हर किसी को कभी ना कभी कहीं न कहीं के लिए यात्रा करनी ही पड़ती है। चाहे लम्बी दूरी की हो चाहे नजदीक की। माध्यम चाहे कोई सा भी हो पर हर बार यात्रा एक नया अनुभव प्रदान कर ही देती है। कभी मनोरंजक कभी तल्ख। इस बार एक अजीब से "कैरेक्टर" से सामना हुआ था।
पिछले दिनों अचानक आ उपस्थित हुई अप्रिय परिस्थिति के कारण दिल्ली जाना पड़ गया था। साल के अंतिम दिनों की छुट्टियों के दिन थे बड़ी मुश्किल से किसी तरह दो बर्थ मिल पाई थी। गाड़ी करीब-करीब समय पर ही आ गयी थी। अंदर बर्थ एक और दो पर एक युगल था। तीन पर एक युवक। चार व पांच मेरे और मेरे बेहतर अर्ध के हिस्से आई थी तथा छह पर सात और आठ वाले परिवार का एक बच्चा था। गाड़ी अपने गंतव्य की ओर दौड़ी जा रही थी। इधर सब अपने आप में खोए हुए। किसी भी तरह की कोई बातचीत नहीं। बोरियत भरे भारी माहौल को पत्रिका वगैरह भी हल्का नहीं कर पा रही थी जिसकी वजह से निठल्ले बैठे-बैठे थकान सी होने लगी तो कमर सीधी करने का काम मैंने अपनी बर्थ को दे दिया। सामने वाला युगल अपने लैपटाप मे मग्न एक ही बर्थ पर था। युवक ऊपर ऊंघ रहा था। बच्चा अपने परिवार के साथ था।
यात्रा के दौरान गाड़ी में मुझसे घोड़े नहीं बिक पाते। चेतन अवचेतन की अवस्था में झूलते हुए सफर कट जाता है। ऐसे ही काफी समय निकल गया। रात के नौ बजे होंगे कुछ अजीब सी हलचल से आंख खोली तो पाया एक दबंग सा लम्बा-चौड़ा इंसान इधर अंदर खड़ा हुआ है। उसके हुलिए और व्यवहार से कुछ रासायनिक परिवर्तन हुए मेरे अंदर जिसकी वजह से तल्ख हो गये मेरे लहजे से पूछे सवाल के जवाब में उसने कहा कि ऊपर वाली बर्थ मुझे मिली है, यहां मैं अपने जूते रख रहा हूं। जूते इतनी अंदर ? मैंने पूछा। वो क्या है ना सर, एक बार ऐसे ही गाड़ी में हमरा जूता चोरी हो गया था इसीलिए अब छिपा कर रखता हूं। उसके भोलेपन ने सारा गुस्सा और शक दूर कर दिया। अगला ऊपर अपनी जगह चढ गया। मैंने भी आंख फिर बंद कर ली। पर 15-20 मिनट बाद फिर बंदा नीचे। मैंने पूछा अब क्या हुआ? बोला ऊपर बहुत ठंडा है, एक छेदा से बहुत जोर का हवा जा रहा है, हमारा चदरा भी उधर खेंचा रहा था तो हम नीचे आगये। एटेंडेंट को बोलने के वास्ते।
ऊपर ए.सी. के वैंटीलेशन से उसे तकलीफ हो रही थी। सामने वाला दंपत्ति भी उठ बैठा था। मैंने भी अपनी बर्थ खोल दी और उस महाशय के बैठने की जगह बनाई। इलैक्ट्रीशियन ने आ इधर का वैंटिलेशन बंद कर दूसरी तरफ का चला दिया। यह सब दस-बीस मिनट में निबट गया पर हमारे इस चरित्र जिसका नाम अविनाश था और जो रांची का रहने वाला था उसकी सामने वालों से पांच मिनट भी 'देखा-देखी' नहीं हुई थी बात-चीत तो दूर की बात है। उसी समय सामने वाले युवक ने एक ठंडे पेय की बोतल खरीदी, अभी वह उसे खोल भी नहीं पाया था कि अविनाश ने एक बम्ब फोड़ा, बोला ई सब चीज आप जैसे लोग के कारण ही बिकता है। सामने वाला क्या सारे लोग सन्न। बिना जान-पहचान के किसी को ऐसी बात कह देना, बहुत अजीब सा था। वे दोनों उसका मुंह देखें श्रीमती जी मेरा। सामने वाले ने पूछा, क्या मतलब? अविनाश जी बोले, इतना ठंडा में कोई ठंडा पीता है? आप जैसे लोग पीते हैं तभी तो यह सब बिकता है। माहौल में आए हल्के तनाव को दूर करने के लिए मैंने कहा, भाई दिल्ली में तो लोग सर्दी में भी कंबल ओढ कर आइसक्रीम खाने बाहर जाते हैं। किसी तरह बात आई गयी हो गयी। पर इससे एक फायदा जरूर हुआ कि अब सब एक दूसरे से बातचीत करने लग गये थे। पाया गया कि देखने में विकट अविनाश बहुत भोला बंदा है। ज्यादातर अपने बारे में ही वह बताता रहा। पढा लिखा नहीं होने के बावजूद प्रभू की फुल कृपा से सराबोर वह हर जरूरतमंद की सहायता करने की इच्छा रखता है। इसी बीच खाना-पीना भी हुआ बातें चलती रहीं बीच बीच में अविनाश की 'मृदुलता' से खिंचाई भी होती रही। रात के करीब एक बजे सबने सरकार द्वारा निर्धारित अपना-अपना कोटा संभाल लिया।
सबेरा हुआ दिल्ली अब दूर नहीं थी। उतरने की तैयारियों के बीच सामने वाली युवती, मधु, ने हल्का सा मेक-अप करना शुरु किया ही था कि अविनाश से फिर नहीं रहा गया और उसने फिर एक धमाका कर दिया, आप ये सब जो कर रहीं हैं वो हमरी समझ में बिलकुल नहीं आ रहा है। और कोई होता तो पता नहीं क्या होता पर मधु समझदार निकली उसने मुस्कुराते हुए श्रीमती जी की ओर इशारा कर कहा कि आंटी और मेरी समझ में आ रहा है कि मैं क्या कर रही हूं।
इस डर से कि यह भोले महाशय कहीं और कोई लड़ी ना फोड़ डाले मैंने अविनाश के कंधे पर हाथ रख कहा कि उतरना है तो जरा चेहरा साफ सुथरा ना होना चाहिए। जाइये आप भी थोड़ा मुंहवा धो ना लीजिए। सभी हंस पड़े और तभी गाड़ी निजामुद्दीन का प्लेटफार्म नापने लगी थी।
इस ब्लॉग में एक छोटी सी कोशिश की गई है कि अपने संस्मरणों के साथ-साथ समाज में चली आ रही मान्यताओं, कथा-कहानियों को, बगैर किसी पूर्वाग्रह के, एक अलग नजरिए से देखने, समझने और सामने लाने की ! इसके साथ ही यह कोशिश भी रहेगी कि कुछ अलग सी, रोचक, अविदित सी जानकारी मिलते ही उसे साझा कर ज्यादा से ज्यादा लोगों तक पहुंचाया जा सके ! अब इसमें इसको सफलता मिले, ना मिले, प्रयास तो सदा जारी रहेगा !
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10 टिप्पणियां:
सफ़र में तरह -तरह के लोगों से मिलना और उनकी बातें सुनना भी एक अलग ही अनुभव है, भले ही उस समय कुछ अच्छा न लगे, लेकिन कुछ लोग बहुत दिन तक अपनी विशिष्टता के कारण याद आते रहते हैं... .. शायद ऐसा ही एक "कैरेक्टर" अविनाश आपको मिला और उसका इतना असर तो हुआ कि आपने बहुत अच्छा यात्रा वृतांत लिखा... धन्यवाद
कई लोग दिल के अच्छे... लेकिन दिमाग से मोटे होते हे, बिना सोचे समझे कुछ भी बोल देते हे, शायद सब को अपना समझ कर, अब इसे क्या कहे पागल या नादान?लेकिन आप के लेख ने हमे बांधे रखा, बहुत सुंदर. धन्यवाद
मिलते ही रहते हैं जी नए नए करेक्टर सफ़र में।
वैसे राज भाटिया जी का कहना भी जच रहा है।
shri राज भाटिय़ा ji sahmat hun, fir bhi avinash ko dhanyvad khna hi padega jiski badoulat ek post padhne ko mili ...अच्छा यात्रा वृतांत ... धन्यवाद
जीवन के सफर में राही ...
यही तो सफ़र का मज़ा है.
लेख भी बढ़िया और चरित्र भी !
mai bhi kayek bar ajab aur gajab logo se mukhatib ho chuka hun....yah sab mere aap-biti me milengi....waise bahut achchha time paas abinas ne kara hi diya...ssath hi paschatya ko purab ki taraf aakarsit kiya...abinas wakayi ,abinas nikala .wah bhi purab ka.
special carractor,
safar me bahut milate hai.
जो भी हो अगले ने आ कर ठहरे हुए पानी मे कंकर तो फेका ही था।
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