गुरुवार, 29 नवंबर 2012

उत्तर की तलाश में एक सवाल

आज कल भारतीय क्रिकेट की दुनिया में तूफान मचा हुआ है। जिसे देखो वही लठ्ठ लेकर सचिन तेंदुलकर के पीछे पडा हुआ है। आज आस्ट्रेलियाई  पूर्व कप्तान रिची पोंटिंग के रिटायरमेंट से तो जैसे उन्हें और शह मिल गयी है।  टीवी के चैनल पर कुछ स्वयंभू क्रिकेट विशेषज्ञ, जिन्हें पूरे खेल का ज्ञान तो दूर खेल के दौरान खिलाडियों के खडे होने की विभिन्न जगहों के पूरे नाम भी शायद ही पता हों, वे भी इस महान बल्लेबाज को नसीहत देने से नहीं चूक रहे। बार-बार गावस्कर या अभी-अभी रिटायर हुए तीनों दिग्गजों, गांगुली, लक्ष्मण और द्रविड़  का उदाहरण देते नहीं थकते पर उनके अवकाश ग्रहण करने के कारणों और परिस्थितियों को सिरे से नजरंदाज कर अपने चैनल को ओछी खुराक देने के चक्कर में ये भूल जाते हैं कि इस जीवट वाले इंसान ने बार-बार वापसी की है।  

 यह सच है कि सचिन अब चालीस के होने जा रहे हैं और दो दशकों से अधिक का समय उन्हें मैदान पर उतरे हो चुका है। यह भी सच है कि वे अब ना पैसे के लिए ना नाम के लिए मैदान पर उपस्थित हैं सिर्फ इस खेल के प्रति उनका लगाव और प्रेम ही उन्हें ज्यादा से ज्यादा खेलने की प्रेरणा दिए जा रहा है। यह भी कटु सत्य है कि वे दो-चार पारियां अच्छी खेल भी जाएं पर पूर्णतया वापसी  कुछ मुश्किल है क्योंकि इस भाग-दौड और तनाव भरे खेल के लिए चालीस की उम्र बहुत होती है। संसार में  शायद ही कोई और ऐसा खिलाडी हो जो लगातार इतने लम्बे समय तक शीर्ष के करीब रहते हुए खेल पाया हो। पर सचिन ने अपने खेल कौशल और मेहनत से जो स्थान अर्जित किया है उसके चलते वे भारत के ही नहीं विदेशों में भी खेल प्रेमियों के चहेते बन गये हैं। करोंडों लोगों को उन्होंने अपने खेल और सौम्य व्यवहार से अपना मुरीद बना डाला है। लोगों की भावनाएं उनसे जुडी हुई हैं। इसीलिए उनकी विदाई की बात करना लोगों की भावनाओं को आहत करना है।

 हर देश की हर टीम के साथ ऐसा दौर आता है कि उसके तीन चार दिग्गज खिलाडी एक के बाद एक अवकाश
प्राप्त करने लगते हैं और उनका विकल्प तुरंत मिलना आसान नहीं होता जिसका खामियाजा टीम की अवनति से मिलता है। अपने यहां भी सौरव गांगुली, लक्ष्मण और द्रविड रिटायर हो चुके हैं, उनकी जगह आए नए खिलाडी प्रतिभावान जरूर हैं पर उनकी अभी और कडी परीक्षा होनी बाकी है। वैसे भी हमारे इन तीनों दिग्गजों ने इस खेल को जिस उचाईयों तक पहुंचाया उसे ध्यान में रखते हुए उन्हें वह सम्मान नहीं मिल पाया जिसके वे हकदार थे। फिर भी इनकी विदाई सही समय पर ही हुई है, चाहे कारण कुछ भी हों। सचिन के साथ ऐसा नहीं होना चाहिए। वे समय की नजाकत और अपने प्रदर्शन को समझते हैं। खेल के प्रति उनका समर्पण किसी भी कीमत पर खेल का अहित होते नहीं देख सकता इसी लिए जैसा कि गावस्कर ने कहा है उनके साथ बीसीसीआई को मंत्रणा कर भविष्य की योजना पर विचार करना चाहिए। इससे खेल प्रबंधन को भी विकल्प चुनने के लिए समय मिल जाएगा। इस तरह इस अप्रतिम खेल-योद्धा की विदाई भी पूरे आदर और सम्मान के साथ हो पाएगी। सचिन सौभाग्यशाली हैं कि पूरा देश तथा खेल प्रबंधन उनके साथ है तथा किसी भी तरह के विवाद या खेल राजनीति से भी वे निर्लिप्त हैं। इसलिए उनके शानदार, गौरवशाली, अनोखे, किंवदंती  बन चुके करियर का समापन भी उतना ही यादगार होना चाहिए।  

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