कुछ साल पहले तक कहा जाता था कि हमारे यहां गरीब आदमी कुछ ना हो तो नमक के साथ ही रोटी खा पेट भर लेता है। पर इस सबसे सस्ते खाद्य पर भी व्यवसायियों की गिद्ध दृष्टि पड़ ही गयी। तरह-तरह की बिमारियों का भय दिखा, उल्टे-सीधे व्यक्तव्य बता, संत्री-मंत्रियों की मिली-भगत ने इस गरीब से गरीब और अमीर से अमीर सब के भोजन के इस अविभाज्य अंग को एकदम आम से खास बना दिया था। बहाना यह था कि गले का रोग घेंघा ना हो इसलिए आयोडीन का सेवन जरूरी है। ड़रना हमारी फितरत है, कोई भी कभी भी आ कर हमें ड़रा जाता है। हम ड़र गये और शुरु हो गया कारूं के खजाने का खेल। मैदान में आ ड़टीं करोड़ों-अरबों का वारा - न्यारा करने वाली कम्पनियां, और तो और विदेशी भी आ जुटे बीमारी से हमें बचाने के 'नेक' काम' में। देखते-देखते 1-2 रुपये में मिलने वाली जींस की कीमत हो गयी 12 से 15 रुपये। वह भी उस चीज को मिलाने के झांसे में जो गर्म होते ही भोजन का साथ छोड़ देता है। इसके अलावा वैज्ञानिकों ने चेताया भी है कि रक्त-चाप जैसी बिमारियों में इसी आयोडीन युक्त नमक का हाथ है। बहुत से देशों में यह 'बैन' भी हो चुका है। पर हम उस चीज की कीमत चुकाते आ रहे हैं जो की है ही नहीं।
इतनी लम्बी-चौड़ी बात इसलिए कही कि आप तैयार रहें अगले आक्रमण के लिए। अभी सुगबुगाहट चल रही है कि एक बार फिर जनता को ड़राया जाए उनके शरीर में लोहे की कमी को लेकर। खासकर औरतों में पाए जाने वाली एनिमिया की बिमारी के ड़र का प्रचार कर के। सुनने में आ रहा है कि अब लौह मिश्रित नमक को बाजार में लाने की तैयारी है, जिससे रक्ताल्पता से छुटकारा दिलाया जा सके। और लीजिए नमक 50 रुपये की सीमा छूता ही है। क्योंकि इसके बिना कोई भी रसोई पूरी होती नहीं सो बच के कहां जाएंगें ?
यह कुचक्र ठीक वैसा ही है जैसे अभी कुछ दिनों पहले एक तथाकथित गोरेपन की नयी क्रीम बाजार में निर्माता कम्पनी ने यह कह कर फेंकी है कि मर्दों को गोरा करने के लिए दूसरे फार्मूले की जरुरत होती है। यह दूसरी बात है कि यह ख्याल पहले ब्रांड की गिरती साख के बाद आया। इसके बाद वृद्धों और बच्चों के लिए लाए जा सकने वाले 'प्रोड़क्ट' का रास्ता साफ हो जाता है।
मुद्दा यह है कि हमें अब तरह-तरह की विशेषता वाले नमकों का स्वागत करने के लिए तैयार रहना चाहिए। कोई बड़ी बात नहीं है कि कुछ दिनों में उपरी मिली भगत हमें ड़रा-धमका कर विटामिन 'बी-काम्पलेक्स' जैसी चीजें भी नमक में ही देना शुरु कर दें। और हम ड़रे-ड़रे अपनी जेब ढीली करते रहें।
इस ब्लॉग में एक छोटी सी कोशिश की गई है कि अपने संस्मरणों के साथ-साथ समाज में चली आ रही मान्यताओं, कथा-कहानियों को, बगैर किसी पूर्वाग्रह के, एक अलग नजरिए से देखने, समझने और सामने लाने की ! इसके साथ ही यह कोशिश भी रहेगी कि कुछ अलग सी, रोचक, अविदित सी जानकारी मिलते ही उसे साझा कर ज्यादा से ज्यादा लोगों तक पहुंचाया जा सके ! अब इसमें इसको सफलता मिले, ना मिले, प्रयास तो सदा जारी रहेगा !
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6 टिप्पणियां:
हमें ढ़ेली वाला ही अच्छा लगता है..
विज्ञापन के इस युग में कुछ भी सम्भव है। नमक महंगा है तो जाओ समुद्र के किनारे :(
ये तो आम नमक है दिल के मरीजो के लिए भी एक खास नमक आता है वो तो और भी महंगा है |
जब जनता को ही अकल नही तो क्या करे,?लुटने वाला तो लुटेगा ही,युरोप मे सभी आम नमक खाते हे जो सिर्फ़ ००.१९ पैसे मे मिल जाता हे, यही नमक भारत मे कोई खाता नही:)
कंपनियों का चरित्र एक जैसा ही देखने में आया है .....वेस्ट में पैदा हुई 'ईस्ट इंडिया कम्पनी' हो या ईस्ट इंडिया में पैदा हुई वेस्ट मानसिकता की कम्पनियाँ... देश के गरीब और मेहनतकाश लोगों को लूटना ही इनका धर्म रहा है.
नमक बेचने वाले ये नमक-विक्रेता ठेकेदार ........ नमकहरामी कर रहे हैं....... आज़ हमारी नज़र फिर से 'अन्ना' पर टिक गई है...देखते हैं कि वर्तमान गांधीवादी सरकारी नेताओं से टक्कर लेने कोई नया गांधी उठेगा ... जो फिर से 'दाण्डी मार्च' करने को तैयार होगा है या नहीं?
प्रतुल जी, इन 50-60 सालों में ही भारतीय चरित्र मे जमीन आसमान का फर्क आ गया है। उस समय गांधी जी के लाखों अनुयायी थे जो हर तरह से उनका समर्थन करने को दिन रात तैयार रहते थे। वैसी तकदीर बेचारे अन्ना की कहां है आज ठीक उल्टा है उन्हें गलत साबित करने को लोग कमर कसे बैठे हैं।
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