आजकल माउंट एवरेस्ट का नाम बदल कर माउंट राधानाथ करने की बात की जा रही है ! अच्छी बात है। पर ऐसा होना क्या आसान काम है ! यह कोई देश की सड़क, प्रांत या रेलवे स्टेशन का नाम तो है नहीं कि जिसे हम अपनी मर्जी से जब चाहें, जो चाहें रख लें ! ऐसा करने के पहले कई-कई देशों, यूनेस्को तथा ब्रिटेन की भी रजामंदी व अनुमति लेनी पड़ेगी और ये प्रयास भी अपने आप में माउंट एवरेस्ट की चढ़ाई जितना ही मुश्किल होगा ....................!
#हिन्दी_ब्लागिंग
आजकल एक न्यूज़ चैनल पर माउंट एवरेस्ट के नाम को बदलने को ले कर चर्चा चल रही है। उनके अनुसार जब इसकी ऊँचाई की सटीक गणना राधानाथ सिकदर नाम के भारतीय ने की थी, तो क्यों ना दुनिया के इस सर्वोच्च शिखर का नाम उनके नाम पर रखा जाए ! यदि ऐसा हो जाता है तो यह हम सारे भारतीयों के लिए बड़े ही गर्व की बात होगी। पर क्या यह जटिल कार्य इतना आसान है !
1831 में भारत के सर्वेयर जनरल जॉर्ज एवरेस्ट ने राधानाथ सिकदर की अप्रतिम, बहुमुखी प्रतिभा को पहचान उन्हें भारतीय सर्वेक्षण विभाग में बाबू यानी क्लर्क के रूप में काम दिलाया था। एवरेस्ट, राधानाथ सिकदर के काम से इतने प्रभावित थे कि जब सिकदर को डिप्टी कलेक्टर बनने का मौका मिला तो एवरेस्ट ने हस्तक्षेप कर उन्हें अपने विभाग से जाने की अनुमति ही नहीं दी ! 1843 में जॉर्ज एवरेस्ट भारत के सर्वेयर जनरल के पद से सेवानिवृत्त हो गए और कर्नल एंड्रयू स्कॉट वॉ को उनके स्थान पर नियुक्त किया गया। इधर सिकदर को भारतीय सर्वेक्षण विभाग के अलावा कलकत्ता के मौसम विज्ञान विभाग का भी अधीक्षक बना दिया गया।
कर्नल वॉ ने सार्वजनिक रूप से शिखर 15 को दुनिया की सबसे ऊंची चोटी के रूप में मान्यता देने के साथ-साथ उसका नाम जॉर्ज एवरेस्ट के नाम पर रखने का अनुमोदन भी कर दिया, जिसे स्वीकार कर लिया गया
उन्हीं दिनों कर्नल एंड्रयू स्कॉट वॉ के आदेश पर सिकदर ने दार्जिलिंग के पास बर्फ से ढके हुए पहाड़ों को मापने का काम शुरू किया। उस समय तक सभी चोटियों का नामकरण नहीं हुआ था। सुविधा के लिए चोटियों के स्थानीय नामों को ही मान लिया जाता था। ऐसे में शिखर 15 की ऊंचाई नापने के दौरान छह अलग-अलग स्थानों से तरह-तरह से इकठ्ठा किए गए आंकड़ों से सिकदर ने यह निष्कर्ष निकाला कि हिमालय तथा दुनिया की सबसे ऊँची चोटी 15 है। यह एक क्रांतिकारी खोज थी। उस समय तक इसे नेपाल में सगरमाथा और तिब्बत में चोमोलंगमा के नाम से जाना जाता था।
राधानाथ सिकदर |
जॉर्ज एवरेस्ट |
29 टिप्पणियां:
आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" सोमवार 18 जनवरी 2021 को साझा की गयी है.... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
दिव्या जी
सम्मिलित कर मान देने हेतु अनेकानेक धन्यवाद
बहुत बढ़िया और नई जानकारी है मेरे लिए तो। इस पोस्ट को तैयार करने में जो मेहनत लगी है उसका अनुमान ही लगाया जा सकता है। इन दुर्लभ चित्रों का संकलन भी आसान नहीं रहा होगा। आपके प्रयासों के लिए आपको बधाई और शुभकामनाएँ।
विरेन्द्र जी
आपका सदा स्वागत है
सुशील जी
प्रतिक्रिया के लिए हार्दिक आभार
बहुत सही लिखा है आपने।
शिवम जी
टीआरपी के चक्कर में कई बार अजीबोगरीब किस्से ले लोगों की भावनाओं को छेड बैठते हैं ये लोग
रवीन्द्र जी
आपका और चर्चा मंच का हार्दिक आभार
बहुत बढ़िया
आभार, ओंकार जी
बहुत सुंदर प्रस्तुति
उपयोगी जानकारी और अच्छा सुझाव है।
बहुत ही अच्छी ऐतिहासिक जानकारी
हार्दिक आभार, अनुराधा जी
शास्त्री जी
हार्दिक धन्यवाद
कविता जी
सदा स्वागत है आपका
बाहर का तो पता नहीं पर अपने ही लोग सवाल उठाने से बाज नहीं आऐंगे
बिल्कुल सही कहा आपने
वाह!बहुत खूब ..रोचक जानकारी ।
माउंट सिकदर ... बुरा नहीं लग रहा वैसे ...
रोचक जानकारी है ये ...
नासवा जी
वैसा हो जाए तो उससे अच्छी बात और क्या हो सकती है, पर इफ्स और बट्स बेशुमार हैं
माउंट एवरेस्ट का नाम बदलने का ख़याल अच्छा है...
एक अच्छे जानकारीपूर्ण लेख के लिए आपको बधाई।
लेकिन, मन में प्रश्न उठता है कि ‘भारत’ का ‘इंडिया’ नाम से कब पीछा छूटेगा ? मैंने अपने काॅलम ‘चर्चा प्लस’ में 31 अगस्त 2018 को - ‘इंडिया’ क्यों? सिर्फ़ ‘भारत’ क्यों नहीं ? - शीर्षक से इस मुद्दे को उठाया भी था जिसे आप मेरे ब्लाॅग ‘‘शरदाक्षरा’’ में इस लिंक पर पढ़ सकते हैं- https://sharadakshara.blogspot.com/2018/08/blog-post_31.html
- डाॅ शरद सिंह
शरद जी
"कुछ अलग सा" पर सदा स्वागत है आपका
जानकारीपूर्ण आलेख - - अंग्रेजों ने अनेक भारतियों के प्रतिभाओं को सत्ता के ज़ोर पर अपने नाम किया - - राधानाथ सिकदार उन्हीं में से एक महान गणितज्ञ थे लेकिन उन्हें उनके प्रतिभा का मूल्य स्वाधीन भारत में भी नहीं मिला, उनकी आख़री वक़्त की ज़िन्दगी भी कष्टों व गुमनामी में ही गुज़र गई हालांकि सम्प्रति कुछ दिनों से लोग एवरेस्ट के नामांतरण की मुहीम चला रहे हैं, सफलता की आशा में सभी भारतीय हैं, जिसने एवरेस्ट पर्वत की ऊंचाई नापी वही आज क़ब्र के पत्थर में आ कर सिमट गया - -
गगन जी आपका ये श्रमसाध्य आलेख सिर्फ ज्ञानवर्धक ही नहीं सटीक विमर्श है,आपने बहुत ही उपयुक्त दमदार पहलू रखें हैं।
इस शानदार फीचर्स के लिए बधाई एवं साधुवाद।
शांतनु जी
ऐसे हजारों कर्मवीर गुमनामी के अंधेरे में खो कर रह गए!यश सभी के भाग्य में नहीं होता, विडंबना ही तो है
कुसुम जी
प्रतिक्रिया के लिए हार्दिक आभार
एक कठोर सच्चाई भी है ! किसी भी क्षेत्र को देख लें, नाम सदा ही टीम के मुखिया का ही होता है ! देश को स्वतंत्र करवाने में हजारों-लाखों लोगों ने प्राणाहुति दी पर नाम तो गांधी -नहरू का ही हुआ ! सेना जीतती है पर श्रेय तो सेनानायक को हो जाता है ! अभी वर्षों के बाद आस्ट्रेलिया को उसी के घर में टेस्ट में करारी शिकस्त देने में पंत और सिराज का सबसे बड़ा हाथ रहा पर इतिहास में इसे रहाणे के नेतृत्व में हुई जीत ही माना जाएगा ! ऐसे ही हिमालय की ऊंचाई नापने का फरमान एवरेस्ट ने ही राधानाथ जी को दिया था ! उनके प्रयास की जितनी बड़ाई की जाए कम है पर उनके बॉस के खाते में ही जाएगी ! अब शिखर का नाम बदले या ना बदले, हमें राधानाथ जी के इस भगीरथ प्रयास के बारे में आज और आने वाली पीढ़ियों को जरूर बताना चाहिए !
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