मंगलवार, 1 सितंबर 2020

बोया पेड़ बबूल का तो.....!!

क्या बबूल का पेड़ लगाने वाला इतना मूर्ख था और उसे पौधे की ज़रा सी भी पहचान और इस बात का एहसास नहीं था कि वह क्या रोपने जा रहा है ! हो सकता है, उसने सोच-समझ. देख-भाल कर, इस पेड़ को ही चुन कर लगाया हो ! उसे भलीभांति इस बात का ज्ञान हो कि यह एक अत्यंत महत्वपूर्ण वृक्ष है, जिसका प्रत्येक भाग पत्तियों से लेकर फल-फूल-छाल-गोंद व जड़ तक औषधिय गुणों से भरपूर हैं और इससे अनेक आयुर्वेदिक दवाइयां बनाई जा सकती हैं। हो सकता है कि वह कोई वैद्य ही हो.....!

#हिन्दी_ब्लागिंग 

एक बहुत पुरानी कहावत है, बोया पेड़ बबूल का तो आम कहां ते होय ! भले ही इसकी अन्तर्निहित सीख यही है कि बुरे काम का अच्छा नतीजा नहीं मिल सकता। पर दूसरी तरफ इस मुहावरे को सुन कुछ ऐसा नहीं लगता कि जैसे बबूल का पेड़ लगाने वाले ने कोई बहुत बड़ी गलती कर दी हो और आम जैसे महत्वपूर्ण, फलदार वृक्ष की जगह इस बेकार, कंटीले व अनुपयोगी से पेड़ को लगा दिया हो ! चलो, यदि लगा भी दिया, तो फिर वह इससे आम की उम्मीद क्यों करेगा ! फिर सवाल यह भी उठता है कि ऐसा कह कौन रहा है, और किससे कह रहा है, और वह कौन है जो चुपचाप सुने जा रहा है ! कहता क्यों नहीं कि बबूल अपनी जगह आम के पेड़ से किसी भी तरह कमतर नहीं है ! 

सोचने की बात है, क्या बबूल का पेड़ लगाने वाला इतना मूर्ख था और उसे पौधे की ज़रा सी भी पहचान और इस बात का एहसास नहीं था कि वह क्या रोपने जा रहा है ! हो सकता है, उसने सोच-समझ. देख-भाल कर, चुन कर ही इस पेड़ को ही  लगाया हो ! उसे भलीभांति इस बात का ज्ञान हो कि यह एक अत्यंत महत्वपूर्ण वृक्ष है, जिसका प्रत्येक भाग, पत्तियों से लेकर फल-फूल-छाल-गोंद व जड़ तक औषधिय गुणों से भरपूर हैं और इससे अनेक आयुर्वेदिक दवाइयां बनाई जा सकती हैं। हो सकता है कि वह कोई वैद्य ही रहा हो ! जिसने इंसान, समाज और पशुओं तक की भलाई को ध्यान में रख अपनी दूरदर्शिता का उपयोग करते हुए इस बहूपयोगी वृक्ष का रोपण किया हो ! अगर ऐसा है तो वह इस वृक्ष से आम की उम्मीद क्यों करेगा ! 

 
यदि मान लें  कि पौधा लगाने  वाला  कोई भोला बंदा था. जिसे  वनस्पतियों के  बारे में कोई जानकारी नहीं थी,  इसी  लिए वह अपने बबूल के पेड़ से  आम के फल की आस लगाए बैठा रहा  तो  उसे आम का  बतला कर बबूल का पौधा  किसने थमाया !  फिर वर्षों उसे  जलील  कर नसीहतें देता रहा !  इस पर  भी यदि  वह भोला बंदा अपने बबूल के पेड़ से आम की उम्मीद लगाए बैठा रहा,  तो उसके आस - पास के  किसी  भलेमानुष  ने  उसे  सच्चाई क्यों  नहीं बताई !  क्यों उसे  प्रताड़ित  करवा, उदाहरण बना  दूसरों को ज्ञान बांटना शुरू कर दिया गया ! 

                                      
वैसे तो दोनों की पेड़ों की तुलना करना ही उचित नहीं है। दोनों वृक्षों की अपनी-अपनी खूबियां हैं, अपनी-अपनी विशेषताएं हैं ! बबूल में जो औषधीय गुण हैं वे आम में नहीं हैं और जो स्वाद, मिठास व दूसरी खूबियां आम में हैं वे बबूल में नहीं हैं। कायनात ने बनाया ही इस तरह है कि जो बात आम में है वह बबूल में नहीं हो सकती और जो खासियतें बबूल में हैं उन्हें किसी दूसरे वृक्ष में खोजना तो नासमझी ही होगी ! मरू-भूमि में उगने वाले काँटेदार बबूल की अहमियत जाननी हो तो वहाँ के स्थानीय निवासियों से इसके बारे में पूछ कर देखें, जिनके लिए यह प्रकृति की बेहतरीन सौगात है।फिर आम और बबूल ही क्यों, संसार की किसी भी वनस्पति की एक दूसरे से तुलना करना या किसी को कम आंकना, किसी भी दृष्टि से उचित नहीं माना जा सकता। सब अपनी-अपनी विशेषताएं, गुण तथा उपयोगिताएं लिए होते हैं। सबकी अपनी अलग-अलग पहचान होती है ! 

                           
ऐसी मान्यता है कि बबूल के पेड़, जिसे कीकर भी कहा जाता है, पर देवताओं का वास होता है। प्राचीन काल में इसकी पूजा की जाती रही है। इसको अत्यंत शुभ, पावन और वैभवदाई माना जाता है। इसका प्रत्येक भाग किसी न किसी उपयोग में जरूर आता है। इसकी लकड़ी औरों की बनिस्पत काफी मजबूत व क्षयरोधी होती है। चाहे मरुभूमि का फैलाव हो या पानी का कटाव इसके होते इन दोनों से बचाव हो जाता है। इसीलिए इसको काटना या नष्ट करना निषेद्ध माना गया है। ऐसे पेड़ की किसी दूसरे वृक्ष से तुलना कर इसे हेय करार देना नादानी ही मानी जानी चाहिए ! अब यह दूसरी बात है कि महान संत, समाज सुधारक को बुराई की तुलना के लिए यही पादप मिला ! 

14 टिप्‍पणियां:

सुशील कुमार जोशी ने कहा…

सुन्दर जानकारी।

गगन शर्मा, कुछ अलग सा ने कहा…

आभार, सुशील जी

Kamini Sinha ने कहा…

बहुत ही सुंदर तर्क-संगत लेख,साथ ही साथ "बबूल" के पेड़ की कई औषधीय गुणों की भी जानकारी मिली।
परन्तु जहाँ तक मुहावरे की बात है तो मुझे जितनी समझ है उस मुताबिक ये शायद इसलिए कहा गया हो कि -
"आप जिस तरह का कर्म करते हो उससे उसी तरह के फल की कामना किया करों"
ना तो बबूल नीच है ना आम महान,इस बेहतरीन लेख के लिए सादर आभार आपका,सादर नमस्कार

गगन शर्मा, कुछ अलग सा ने कहा…

कामिनी जी
बिल्कुल सही!पर अंतर्निहित सीख होने के बावजूद ऐसा लगता है जैसे बेचारा बबूल ऐवंई हो और अनादर का पात्र हो। इसीलिए लिख डाला वर्ना इतने बडे संत और समाज-सुधारक के सामने अपनी क्या औकात!

दिव्या अग्रवाल ने कहा…

आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज मंगलवार 01 सितंबर 2020 को साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

गगन शर्मा, कुछ अलग सा ने कहा…

दिव्या जी
सम्मिलित करने हेतु अनेकानेक धन्यवाद

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल मंगलवार (02-09-2020) को  "श्राद्ध पक्ष में कीजिए, विधि-विधान से काज"   (चर्चा अंक 3812)   पर भी होगी। 
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है। 
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।  
सादर...! 
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' 
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गगन शर्मा, कुछ अलग सा ने कहा…

शास्त्री जी
रचना को सम्मान देने हेतु हार्दिक आभार

कदम शर्मा ने कहा…

बहुत सुंदर

गगन शर्मा, कुछ अलग सा ने कहा…

कदम जी
आभार

मन की वीणा ने कहा…

बबूल में निहित गुण और औषधीय तत्वों से बबूल सच में एक असाधारण वृक्ष है, बहुत सुंदर जानकारी।
सुंदर लेख। और एक सच कि किसी की तुलना किसी से क्यों? बहुत शानदार प्रस्तुति।

गगन शर्मा, कुछ अलग सा ने कहा…

कुसुम जी
प्रतिक्रिया के लिए हार्दिक आभार

Marmagya - know the inner self ने कहा…

आदरणीय गगन शर्मा जी, आपने सही लिखा है कि दोनों तरह के वृक्षों की अपनी विशेषताएँ हैं। कोई किसी से कमतर नहीं है। मुझे याद है कि गाँव में बबूल के पेड़ के तने का उपयोग हल बनाने में किया जाता था। वह अन्य वृक्षों के तने से बने हल से ज्यादा मजबूत और अपेक्षाकृत हल्का भी होता था। अच्छी जानकारी के साथ सुंदर लेख!साधुवाद!--ब्रजेन्द्रनाथ

गगन शर्मा, कुछ अलग सा ने कहा…

ब्रजेन्द्रनाथ जी
यूं ही स्नेह बना रहे

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