मंदिर के पदाधिकारियों के अनुसार वर्षों पहले भी इस झील में एक मगरमच्छ रहता था। जिसे बाबिया कह कर पुकारा जाता था। 1942 में उसे एक ब्रिटिश अधिकारी मार कर अपने साथ ले गया था ! पर कुछ ही दिनों बाद उसकी सांप के काटने से मौत हो गयी थी ! इस घटना के बाद आश्चर्यजनक रूप से झील में एक और मादा मगर दिखाई पड़ने लगी ! भक्तों ने उसका नाम भी बाबिया रख दिया ! वह यही बाबिया थी, जिसने भक्तों तथा मंदिर द्वारा प्रदत्त प्रसाद पर ही अपनी तक़रीबन दो तिहाई जिंदगी गुजार दी ! पर जाते-जाते भी वह यह संदेश दे गई कि कदाचार से सदाचार, आचरण बदलते ही जीव वंदनीय हो जाता है ...........!
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मगरमच्छ, वह भी शाकाहारी ! सहसा विश्वास ही नहीं होता ! यह ठीक वैसा ही लगता है जैसे कोई कहे कि शेर घास खा कर जिंदा है ! ज्यादातर पानी में रहने वाले, इस डरावने उभयचर का नाम सुनते ही डर से रोंगटे खड़े हो जाते हैं ! जिस प्राणी से पानी में शेर और हाथी जैसे ताकतवर जानवर भी सामना करने से कतराएं ! जिसके खूंखार दांत एक झटके में किसी के भी टुकड़े-टुकड़े कर सकने में सक्षम हों ! जो पानी में रहने वाले जीवों का काल हो ! वह शाकाहारी .....! पर हमारा संसार भरा पड़ा है, विस्मित करने वाले आश्चर्यजनक, अविश्वसनीय, हैरतंगेज कारनामों से ! इस जगत में क्या कुछ नहीं हो सकता !
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बाबिया |
केरल के कासरगोड जिले के माजेश्वरम नामक स्थान में स्थित आनंदपद्मनाभ स्वामी मंदिर ! ऐसी मान्यता है कि पद्मनाभस्वामी जी का पूजास्थल तिरुवंतपुरम में जरूर है पर उनका मूलस्थान यह मंदिर है। इसी की एक गुफा में प्रभु अंतर्ध्यान हुए थे ! इसी की झील में एक मादा मगरमच्छ रहा करती थी, नाम था बाबिया ! लोक मत है कि बाबिया इस मंदिर और इसकी गुफा की रखवाली पिछले सत्तर साल से करती आ रही थी। मंदिर प्रशासन के अनुसार वह पूर्णतया शाकाहारी थी और सिर्फ मंदिर का प्रसाद ही खाती थी। यहां तक कि उसने झील में रहने वाले किसी अन्य प्राणी को किसी भी तरह का कभी भी कोई नुकसान नहीं पहुंचाया ! इतने सालों में किसी ने भी उसे मछली तक खाते नहीं देखा !
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आनंदपद्मनाभ मंदिरऔर झील |
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प्रसाद ग्रहण |
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अद्भुत |
मंदिर के पदाधिकारियों के अनुसार वर्षों पहले भी इस झील में एक मगरमच्छ रहता था। जिसे बाबिया कह कर पुकारा जाता था। 1942 में उसे एक ब्रिटिश अधिकारी मार कर अपने साथ ले गया था ! पर कुछ ही दिनों बाद उस अधिकारी की सांप के काटने से मौत हो गयी थी ! इस घटना के बाद आश्चर्यजनक रूप से झील में फिर एक मादा मगर दिखाई पड़ने लगी ! भक्तों ने उसका नाम भी बाबिया रख दिया ! यह वही बाबिया थी, जिसने भक्तों तथा मंदिर द्वारा प्रदत्त प्रसाद पर ही अपनी तकरीबन दो तिहाई जिंदगी गुजार दी ! प्रत्यक्ष दर्शियों के अनुसार सुबह और शाम की पूजा के बाद आरतियों की घंटियों के साथ ही वह भोजन ग्रहण करने के लिए झील के किनारे आ जाती थी, पर कभी भी उसने किसी को नुक्सान तो दूर की बात डराने तक की कोशिश नहीं की ! यही कारण है कि उसको देखने के लिए लोगों की भीड़ लगी रहती थी ! अब तो यह माना जाने लगा था कि उसकी एक झलक देखे बिना इस मंदिर की यात्रा अधूरी है !  |
उमड़ते लोग |
मंदिर प्रशासन के अनुसार करीब अस्सी साल की बाबिया की पोस्ट-मॉर्टम रिपोर्ट में उसकी मौत बढ़ती उम्र से संबंधित कारणों से हुई बताई गई है। इधर कुछ समय से वह बीमार चल रही थी और 09 अक्टूबर 2022, रविवार को उसकी इहलीला समाप्त हो गई ! पर जाते-जाते भी वह यह संदेश दे गई कि कदाचार से सदाचार, आचरण बदलते ही जीव वंदनीय हो जाता है ! कुछ ही समय में उसकी मौत की खबर चारों ओर फैल गई ! लाखों लोगों का हुजूम मंदिर की ओर उमड़ पड़ा ! मंदिर प्रशासन ने उस दिन मंदिर बंद रख उसके मृत शरीर को फ्रीजर में रखवा दिया, जिससे लोग उसके अंतिम दर्शन कर सकें ! दो दिन बाद पूरे विधि-विधान से उसका दाह संस्कार किया गया और मंदिर की बाहरी दिवार के साथ उसकी समाधि बना दी गई ! जहां बाद में उसका स्मारक बनाने पर भी विचार चल रहा है ! इसके साथ ही लोगों का विश्वास है मंदिर की रखवाली के लिए बाबिया की जगह कोई और जरूर आएगा, जैसे बाबिया आई थी !
12 टिप्पणियां:
आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" बुधवार 19 अक्टूबर 2022 को साझा की गयी है......... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
पम्मी जी
मान देने हेतु अनेकानेक धन्यवाद🙏
व्हाट्सप्प में पढ़ा था आज आपके ब्लॉग पर पूरी पोस्ट फोटो सहित पढ़ी तो बहुत अच्छा लगा
सच में आज भी सत है दुनिया है और उसी के बल पर टिकी है हमारी धरती
कविता जी,
आभार, आपका सदा स्वागत है !
अत्यंत रोचक और ज्ञानवर्धक लेख के लिए आभारी हूँ सर।
सादर।
श्वेता जी
बहुत-बहुत धन्यवाद ! आने वाले शुभ पर्वों की शुभकामनाएं
गगन भाई, सदाचार सदा पूजा जाता है यह सिद्ध किया बाबिया ने। जहाँ कई इंसान कीड़ो मकोड़ो की तरह मर जाते है उठानी मौत पर किसी को भी दुख नही होता वहां एक मगरमच्छ की मौत पर जनसैलाब उमड़ना? सच में हम इससे बहुत कुछ सीख सकते है।
ज्योति जी
बिलकुल सही! वैसे भी हमारे ग्रंथों में मानव से इतर सैंकड़ों प्राणियों का विवरण मिलता है जो अपने कर्मों से देवतुल्य हो गए
दीपावली की शुभकामनाएं। सुन्दर प्रस्तुति व अनुपम रचना।
इस सृष्टि में कितनी अकल्पनीय बातें पल-पल घटती हैं,जो ईश्वर की उपस्थिति का अहसास कराती हैं।
अद्भुत! संसार आश्चर्य से भरा है, अविश्वसनीय पर यथार्थ!
बहुत सुंदर लेख।
हार्दिक आभार कुसुम जी🙏
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