ऑक्सीजन यानी कि प्राण-वायु, जिसके बिना कुछ पल गुजारना भारी पड़ जाता है। पर यदि इसकी बहुलता हो जाए तो खतरा हो जाता है। वैज्ञानिक पाल बर्ट ने यह चेतावनी दी थी कि शुद्ध ऑक्सीजन में सांस लेना जानलेवा हो सकता है। ज्यादा खोज करने पर वैज्ञानिकों ने पाया कि हम ज्यादा से ज्यादा 24 घंटे तक शुद्ध आक्सीजन सहन कर सकते हैं, उसके बाद निमोनिया हो जाता है। इसके बाद ऑक्सीजन की अधिकता से उसका मानसिक संतुलन बिगडने लगता है। उसकी यादाश्त लुप्त हो जाती है। अगर यह दवाब और बढ़ जाए तो दौरे पड़ने शुरु हो जाते हैं..................!
इस ब्लॉग में एक छोटी सी कोशिश की गई है कि अपने संस्मरणों के साथ-साथ समाज में चली आ रही मान्यताओं, कथा-कहानियों को, बगैर किसी पूर्वाग्रह के, एक अलग नजरिए से देखने, समझने और सामने लाने की ! इसके साथ ही यह कोशिश भी रहेगी कि कुछ अलग सी, रोचक, अविदित सी जानकारी मिलते ही उसे साझा कर ज्यादा से ज्यादा लोगों तक पहुंचाया जा सके ! अब इसमें इसको सफलता मिले, ना मिले, प्रयास तो सदा जारी रहेगा !
सोमवार, 26 अप्रैल 2021
ऑक्सीजन की अति भी खतरनाक हो सकती है
बुधवार, 14 अप्रैल 2021
99.9% का खेल, कीटनाशकों का
कोरोना के पहले साबुन समेत ऐसे उत्पादों का दावा 99 प्रतिशत कीटाणुओं का सफाया करना होता था ! पर अब यह बढ़ कर 99.9 तक पहुंच गया है। इनके दावों पर विश्वास कर भी लिया जाए तो उस बाकि बची 0.1 आबादी का क्या ! सभी जानते हैं कि बैक्टेरिया की आबादी करोड़ों-अरबों में होती है ! यदि मोटे तौर पर किसी सतह पर उनकी सिर्फ एक लाख की जमावट ही मान लें, जोकि बहुत ही कम है, तो भी इनके दावे के अनुसार वहां 100 वायरस बचे रह जाएंगे ! उनका क्या ? वे तो कुछ ही समय के बाद कहर बरपा देंगे...............!!
#हिन्दी_ब्लागिंग
कोरोना के प्रादुर्भाव से पूरी दुनिया में दहशत फ़ैल गई थी ! देश-दुनिया-समाज-इंसान तक़रीबन हर कोई बेहाल हो इसके शिकंजे में किसी ना किसी तरह फंस मुसीबतजदा हुआ ! पहले तो न इसका कोई इलाज था ना हीं बचने का कोई सटीक उपाय ! लोगों का डर चरम पर था ! इसी भय और दवा की अनुपलब्धता ने कुछ लोगों और उद्यमों के भाग्य खोल दिए। यह महामारी उनके लिए व्यावसायिक उपलब्धि का स्वर्णिम मौका साबित हुई ! अस्पतालों, स्वास्थय केंद्रों की बात ना भी करें, तो भी सैकड़ों तरह के सेनेटाइजर, बैक्टेरिया रोधक, वायरस किलर, कीटाणुनाशक, हैंडवाश, हैण्ड रब, साबुन, डिटर्जेंट, ऐन्टीसेप्टिक तथा विभिन्न तरह के स्प्रे, लोशनों ने बाजार को पाट दिया ! बाढ़ सी आ गई ऐसे उत्पादों की। भयभीत और आशंकित लोग, बिना इनके दावों, उपयोगिता और प्रामाणिकता को जांचे, टूट पड़े इनको लेने के लिए !
आजकल कोरोना को दूर करने का दावा करने वाले उत्पाद खुद में पूरी तरह सुरक्षित नहीं हैं। वैसे भी इनका दावा 99.9 का होता है। सारा खेल .1 प्रतिशत का है ! जिन्हें ये नहीं मार पाने की घोषणा सी कर चुके होते हैं, उसी की आड़ में ये लोग कानून के शिकंजे से खुद को साफ़ बचा कर ले जाते हैं
इधर लाख हिदायतों और वैक्सीन के बावजूद, कोरोना के पलटवार ने तो जैसे उनके लिए कुबेर का खजाना ही खोल कर रख दिया। कोरोना के पहले साबुन समेत ऐसे उत्पादों का दावा 99 प्रतिशत कीटाणुओं का सफाया करना होता था ! पर अब यह बढ़ कर 99.9 तक पहुंच गया है। इनके दावों पर विश्वास कर भी लिया जाए तो उस बाकि बची 0.1 आबादी का क्या ! सभी जानते हैं कि बैक्टेरिया की आबादी करोड़ों-अरबों में होती है ! यदि मोटे तौर पर किसी सतह पर उनकी सिर्फ एक लाख की जमावट ही मान लें, जोकि बहुत ही कम है, तो भी इनके दावे के अनुसार वहां 100 वायरस बचे रह जाएंगे ! उनका क्या ? वे तो कुछ ही समय के बाद कहर बरपा देंगे ! पर विज्ञापनों का मायाजाल ऐसा है कि इस सच्चाई पर कोई ध्यान ही नहीं देता !
यह सिद्ध हो चुका है कि बैक्टेरिया या कीटाणुओं की संख्या में बहुत जल्द वृद्धि होती है और हम यह भी देख चुके हैं कि धीरे-धीरे कीटनाशक इन पर निष्प्रभावी होते चले जाते हैं। मच्छर इसका सबसे बढ़िया उदाहरण हैं। तो अब जो वो दशमलव एक प्रतिशत बैक्टीरिया बच जाते हैं, वे कुछ समय बाद फिर सक्रिय हो जाएंगे ! धीरे-धीरे इनकी संख्या में बढ़ोतरी भी होती जाएगी जो फिर पूरे इलाके पर काबिज हो जाएगी ! तिस पर अब यह जो नई प्रजाति सामने आएगी उस पर उन कीटनाशकों का भी कोई असर नहीं होगा ! ऐसे में उनका हमला इंसानों के लिए जानलेवा बन जाएगा ! आजकल कोरोना या कोविड 19 को दूर करने का दावा करने वाले उत्पाद खुद में पूरी तरह सुरक्षित नहीं हैं। कीटाणुओं को हटाने का इनका दावा 99.9% का होता है। इसमें सारा खेल .1 प्रतिशत का है ! जिन्हें ये नहीं मार पाने की घोषणा सी कर चुके होते हैं। उसी की आड़ में ये लोग कानून के शिकंजे से खुद को साफ़ बचा कर ले जाते हैं ! आज बाजारवाद सभी जगह पूरी तरह से हावी है और अघोषित रूप से उसमें सब कुछ जायज मान लिया गया है ! ऐसे में तो आम इंसान को बिना घबड़ाए, आतंकित या भयभीत हुए, अपने विवेक का उपयोग करते हुए, सोच-समझ कर ही किसी उत्पाद को खरीदना और उपयोग में लाना चाहिए ! पर होता उलटा ही है बड़ी-बड़ी कंपनियों के विज्ञापनों के झांसे में आ कर, उन्हें सच मान, उनके उत्पाद खरीद कर हम एक मनोवैज्ञानिक सुरक्षात्मक कवच सा पा जाते हैं। इससे हमारा दिमाग सकारात्मकता के संदेश देने लगता है। हमारे देश में तो वर्षों से घरेलू चीजों का ही उपयोग साफ़-सफाई के लिए होता रहा है ! जिसे अब बाजार और आधुनिकता की छद्म चकाचौंध में नकार सा दिया गया है ! नहीं तो नमक और नीम जैसे सर्वसुलभ वस्तुओं में भी कीटाणुनाश की उतनी ही शक्ति है जितनी इन अति मंहगे उत्पादों में ! हो सकता है उनसे ज्यादा ही हो और साथ ही इनकी खासियत यह भी है कि ये पूरी तरह निरापद होते हैं । पर्यावरण को भी इनसे कोई नुक्सान नहीं पहुंचता। पर सबसे बड़ी बात विश्वास की है कहा जा सकता है कि जो सोचे-समझे षडयंत्रों द्वारा हटवा दिया गया है। पर अब जो है सो है ! इसलिए इन अनजानी, तीव्र असर वाली रासायनिक वस्तुओं की ख़रीदारी व उपयोग बहुत कम मात्रा में और सोच-समझ कर ही करना चाहिए।
सोमवार, 12 अप्रैल 2021
लॉयड के एसी के गैरजिम्मेदाराना विज्ञापन में दीपिका-रणवीर
पत्नी रूपी दीपिका अपने ''बेबी पति'' को नया एसी दिखा उसके गुणों का बखान करती है ! बैक्टेरिया वगैरह की बात करते हुए उसके हाथ सेनिटाइज करती है और फिर उसका वह बाहर से आया ''बेबी पति'' अपने जूतों समेत सोफे पर पसर जाता है ! गोयाकि कीटाणु या बैक्टेरिया सिर्फ हाथों में ही रहना पसंद करते हों ! काश दीपिका जी का ध्यान नए एसी के साथ ही बाहर से आए अपने बेबी के जूतों की तरफ भी जा पाता..............!
https://youtu.be/pi4liCB1O5s
#हिन्दी_ब्लागिंग
आज जब कोरोना फिर बेकाबू हो कर महामारी का रूप ले रहा है तो ऐसे में सिर्फ सरकार का ही नहीं हर एक देशवासी का फर्ज बनता है कि उस के निरोध के लिए यथासंभव प्रयास किए जाएं। पर ऐसा होता दिखता नहीं ! कुछ लोग, संस्थाएं या उद्योग इसे अभी भी गंभीरता से नहीं ले रहे ! उनके व्यवहार में लापरवाही साफ़ झलकती है ! आज जब हर संभव तरीके और मीडिया के द्वारा लोगों को जागरूक किया जा रहा है, वहीं कुछ ऐसे विज्ञापन भी सामने आ रहे हैं, जिन्हें देख कर लगता है कि या तो वे इस जागरूकता अभियान को हलके में ले रहे हैं या फिर इसका मजाक सा उड़ा सिर्फ रस्म अदायगी कर रहे हैं !
अभी FMEG बनाने वाली एक कंपनी #लॉयड के #एयर_कंडीशनर का विज्ञापन आया है। जिसमें पति रूपी रणवीर घर में घुसते हुए कहता है, ''देखो-देखो मैं आ गया '' ! पत्नी रूपी दीपिका अपने इस ''बेबी पति'' को नया एसी दिखा उसके गुणों का बखान करती है ! बैक्टेरिया वगैरह की बात करते हुए उसके हाथ सेनिटाइज करती है और फिर उसका वह बाहर से आया ''बेबी पति'' अपने जूतों समेत सोफे पर पसर जाता है ! गोयाकि कीटाणु या बैक्टेरिया सिर्फ हाथों में ही रहना पसंद करते हों, कपड़ों-जूतों में नहीं ! काश दीपिका जी का ध्यान नए एसी के साथ ही बाहर से आए अपने बेबी के जूतों की तरफ भी जा पाता !
यह तो सिर्फ एक बानगी है समाज के एक ऐसे तबके की जिससे जिम्मेदारी की उम्मीद की जाती है। यहां कंपनी ज़रा सी एहतियात बरतअच्छा संदेश दे सकती थी। वहीं ''फिल्मवाले पैसे के लिए कुछ भी कर सकते हैं'' वाली छवि को बदल सकते थे दीपिका और रणवीर जरा सी समझदारी दिखा ! संदेश भी अच्छा जाता, लोगों में जागरूकता बढ़ती ! क्योंकि बहुत से घरों में, बाहर या स्कूल से आए, ऐसा करते बच्चों पर ध्यान कम ही दिया जाता है ! बच्चे ही क्यों बहुत से वयस्कों का भी यही हाल है, जूते लेकर पूरे घर में मंडराते रहते हैं ! हो सकता है ऐसों को अपनी गलती का एहसास हो जाता, खासकर इन कठिन दिनों के दौरान ! इसके साथ ही इन दोनों की छवि और लोकप्रियता में भी इजाफा ही होता ! अब क्या कहा जाए ! जो है वह तो हइए है ! सभी को खुद ही अपनी हिफाजत करनी है और करनी पड़ेगी ही !
शुक्रवार, 9 अप्रैल 2021
तीन पैरों वाला फ़ुटबाल खिलाडी
वह अपने तीनों पैरों से दौडने, कूदने, सायकिल चलाने, स्केटिंग करने के साथ-साथ बाल पर बेहतरीन ‘किक’ लगाने में पारांगत हो गया था। ऐसे ही उसके एक शो को देख एक नामी फुटबाल क्लब से उसे खेलने की पेशकश की गयी। फ्रैंक ने मौके को हाथ से नहीं जाने दिया। देखते-देखते वह सबसे लोकप्रिय खिलाडी बन गया। खेल के दौरान जब वह अपने दोनों पैरों को स्थिर कर तीसरे पैर से किक लगा, बाल को खिलाडियों के सर के उपर से दूर पहुंचा देता तो दर्शक विस्मित हो खुशी से तालियां और सीटियां बजाने लगते। उसे अपने तीसरे पैर से किसी भी तरह की अड़चन नहीं थी। सिर्फ कपडे सिलवाते समय विशेष नाप की जरूरत पडती थी और रही जूतों की बात तो उसने उसका भी बेहतरीन उपाय खोज लिया था , वह दो जोडी जुते खरीदता और चौथे फालतू जूते को किसी ऐसे इंसान को भेंट कर देता जिसका एक ही पैर हो................!!
#हिन्दी_ब्लागिंग
आज जब किसी इंसान की हाथ या पैर में एक छठी उंगली भी हो भले ही वह अंग क्रियाशील हो या ना हो उसे प्रकृति का अजूबा ही माना जाता है। कहीं-कहीं तो ऐसे अंग वाला भला आदमी हास्य का पात्र भी बन जाता है ! समाज में इसे एक तरह की चीज को विकलांगता के रूप में ही देखा जाता है। सालों पहले हमारे एक पहचान के युवक को तो इसी ''कमी'' की वजह से रेलवे ने नौकरी भी दे दी थी ! हमारे फिल्म उद्योग में कई सितारे अपनी इन्हीं वजहों को सालों छिपाते रहे हैं। ऐसे में एकआदमी ! तीन पैरों वाला ! उस पर फ़ुटबाल का खिलाड़ी ! कपोल-कल्पना लगती है ! किसी किस्से-कहानी की काल्पनिक उड़ान ! सुन कर सहज ही विश्वास होना कठिन है !
18 मई 1889, इटली में सिसली के पास, रोसोलिनि कस्बे के एक अस्पताल मे एक बच्चे का जन्म होता है। जिसको देखते ही नर्स जोरों से लेते ही नर्स जोरों से चीख पडी ! मां घबडा कर रोने लगी ! नर्स की चीख सुन पूरे अस्पताल मे हडकंप मच गया। बात ही कुछ ऐसी थी ! उस नवजात सवस्थ शिशु के पूर्ण विकसित तीन पैर थे ! उस समय के अंधविश्वासों के चलते उसे अपशगुनी मान लिया गया ! पर परिवार की ममता उसे किसी तरह की हानि पहुंचाने को तैयार नहीं थी। बच्चे के मां-बाप ने डाक्टरों से प्रार्थना की कि वे किसी भी तरह ऑपरेशन कर इस तीसरी टांग से बच्चे को मुक्ति दिलवा दें। पर डाक्टर विवश थे ! उन्हें लग रहा था कि ऑपरेशन से या तो बच्चे की मौत हो जाएगी या फिर वह जीवन भर के लिए लकवाग्रस्त हो जाएगा। बच्चे की इस अस्वाभाविक बात को छिपाने की हर मुमकिन कोशिश के बावजूद यह खबर सारे शहर मे फैल गई ! लोग उसे देखने के लिए उमड़ पड़े।
फिर एक समय आया जब पैसा और शोहरत पाने के बाद फ्रैंक की इच्छा घर बसाने की हुई। उनकी जिजीविषा, जिंदगी के प्रति सकारात्मक दृष्टि, हाजिर जवाबी और सेंस ऑफ ह्यूमर से एक युवती थेरेसा मुरे काफी प्रभावित हुई। दोनों ने शादी कर ली और दोनों से चार स्वस्थ बच्चे पैदा हुए। फ्रैंक लेंटिनी का 40 साल से ज्यादा का करियर रहा।उन्होंने करीब-करीब हर बड़े सर्कस और साइड-शो के साथ काम किया। साथियों के बीच उनको काफी सम्मान मिलता था और साथी उनको 'द किंग' कहकर बुलाते थे। अपनी विकलांगता को अपनी शक्ति बनाने वाला, उत्कट जिजिविषा और प्रबल इच्छा शक्ति वाले उस इंसान का 22 सितंबर 1966 में 77 वर्ष की उम्र में निधन हो गया।
@सभी चित्र अंतर्जाल के सौजन्य से
शनिवार, 3 अप्रैल 2021
आ बैल (कोरोना) हमें मार
कुछ लोगों को सही मायनों में जान की कीमत नहीं पता ! बिमारी की चपेट में आने पर पहले की बंदिशें नहीं सहीं ! नाहीं ऐसे लोगों को अपनों को खोने के दर्द का एहसास है ! इन्हें सिर्फ अपनी मौज-मस्ती और तफरीह से मतलब है ! लेकिन यह सारा अनुभव तभी संभव है, जब तक इंसान जिंदा है, जिंदगी कायम है ! तमाम सावधानियों और दवा के भी पहले ऐसे लोगों पर लगाम कसना जरुरी है ! कहने में अच्छा नहीं लगता, शब्द भी कटु हैं, पर ऐसे लोग एक तरह से अपने परिवार के अलावा समाज और देश के भी दुश्मन कहे जा सकते हैं.......!!
#हिन्दी_ब्लागिंग
कोरोना ! एक अभूतपूर्व तक़रीबन लाइलाज महामारी, जिससे पूरा विश्व सकते में आ गया, लाखों जाने गयीं, करोड़ों लोग चपेट में आ गए ! अनगिनत लोगों की जीविका नष्ट हो गई ! दसियों देशों की अर्थव्यवस्था भू-लुंठित हो कर रह गई ! उसीका प्रकोप फिर एक बार डराने लगा है ! ऐसा नहीं है कि इस पर काबू नहीं पाया जा सकता, पर हम कुछ लोगों की लापरवाहियां उसको उकसाने से बाज नहीं आ रहीं ! हम उसको हलके में ले अपने पर भारी पड़ने का हर मौका दे रहे हैं !
यह सर्वज्ञात है कि कुछ बीमारियों या दवाइयों का सेहत ठीक महसूस होने के बावजूद कोर्स पूरा करना पड़ता है ! बीच में उपचार छोड़ देने से दवा का तब तक का असर भी ख़त्म हो जाता है। वैसा ही कुछ इस कोरोना के साथ भी लागू होता है ! जानकारों के अनुसार दवा के अलावा पूरी सावधानियां तब तक बरतनी हैं जब तक कि इसका पूरा सफाया नहीं हो जाता और यहीं हम सब मात खा रहे हैं ! कुछ विवेकहीन, लापरवाह लोगों की गैरजिम्मेदाराना हरकतों के कारण पूरा देश फिर डर के साये में आ गया है। ऐसे लोग धड़ल्ले से अपनी मनमानी कर रहे हैं, जिसके कारण उन लोगों के घर में भी कोरोना का प्रकोप हो सकता है, जो सुरक्षित रहने की कोशिश में हर संभव उपाय करने में जुटे हुए हैं !
सरकार को देश के तमाम रिसोर्ट वगैरह को नोटिस जारी कर देना चाहिए कि सिर्फ जरुरी वजह के अलावा इस आपाद काल की स्थिति में, सिर्फ पर्यटन के लिए आए लोगों को ठहरने की अनुमति ही ना दें ! इसके अलावा तंत्र भी उनको जवाबदेही के लिए बुलाए
कायनात ने कोरोना के माध्यम से हमें जो नसीहत देने की कोशिश की उसकी भयावहता से भी कुछ मनचले कोई सबक नहीं ले पा रहे ! कारण यह भी है कि सही मायनों में उन्हें जान की कीमत नहीं पता ! बिमारी की चपेट में आने पर पहले की बंदिशें नहीं सहीं ! नाहीं ऐसे लोगों को अपनों को खोने के दर्द का एहसास है ! इन्हें सिर्फ अपनी मौज-मस्ती और तफरीह से मतलब है ! लेकिन यह सारा अनुभव तभी संभव है, जब तक इंसान जिंदा है, जिंदगी कायम है ! तमाम सावधानियों और दवा के भी पहले ऐसे लोगों पर लगाम कसना जरुरी है ! कहने में अच्छा नहीं लगता, शब्द भी कटु हैं, पर ऐसे लोग एक तरह से अपने परिवार के अलावा समाज और देश के भी दुश्मन कहे जा सकते हैं !
यह भी सही है कि इंसान के ऐसे पचासों जरुरी काम होते हैं जिनके लिए घर से निकलना बहुत आवश्यक होता है, पर सिर्फ तफरीह के लिए खुद की और दूसरों की जान को आफत में डालना कहां की अक्लमंदी है ! पहले लॉक डाउन के समय भी बहुत से लोगों को घर से बाहर सड़कों और माहौल का ''जायजा'' लेते देखा गया था ! अब तो लापरवाही और भी बढ़ गई है ! ऐसा लगता है कि जैसे घूमने-फिरने, खरीदारी या पुण्यार्जन का मौका फिर कभी हाथ आएगा ही नहीं ! प्रकोप के दौरान आईं छुट्टियों को विवेकहीन लोग सैर-सपाटे के काम में लाने लग जाते हैं ! मेरे ख्याल से तो सरकार को देश के तमाम रिसोर्ट वगैरह को नोटिस जारी कर देना चाहिए कि सिर्फ जरुरी वजह के अलावा इस आपाद काल की स्थिति में, सिर्फ पर्यटन के लिए आए लोगों को ठहरने की अनुमति ही ना दें ! इसके अलावा तंत्र भी उनको जवाबदेही के लिए बुलाए ! क्योंकि हम ताड़ना की भाषा ही जल्दी समझते हैं।
शुक्रवार, 2 अप्रैल 2021
हैप्पी गुड फ्रायडे ??
आज भी वह वाकया याद है ! गुड़ फ्रायडे की छुट्टी थी । सुबह-सुबह एक सज्जन का फोन आ गया। छूटते ही बोले, सर हैप्पी गुड फ्रायडे। मुझसे कुछ बोलते नहीं बन पडा ! पर फिर धीरे से कहा, भाई; कहा तो गुड फ्रायडे ही जाता है, लेकिन है यह एक दुखद दिवस। इसी दिन ईसा मसीह को मृत्यु दंड दिया गया था। किसी क्रिश्चियन दोस्त को बधाई मत दे बैठना.....!
वैसे यह सवाल बच्चों को तो क्या बड़ों को भी उलझन में डाल देता है कि जब इस दिन इतनी दुखद घटना घटी थी तो इसे "गुड़" क्यों कहा जाता है? ऐसे बहुत से लोग हैं जिन्हें सिर्फ छुट्टी या मौज - मस्ती से मतलब होता है, उन्हें उस दिन विशेष के इतिहास या उसकी प्रासंगिकता से कोई मतलब नहीं होता। अब इसी दिन को लें, सुबह की बधाई को याद रख, दूसरे दिन काम पर जा बहुतेरे लोगों से इस दिन के बारे में पूछने पर, इक्के - दुक्के को छोड कोई ठीक जवाब नहीं दे पाया। उल्टा उनका भी यही प्रश्न था कि फिर इसे गुड क्यों कहा जाता है। इसका यही उत्तर है कि यहाँ "गुड" का अर्थ "HOLY" यानी पावन के अर्थ में लिया जाता है. क्योंकि इस दिन यीशु ने सच्चाई का साथ देने और लोगों की भलाई के लिए, पापों में डूबी मानव जाति की मुक्ति के लिए उसमें सत्य, अहिंसा,त्याग और प्रेम की भावना जगाने के लिए अपने प्राण त्यागे थे। उनके अनुयायी उपवास रख पूरे दिन प्रार्थना करते हैं और यीशु को दी गई यातनाओं को याद कर उनके वचनों पर अमल करने का संकल्प लेते हैं।
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