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किसी के देहावसान पर उस परिवार को सांत्वना देते समय अक्सर कहा-सुना जाता है कि सबको जाना है, किसके माँ-बाप सदा बैठे रहते हैं या इनका साथ यहीं तक था इत्यादि-इत्यादि, पर किसी अपने के बिछड़ने का गम वही समझता है जिसके घर से कोई विदा हुआ हो ! देस-विदेश में दूर बसे किसी सदस्य के बारे में एक निश्चिंतता तो उसके बने रहने की होती है पर दिवंगत हुए किसी अपने के बारे में यह सोच कर ही कि अब उससे कभी भी, कहीं भी, कैसे भी मिलना संभव नहीं हो सकेगा और तिस पर जब कि माँ बिछुड़ी हों, दिल काँप कर आँखों में पानी भर लाता है ! होगा समय बहुत बड़ा कारगर मल्हम, पर वह भी ऊपरी जख्म को ठीक करता है, अंदर की टीस को समय-समय पर सालने से तो वह भी नहीं रोक पाता।
दिवंगत इंसान के शोकग्रस्त परिवार को संबल देने, उबरने, समझाने के लिए तरह-तरह की बातें और रीति-रिवाज बनाए गए हैं, इन्हीं के तहत कुछेक दिनों के लिए नाते-रिश्तेदार घर पर जुटते हैं, कुछ रस्में पूरी की जाती हैं जिसमें व्यस्त हो इंसान यादों को कुछ दूर रख सके, अपना गम भुला सके, दुःख भरा माहौल कुछ हल्का हो सके। पर मानव के साथ जिंदगी भर जुड़े रहने वाली ये नियामत इतनी कमजोर नहीं होती कि ऐसे उपायों से उन्हें भुलाया या दूर रखा जा सके। जैसे ही अकेलेपन के कोहरे का साथ उन्हें मिलता है वे फिर आ घेरती हैं, हर बार, बार-बार। अच्छा ही है उनके कारण माँ सदा बनी रहेंगी अपने वात्सल्य के साथ, मेरे आस-पास, मेरे इर्द-गिर्द मुझे संबल देते, ममता बरसाते, स्नेह लुटाते।
7 टिप्पणियां:
मैं समझ सकता हूँ । मेरी माँ को गुजरे आज 16 वर्ष हो चुके हैं फिर भी लगता है आसपास है कहीं । आप को इस दुख:को सहने की ईश्वर शक्ति प्रदान करे यही कामना है । दिवंगत माँ को नमन और श्रद्धांजलि ।
माँ को सादर नमन और हार्दिक श्रद्धांजलि । अपना और परिवार का ख़्याल रखें |
सुशील जी,
बस यही लगता है कि सदा उनकी निगहबानी में हूँ
शिवम जी,
कितना भी अपने आप को समझाया जाए, कमी कहाँ पूरी होती है !
Aabhar Shastri ji
माँ की कमीं पूरे जीवन भर नहीं हो पाती ... बस सब्र ही करना होता है इंसान को ...
मेरी मौन श्रधांजलि माँ को ...
नासवा जी, सब्र के अलावा उपाय भी तो नहीं है कोई
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