मंगलवार, 1 नवंबर 2016

मैं #छत्तीसगढ हूं

मुझे इससे कोई मतलब नहीं है कि मेरी बागडोर किस पार्टी के हाथ में है, जो भी यहां की जनता की इच्छा से राज सँभालता है उसका लक्ष्य एक ही होना चाहिए कि छत्तीसगढ के वासी अमन-चैन के साथ, एक दूसरे के सुख-दुख के साथी बन, यहां बिना किसी डर, भय, चिंता या अभाव के अपना जीवन यापन कर सकें। मेरा सारा प्रेम, लगाव, जुडाव सिर्फ और सिर्फ यहां के बाशिंदों के साथ ही है 

मैं #छत्तीसगढ हूं। आज एक नवम्बर है मेरा जन्मदिन। सुबह से ही आपकी शुभकामनाएं, प्रेम भरे संदेश और भावनाओं से पगी बधाईयों से अभिभूत हूं। मुझे याद रहे ना रहे पर आप सब को मेरा जन्म-दिन याद रहता है
यह मेरा सौभाग्य है। यह मेरा सोलहवां साल है, सपनों का साल, बाल्यावस्था से किशोरावस्था में पदार्पण करने का साल। कुछ कर गुजरने का साल, सपनों को हकीकत में बदलने के लिए जमीन तैयार करने का साल।   

आप को भी याद ही होगा जब मुझे मध्य प्रदेश से अलग अपनी पहचान मिली थी तो  देश के दूसरे भाग में रहने वाले लोगों को मेरे बारे में ज्यादा जानकारी नहीं थी, उनमें मुझे लेकर तरह-तरह की भ्रांतियां पनपी हुई थीं, लोग मुझे एक पिछडा प्रदेश और यहां के आदिवासियों के बारे में अधकचरी जानकारी रखते थे । इस धारणा को बदलने में समय तो लगा, मेहनत करनी पड़ी, जितने भी साधन उपलब्ध थे उनका उचित प्रयोग किया गया, धीरे-धीरे तस्वीर बदलने लगी जिसका उल्लेख यहां से बाहर जाने वालों से या बाहर से यहां घूमने आने वाले लोगों की जुबानी देशवासियों में होने लगा। लोगों को मुझे देखने-समझने का मौका
मिला तो उनकी आंखें खुली की खुली रह गयीं उन्हें विश्वास ही नहीं होता कि इतने कम समय में, सीमित साधनों के और ढेरों अडचनों के बावजूद मैं इतनी तरक्की कर पाया हूं। वे मुझे देश के सैंकडों शहरों से बीस पाते हैं। मुझे संवारने-संभालने, मेरे रख-रखाव, मुझे दिशा देने वालों ने इतने कम समय में ही मेरी पहचान देश ही नहीं विदेशों में भी बना कर एक मिसाल कायम कर दी है।

वन-संपदा, खनिज, धन-धान्य से परिपूर्ण मेरी रत्न-गर्भा धरती का इतिहास दक्षिण-कौशल के नाम से रामायण और महाभारत काल में भी जाना जाता रहा है। वैसे यहां एक लंबे समय तक कल्चुरी राज्यवंश का आधिपत्य रहा है। सैंकडों सालों से मेरा विवरण इतिहास में मिलता रहा है। मुझे दक्षिणी कोसल के रूप में जाना जाता रहा है। रामायण काल में मैं माता कौशल्या की भूमि के रूप में ख्यात था। मेरा परम सौभाग्य है कि मैं किसी भी तरह ही सही प्रभू राम के नाम से जुडा रह पाया।

कालांतर से मेरा नाम बदलता रहा, अभी की वर्तमान संज्ञा "छत्तीसगढ" के बारे में विद्वानों की अलग-अलग 36 किलों को मानते हैं जो मेरे अलग-
अलग हिस्सों में कभी रहे थे, पर आज उनके अवशेष नहीं मिलते। कुछ जानकारों का। है कि यह नाम कल्चुरी राजवंश के चेडीसगढ़ का ही अपभ्र्ंश है। आज मेरे सारे कार्यों का संचालन मेरी राजधानी "रायपुर" से संचालित होता है। समय के साथ इस शहर में तो बदलाव आया ही है पर राजधानी होने के कारण बढती लोगों की आवाजाही, नए कार्यालय, मंत्रिमंडलों के काम-काज की अधिकता इत्यादि को देखते हुए नए रायपुर का निर्माण भी शुरू हो चुका है, जो पूर्ण होने के बाद देश के सबसे सुन्दर और अग्रणी  शहरों में शुमार हो जाएगा। अभी की राजधानी रायपुर से करीब बीस की. मी. की दूरी पर यह मलेशिया के "हाई-टेक" शहर पुत्रजया की तरह निर्माणाधीन है। जिसके पूर्ण होने पर मैं गांधीनगर, चंडीगढ़ और भुवनेश्वर जैसे व्यवस्थित और पूरी तरह प्लान किए गए शहरों की श्रेणी में शामिल हो जाऊंगा।

एक बात जरूर कहना चाहूंगा कि मेरे नाम में आंकड़े जरूर "36" के हैं पर प्रेम से ओत-प्रोत मेरे मन की यही इच्छा है कि मैं सारे देश में एक ऐसे  आदर्श प्रदेश के  रूप में जाना जाऊं,  जो देश के किसी भी कोने से आने वाले
 देशवासी का स्वागत खुले मन और बढे हाथों से करने को तत्पर रहता है। जहां किसी के साथ भेद-भाव नहीं बरता जाता, जहां किसी को अपने परिवार को पालने में बेकार की जद्दोजहद नहीं करनी पडती, जहां के लोग सारे देशवासियों को अपने परिवार का समझ, हर समय, हर तरह की सहायता प्रदान करने को तत्पर रहते हैं। जहां कोई भूखा नहीं सोता, जहां तन ढकने के लिए कपडे और सर छुपाने के लिए छत मुहैय्या करवाने में वहां के जन-प्रतिनिधि सदा तत्पर रहते हैं। मेरा यह सपना कोई बहुत दुर्लभ भी नहीं है क्योंकि यहां के रहवासी हर बात में सक्षम हैं। यूं ही उन्हें #छत्तीसगढिया #सबसे #बढिया का खिताब हासिल नहीं हुआ है।

मुझे इससे कोई मतलब नहीं है कि मेरी बागडोर किस पार्टी के हाथ में है, जो भी यहां की जनता की इच्छा से राज
सँभालता है उसका लक्ष्य एक ही होना चाहिए कि छत्तीसगढ के वासी अमन-चैन के साथ, एक दूसरे के सुख-दुख के साथी बन, यहां बिना किसी डर, भय, चिंता या अभाव के अपना जीवन यापन कर सकें। मेरा सारा प्रेम, लगाव, जुडाव सिर्फ और सिर्फ यहां के बाशिंदों के साथ ही है।

मेरे साथ ही भारत में अन्य दो राज्यों, उत्तराखंड तथा झारखंड भी अस्तित्व में आए हैं और उन्नति के मार्ग पर अग्रसर हैं। मेरी तरफ से आप उनको भी अपनी शुभकामनाएं प्रेषित करें, मुझे अच्छा लगेगा।  फिर एक बार आप सबको धन्यवाद देते हुए मेरी एक ही इच्छा है कि मेरे प्रदेश वासियों के साथ ही मेरे देशवासी भी असहिष्णुता छोड़ एक साथ प्रेम, प्यार और भाईचारे के साथ रहें।  हमारा देश उन्नति करे, विश्व में हम सिरमौर हों।

जय हिंद
जय छत्तीसगढ़ 

6 टिप्‍पणियां:

कविता रावत ने कहा…

36गढ के जन्मदिन के बहाने बहुत ही सुन्दर जानकारी प्रस्तुति हेतु धन्यवाद!

गगन शर्मा, कुछ अलग सा ने कहा…

कविता जी,
आभार

सु-मन (Suman Kapoor) ने कहा…

अच्छी जानकारी

गगन शर्मा, कुछ अलग सा ने कहा…

धन्यवाद सुमन जी

HindIndia ने कहा…

बहुत ही उम्दा .... बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति ..... Thanks for sharing this!! :) :)

गगन शर्मा, कुछ अलग सा ने कहा…

Aapaka sadaa swagat hai

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