भादों और कमल तलाई या कमल कुंड !

राणा संग्राम सिंह ने सन 1710 में अपनी पत्नी की खुशी और उनके साथ विवाहोपरांत आईं उनकी सेविकाओं की तफरीह के लिए फतेह सागर झील के तट पर इस उद्यान का निर्माण कराया था। इसीलिए इसका नाम सहेलियों की बाड़ी पड़ा !  इस बाड़ी या उद्यान में तकरीबन दो हजार छोटे-बड़े सुंदर फवारे हैं जो आज भी चल रहे हैं, इन्हें फ़तेह सागर झील से पानी मिलता है ! भारत के इतिहास में यह उन दुर्लभ और आश्चर्यजनक स्थानों में से एक है, जिनका निर्माण महिलाओं के लिए किया गया हो ! रानी को बारिश के मौसम से बहुत लगाव था उनके इस शौक को पूरा करने के लिए इंग्लैंड से बारिश के फव्वारों को आयात कर यहां लगाया गया था ! उद्यान में बहुत ही सुन्दर संगमरमर के मंडप और हाथी के आकार के फव्वारे है जो कि देखते ही मन मोह लेते हैं ! कमल के ताल एवं विभिन्न तरह के सैंकड़ों फूलों के पौधों के साथ ही  इसमें उन सभी प्रकृति के पहलुओं को शामिल किया गया है जो कि रानी को पसंद थे। 


उद्यान के अलग-अलग हिस्सों के इतिहास-भूगोल, उसकी विशेषताओं को बताते, समझाते, दिखलाते, राज ने एक जगह झाड़ियों से घिरे चलते फव्वारों के पास रुक कर कहा, चलिए आपको तालियों का एक चमत्कार दिखाता हूँ। आप सब मेरे साथ ताली बजाएंगे तो फौवारे का पानी बंद हो जाएगा और फिर जब दुबारा मेरी तालियों के साथ लय मिलाएंगे तो फिर फौव्वारे चलने शुरू हो जाएंगे ! सभी विस्मित थे कि ताली की आवाज से पानी कैसे नियंत्रित हो सकता है ! सब उत्सुकता के साथ फौव्वारों के पास इकट्ठे हो गए। 
140 साल का मोरपंखी पौधा 
राज
ने सबको कहा कि मेरे पांच गिनते ही पानी के पास खड़े लोग मेरे साथ तालियां बजाएंगे। पांच गिनते ही जैसे ही तालियां बजीं, कुछ ही सेकेंडों में चार-पांच फिट तक उठती फौवारे की धार नीचे जाते हुए बंद हो गईं ! राज ने कहा चलिए इसे फिर चालू करते हैं और इधर जैसे ही लयबद्ध तालियां बजीं उधर फौवारा फिर अपनी लय में आ गया ! सभी चकित थे कि ऐसा कैसे हो सकता है ! कोई कहने लगा कि सेंसर लगा होगा ! कोई अपने पुराने ग्रंथों के ज्ञान का हवाला दे रहा था कोई विज्ञान का चमत्कार बता रहा था, पर इस करामात पर कोई निश्चित रूप से कुछ भी नहीं कह पा रहा था ! 

मनोहारी परिवेश 
तभी राज ने मुस्कुराते हुए कहा कि हम ज्यादातर इस राज को उजागर नहीं करते पर आप सब सीनियर सिटीजन का मान रखते हुए इसकी पोल खोल देता हूँ, मेरे साथ आइए ! वह हमें वहां से हटा कर कुछ दूर कोने में खड़े एक इंसान के पास ले गया, जो शायद उस हिस्से के बाग का माली था ! वहां जा राज ने कहा कि फौवारे का रहस्य तालियों में नहीं इनके पास है ! जब हम लोग फिर भी नहीं समझे तो राज ने वहीं ताली बजाई, उसके ताली बजाते ही माली ने अपने पास की घुंडी घुमा पानी का प्रवाह बंद कर दिया और दुबारा ताली बजाने पर फिर शुरू कर दिया ! अब वहां उपस्थित लोग सभी फौवारे पर दिए गए अपने-अपने समझदारी भरे आकलनों पर खिसियानी हंसी हंस रहे थे ! राज और माली की इस युगलबंदी ने सभी का जो मनोरंजन किया उसके लिए माली का पारितोषिक पर हक तो बनता ही था, इसके अलावा उद्यान से निकलते समय सभी का ख्याल था कि ''राजू'' गाइड को दी गई रकम फिजूल नहीं गई !

रविवार, 29 दिसंबर 2024

इतिहास किसी के प्रति भी दयालु नहीं होता

इतिहास नहीं मानता किन्हीं भावनात्मक बातों को ! यदि वह भी ऐसा करता तो रावण, कंस, चंगेज, स्टालिन, हिटलर जैसे लोगों पर गढ़ी हुई अच्छाईयों की कहानियां ही हम सुन रहे होते ! पर इतिहास तो इतिहास है ! इस मामले में वह निस्पृह होने के साथ-साथ निर्मम भी बहुत है ! ऐसे में अपने कर्मों को जानते हुए भी यदि कोई कहे कि इतिहास उसके प्रति दयालु होगा या दयालुता बरतेगा, तो यह तो उसकी नासमझी ही होगी.............!

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हमारे पुराणों में शनिदेव को न्याय का देवता माना जाता है ! मान्यता है कि वह संसार के सभी प्राणियों को बिना किसी किसी भेदभाव, बिना किसी पक्षपात, बिना किसी दया-माया के उनके कर्मों के अनुसार फल देते हैं ! उनकी इसी न्याय प्रक्रिया के कारण डरते हैं लोग उनसे ! उन्हें क्रूर माना जाता है। इतिहास भी कुछ-कुछ वैसा ही है। यह भले ही कर्मों का फल ना देता हो, पर हर हाल में उनको उजागर जरूर करता है,  बिना कुछ छिपाए ! इस मामले में वह बड़ी निर्ममता से शल्य चिकित्सा करता है ! किसी की नहीं सुनता। इसीलिए कहा जाता है कि उससे सबक लेना चाहिए ! सीखना चाहिए उससे !

इतिहास कभी भी भेदभाव नहीं करता, नाहीं वह किसी का पक्ष लेता है ! सत्ताधीश उसे विकृत करने की कितनी भी कोशिश कर लें ! कुछ समय के लिए भले ही उस पर अपना मुखौटा मढ़ दें ! उसे जमींदोज कर उस पर झूठ का प्लास्टर चढ़ा दें, पर उसके सच का बीज इतना ताकतवर है कि वह हर विपरीत परिस्थिति को दरकिनार कर अंकुरित हो कर ही रहता है, कुछ समय भले ही लग जाए !

हमारी अच्छी या बुरी जो भी कह लें परंपरा रही है कि किसी के निधन के बाद उसकी बुराई नहीं करनी चाहिए, पर इतिहास तो नहीं ना मानता ऐसी भावनात्मक बातों को ! यदि वह भी ऐसा करता तो रावण, कंस, चंगेज, स्टालिन, हिटलर जैसे लोगों पर गढ़ी हुई अच्छाईयों की कहानियां ही हम सुन रहे होते ! पर इतिहास तो इतिहास है ! इस मामले में वह निस्पृह होने के साथ-साथ निर्मम भी बहुत है ! ऐसे में अपने कर्मों को जानते हुए भी यदि कोई कहे कि इतिहास उसके प्रति दयालु होगा या दयालुता बरतेगा, तो यह तो उसकी नासमझी ही होगी ! 

आज यानी वर्तमान में जो लिखा-बोला जा रहा है वही समयानुसार इतिहास बनेगा ! परंपरानुसार दो-चार दिन की बात छोड़ दें, भले ही मजबूरीवश, तो उसके बाद शालीनता, मृदु भाषा, सहनशीलता की पूरी विवेचना तो होगी ही, साथ ही साथ लिप्सा, कमजोरी, लियाकत, आत्म सम्मान हीनता का भी पूरा लेखा-जोखा लिया जाएगा ! देश, समाज का कितना भला हुआ और कितना नुक्सान उसका आकलन होगा और फिर जो निर्मम सत्य सामने आएगा, वही आगे चल कर इतिहास बनेगा जो ना किसी के साथ दयालुता बरतता है ना हीं बिना बात कठोरता.........!

बुधवार, 25 दिसंबर 2024

प्रेम, समर्पण, विडंबना

इस युगल के पास दो ऐसी वस्तुएं थीं, जिन पर दोनों को बहुत गर्व था। एक थी जिम की सोने की घड़ी, जो कभी उसके पिता और दादा के पास भी रह चुकी थी और दूसरे थे दैला के रेशमी सुनहरे घुटनों तक पहुँचते केश ! दैला ने अपने खूबसूरत केशों पर एक नजर डाली, एक सिहरन उसके पूरे शरीर में दौड़ गई। फिर किसी निष्कर्ष पर पहुँच उन्हें जूड़े का रूप दे, अपना बैग उठा वह वह शीघ्रता से दरवाजे से बाहर निकली और सीढियां उतर कर सड़क पर आ गई ............1

#हिन्दी_ब्लागिंग 

हम में से बहुतों ने प्रख्यात अमेरिकी लेखक विलियम सिडनी पोर्टर, जिन्हें ओ. हेनरी के नाम से ज्यादा जाना जाता है, की लोकप्रिय कहानी ''The Gift of the Magi'' पढ़ रखी होगी पर कईयों को शायद प्रेम और समर्पण की प्रतीक इस कहानी के बारे में जानकारी ना हो ! तो क्रिसमस के इस मौके पर आज ब्लॉग पर उसी कहानी का संक्षिप्त रूप रखने की कोशिश की है ! 

दैला अपनी आँखों में मजबूरी और बेबसी के आंसू भरे अपने बिस्तर पर औंधी पड़ी हुई थी। उसकी मुठ्ठी में थे, एक डॉलर और सत्तासी सेंट। जो जीवन की कशमकश से लड़ते हुए, खरीदारी में सौदेबाजी, कंजूसी और मन को मार-मार कर बचाए गए थे ! वह उन्हें तीन बार गिन चुकी थी, पर गिनने से रकम में बढ़ोत्तरी तो नहीं ना होती ! कल ही क्रिसमस है, उसे अपने प्रिय जिम को उपहार देना है, जिसकी योजना बनाने में उसने कई-कई दिन बिता दिए और उसकी जमा-पूंजी है एक डालर और सत्तासी सेंट। आंसू थे कि रुकने का नाम ही नहीं ले रहे थे ! सिमित आमदनी की मजबूरियां उस छोटे से कमरे में अपनी पूरी शिद्दत के साथ उजागर थीं। 

ओ. हेनरी 
ऐसा नहीं है कि जिम और दैला के दिन सदा से ऐसे ही थे, इस युगल ने भी अच्छे दिन देखे और बिताए हैं। पर समय सदा एक सा कहाँ रहता है ! पर उनके बीच का अटूट, प्रगाढ़ प्रेम का स्थाई भाव वैसा ही बना हुआ है। समय भले ही बदल गया हो पर दोनों एक दूसरे के बिना जीवन की कल्पना भी नहीं कर सकते। कुछ देर बाद दैला बिस्तर से उठी, आंसू पोछे। चेहरे पर पानी के छींटे मार प्रकृतिस्थ होने की कोशिश की। पर मुंह बाए सामने खड़ी कल की समस्या का कोई हल निकलता नहीं दिख रहा था ! कल क्रिसमस का त्यौहार है, इस दिन के लिए वह महीनों से एक-एक पैनी करके पैसे बचा रही है, पर जमा हो पाए हैं सिर्फ एक डॉलर और सत्तासी सेंट, इतनी सी रकम से वह कैसे अपने प्यारे जिम के लिए उपहार खरीद पाएगी, यह बात उसे परेशान किए जा रही थी !

समस्या से जूझती दैला को एकाएक कमरे में लगे आईने में अपनी शक्ल दिखाई दी। अपना अक्श देखते ही उसकी आँखें चमक उठीं। उसने शीघ्रता से अपने केशों को खोल लिया और अपनी पूरी लम्बाई तक उन्हें नीचे लटका दिया। इस युगल के पास दो ऐसी वस्तुएं थीं, जिन पर दोनों को बहुत गर्व था। एक थी जिम की सोने की घड़ी, जो कभी उसके पिता और दादा के पास भी रह चुकी थी और दूसरे थे दैला के रेशमी सुनहरे घुटनों तक पहुँचते केश ! दैला ने अपने खूबसूरत केशों पर एक नजर डाली, एक सिहरन उसके पूरे शरीर में दौड़ गई। फिर किसी निष्कर्ष पर पहुँच उन्हें जूड़े का रूप दे, अपना बैग उठा वह वह शीघ्रता से दरवाजे से बाहर निकली और सीढियां उतर कर सड़क पर आ गई।

दैला जहां पहुँच कर रुकी वहां लिखा था - "मैडम सोफ्रोनी - सभी प्रकार के केश प्रसाधनों की विक्रेता"। दैला लपककर एक मंजिल जीना चढ़ गई और अपने-आपको संभालते हुए सीधे दुकान की मालकिन से पूछा कि क्या आप मेरे बाल खरीदेंगी ? महिला ने कहा, "क्यों नहीं, यही तो हमारा धंधा है। जरा अपना हैट हटाकर मुझे आपके बालों पर एक नजर डालने दीजिये।"  दैला ने हैट हटाया, महिला ने अपने अभ्यस्त हाथों में केश राशि को उठा उसका आकलन कर कहा "बीस डॉलर।" "ठीक है। जल्दी कीजिये," दैला बोली। 

थोड़ी ही देर में उसके बाल कट चुके थे और वह दुकानों की खाक छान रही थी, जिम के उपहार के लिए। तभी उसे वह चीज मिल गई जिसकी उसको तलाश थी, वह थी जिम की सोने की घड़ी के लिए प्लेटिनम की चैन ! घर पहुँच दैला क्रिसमस की तैयारी में जुटी ही थी कि तभी जिम अंदर आया। आते ही उसकी दृष्टि दैला पर टिक गई ! उन नजरों में कुछ ऐसा था जिससे दैला डर सी गई, वह दौड़ कर उसके पास पहुंची और रुआँसी होकर कहने लगी - "मेरे प्यारे जिम, मेरी तरफ इस तरह मत देखो। मैंने अपने बाल सिर्फ इसलिए बेचे क्योंकि क्रिसमस पर तुम्हें उपहार दिए बिना मैं यह क्रिसमस नहीं मना सकती थी। बाल तो घर की खेती है, फिर उग आयेंगे। तुम बिलकुल चिंता मत करो, मेरे बाल बहुत तेजी से बढ़ते हैं। तुम्हें क्रिसमस मुबारक हो ! देखो, मैं तुम्हारे लिए कितनी सुन्दर घड़ी की चेन लाई हूँ ! जरा अपनी घड़ी तो देना, देखूँ तो यह उस पर कैसी लगती है ?

जिम जैसे किसी दूसरे संसार में था !  रहा था जैसे बहुत प्रयत्न करने पर भी वह सत्य को समझ ना पा रहा हो। फिर अचानक जैसे बेहोशी से जागते हुए उसने दैला को छाती से लगा लिया। उसने अपने ओवरकोट की जेब से एक पैकेट निकाला और उसे मेज पर रखा और बोला "मुझे गलत मत समझना दैला ! दुनिया की कोई भी चीज तुम्हारे प्रति मेरे प्यार को कम नहीं कर सकती। लेकिन अगर तुम इस पैकेट को खोलोगी तो तुम्हें मालूम होगा कि तुम्हें देखकर मैं क्यों स्तब्ध रह गया था !"

दैला ने तुरंत पैकेट खोला और उसके खुलते ही उसके मुँह से चीख निकल गई ! आँखों से आसुओं का सैलाब बह निकला ! मेज पर बिखरा हुआ था कछुए की हड्डी से बना कंघे-कंघियों का संग्रह, जिनके गोल किनारों पर जड़े हुए थे सुंदर चमकीले नग ! जिन्हें अपने बालों में सजाने का सदा से उसका सपना रहा था !  जिसको पाने के लिए वह सदा भगवान से प्रार्थना किया करती थी !

दैला अपने बालों को बेच जिस घड़ी के लिए चेन लाई थी उसी घड़ी को बेच जिम उसके बालों के लिए कंघों का सेट ले आया था ! अब दोनों ही उपहार किसी काम के नहीं थे ! जिम और दैला दोनों एक दूसरे को गले से लगाए आंसू बहाए जा रहे थे। ये आंसू गवाह थे उनके प्यार के, उनके समर्पण के, उनके त्याग के !

@आदरांजलि - ओ. हेनरी  

रविवार, 22 दिसंबर 2024

ठेका, चाय की दुकान का

यह शै ऐसी है कि इसकी दुकान का नाम दूसरी आम दुकानों की तरह तो रखा नहीं जा सकता, इसलिए बड़े-बड़े अक्षरों में ठेका देसी या अंग्रेजी शराब लिख उसके साथ वैधता तथा लाइसेंस नंबर इत्यादि लिख दिए गए ! इसीलिए इस ठेके के ठिकाने इतने मशहूर हो गए कि इन्होंने ने बाकी ठेकों को किनारे कर अपने इस रूप को अप्रतिम ख्याति दिलवा दी ! यही कारण था कि हमारे ग्रुप के ''वैष्णव सदस्य'' चाय की दूकान का नाम ठेके के रूप में  देख ठठिया से गए थे........................!

#हिन्दी_ब्लागिंग 

पिछले दिनों ग्रुप के साथ उदयपुर यात्रा के दौरान घूमते-घूमते संध्या समय च्यास की तलब लगने पर एक चाय की दूकान पर काफिला रुका ! उसके बोर्ड पर ''ठेका चाय का'' लिखा देख सबको कुछ बात करने का एक मुद्दा मिल गया। क्योंकि ठेका शब्द सुनते-देखते ही किसी के भी दिमाग में शराब की दुकान की ही तस्वीर आती है ! चाय के साथ उसका मेल नहीं बैठ पाने के कारण कई मित्र असमंजस में पड़ गए थे । 


लो, आप भी देख लो 

वैसे इस शब्द ठेका के कई अर्थ होते हैं, पर मुख्यता इसको सहारे या समर्थन के पर्याय के रूप में जाना जाता है ! किसी के ठहरने के अस्थाई स्थान को भी ठेका या फिर ठिकाना कहा जाता है। भारतीय शास्त्रीय संगीत में तबला वादन में या फिर कव्वाली में सहारा देने वाली ''ताल'' को भी ठेका कहा जाता है ! किसी कार्य को करवाने केलिए दिए जाने वाले कांट्रैक्ट या संविदा को भी ठेका ही कहा जाता है। 


अब रही शराब की दुकानों को ठेका कहे जाने की आम बात ! जिनको सिर्फ सरकार द्वारा ही मान्यता दी जाती है, इसलिए सरकारी नियमों के अनुसार शराब की हर दूकान के बोर्ड पर उसकी वैधता की पूरी जानकारी लिखी होती है। अब यह शै ऐसी है कि इसकी दुकान का नाम दूसरी आम दुकानों की तरह तो रखा नहीं जा सकता, इसलिए बड़े-बड़े अक्षरों में ठेका देसी या अंग्रेजी शराब लिख उसके साथ वैधता तथा लाइसेंस नंबर इत्यादि लिख दिए जाते हैं ! इसीलिए इस ठेके के ठिकाने इतने मशहूर हो गए कि इन्होंने बाकी ठेकों को किनारे कर अपने इस रूप को अप्रतिम ख्याति दिलवा दी ! यही कारण था कि हमारे ग्रुप के ''वैष्णव सदस्य'' चाय की दूकान के नाम को ठेके के रूप में देख ठठिया से गए थे  😅

शनिवार, 30 नवंबर 2024

"मोबिकेट" यानी मोबाइल शिष्टाचार

आज मोबाइल शिष्टाचार पर बात करना  करना ठीक ऐसा ही है जैसे किसी कॉलेज के छात्र को पांचवीं क्लास का कोर्स समझाया जा रहा हो ! अधिकाँश लोग इन सब बातों को जानते भी हैं, पर फिर भी जाने-अनजाने चूक हो ही जाती है ! आज की दुनिया में यह भले ही एक वरदान है, लेकिन इसका अनुचित प्रयोग कभी-कभी दूसरों की परेशानी का सबब बन जाता है ! खास कर तब, जब यह बिना एहसास दिलाए आपकी लत में बदल चुका हो ! आज खुद को भोजन मिले ना मिले पर इसका 'पेट'भरे रहना, इसकी चार्जिंग की ज्यादा चिंता रहती है ! इसलिए यह जरुरी  हो गया है कि अभिभावक बचपन से ही अपने बच्चों को "मोबिकेट" से अवगत कराते रहें............!     

#हिन्दी_ब्लागिंग 

कल मेरे एक मित्र घर आए ! मैं लैप-टॉप पर अपना कुछ काम कर रहा था ! उनके आते ही मैंने उसे बंद कर उनका अभिवादन किया ! अभी आधे मिनट की दुआ-सलाम भी ठीक तरह से नहीं हुई थी कि उनका फोन घनघना उठा और वे उस पर व्यस्त हो गए ! बात खत्म होने के बाद भी वे उसमें निरपेक्ष भाव से अपना सर झुकाए कुछ खोजने की मुद्रा बनाए रहे ! इधर मैं उजबक की तरह उनको ताकता बैठा था ! बीच में एक बार मैंने एक मैग्जीन उठा उसके एक-दो पन्ने पलटे कि शायद भाई साहब को मेरी असहजता का कुछ एहसास हो ओर पर वे वैसे ही निर्विकार रूप से अपने प्रिय के साथ मौन भाव से गुफ्तगू में व्यस्त बने रहे ! हार कर मैं भी अपने कम्प्यूटर को दोबारा होश में ले आया ! हालांकि मुखातिब उनकी ओर ही रहा ! पर पता नहीं उन्हें क्या लगा या क्या याद आ गया कि वे अचानक उठ कर बोले, अच्छा चला जाए ! मैंने कहा, बस ! बैठो ! बोले, नहीं फिर कभी आऊंगा !  

                

 मोबाइल फोन, आज हर आम और खास के लिए यह कितना महत्वपूर्ण बन गया है, इसके बारे में बात करना समय बर्बाद करना है ! आज खुद को भोजन मिले ना मिले पर इसका ''पेट'' भरे रहना, इसकी चार्जिंग, जरुरी है ! आज की दुनिया में यह भले ही एक वरदान है, लेकिन इसका अनुचित प्रयोग कभी-कभी दूसरों की परेशानी का सबब बन जाता है ! और खास कर तब, जब यह बिना एहसास दिलाए आपकी लत में बदल चुका हो ! सोचिए आप किसी के घर गए हैं, तो वह अपने दस काम छोड़ आपकी अगवानी करता है और आप हैं कि आपका फोन आपको छोड़ ही नहीं रहा ! मान लीजिए इसका उल्टा हो जाए, आप किसी के यहां जाएं और वह अपने फोन पर व्यस्त रहे, तो.......! 

                                                       
घर के अलावा आज तो यह हालत हैं कि कुछ लोग ऑफिस पहुँच कर भी अपने फोन से बाहर नहीं निकल पाते ! मिटिंग हो, सामने क्लाइंट हो, जरुरी कागजात देखे-परखे जाने हों, जरुरी काम समय सीमा में निपटना हो, इनका फोन बीच में गुर्राने लगता है और ये सब कुछ छोड़ उसमें घुस जाते हैं बिना चिंता किए कि सामने वाले का समय बर्बाद हो रहा है ! बहुत जरुरी सूचना हो तो भी अलग बात है, बेकार के मीम या क्लिप को भी बिना पूरा हुआ नहीं छोड़ते ! मैंने तो ऐसे-ऐसे शख्स भी देखे हैं जो अपनई इन समय खाऊ बकवासों को अपने काम के लिए बैठे व्यक्ति को भी दिखाने से बाज नहीं आते ! कई तो अपना काम छोड़ फोन उठा बाहर की तरफ चल देते हैं, चहलकदमी करते हुए, मोबाईल जो ठहरा ! 

                                          
इस लत के तहत, लत ही तो है, जो अधिकांश लोगों पर इतनी हावी हो गई है कि वे रास्ता-घाट, समय-कुसमय कुछ नहीं देखते, फोन पर चीखने लगते हैं ! ऐसे लोगों से रोज ही, सार्वजनिक जगहों पर, सड़क पर, बस में, ट्रैन में सामना होता रहता है, जिनका ध्वनि स्तर इतना ऊँचा होता है कि उनके घर-परिवार की व्यक्तिगत समस्याएं सरे बाजार आम हो जाती हैं ! पर वे अपने यंत्र पर इतने मशगूल होते हैं कि इसका उनको आभास भी नहीं हो पाता कि वे दूसरों को विचलित करने का वायस बन रहे हैं ! इसी लत के कारण, अनजाने में ही सही, यदि किसी के साथ बात करते या सामने बैठे हुए आप अपने फोन पर ''अन्वेषण'' करने लगते हैं, तो सामने वाला अपने को उपेक्षित समझ, भले ही मुंह से कुछ न बोले, बुरा जरूर मान बैठता है भले ही अपनी जरुरत के लिए दांत निपोरता रहे !  

जानकारों ने, मनोवैज्ञानिकों ने, इस लत के लिए कुछ सुझाव दिए हैं ! उन पर अमल करना जरुरी हो गया है, जिससे फिजूल की परिस्थितियां या माहौल पनपने ना पाएं ! भले ही इन सुझावों पर अमल करना ऐसा लगे जैसे किसी कॉलेज के छात्र को पांचवीं क्लास का कोर्स समझाया जा रहा हो, पर यह जरुरी भी है कि बड़े तो अनुकरण करें ही साथ ही अभिभावक शुरू से ही अपने बच्चों को "मोबिकेट" की इन जानकारी से अवगत कराते रहें ! 

सबसे पहले तो फोन आने या करने पर अपना स्पष्ट परिचय दें ! ''पहचान कौन'' या ''अच्छा ! अब हम कौन हो गए'' जैसे वाक्यों से सामने वाले के धैर्य की परीक्षा ना लें ! हो सकता है कि आपने जिसे फोन किया हो उसके बजाए सामने कोई और हो, जो आपकी आवाज ना पहचानता हो !फोन करते समय सामने वाले का गर्मजोशी और खुशदिली से अभिवादन करें ! आपका लहजा ही आपकी छवि घडता है ! स्पष्ट, संक्षिप्त और सामने वाले की व्यस्तता को देख बात करें ! बात करते समय किसी का भी तेज बोलना या चिल्लाना अच्छा नहीं माना जाता, फिर भले ही वह आपका लहजा हो या फिर फोन की रिंग-टोन ! हमेशा विनम्र रहें और अभद्र भाषा के प्रयोग तथा किसी को कभी भी फोन करने से बचें। गलती से गलत नंबर लग जाए तो क्षमा जरूर मांगें !

जब भी आपसे कोई आमने-सामने बात कर रहा हो तो मोबाईल पर बेहद जरुरी कॉल को छोड़ ना ज्यादा बात करें ना हीं स्क्रॉल करें ! वहीं ड्राइविंग के वक्त, खाने की टेबल पर, बिस्तर या टॉयलेट में तो खासतौर पर मोबाइल न ले जाएं । इसके अलावा अपने कार्यस्थल या किसी मीटिंग के दौरान फोन साइलेंट या वाइब्रेशन पर रखें और मेसेज भी न करें ! कुछ खास जगहों या अवसरों, जैसे धार्मिक स्थलों, बैठकों, अस्पतालों, सिनेमाघरों, पुस्तकालयों, अन्त्येष्टि इत्यादि पर बेहतर है कि फोन बंद ही रखा जाए  !

इन सब के अलावा कुछ बातें और भी ध्यान देने लायक हैं ! कईयों की आदत होती है दूसरों के फोन में ताक-झांक करने की जो कतई उचित नहीं है नाहीं बिना किसी की इजाजत उसका फोन देखने लगें ! बिना वजह कोई भी एसएमएस दूसरों को फारवर्ड ना करें, जरूरी नहीं कि जो चीज आपको अच्छी लगे वह दूसरों को भी भाए ! आजकल मोबाइल में कैमरा, रिकॉर्डर और ऐसी अनेक सुविधाएं होती हैं। इन सुविधाओं का बेजा इस्तेमाल न कर जरूरत के वक्त ही इस्तेमाल करें !  

आज ध्यान में रखने की बात यह है कि यदि आधुनिक यंत्रों का आविष्कार यदि हमें तरह-तरह की सुख-सुविधा प्रदान कर रहा है, तो हमारा भी फर्ज बनता है कि हमारी सहूलियतें दूसरों की मुसीबत या असुविधा ना बन जाएं ! 

@सभी चित्र अंतर्जाल के सौजन्य से 

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