सोमवार, 15 फ़रवरी 2021

कब और कैसे भारत, इंडिया हो गया

ये तो सिर्फ एक बानगी है कि कैसे, ऐसे कुछ ज्ञानियों ने दूध का दही और दही का रायता बना दिया होगा ! क्यूँ-कब-कैसे धीरे-धीरे कुछ का कुछ हो जाता है, क्या से क्या हो जाता है, महसूस ही नहीं हो पाता ! कब असल एक किनारे हो नए को जगह दे देता है, एहसास ही नहीं होता ! और एक बार चलन में आने के बाद वही असली लगने लगता है ! पुराने को कोई याद भी नहीं करता ! अंग्रेंजों ने अपनी सहूलियत के लिए, कुटिलता से कब, क्यूँ और कैसे भारत को इंडिया बना दिया, हम भारतवासियों को भी यह कहां पता चल पाया..............!!

#हिन्दी_ब्लागिंग  

अपने देश में हजारों ऐसे स्थानों या जगहों के नाम सुनने-जानने को मिल जाएंगे जिनका उस स्थान से दूर-दूर का रिश्ता नहीं होता। ना हीं उस नाम के अर्थ से उसका कोई संबंध होता है। फिर ऐसा क्यों ! एक संभावना यह लगती है कि ऐसा जाने-अंजाने, जुबान पर ना चढ़ने वाले कलिष्ट शब्दों के सहजीकरण और बोलने की सहूलियतानुसार हो गया होगा। ऐसी जगहों पर शोध किया जाए तो एक ग्रंथ ही बन जाए। पिछली पोस्ट में दो-तीन अजीबोगरीब शब्दों वाले मुहावरों की बात उठी थी ! उसी बहाव में कुछ ऐसी जगहों के नाम याद आ गए जिनसे मेरा संबंध रह चुका है ! ऐसे ही मेरे दो प्रत्यक्ष-प्रमाणित उदाहरण पेश हैं - 

सबसे पहले तो एक आपबीती ! जिसके याद आते ही आज भी हंसी आ जाती है ! बंगाल के साउथ चौबीस परगना जिले के बज बज इलाके में कैलेडोनियन (Caledonian) नाम की जूट मील थी (आज भी है) । तब मैं नार्थ चौबीस परगना में स्थित कमरहट्टी जूट मील में कार्यरत था। एक बार मैंने अपने क्लर्क को वहां के लिए एक ऑफिशियल पत्र का मजमून बता उसका ड्राफ्ट बनाने को कहा। जब वह लेटर टाइप कर लाया तो उसमें कैलेडोनियन की जगह कालीदुनिया लिखा हुआ था ! मैंने विस्मित हो पूछा, तो वह बोला कि यह नाम कभी सुना नहीं था और आपका उच्चारण समझ नहीं पाया, तो मैंने सोचा यह कालीदुनिया होगा सो......! उस दिन तो ना गुस्सा होते बना ना हीं हँसते, पर आज उस लम्हे को याद कर मुस्कराहट जरूर आ जाती है।

बज बज वही जगह है, जिसके फेरी घाट पर, 19 फरवरी 1897 में शिकागो की अपनी इतिहासिक यात्रा के बाद स्वामी विवेकानंद ने भारत भूमि पर पग धरे थे ! यहीं पर कोमागाटामारु जहाज आ किनारे लगा था 
ऐसा ही एक और उदाहरण ! कोलकाता से लगभग पन्द्रह की.मी. की दूरी पर टीटागढ नामक एक जगह है। यहां एक पेपर मिल भी है। सडक से यह स्थान कोलकाता से जुडा हुआ है। इसी के बाद अगला कस्बा बैरकपुर का है। वही बैरकपुर जो ब्रिटिश काल में अंग्रेजी फौजों का केंद्र हुआ करता था। आज यहां भारतीय सेना की छावनी है। बैरकपुर से कोलकाता के लिए अच्छी-खासी सरकारी व निजी बस-सेवा उपलब्ध है। इनमें निजी बसों के साथ चलने वाले सहायक लडके यात्रियों की सुविधा के लिए बस-स्टापों के नाम जोर-जोर से बोलते रहते हैं। बैरकपुर और टीटागढ के बीच एक बस स्टाप है जिसे ये लडके 'बडा मस्तान' के नाम से पुकारते हैं। जिसका अर्थ होता है, कोई बलशाली या दबंग इंसान या फिर कोई मशहूर पीर या सिद्ध बाबा ! समय के साथ मरणोंपरांत उसकी समाधी या मजार बना दी जाती है। छुटपन में इन सब बातों पर ध्यान कहां जाता है ! पर होश संभालने पर जब कुछ खोज-खबर लेनी चाही तो उस बस-स्टॉप के आस-पास कोई समाधी या मजार का पता नहीं लग पाया। लोगों से जानकारी ली तो भी यही पता चला कि ''ऐसा कोई फकीर यहां हुआ ही नहीं। हां, बस-स्टाप से थोडी दूरी पर एक छोटे से अहाते में एक मंदिर है। उस जगह को ब्रह्म-स्थान के नाम से जाना जाता है।'' तब जाकर ज्ञान-चक्षुओं ने यह रहस्य खोला कि यह ब्रह्म-स्थान ही धीरे-धीरे अनपढ़, नासमझ लडकों की 'नीम-हकीमी' के कारण बडा मस्तान का रूप लेता चला गया।

ये तो सिर्फ एक बानगी है कि कैसे ऐसे कुछ ज्ञानियों ने दूध का दही और दही का रायता बना दिया होगा ! क्यूँ-कब-कैसे धीरे-धीरे कुछ का कुछ हो जाता है, क्या से क्या हो जाता है, महसूस ही नहीं हो पाता ! कब असल एक किनारे हो नए को जगह दे देता है, एहसास ही नहीं होता ! और एक बार चलन में आने के बाद वही असली लगने लगता है पुराने को कोई याद भी नहीं करता ! अंग्रेंजों ने अपनी सहूलियत के लिए कुटिलता से कब, क्यूँ और कैसे भारत को इंडिया बना दिया, हम भारतवासियों को भी कहां पता चल पाया !!!

14 टिप्‍पणियां:

Kamini Sinha ने कहा…

सादर नमस्कार ,

आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (16-2-21) को "माता का करता हूँ वन्दन"(चर्चा अंक-3979) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है।
--
कामिनी सिन्हा

गगन शर्मा, कुछ अलग सा ने कहा…

कामिनी जी
मान देने हेतु अनेकानेक धन्यवाद

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

बहुत सुन्दर और जानकारीपरक।

गगन शर्मा, कुछ अलग सा ने कहा…

शास्त्री जी
हार्दिक आभार! स्नेह बना रहे

सधु चन्द्र ने कहा…

ये तो सिर्फ एक बानगी है कि कैसे ऐसे कुछ ज्ञानियों ने दूध का दही और दही का रायता बना दिया होगा ! क्यूँ-कब-कैसे धीरे-धीरे कुछ का कुछ हो जाता है, क्या से क्या हो जाता है, महसूस ही नहीं हो पाता ! कब असल एक किनारे हो नए को जगह दे देता है, एहसास ही नहीं होता ! और एक बार चलन में आने के बाद वही असली लगने लगता है पुराने को कोई याद भी नहीं करता ! अंग्रेंजों ने अपनी सहूलियत के लिए कुटिलता से कब, क्यूँ और कैसे भारत को इंडिया बना दिया, हम भारतवासियों को भी कहां पता चल पाया !!!

वाकई।

गगन शर्मा, कुछ अलग सा ने कहा…

सधु जी
अनेकानेक धन्यवाद

जिज्ञासा सिंह ने कहा…

कुछ ऐसे तथ्यों को आप उठाते हैं, जिससे ज्यादातर लोग अपरिचित होते हैं..इन नायाब जानकारियों से रूबरू कराने के गगन जी आपका शुक्रिया..

गगन शर्मा, कुछ अलग सा ने कहा…

जिज्ञासा जी
हौसलाअफजाई के लिए हार्दिक आभार

संगीता स्वरुप ( गीत ) ने कहा…

जी बिल्कुल सही कहा जैसे चट्टोपाध्याय से चैटर्जी, बंधोपाध्याय से बैनर्जी ।
बढ़िया लेख ।

गगन शर्मा, कुछ अलग सा ने कहा…

संगीता जी
बिल्कुल! पर गांगुली गंगोपाध्याय हो गए 😀

दिगम्बर नासवा ने कहा…

सही लिखा है आपने ... हम वैसे भी बहुत कुछ सहज ही मान जाने वाले लोग हैं ...
खुद ही साजिश का हिस्सा बन जाते हैं अक्सर ...

गगन शर्मा, कुछ अलग सा ने कहा…

नासवा जी
बिल्कुल

ज्योति सिंह ने कहा…

नई नई जानकारियों का खजाना है ये ब्लॉग, सच ही कहा आपने कई बातों से अंजान है हम सभी, बड़ी सहजता के साथ स्वीकार लेना कुछ भी हमारे स्वभाव मे है,सुनकर रह जाते है, सच जानने की कोशिश नही करते है, बहुत ही बढ़िया लेख, नमन आपको

गगन शर्मा, कुछ अलग सा ने कहा…

ज्योति जी
अनेकानेक धन्यवाद

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