सरकार बिल्कुल बेकार है ! इस बार इनको वोट ही नहीं दूंगा ! ऐसा क्यों पूछने पर बोले, डीए ही नहीं बढ़ाया ! इतनी मंहगाई है कुछ सोचते ही नहीं ! पिछले वाले बढ़ाते रहते थे ! वे ठीक थे ! जब उन्हें कोई नए कर ना लगाने, करोड़ों लोगों को साल भर मुफ्त खाने तथा अन्य सुविधाओं का हवाला दिया तो बोले किसने देखा है कौन कहां क्या दे रहा है ! मुझे नहीं मिला यह मुझे पता है ! जब उनको कहा कि प्रायवेट सेक्टर में लाखों लोगों की नौकरियां ख़त्म हो गईं, आपकी तो बची हुई है ! तो चिढ कर बोले, किसने मना किया, कर लें सब सरकारी जॉब ! अब ऐसी सोच से क्या बहस !!
#हिन्दी_ब्लागिंग
दिल्ली के बाहर या विदेश से अदि कभी कोई ताना मारता है कि दिल्ली वालों ने सिर्फ मुफ्त के बिजली-पानी की वजह से ही किसी को सत्ता सौंपी है, तो हम लोग तिलमिला कर रह जाते हैं ! बेइज्जती महसूस करते हैं ! लगता है जैसे किसी ने भरे बाजार में मानहानि कर दी हो ! वैसे सच कहा-देखा जाए तो यह बात बिलकुल निराधार भी तो नहीं है ! हम में से अधिकतर मुखौटाधारी लोग हैं ! पार्टियों में, सार्वजनिक जगहों में, टीवी देखते हुए, भाषण सुनते हुए हम पूरी तरह देश भक्त होते हैं ! पर जहां अपने निजी फायदे की बात आती है तो हमारा मुखौटा पता नहीं कब कहां जा हमारी असलियत उजागर कर देता है ! हम ऊपर से अपने को कितना भी परोपकारी, देश-समाज हितैषी या लालच विहीन दिखाने की कोशिश करें, भीतर ही भीतर रियायत पाने की लालसा, मुफ्त की चीज की हवस बनी ही रहती है। फ्री का नमक भी चीनी सी मिठास देता लगता है !
पिछले दिनों बजट के बाद एक परिचित का घर आना हुआ ! सरकारी मुलाजिम हैं ! बातों ही बातों में बात सरकार पर आ गई ! बोले बिल्कुल बेकार है ! मैं इस बार इनको वोट ही नहीं दूंगा ! ऐसा क्यों पूछने पर बोले, डीए ही नहीं बढ़ाया ! इतनी मंहगाई है कुछ सोचते ही नहीं ! पिछले वाले बढ़ाते रहते थे ! वे ठीक थे ! जब उन्हें तर्क दिया गया कि इतनी आपदा के बावजूद कोई नया टैक्स नहीं लगाया ! करोड़ों लोगों को साल भर से मुफ्त खाना दिया जा रहा है ! गरीबों को आर्थिक सहायता तथा अन्य सुविधाएं मुहैया करवाई जा रही हैं ! उन सब के लिए भी तो पैसा चाहिए वह कहां से आएगा ! तो बोले किसने देखा है कौन कहां क्या दे रहा है ! मुझे नहीं मिला यह मुझे पता है ! जब उनको कहा कि प्रायवेट सेक्टर में लाखों लोगों की नौकरियां ख़त्म हो गईं आपकी तो बची हुई है ! तो चिढ कर बोले किसने मना किया, कर लें सब सरकारी जॉब ! अब ऐसी सोच से क्या बहस !!
यह तो एक बानगी भर थी ! हजारों-लाखों लोग ऐसे हैं जो प्याज-टमाटर-पेट्रोल पर अपनी आस्था बदल लेते हैं ! तो बिजली-पानी तो बहुत बड़ी बात है ! हमें दो-तीन-पांच साल बाद की खुशहाली से कोई मतलब नहीं है ! आज और अभी फौरी तौर पर क्या फायदा हो रहा है, हमारे लिए यही मायने रखता है ! वर्तमान में जिओ, भविष्य किसने देखा है ! चतुर लोगों ने इसी कमजोर नस को परखा और फ़ायदा उठा लिया ! अब तिलमिलाते रहो तानों पर !
एक बात और भी है, कहना नहीं चाहिए ! कइयों को नागवार भी गुजर सकती है ! पर सरकारी नौकरी वालों को कुछ ऐसा लगता है जैसे देश के संसाधनों पर बाकियों से उनका हक़ ज्यादा है ! वह भी औने-पौने या मुफ्त की सुविधाओं के साथ ! यह एक कड़वी सच्चाई है कि आज देश के अधिकतर संसाधन अपने कर्मचारियों को मुफ्त की सेवाऐं प्रदान करने की वजह से ही बिकने के खतरे की कगार पर आन पड़े हैं ! यह कोई कुंठा या पूर्वाग्रह से ग्रसित विचार नहीं है, मेरे भी दसियों बहुत ही अपने-करीबी सरकारी पदों पर आसीन हैं, पर सच्चाई तो सच्चाई ही है ! सरकार को कड़वा घूँट पी, बहुत ही जरुरी को छोड़ मुफ्त की रेवड़ियों की बंदर बांट बंद कर ही देनी चाहिए !!
15 टिप्पणियां:
सत्य वचन।
गगन जी, ऐसे बहुत से लोग हैं जो खुद कुछ करने का प्रयास नहीं करते और हर वक़्त सरकार के हर काम में कमी ढूँढा करते हैं, उनमें सरकारी कर्मचारी सबसे आगे हैं चूँकि वे सरकारी सुविधाओं के आदी हो चुके हैं और जैसे ही किसी सुविधा की कटौती होती है वे कहना शुरू कर देते हैं..आपके कथन से मैं पूर्ण रूप से सहमत हूँ..
सुशील जी
अनेकानेक धन्यवाद
जिज्ञासा जी
वही तो, अपना भला तो सब भला
शास्त्री जी
सम्मिलित करने हेतु हार्दिक आभार
बहुत बढ़िया लेख।
शिवम जी
अनेकानेक धन्यवाद
दुखद,पर सच
विचारणीय आलेख।
कदम जी, यही विडंबना है
ज्योति जी
अनेकानेक धन्यवाद
चिंतन परक लेख।
कुसुम जी
बहुत-बहुत धन्यवाद
सटीक और प्रभावी आलेख
बधाई
खरे जी
अनेकानेक धन्यवाद
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