एक हैं दया के सागर। बहुत बड़े नेता हैं। जैसा नाम वैसा ही गुण। आपादमस्तक दया भावना से लिथड़े हुए। सदा अपने आस-पास के लोगों की गरीबी हटा उन्हें सम्पन्न बनाने के लिए कृतसंकल्प। जो भी उनके पास रहा, बेटा-बेटी, भाई-बहन, बहू-जवांई याने "जहां तक उनकी दृष्टि काम करती है" वहां तक सबका भला करने में ही उम्र गुजार दी। सुना है जिंदगी भर भगवान को नकारने वाले अब मंदिरों में गुहार लगा रहे हैं। भगवान भली करे।
एक हैं सफल आयोजक। आजकल जेल में हैं। पर वहां की दिवारें भी उनके ख्यालों या मनसूबों को रोकने में सफल नहीं हो पा रही हैं। उनकी मंशा है देश को खेलों में, माफ करिएगा खेलों के आयोजन में देश का नाम सर्वोपरि करना। इसमें वे तन-मन से लगे रहते थे। धन तो खैर 'आनी-आनी' चीज है। इस बारे में इतने समर्पित हैं कि जेल में रह कर भी ध्यान खेलों के आयोजन पर ही है। सुनने में आया है कि माहौल के अनुसार अभी-अभी उन्हें तिहाड़ ओलिम्पिक करवाने का सपना बार-बार आ रहा है।
भगवान तिहाड़ की रक्षा करें।
एक हैं अपनी तरह के आप, फिल्म निर्माता। जो अपने पासंग किसी को नहीं समझते। पिछले वर्षों तक महानायक का गुणगान करते ही सोते-जागते, खाते-पीते थे। उनके बिना अपनी किसी फिल्म की कल्पना भी नहीं कर पाते थे। पर समय बदला, मान्यताएं बदलीं। इन दिनों आमिर की विवादास्पद नयी फिल्म और आमिर के कसीदे काढने से ही फुरसत नहीं मिल पा रही है। आमिर में उन्हें फिल्मों का भगवान नजर आने लगा है जबकि उनके खुद के अनुसार वे किसी भगवान को नहीं मानते। ये भी क्या करें बाजार की छत पर फिल्म टांगने के लिए एक खंबा तो चाहिए ही ना। स्तुति गान शुरु हो ही चुका है। आमिर की शायद निकृष्टतम कृति रूपी शिट् को भी प्रसाद के रूप में ग्रहण किया जा रहा है। मेरा विश्वास है कि आने वाले दिनों में वे आमिर को लेकर कुछ जरूर "बोएंगे"। जमीन तैयार की जा रही है। भगवान सहायक हों।
इसी संदर्भ मे याद आ रहे हैं, जयप्रकाश चौकसे। दैनिक भास्कर की सफलता में उनका फिल्मों से सम्बंधित कालम "परदे के पीछे" का भी हाथ है। एक बहुत बड़ा वर्ग है उनके प्रशंसकों का जो उनके निष्पक्ष तथा फिल्मों से सम्बंधित ज्ञान का कायल है। पर पिछले दिनों उन्होंने भी 'डेली बेल्ही' में हर चीज को जायज ठहरा कर पाठकों को बहुत ही निराश किया।
हो सकता है भूतकाल में जीवन के किसी मोड़ पर किसी प्रकार का सहयोग, सहायता की याद अब संकोचवश सच्चाई बयान करने से रोक रही हो। हे भगवान! ऐसी कैसी मजबूरी?
9 टिप्पणियां:
बधाई |
अच्छी पोस्ट ||
तिहाड़ की रक्षा हो।
आज ही खबरों में है कि अमिताभ ने राम गोपल की शोले मे काम करने को अपनी सबसे बड़ी भूल कहा है।
यानि युद्ध शुरु है। तभी रामू दूसरे सहारे की तलाश में आमिर पर ड़ोरे डाल रहे हैं।
सब भगवान भरोसे ! बधाई हो !
Sab bhagwan bharose hai,par bhagwan kiske bharose hai
abhayjii,
wah bhi inhiin jaison ke bharose hai :-)
वाह बेहतरीन !!!!
inse nipat bhi bhagawan hi sakata hai.
बढिया लिखा है भाई। मजेदार रहा।
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