कुछ दिनों पहले सरकारी फोन 45 दिन तक कोमा में रहा था। डेस्क-डेस्क, केबिन-केबिन के यंत्रं पर पुकार लगायी पर वे भी तो अपने आकाओं से कम कहां है, सब मशीनी आवाज लिए बैठे होते हैं। सब को हिलाया, डुलाया, झिंझोड़ा पर सरकारी कछुआ अपनी चाल चलता रहा। हां इतना बदलाव जरूर आया है कि भाषा बदल गयी है। काम अपने समय पर ही करना है पर सांत्वना उड़ेल के रख दी जाने लगी है।
किसी और कंपनी का होता तो वहां हड़कंप मच गया होता। पर यहां किसे परवाह ग्राहक जाता है तो जाए ना जाए तो अपनी बला से।पर एक बात है फोन काम करे ना करे बिल जरूर दो दिन पहले टपका दिया जाता है। अब बिल की भी सुन लीजिए। हम जिसे सुविधा समझ सरकार के अहसानमंद होते हैं कि उसने जगह-जगह पैसे जमा कराने की सहूलियत दे रखी है, वह भी बार-बार चलावा ही नजर आता है। ऐसी ही एक जगह है पोस्ट आफिस जहां आप फोन का बिल जमा करवा सकते हैं। पर इस आफिस और उस आफिस का 36 का आंकड़ा है। दोनों का तालमेल ही नहीं बैठ पाता। पहले भी ऐसा तीन-चार बार हो चुका है कि पोस्ट आफिस में निर्धारित समय के पहले पैसे जमा कराने के बावजूद पता चलता है कि आपका बिल जमा नहीं हुआ है। पोस्ट आफिस वाले कहते हैं कि हम अंतिम तारीख के दो दिन पहले ही पैसा भेज देते हैं। उधर वाले इल्जाम लगाते हैं कि पैसा पहुंचा ही नहीं। आप दौड़ते रहिए इस से उस तक। भले ही आपने समय पर अपना काम कर दिया हो पर सरकार की नजर में आप अपराधी हैं और उसका फल होता है फोन की आक्सीजन बंद हो जाना। इस महीने फिर वही लंका कांड़ दोहराया गया। पैसे जमा होने के बावजूद दोषी ठहराना उनका फर्ज बनता था, उन्होंने अपना काम किया। अब अपने को सिद्ध करना अप्प का काम था तो करते रहिये। उसके लिए आप बिमार हों, काम-काज का बोझ हो या कोई भी कारण हो उससे किसी को कोई मतलब नहीं। और ऐसा भी नहीं है कि जहां आपने पैसा जमा करवाया है वहीं आपका काम हो जाएगा नहीं अपने को दोष मुक्त कराने एक स्पेशल आफिस में एक स्पेशल आफिसर के सामने अपने स्पेशल समय पर हाजिर हो विनम् स्वर में प्रार्थना करनी होगी कि गलती मेरी नहीं है।
अरे भाई जब आप लोगों में ताल-मेल नहीं है तो क्यों जगह-जगह पैसे बटोरने की दुकान लगाए बैठे हो एक ही जगह रखो ताकि आदमी एक ही बार सूली चढे। और या फिर अपनी भूल, गलती, लापरवाही जो भी है उसका हरजाना दो। ऐसे ही कोई सिरफिरे पहाड़ के नीचे ऊंट आगया तो फिर जै राम जी की हो जाएगी।
पर ऐसे एक दो किस्सों से किसी को क्या फर्क पड़ने वाला है?
इस ब्लॉग में एक छोटी सी कोशिश की गई है कि अपने संस्मरणों के साथ-साथ समाज में चली आ रही मान्यताओं, कथा-कहानियों को, बगैर किसी पूर्वाग्रह के, एक अलग नजरिए से देखने, समझने और सामने लाने की ! इसके साथ ही यह कोशिश भी रहेगी कि कुछ अलग सी, रोचक, अविदित सी जानकारी मिलते ही उसे साझा कर ज्यादा से ज्यादा लोगों तक पहुंचाया जा सके ! अब इसमें इसको सफलता मिले, ना मिले, प्रयास तो सदा जारी रहेगा !
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5 टिप्पणियां:
वेशक कुछ समस्यायें हैं पर हर जगह उपलब्ध है व सस्ता भी है
गांव में तो और कोई आता नहीं सेवायें देने को वो भी इस रेट पर
नहीं है यही तो मेरा अहोभाग्य है सर ....
ऐसे मामले में बीएसएनएल के सीएमडी को मेल करें, तुरन्त कार्रवाई होती है...
लानत है इन पर, पकड कर जुते मारो
भुक्त भोगी हू जी मै भी , इस यन्त्रना को सह ना पाया और reliance ka ले आया
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