कुछ सालों पहले एक उद्यमी ने सौ विभिन्न स्वादों में रसगुल्ले बनाए थे ! उत्सुकतावश कुछ दिन तो बहुत हो-हल्ला रहा फिर धीरे-धीरे उनके प्रति लोगों का रुझान कम होता चला गया ! कुछ लोग समोसे में आलू की जगह मटर, चने, काजू इत्यादि का इस्तेमाल करते हैं पर जो सनातन बात आलू भरे समोसे की होती है वह दूसरी चीजों से नहीं बन पाती ! वही बात रसगुल्ले की भी है ! जो बात कोमल, मुलायम, दूधिया रसगुल्ले के स्वाद में है वह और कहाँ..........!
#हिन्दी_ब्लागिंग
जितनी विविधता हमारे रहन-सहन में है उतनी ही हमारे खान-पान में भी है ! वैसे तो आज हर चीज हर जगह उपलब्ध है फिर भी किसी-किसी व्यंजन विशेष का अपने प्रदेश में स्वाद कुछ और ही होता है ! इस खासियत को बचाए रखने के साथ-साथ उसमें और भी बढ़ोत्तरी के लिए खान-पान की दुनिया में तरह-तरह के प्रयोग चलते ही रहते हैं ! जिससे भोजन प्रेमियों को कुछ और नया जायका या स्वाद मिल सके ! इन्हीं प्रयोगों के चलते कभी-कभी अचानक कुछ ऐसा बन जाता है जिसकी विशेषता व नवीनता उसे रातोंरात भोजन प्रेमियों का चहेता बना देती है ! जैसा वर्षों पहले रसगुल्ले की ईजाद पर हुआ था ! कभी कभी खाद्य निर्माता पुरानी चीजों के साथ भी प्रयोग करते रहते हैं जो कमोबेश लोकप्रिय भी हो जाती हैं ! उदाहरण स्वरूप समोसे को लिया जा सकता है जिसमें आलू की जगह तरह-तरह की अन्य सामग्रियों को भर उसे नया स्वाद देने की कोशिश की जाती रहती है !
इसी संदर्भ में, आजकल कोलकाता में रसगुल्ले वाली चाय ''वायरल'' हो रही है ! हालांकि दोनों का कोई मेल नहीं है फिर भी जो चल जाए वही सफल ! यह अलग बात है कि ऐसे प्रयोग धूमकेतु ही सिद्ध होते हैं फिर भी जब तक हैं, तो हैं ! अब बात आती है कि इसकी ईजाद कैसे हुई ! तो एक बंगाली भद्रलोक, जिनकी अपनी एक अच्छी-खासी चाय की दूकान कोलकाता के साउथ सिटी मॉल के पास है, कहीं जा रहे थे तो एक जगह गर्मागर्म रसगुल्ले बनते देखे ! ज्ञातव्य है कि रसगुल्ला गर्म और ठंडा दोनों स्थितियों में स्वादिष्ट लगता है ! तो वे सज्जन अपने को रोक नहीं सके और रसगुल्ले का सेवन करते हुए चाय भी ले ली ! टेस्ट अच्छा लगा, तभी उनके दिमाग में इस ''फ्युजन'' का विचार आया ! दूसरे दिन अपनी दूकान में उन्होंने अपने मित्रों को अपना आयडिआ पेश किया जो ''वायरल'' हो गया ! बंगाल के भद्र लोगों का प्यार रसगुल्ला और चाय ! एक साथ !
कुछ एक उत्पादों को छोड़ दिया जाए, जैसे राजभोग, तो इस तरह के प्रयोग मूल वस्तु के सामने ज्यादा दिन नहीं टिकते ! कुछ सालों पहले एक उद्यमी ने सौ विभिन्न स्वादों में रसगुल्ले बनाए थे ! भले आदमी ने एक में तो मिर्ची का स्वाद भी डाल दिया था ! उत्सुकतावश कुछ दिन तो बहुत हो-हल्ला रहा फिर धीरे-धीरे उनके प्रति लोगों का रुझान कम होता चला गया ! कुछ लोग समोसे में आलू की जगह मटर, चने, काजू इत्यादि का इस्तेमाल करते हैं पर जो सनातन बात आलू भरे समोसे की होती है वह दूसरी चीजों से नहीं बन पाती ! वही बात रसगुल्ले की भी है ! जो बात कोमल, मुलायम, दूधिया रसगुल्ले के स्वर्गिक स्वाद में है, वह और कहाँ ! फिर भी स्वाद बदलने के लिए कुछ दिन, कुछ और सही !
5 टिप्पणियां:
बहुत ही बढ़िया इसके बारे में पहली बार सुना
आपको और आपके परिवार को दीपोत्सव की हार्दिक शुभकामनाएं
अभिलाषा जी
"कुछ अलग सा" पर सदा स्वागत है!
आने वाला समय भी शुभ हो
रोचक प्रयोग है। वैसे आलू के साथ साथ छोले वाले समोसे भी काफी चलते हैं। आपको और आपके परिवार को दीपावली की हार्दिक शुभकामनाएँ।
विकास जी
आपको भी शुभ पर्वों की हार्दिक मंगलकामनाएं, सपरिवार 🙏
अच्छी जानकारी !! आपकी अगली पोस्ट का इंतजार नहीं कर सकता!
greetings from malaysia
एक टिप्पणी भेजें