इस ब्लॉग में एक छोटी सी कोशिश की गई है कि अपने संस्मरणों के साथ-साथ समाज में चली आ रही मान्यताओं, कथा-कहानियों को, बगैर किसी पूर्वाग्रह के, एक अलग नजरिए से देखने, समझने और सामने लाने की ! इसके साथ ही यह कोशिश भी रहेगी कि कुछ अलग सी, रोचक, अविदित सी जानकारी मिलते ही उसे साझा कर ज्यादा से ज्यादा लोगों तक पहुंचाया जा सके ! अब इसमें इसको सफलता मिले, ना मिले, प्रयास तो सदा जारी रहेगा !
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13 टिप्पणियां:
बहुत सार्थक पोस्ट।
बहुत सार्थक संदेश सर।
मेरा मानना है आलोचनात्मक समीक्षा किसी भी संदर्भ में और अच्छा करने को प्रेरित करती है।
जो आपका भला चाहते हैं वो सिर्फ तारीफ ही नहीं करते बल्कि त्रुटियों से भी अवगत अवश्य कराते हैं।
शास्त्री जी
हार्दिक आभार ! यूँ ही स्नेह बना रहे
श्वेता जी
बिलकुल सही ! इधर ब्लॉग पर आने वाली टिप्पणियों के बारे में, जो सिर्फ प्रशंसात्मक ही होती हैं, भी कई बार कह चुका हूँ कि औपचारिकतावश सिर्फ सकारात्मक विचार ही ना रखें, यदि कोई खामी नजर आए तो उसे भी बताएं ! पर शायद शिष्टता आड़े आ जाती है
जय मां हाटेशवरी.......
आप को बताते हुए हर्ष हो रहा है......
आप की इस रचना का लिंक भी......
31/05/2020 रविवार को......
पांच लिंकों का आनंद ब्लौग पर.....
शामिल किया गया है.....
आप भी इस हलचल में. .....
सादर आमंत्रित है......
अधिक जानकारी के लिये ब्लौग का लिंक:
https://www.halchalwith5links.blogspot.com
धन्यवाद
जय मां हाटेशवरी.......
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धन्यवाद
कुलदीप जी
सम्मिलित करने हेतु अनेकानेक धन्यवाद
हलचल में शामिल करने हेतु आभार
इस कहानी से बहुत अच्छी सीख मिलती है में खुद मानता हूं जब व्यक्ति के काम की तारीफ होती है तो उसके काम करने की शक्ति कम हो जाती है जब तक आपके काम की तारीफ नहीं होती आप काम को और लगन से करने जाते हैं
हौसलाफ़जाई और आलोचना दोनों दो चीज़ें हैं। आज दोनों अतिवादिता के शिकार हैं। कारण पाठकों में गंभीरता का अभाव है। 'तू मेरी पीठ ठोक(या कपड़े उतार!), और मैं तेरी!' की महामारी फैली है।
सुन्दर प्रस्तुति
राजपुरोहित जी
बिल्कुल सही। स्वागत है सदा
विश्वमोहन जी
सहमत हूँ, पर निष्पक्ष रह कर सही मींमासा होना भी जरुरी है ! सच भले ही कड़वा हो चखना/चखवाना चाहिए !
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