शनिवार, 8 अक्टूबर 2016

दंड भी दोषी को ही मिलना चाहिए

सरहद पार से आने वाले और उनको लाने वालों का मुख्य उद्देश्य सिर्फ पैसा कमाना है। नाही वहाँ से आने वालों का स्तर संजीव कुमार, दिलीप कुमार या बलराज साहनी जैसा है, नाही उनको लेकर फिल्म घड़ने वाले राज कपूर या ऋषिकेश मुखर्जी हैं। ये लोग सिर्फ मौकापरस्त हैं 

देश कुछ लोगों की हठधर्मिता या कहिए अज्ञानतावश अजीब पेशोपेश में पड़  एक दोराहे पर आन खड़ा हुआ है। जबकि हमारी संस्कृति, हमारी परंपराओं, हमारी नैतिकता, हमारी सहिष्णुता, हमारे आचरण ने सदा हाथ फैला देशी-विदेशी हरेक का स्वागत किया है। हमारा धर्म इसी लिए सनातन है क्योंकि उसमें हरेक को अपने में समो लेने की विशेषता रही है। बाहर से आने वाले भी हमारे समाज रूपी दूध में शक्कर की तरह घुल-मिल कर यहीं के हो रह लिए। उनका धर्म, भाषा भले ही अलग थीं पर उनका योगदान हमारे समाज के लिए सदा लाभदायक रहा।    
 
बेल्जियम के कामिल बुल्के ने रामायण पर शोध ग्रन्थ, "रामकथा : उत्पत्ति और विकास" लिख यह पहली बार साबित किया कि रामकथा केवल भारत की ही नहीं, अंतर्राष्ट्रीय कथा है। रसखान जिनका मूल नाम सैयद इब्राहिम था, उनकी कृष्ण भक्ति पर तो क्या प्रभू की जन्म भूमि के प्रति लगाव भी एक मिसाल है। रहीम, कबीर, फरीद कितने नाम गिनाए जाएं ! कहते हैं गामा पहलवान को दैवीय शक्तियों का आशर्वाद प्राप्त था। प्रसिद्ध शहनाई वादक बिस्मिल्लाह खान पर हनुमान जी की कृपा थी। संगीतकार नौशाद माँ सरस्वती की आराधना करने के बाद ही काम पर जाते थे। राही मासूम रज़ा ने लोकप्रिय टी वी सीरियल का कथानक बुना, संजय खान ने हनुमान जी पर सीरियल बनाया, देश की उन्नति में डाक्टर कलाम का योगदान क्या कभी भुलाया जा सकता है ?  ये तो खैर नाम-चीन हस्तियां हैं, जन साधारण में भी ऐसे सैकड़ों उदाहरण मिल जाएंगे जो हमारे देवी-देवताओं में आस्था और भक्ति रखते हैं। जैसे कोलकाता के एक इलाके धापा में चीनी लोग माँ काली की पूजा करते हैं। राम लीला में साज-सज्जा और रावण-मेघनाद इत्यादि के पुतले बनाने में कई मुस्लिम परिवारों का योगदान रहता है। 

आजकल के माहौल को देखते हुए सोचना यह है कि हमें किससे नफ़रत करनी है, कर्मों से या नामों से। यदि कोई हमारी पौराणिक कथाओं में आस्था रखता है, पूरे मनोयोग, पाक-साफ़ इरादों से उन पर मंचित नाटकों में भाग लेना चाहता है तो इसमें बुराई क्या है ? उल्टे हमें तो ऐसे लोगों को प्रोत्साहित करना चाहिए जो हर तरह के डर या बन्दिशों को धत्ता बता ऐसे धार्मिक कार्यक्रमों में भाग लेने के लिए आगे आते हैं। उन्हें ही यदि हम दुत्कारेंगे तो उनके मन में वही सब बातें जड़ें ज़माना शुरू कर देंगी जिन्हें हमें समूल नष्ट करना है। एक तरफ तो हम चाहते हैं कि यहां रहने वाले देश के प्रति वफादार रहें दूसरी तरफ उनका अपमान करने से भी पीछे नहीं रहते ! प्रतिरोध तो हमें उनका करना है जिनकी नापाक नज़र हमारी धरती पर है। उनके मंसूबों को ख़त्म करना है जिनका मजहब सिर्फ दहशतगर्दी है। उनको मुंह तोड जवाब देना है जो हमारी शान्ति-प्रियता को हमारी कमजोरी समझ बैठे हैं।

बहार से आए हर गुणी का हमारे यहां स्वागत है। पर फिलहाल सरहद पार के खिलाड़ियों और कलाकारों पर बन्दिश लगाना सही साबित हो सकता है। इससे वहाँ के लोगों में अपनी सरकार के तथा उसकी कार्यप्रणाली के प्रति असंतोष उत्पन्न होगा। साथ ही वहाँ से आने वाले और उनको लाने वालों का मुख्य उद्देश्य सिर्फ पैसा कमाना है। नाही वहाँ से आने वालों का स्तर संजीव कुमार, दिलीप कुमार या बलराज साहनी जैसा है, नाही उनको लेकर फिल्म घड़ने वाले राज कपूर या ऋषिकेश मुखर्जी हैं। ये लोग सिर्फ मौकापरस्त हैं। 

कभी - कभी तो आशंका होने लगती है कि कहीं रफ़ी के गाये भजनों को भी बैन करने की बात न उठने लगे क्योंकि ऐसे लोगों को नहीं पता कि जिन बाइकों पर सवार हो वह गैर जिम्मेदाराना हरकतें करते हैं उसका ईंधन कहाँ से आता है ! यदि सिर्फ अपने अहम् की तुष्टि के लिए बैन-बैन-बैन की रट लगी रही तो इधर-उधर कहीं से कुछ भी बैन हो सकता है। समय आ गया है कि हर दल के जिम्मेदार अगुआ अपने मतलब से ऊपर उठ देशहित की सोचें और आजकल घटती घटनाओं को रोकने में गंभीरता से पहल करें। देश ऐसे कई भस्मासुरों से अतीत में खासा नुक्सान उठा चुका है।   

4 टिप्‍पणियां:

गगन शर्मा, कुछ अलग सा ने कहा…

शास्त्री जी, पोस्ट सम्मिलित करने के लिए आभार

chris ने कहा…


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भारतीय नागरिक - Indian Citizen ने कहा…

मौका परस्तों को बाहर का रास्ता।

गगन शर्मा, कुछ अलग सा ने कहा…

@भारतीय नागरिक - Indian Citizen ने कहा…
मौका परस्तों को बाहर का रास्ता।......................पर दिखाए कौन, मौका आने पर सब परस्त बन जाते हैं :-(

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