उत्सव प्रिया: मानवा। मानव स्वभाव से ही उत्सव प्रिय होता है। इसीलिए उसे जिस चीज से भी आनंद-ख़ुशी मिलती है वह उसे अपना लेता है और यह जो पश्चिम द्वारा आयोजित-प्रायोजित नव-वर्ष का उत्सव है वह तो अपने में मौज-मस्ती, हंसी-ख़ुशी, आनंद-उल्लास समेटे लाता ही है, इसीलिए दुनिया भर में उसका स्वागत किया जाता है, उसे हाथों-हाथ लिया जाता है
दुनिया के साथ ही हम सब हैं। जब सारे जने कह रहे हैं कि कल नया साल है तो जरूर होगा। सब एक दूजे को बधाईयां दे ले रहे हैं, अच्छी बात है। जिस किसी भी कारण से आपसी वैमनस्य दूर हो वह ठीक होता है। चाहे उसके लिये विदेशी अंकों का ही सहारा लेना पड़े। अब इस युग में अपनी ढपली अलग बजाने का कोई मतलब
नहीं रह जाता है। वे कहते हैं कि दूसरा दिन आधी रात को शुरु होता है तो चलो मान लेते हैं क्या जाता है। सदियों से सूर्य को साक्षात भगवान मान कर दिन की शुरुआत करते रहे तो भी कौन सा जग में सब से ज्यादा निरोग, शक्तिमान, ओजस्वी आदि-आदि रह पाये। कौन सी गरीबी घट गयी कौन सी दरिद्रता दूर हो गयी। हाँ यदि मन में कहीं अपनी संस्कृति से जुड़े रहने, विदेशी रिवाजों से आक्रांत न होने, अपने पर्वों-त्योहारों की गरिमा बचाए रखने, अपने आने वाली पीढ़ी को अपने संस्कार देने की सद्भावना बची हो तो आपको किसने रोका है या कौन रोक सकता है ऐसा करने को ! मनाइये अपने त्यौहार डंके की चोट पर। हर धर्म-संस्कृति में, जगत की, मानव की भलाई के लिए अच्छी बातें होती हैं, उन्हें अंगीकार करने में कोई बुराई नहीं है, अच्छाई लीजिए, अच्छाई दीजिए, प्रेम लीजिए, प्रेम दीजिए, कटुता का त्याग कीजिए। अपनी अच्छाइयों को जोरदार तरीके से, पूर्ण विश्वास के साथ लोगों के सामने रखिए। पर पहले खुद तो उस पर पूरा भरोसा जमाएं। सिर्फ कुढ़न के कारण किसी को बुराई दे देना भी तो उचित नहीं है।
उत्सव प्रिया: मानवा। मानव स्वभाव से ही उत्सव प्रिय होता है। इसीलिए उसे जिस चीज से भी आनंद-ख़ुशी मिलती है वह उसे अपना लेता है और यह जो पश्चिम द्वारा प्रायोजित नव-वर्ष का उत्सव है वह तो अपने में मौज-मस्ती, हंसी-ख़ुशी, आनंद-उल्लास समेटे लाता ही है, इसीलिए दुनिया भर में उसका स्वागत किया जाता है, उसे हाथों-हाथ लिया जाता है। हर बार की तरह ही कल फिर एक नयी सुबह आयेगी अपने साथ कुछ नये अंक धारण किये हुए। साल भर पहले भी ऐसा ही हुआ था, उसके पहले साल भी, उसके पहले भी, ऐसा ही चला आ रहा है, साल दर साल। आगे भी ऐसा ही होता रहेगा।
पर कभी-कभी कुछ बातें खटक भी जाती हैं, जैसे यह भी दूसरे पर्वों की तरह अब दिखावे का माध्यम बन गया है। जो सक्षम हैं उन्हें एक और मौका मिल जाता है, अपने वैभव के प्रदर्शन का, अपनी जिंदगी की खुशियां बांटने, दिखाने का, पैसे को खर्च करने का। जो अक्षम हैं उनके लिये क्या नया और क्या पुराना। उन्हें तो रोज सूरज उगते ही फिर वही सनातन चिंता रहती है कि आज क्या होगा, काम मिलेगा कि नहीं, चुल्हा जल भी पायेगा कि नहीं, बच्चों का तन इस ठंड में भी ढक पाएगा कि नहीं ? ऐसे लोगों को तो यह भी नहीं पता होता कि नववर्ष क्या होता है, उनके लिए तो उनके बच्चों का पेट भर जाए वही जश्न है।
कुछेक की हर बार यही चिंता होती है कि इतने सारे पैसे को खर्च कैसे करें, हालांकि इस बार नोटबंदी ने उन्हें किसी और तरह की चिंता में डाल रखा होगा, और कुछ की, कि इतने से पैसे को कैसे खर्च करें ? चिंता की यह खाई दोनों वर्गों में सदियों से फैली हुई है जिसका निवारण होना तो दूर, उसके ओर-छोर पर ही काबू नहीं पाया जा सका है। वैसे देखें तो कल क्या बदल जाएगा ? कुछ लोग कैसे भी जोड़-तोड़ लगा, साम, दाम ,दंड़, भेद की नीति अपना, किसी को भी कैसी भी जगह बैठा अपनी पीढी को तारने का जुगाड़ बैठाते रहेंगे। कुछ लोग मानव रूपी भेड़ों की गिनती करवा खुद को खुदा बनवाते रहेंगे। कुछ सदा की तरह न्याय की आंखों पर बंधी पट्टी का फायदा उठाते-उठवाते रहेंगे, और कुछ सदा की तरह कुछ ना कर पा कर कुढते-कुढते खुद ही खर्च हो जायेंगे। पर वे अपनी जगह हम अपनी जगह। जब वे अपनी करनी से बाज नहीं आते तो हम भी अपने कर्म से क्यों चूकें ! इसीलिए अपनी तो यही कामना है कि साल का हर दिन अपने देश और देशवासियों के साथ-साथ इस धरा पर रहने वाले हर प्राणी के लिये खुशहाली, सुख, समृद्धि, सुरक्षा की भावना भी अपने साथ लाए।
नव-वर्ष सभी सभी भाई-बहनों के साथ-साथ "अनदेखे अपने" मित्रों के लिए मंगलमय हो, मुबारक हो, सुखमय हो। सभी सुखी, स्वस्थ, प्रसन्न और सुरक्षित रहें। नोटबंदी का किसी पर कोई असर बाकी न रहे। यही कामना है।