एक आदमी नदी के किनारे बहुत उदास सा बैठा था। उससे कुछ दूरी पर एक संत भी बैठे थे, अपने प्रभू के ध्यान में। अचानक उनका ध्यान इस दुखी आदमी की ओर गया। संत उठ कर इसके पास आए और पूछा कि तुम्हारी तबीयत ठीक नहीं लग रही उदास भी बहुत हो क्या बात है? संत के प्रेम भरे वचन सुन उस आदमी की आंखों से आंसू बहने लगे, फिर कुछ संयत हो बोला, जब तक मैं काम करता था तो सब मुझसे खुश रहते थे, पर अब बुढा हो चला हूं तो मेरे ही घरवाले मुझे तंग करते हैं, मारते पीटते हैं, हर समय दुत्कारते रहते हैं। इतना कह उसने अपनी पीठ पर लगे निशानों को दिखाया और बोला आज मैं घर से यह सोच कर निकला हूं कि अपनी जिंदगी खत्म कर दूंगा। मैं इस नदी में ड़ूब कर मर जाना चाहता हूं। संत ने उसे ढाढस बंधवाया और कहा, जान देना कायरों का काम है। तुम मेरे साथ चलो तुम्हारे रहने, खाने का सब इंतजाम मेरे आश्रम में हो जाएगा। इस पर वह आदमी चुप रहा। संत ने पूछा क्या सोच रहे हो? चलो। वह आदमी बोला, पर मेरे बिना मेरे घरवालों का क्या होगा?
यह तो एक कहानी थी। पर कहानियां भी तो कहीं ना कहीं सच्चाई समेटे होती हैं।
इस कहानी से बिल्कुल मिलता हुआ वाकया मेरे सामने घट रहा है। मेरे यहां एक दफ्तरी है। उसके दो लड़के हैं। एक 32 के करीब तथा दूसरा 30 के आस-पास है। यह खुद पहले सरकारी नौकरी में कुछ ऐसी जगह था जहां पैसे का स्रोत सूखता नहीं था। पर अवकाश ग्रहण करने के बाद आमदनी कम हो गयी पर खर्चे यथावत रहे। अब अपने लड़कों की कर्महीनता के चलते फिर काम करने पर मजबूर है। उसके बड़े लड़के की पहली शादी टूट चुकी है। जिससे उसके एक बच्चा भी है। तलाक लेने देने में इस भले आदमी की सारी जमा पूंजी स्वाहा हो गयी है। पर पुत्र मोह इतना है कि उनके शराबी-कबाबी होने के बावजूद उनकी सारी फरमाईशें जैसे-तैसे पूरी करने को तैयार रहता है। यहां तक कि उनके कपड़े-लत्ते सब खुद धोता साफ करता है। खुद खाए ना खाए उनके लिए हर व्यंजन का इंतजाम करता है उसके लिए चाहे हर महीने उधार ही क्यूं ना लेना पड़े। अभी पिछले साल लड़कों को तिपहिया ले कर दिया था कि रोजी-रोटी से लगेंगे। पर उसकी कमाई भी शराब-कबाब में चली जाती है। इसके हाथ एक रुपया भी नहीं आता उल्टे उसकी किस्त, टूट-फूट, टैक्स वगैरह भी अपनी जेब से भरता रहता है। शिकायत करने पर लड़के आंख दिखाने लगे हैं। पहले तो पुत्र मोह में पड़ लाड़-प्यार मे उन्हें बिगाड़ दिया अब वे हाथ से निकल गये हैं तो हर समय अपना माथा पीटता रहता है। पर मोह माया फिर भी खत्म नहीं हुई है। एक दो बार उसके पूछने पर मैंने बताया कि बहुत सी ऐसी जगहें व संस्थायें हैं जो आप और आपकी पत्नि को अपने यहां रख आपकी बाकि जिंदगी को चैन से गुजारने में सहयोग करेंगी। फिर आपकी पेंशन है आराम से गुजारा हो जाएगा, पर उपर वाली कहानी की तरह फिर वही चिंता कि मेरे बिना दोनो मर जाएंगें साले। अब फिर खोज-खाज कर जिसका तलाक हुआ था उसकी दोबारा शादी करने जा रहा है, पैसे हैं नहीं ब्याज पर बाजार से रकम उठा यह कार्य पूरा करना चाहता है। वह भी तलाक की बात नये सम्बंधियों से छिपा कर। बहुतों ने समझाया कि इस तरह धोखे में रख कर शादी करना ठीक नहीं है। तो इसका जवाब है कि ऐसे तो "बेचारे" की शादी होगी ही नही।
अब ऐसे आदमी को क्या समझाया जाए या कि वह कुछ समझ भी पाएगा कभी जो खुद ही बैल को उकसा-उकसा कर कह रहा हो, आ, आ मुझे मार।
इस ब्लॉग में एक छोटी सी कोशिश की गई है कि अपने संस्मरणों के साथ-साथ समाज में चली आ रही मान्यताओं, कथा-कहानियों को, बगैर किसी पूर्वाग्रह के, एक अलग नजरिए से देखने, समझने और सामने लाने की ! इसके साथ ही यह कोशिश भी रहेगी कि कुछ अलग सी, रोचक, अविदित सी जानकारी मिलते ही उसे साझा कर ज्यादा से ज्यादा लोगों तक पहुंचाया जा सके ! अब इसमें इसको सफलता मिले, ना मिले, प्रयास तो सदा जारी रहेगा !
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13 टिप्पणियां:
इन्सान माया-मोह में कैसे अँधा होकर ,अच्छे बुरे के पहचान को भूल जाता है ,इस पर आधारित आज के माहौल का सजीव चित्रण/अच्छी गहन, मनन, चिंतन से उपजी विवेचना की प्रस्तुती के लिए धन्यवाद / अच्छा सोचना अच्छी बात है /
शर्मा जी यह कहानी इस अकेले आदमी की नही, सभी उन मां बाप की है,जो अपने बच्चो को ज्यादा प्यार देने के नाम से मिठ्ठा जहर दे कर उन की जिन्दगी बर्बाद कर देते है, ओर ऎसे मां बाप अपने संग उस बच्चे का भविष्य भी बरवाद कर देते है, इस मै बच्चो की कोई गलती नही
अधिक मोह इसी तरह रुलाता है.. लेकिन धिक्कार है उन पुत्रों पर...
मोह ऐसा ही होता है
एक विचारोत्तेजक चित्रण
बी एस पाबला
केवल एक यह ही धृतराष्ट्र नहीं हैं, ऐसे धृतराष्ट्रों की कमी नहीं है आज भी, मैंने कईयों को समझाने की कोशिश की पर समझने को कोई तैयार नहीं होता वरन अपने से ही "महाभारत" करने को तैयार हो जाते हैं।
पुत्र मोह गलत नहीं है पर किसी भी बात की अति नहीं होनी चाहिए ...
पुत्रमोह में ध्रितराष्ट्र हो जाते हैं लोग और भूल जाते हैं की वो बच्चों का भला नहीं बुरा कर रहे हैं...व्यवहार संतुलित रखने की ज़रूरत होती है...जब तक आराम से हर चीज़ मिलती है तब तक कोई हाथ पैर नहीं चलाता...सिर पर पड़े तो कुछ तो करेगा ही ना...
इसी का नाम तो मोह है। अपने अंधेपन में फिर एक लडकी की जिन्दगी और खराब करेगा ये आदमी
प्रणाम
ऐसे मोह माया में फंसे किस्से रोज ही खुली आंखों आसपास दिखते हैं..बहुत बढ़िया वृतांत.
राज जी
ऐसा हकीकत में हुआ है
इंद्राणी जी
मोहवश अति कब हो जाती है, इसका पता भी तो नहीं चलता
सोहिल जी
सच है ! अपनी कर के ही माना
संगीता जी
कुछ लोग सर पर पड़ने के बाद भी नहीं सुधरते ! ऐसे ही लोगों से समाज विरोधी गतिविधियों का भय रहता है
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