मंगलवार, 26 अप्रैल 2011

व्याधि, रोग, ज़रा और मौत भेद-भाव नहीं करते

इस धरा का यह शाश्वत सत्य है कि यहां जो भी जन्म लेता है उसकी मृत्यु निश्चित है। बच्चा जब भी जन्म लेता है तो यह अनिश्चित होता है कि वह बड़ा बन कर क्या बनेगा या क्या करेगा पर जन्म के साथ ही यह निश्चित हो जाता है कि वह एक दिन यहां से प्रस्थान जरूर करेगा। प्रकृति के इस अटूट नियम से कोई भी परे नहीं रह पाया है। चाहे वह साधू हो, सन्यासी हो, महापुरुष हो, भगवान का अनन्य भक्त हो या खुद भगवान का ही अंश क्यों ना हो। यहां आए हो तो जाना पहली शर्त है। श्री राम , श्री कृष्ण, ईसा मसीह, पैगम्बर, बुद्ध, महावीर जैसे अवतारों को भी अपना समय पूर्ण होने पर धरा छोड़नी पड़ी थी तो इंसान की क्या औकात है।

मृत्यु तो खैर अटल है ही, आदि-व्याधि से भी कोई बिरला ही बच पाता है। प्रकृति प्रदत्त ये हमारे 'परिक्षक' या 'उपदेशक' किसी में किसी प्रकार का भेद-भाव नहीं करते। ये नहीं देखते कि उनका लक्ष्य स्त्री है या पुरुष, अमीर है या गरीब, ढोंगी है या साधू, जन है या महाजन। बुढापा, व्याधि, बिमारी और मौत ये नाहीं किसी का पक्षपात करते हैं नाही किसी पर दया। यह किस रूप में आएंगे यह भी कोई ना जानता है ना बतला सकता है।

पांडवों को क्या पता था कि उनका अंत किन परिस्थितियों में होगा, सुकरात - मीरा को जहर का सेवन करना पड़ा था, रामकृष्ण परमहंस जैसे सत्य पुरुष को भी भयंकर बिमारी ने अपनी चपेट में ले लिया था। महर्षी रमण, महायोगी अरविंद डायबिटीज से जुझते रहे। जवाहर लाल नेहरु की मृत्यु लकवे के कारण हुई, स्वामी श्रद्धानंद, महात्मा गांधी और इंदिरा गांधी को गोलियों का शिकार होना पड़ा। हाल ही में सांई बाबा को एकाधिक रोगों से ग्रसित रहने के कारण शरीर त्यागना पड़ा। ये तो कुछ नाम हैं पर असंख्य महापुरुषों ने अपने जीवन में असाध्य रोगों का सामना किया और बहुतों ने अपनी अंतिम सांस अत्यंत कष्ट भोगते हुए ली।

कोई भी नहीं जानता कि किसका अंत किस रूप में आएगा और कब। यही एक बात यदि भगवान ने अपने पास ना रखी होती तो आज लोग उसका अस्तित्व ही नकार देते। खासकर वे जो भोली-भाली जनता की कमजोरियों का फायदा उठा अपने आप को भगवान निरूपित करने में नहीं झिझकते।

8 टिप्‍पणियां:

Ragini ने कहा…

aana aur jaana to prakriti ka shashwat niyam hai.....satya likha hai aapne...

राज भाटिय़ा ने कहा…

जाना तो सब को हे, लेकिन उस भगवान के नाम से लोगो को चुना लगा कर क्यो जाये, अच्छॆ कर्म करे, अगर किसी का भला नही कर सकते तो बुरा भी ना करे, जाना तो हे ही

Patali-The-Village ने कहा…

जाना तो हे ही अगर किसी का भला नही कर सकते तो बुरा भी ना करे|

निवेदिता श्रीवास्तव ने कहा…

ye to atal satya hai ........

गगन शर्मा, कुछ अलग सा ने कहा…

पता सबको है इस सच्चाई का पर कोई भी अपने पर लागू नहीं मानता है। नहीं तो क्यों अरबों-खरबों की सम्पत्ति इकट्ठा कर नहीं थकता। यदि भगवान के इतने ही भक्त हो, (कोई-कोई तो खुद को ही भगवान बताता है)तो फिर धन से इतनी मोह-माया क्यों भाई ? इतना भी ख्याल नहीं आता कि खानी वही तीन रोटी है जगह वही तीन हाथ की मिलनी है वह भी सदा के लिए नहीं। कहते अपने को अंतर्यामी हो और इतना भी नहीं जान पाते कि जिन्हें अपना अनुयायी समझ कर फूले नहीं समा रहे हो असल मे वे लोग मीठे पर चिपकी चीटीयों की तरह हैं जो गुरु की आंख बंद होने का इंतजार करते रहते हैं। इधर आंख मुँदी उधर छीना-झपटी शुरु।

betuliyan ने कहा…

कुछ अलग सा

betuliyan ने कहा…

कुछ अलग सा

Chetan Sharma ने कहा…

sahi kaha apne. jyadatar anuyayiyon ki najar to khajane par hi hoti hai.
saikado udaharan hain.

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