गुरुवार, 21 अप्रैल 2011

यहाँ रावण की पूजा के बिना कोई शुभ कार्य नहीं किया जाता

मध्य प्रदेश के विदिशा जिले में एक गांव है “रावण”।
है ना आश्चर्य की बात ? यह नाम कैसे प्रचलन में आया यह तो कोई नहीं बता पाता पर करीब 600-650 सालों से यह गांव इसी नाम से जाता है। रामायण में रावण को कान्यकुब्ज ब्राह्मण बताया गया है, इस गांव की आबादी का करीब 80 प्रतिशत कान्यकुब्ज ब्राह्मण ही हैं, जो अपने इस देव की अत्यंत, अटूट श्रद्धा से पूजा-अर्चना करते हैं।

ग्राम मेँ प्रवेश करते ही तालाब के किनारे यह प्रतिमा लेटी हुई अवस्था मे है जो सफेद-लाल पत्थर से निर्मित है। अद्भुत कारीगरी वाली इस मुर्ती में रावण बहुत सौम्य, सुंदर और गरिमा-मय दर्शाया गया है। दस शीश, बीस हाथ जिनमें आयुध पकड़े हुए हैं, विशाल उदर वाली यह मुर्ती सदा फूल, अक्षत तथा रोली से सजी-संवरी रखी जाती है। किसी भी समारोह, उत्सव या शुभ कार्य का प्रारंभ इसकी पूला अर्चना के बिना शुरु नहीं किया जाता। इस गांव के अलावा आस-पास के गांवों में भी किसी के घर शादी-ब्याह हो तो वधू के गृहप्रवेश के पहले और बारात चलने के पूर्व रावण की पूजा जरूर की जाती है। कान्यकुब्ज ब्राह्मणों के अलावा भी जो लोग हैं वे भी अपना कोई भी शुभ कार्य रावण की पूजा करे बगैर नहीं शुरु करते।

अभी आजादी के बाद यहां भी दशहरे के दिन शाम को रावण के पुतले का दहन शुरु हो गया है पर सारे ग्राम वासी उस दिन सुबह पूरे विधि-विधान से पहले इस रावण की मूर्ती की पूजा करते हैं फिर शामको पुतला दहन किया जाता है। इसके अलावा रामनवमी, होली, दिवाली पर भी इस प्रतिमा की पूजा अर्चना जरूर की जाती है।
है ना अपना देश और इसकी मान्यताएं अद्भुत और विचित्र ?

12 टिप्‍पणियां:

ब्लॉ.ललित शर्मा ने कहा…

कुछ सदगुण भी थे रावण में

जय लंकेश

डॉ. मोनिका शर्मा ने कहा…

Achchi aur alag si jankari...

चंद्रमौलेश्वर प्रसाद ने कहा…

दशहरे को छॊड कर हर रोज़ रावण की ही पूजा हो रही है इस देश में :)

भारतीय नागरिक - Indian Citizen ने कहा…

पता नहीं कितने रावण हैं और किस रूप में..

राज भाटिय़ा ने कहा…

वैसे उस रावण मे गुण ज्यादा थे, दोष एक, लेकिन आज के रावणओ मे गुण एक भी नही दोष ही दोष,

DR. ANWER JAMAL ने कहा…

क्या बता दें ?
जो न पूजने की चीज़ है वह तक तो यहाँ पुजवा दी ब्राह्मणों ने . तब अपने बाप को कैसे छोड़ देते बिना पुजवाए ?

http://commentsgarden.blogspot.com/2011/04/rawan.html

डॉ० डंडा लखनवी ने कहा…

श्री गगन शर्मा जी!
एक विचारक मोतीराम शास्त्री थे। उन्होंने रावण की व्याख्या राव और न का विच्छेद करके की है। इस नाम का उनका एक एक ग्रन्थ है। जिसमें राव+न का अर्थ जो राजा नहीं बताया है। उन्होंने गौतम बुद्ध को राव+न का प्रतीक माना है। उन्होंने अपने ग्रन्थ की एक प्रति मुझे दी थी।
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सद्भावी -डॉ० डंडा लखनवी

Rahul Singh ने कहा…

हम भी दर्शन (कम से कम फोटो में) करना चाह रहे हैं, इन रावण का.

गगन शर्मा, कुछ अलग सा ने कहा…

राहुल जी,
काफी कोशिशों के बावजूद फोटो नहीं मिल पाई है।

गगन शर्मा, कुछ अलग सा ने कहा…

ललित जी,
जैसा कि सब जानते हैं और ग्रंथों में भी बताया गया है कि दुष्चरित्र और दुष्कर्म करने वाले इंसान को प्रभू-कृपा प्राप्त नहीं होती। पर रावण को तो सदा शिवजी का स्नेहपात्र रहा था। इसी सोच पर काफी पहले एक पोस्ट लिखी थी उसी को दोबारा रख रहा हूं।
यह एक विचार है इसलिए सभी से यह इल्तिजा है कि इसे अन्यथा ना लें।

बेनामी ने कहा…

rawan jaisi mahaan-atma ka dashahare ke din jala kar uska apmaan nahin karna chahye balki uski jagah aaj ke yug mein apne desh ko loot rahe, bahan bahuon ki izzat se rozana khilwar kar rahe rawanon ka dahan karna chahiye

गगन शर्मा, कुछ अलग सा ने कहा…

बेनामी जी, आपकी बात में बहुत वजन है, पर इसे छुप कर क्यों कहना?

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