आडी-टेढ़ी, लंबी-चौड़ी, छोटी-मोटी, जानी-अंजानी गलियों से घिरा बाजार। गलियों के अंदर गलियां, गलियों के अंदर की गलियों से निकलती गलियां। अंतहीन गलियां, गलियों का मकड़जाल। उन्हीं गलियों में अपने-अपने इतिहास को समोए-संजोए खड़ी हैं, खजांची, चुन्नामल, मिर्जा ग़ालिब, जीनत महल जैसी हस्तियों की ऐतिहासिक हवेलियां
भले ही नई दिल्ली में सब कुछ मिलने लगा हो, दरों में भी पुरानी दिल्ली के थोक बाजार से ज्यादा फर्क ना हो फिर भी अधिकांश खासकर एक पीढ़ी पहले के लोग अपनी जरूरतों को पूरा करने के लिए पुरानी दिल्ली का
रुख जरूर करते हैं, खासकर तीज-त्योहार के मौसम में। भीड़-भाड़, तंग रास्तों, समय की खपत के बावजूद वहां से सामान लाने पर एक अजीब सा संतोष और सुख सा महसूस किया जाता है। 
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हर गली का अजूबा सा नाम, अपना इतिहास, अपनी पहचान, अपनी खासियत। हर गली पटी पड़ी तरह-तरह
की छोटी-बड़ी दुकानों से। चलाते आ रहे हैं लोग पीढ़ी दर पीढ़ी अपने व्यवसाय को एक ही जगह पर। दुकानों में कोई बहुत ज्यादा बदलाव भी नहीं आया है सिवाय पीढ़ी के साथ बदलते काम संभालने वालों के व्यवहार में। दिल्ली के बाहर से आने वाले की तो छोड़ें खुद दिल्ली वाले भटक जाते हैं इन कुंज गलियों में। लखनऊ का भूल-भुलैया भी इनके सामने पनाह मांग ले। तीज-त्योहार तो छोड़ ही दें आम दिनों में भी कंधे से कंधा भिड़े बिना यहां चलना मुश्किल होता है। तिस पर उसी में सायकिल भी, रिक्शा भी, ठेला भी, स्कूटर और मोटर सायकिल भी पर सब अपने-अपने इत्मीनान में !
कुछ तो है यहां, इसका सम्मोहन, इसकी ऐतिहासिकता, इसका अपनापन, इसकी आत्मीयता जो लाख अड़चनों, कमियों, मुश्किलों के बावजूद लोगों को अपने से जुदा नहीं होने देता !
जौक़ यूं ही तो नहीं फर्मा गए होंगे,
इन दिनों गरचे दक्खन मैं हैं बड़ी क़द्र ऐय सुखन,
जौक़ यूं ही तो नहीं फर्मा गए होंगे,
इन दिनों गरचे दक्खन मैं हैं बड़ी क़द्र ऐय सुखन,
कौन जाये ज़ौक़ पर दिल्ली की गलियां छोड़ कर।
7 टिप्पणियां:
चश्मे के लिए कभी "वासन" कभी "टाइटन" पर ही निर्भरता रहती थी। इस बार बहन रेवा की सलाह मान कर चांदनी चौक के बल्लीमारान के एक प्रकाश विज्ञान शास्त्री (optician} का सहारा लिया। बड़े नाम वालों की गलती तो पकड़ी ही गयी चश्मा भी सस्ता पड़ा। वहीँ यह पोस्ट भी उपजी।
आपकी ब्लॉग पोस्ट को आज की ब्लॉग बुलेटिन प्रस्तुति ब्लॉग बुलेटिन - कर्नल डा॰ लक्ष्मी सहगल की १०२ वीं जयंती में शामिल किया गया है। सादर ... अभिनन्दन।।
दिल्ली की गलियों पर बहुत अच्छी जानकारी.
Dhanywad, Harshvardhan ji
Dhanywad, rajiv ji
बहुत ही उम्दा ..... बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति .... Thanks for sharing this!! :) :)
Hindindia...... आपका सदा स्वागत है
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