भगवान महावीर की दृष्टि मे साधु :-
केवल सिर मुड़ाने से कोई श्रमण नहीं हो जाता। सिर्फ हरिनाम जपने से ही कोई ब्राह्मण नहीं बन जाता। जंगल में रहने मात्र से ही कोई ऋषी नहीं बन जाता। कुश या चीवर धारण कर लेने से ही कोई तपस्वी नहीं बन जाता।
बल्कि इंसान समता से श्रमण बनता है। ब्रह्मचर्य से ब्राह्मण बनता है। ज्ञान से ऋषि बनता है और तप करने से ही तपस्वी बन पाता है। ये गुण ही हैं जो मनुष्य को साधु बनाते हैं और अवगुण उसी को असाधु बना देते हैं।
साधु ममत्वरहित, निरहंकारी, निस्संग, गौरवत्यागी, चर-अचर और स्थावर जीवों के प्रति समदृष्टि रखने वाला होता है। वह लाभ-हानि, सुख-दुख, जीवन-मरण, निंदा-प्रशंसा, मान-अपमान मे समभाव बनाए रखता है। वह ख्याति, दंड़, भय, हास्य, शोक जैसे बंधनों से मुक्त होता है। उस पर भूख-प्यास, सर्दी-गर्मी, दु:शैया, कष्ट-सुख जैसे लौकिक, दैहिक कष्टों का कोई प्रभाव नहीं पड़ता। उसे लोक-परलोक की चिंता नहीं व्यापती। वह कभी भी हर्ष,विषाद या प्रमाद नहीं करता।
भगवान की सीख है कि हे मनुष्य सदा प्रबुद्ध और शांत रह कर ग्राम और नगर में विचरण कर सबको शांति का मार्ग दिखला। कभी भी प्रमाद ना कर। किसी भी तरह का वेष धारण मत कर। भावों की शुद्धि के लिए बाह्यपरिग्रह का त्याग कर अपना जीवन प्राणी-मात्र की सेवा में लगाए रख।
इस ब्लॉग में एक छोटी सी कोशिश की गई है कि अपने संस्मरणों के साथ-साथ समाज में चली आ रही मान्यताओं, कथा-कहानियों को, बगैर किसी पूर्वाग्रह के, एक अलग नजरिए से देखने, समझने और सामने लाने की ! इसके साथ ही यह कोशिश भी रहेगी कि कुछ अलग सी, रोचक, अविदित सी जानकारी मिलते ही उसे साझा कर ज्यादा से ज्यादा लोगों तक पहुंचाया जा सके ! अब इसमें इसको सफलता मिले, ना मिले, प्रयास तो सदा जारी रहेगा !
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2 टिप्पणियां:
महावीर जयंती की शुभकामनाएँ.
सहमत हे जी आप की बातो से, आप को महावीर जयंती की शुभकामनाएँ!!
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