बुधवार, 5 अक्टूबर 2022

रावण का मरना भी असंभव है

आज देश भर में दशहरे के दिन, भले ही सांकेतिक रूप से ही सही, रावण को मारने, उसके पुतले का दहन करने का जिम्मा कौन लेता है या किसको दिया जाता है ! रावण को अग्नि के हवाले करने और करवाने वालों ने क्या कभी अपने गिरेबान में झाँक कर देखा है ! इस दिन पार्कों में, चौराहों पर, कालोनियों में या मैदानों में जो रावण के पुतले फूंके जाते हैं, उनको फूंकने में अगुवाई करने वाले अधिकांश तो खुद बुराइयों के पुतले होते हैं ! उनकी तो खुद की लंकाऐं होती हैं, काम-क्रोध-मद-लोभ जैसी बुराइयों से भरपूर ! तो बुराई ही बुराई पर क्योंकर विजय पाती होगी ...................!

#हिन्दी_ब्लागिंग 
दशहरा, देश के बड़े त्योहारों में से एक। बुराई पर अच्छाई की प्रतीतात्मक जीत को दर्शाने का माध्यम। रामलीला का मंचन, धूम-धड़ाका, आतिशबाजी, हाट-मेला-बाज़ार, भीड़-भाड़, लोगों का रेला, मौज-मस्ती,
उत्साही बच्चे। ऊँचे से ऊँचे पुतले बनाने की होड़, दिन ब दिन बढ़ते आयोजन ! इन सब के चलते छुटभइए नेताओं को भी अपनी दूकान सजाने-चलाने के लिए मिलते अवसर ! 

एक समय था, जब दशहरे पर सार्वजनिक पुतला दहन, वह भी कहीं-कहीं आयोजित होता था। पर समय के साथ, आपसी होड़ और मतलबपरस्ती के तहत अब जैसे गणेशोत्सव, दुर्गा पूजा, होली-दिवाली मिलन, इन सबके कार्यक्रम हर गली-मौहल्ले में होने लगे हैं, उसी क्रम में अब दशहरे में पुतला दहन का भी आयोजन जगह-जगह होने लगा है ! एक ही कॉलोनी में आपसी स्पर्द्धा, अहम और वैमनस्य के चलते दो-तीन पुतले खड़े कर दिए जाते हैं ! जगह न हो तो छोटे-छोटे पार्कों में भी खतरा मोल ले, तीन-तीन पुतलों का दहन किया जाने लगा है ! इसी बहाने कुछ लोगों को अपना वर्चस्व, पहुंच व तथाकथित प्रभुत्व दिखाने तथा भविष्य का मंच तैयार करने का अवसर हाथ लग जाता है ! 
रावण को मारने के लिए राम का होना जरुरी है और राम ऐसे ही कोई नहीं बन जाता ! उसके लिए उसमें प्रबल शक्ति का होना तो अवश्यंभावी है ही, साथ ही उसे कर्त्वयनिष्ठ, सत्यनिष्ठ, दृढ़निश्चयी, करुणामय, ज्ञानी, वचन पालक, संयमी, ईर्ष्या मुक्त, विवेकी, निरपेक्ष, शरणागत वत्सल, दयालु, समदर्शी, काम-क्रोध-मोह विहीन होना भी बहुत जरुरी है
समय में कितना बदलाव आ गया है, अब भीड़ के लिए दशहरे का दिन रावण के नाम रहता है ! उसके पुतलों की भव्यता आकर्षण का केंद्र बन जाती है ! बड़ी रामलीलाओं में रावण का किरदार निभाने के लिए खास और जाने-माने चेहरों को चुना जाता है ! रावण के पुतले को अग्नि के सुपुर्द करने का जिम्मा भी किसी बड़ी हस्ती को ही दिया जाता है ! जितनी बड़ी रामलीला कमेटी उतना ही बड़ा आदमी ! जितना बड़ा आदमी उतनी ही बड़ी कमेटी की प्रतिष्ठा !
अत्यंत खेद के साथ यह कहना और सहना पड़ता है ! बहुत कटु है ! पर सच्चाई यही है कि इस दिन प्रभू राम तो जैसे गौण हो जाते हैं ! किसी भी बड़े आयोजन को देख लें ! श्रीराम पक्ष के कुछ किरदारों की आरती-तिलक की ओपचारिकता पूरी होते ही सब का ध्यान पधारे हुए विशिष्ट जनों पर सिमट कर रह जाता है ! जितनी आव-भगत उन में से हरेक की होती है उतनी तो पूरे राम-दल की भी नहीं होती ! फिर होड़ सी लग जाती है रावण के पुतले पर तीरों की बौछार करवाने में ! यह सब देख ऊपर बैठा रावण भी हाथ जोड़ कर कहता होगा, हे प्रभू, उस समय तो अपने कर्मों के कारण आपने मेरा वध किया था, वह सम्मानजनक अंत था मेरा ! तब  मुझे उतनी तकलीफ नहीं हुई थी पर इस अपमानजनक स्थिति से हर साल दो-चार होने में बहुत कष्ट होता है ! किसी तरह मुझे निजात दिलवाइए इन अज्ञानी-मूढ़ों के चंगुल से !
देश भर में दशहरे के दिन, भले ही सांकेतिक रूप से ही सही, रावण को मारने, उसके पुतले का दहन करने का जिम्मा कौन किसको देता है यह सब अपनी मिलीभगत और स्वार्थसिद्धि पर निर्भर करता है ! आज पार्कों में, चौराहों पर, कालोनियों में या मैदानों में जो रावण के पुतले फूंके जाते हैं, उनको फूंकने में अगुवाई करने वाले अधिकांश तो खुद बुराइयों के पुतले होते हैं ! उन्होंने कभी अपने गिरेबाँ में झांक कर देखा है ! उनकी तो खुद की अपनी लंकाऐं होती हैं, काम-क्रोध-मद-लोभ जैसी बुराइयों से भरपूर ! ऐसा करते हुए उन्हें जरा सी भी ग्लानि नहीं होती ! ऐसे में बुराई ही बुराई पर क्योंकर विजय पाएगी ? 
आज बुराई पर अच्छाई की विजय निश्चित करने के लिए किसीको उसके गुणों का आकलन कर के नहीं बल्कि उसकी हैसियत देख कर चुना जाता है। आज रावण दहन के लिए उसे ''धनुष'' थमाया जाता है जो अपने क्षेत्र में येन-केन-प्रकारेण अगुआ हो ! फिर चाहे वह राजनीतिज्ञ हो, चाहे कलाकार हो, चाहे व्यापारी हो या फिर अपने इलाके का प्रमुख ही हो, जैसे किसी कॉलोनी या हाऊसिंग सोसायटी का प्रेजिडेंट ! अगुआ होना ही उसकी लियाकत है भले ही कर्मों से वह दुर्योधन ही क्यों न हो ! 
रावण अपने आप में ज्ञानी-ध्यानी, सबसे बड़ा शिव भगत, पुरातत्ववेता, ज्योतिष का जानकार, विद्वान, युद्ध-विशारद के साथ-साथ महाबली योद्धा था ! उससे बड़ा महा पंडित उस युग में कोई दूसरा नहीं था ! ऐसा नहीं होता तो क्या श्रीराम उसे अपने यज्ञ का पुरोहित बनाते ! उस पर राम जो सारे जगत के पालनहार हैं, नियोजक हैं, सर्व शक्तिमान हैं, सारे चराचर के स्वामी हैं, उन्हें भी उस रावण पर विजय पाने में ढाई महीने लग गए थे ! तब जा कर कहीं उसका वध हुआ था ! रावण को मारने के लिए राम का होना जरुरी है और राम ऐसे ही कोई नहीं बन जाता ! उसके लिए उसमें प्रबल शक्ति का होना तो अवश्यंभावी है ही, साथ ही उसे कर्त्वयनिष्ठ, सत्यनिष्ठ, दृढ़निश्चयी, करुणामय, ज्ञानी, वचन पालक, संयमी, ईर्ष्या मुक्त, विवेकी, निरपेक्ष, शरणागत वत्सल, दयालु, समदर्शी, काम-क्रोध-मोह विहीन होना भी बहुत जरुरी है ! क्या आज एक ही इंसान में इतने गुणों  होना संभव है ?    
नहीं ! 
तो रावण का मरना भी असंभव है !     

2 टिप्‍पणियां:

कविता रावत ने कहा…

बहुत सही लिखा है आपने। रावण तो बहुतेरे हैं आजकल लेकिन राम का सर्वथा अकाल है, फिर कैसे रावण मारे जाएंगे और विजय उत्सव मनाया जाएगा।
गंभीर चिंतन का विषय है।

गगन शर्मा, कुछ अलग सा ने कहा…

कविता जी
"कुछ अलग सा" पर आपका सदा स्वागत है🙏

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