ज्योति बसु, एक ऐसा नाम जो बंगाल की राजनीति के कीचड़ में 23 साल तक सर्वोच्च पद पर रहने के बावजूद अपना दामन साफ रख सका। एक धनाढ्य घराने में जन्म लेने और हर तरह की सुख सुविधा वाली जिंदगी पा सकने के बावजूद जो वामपंथी विचारधारा से ऐसा जुड़ा कि जिंदगी भर उसी का हो कर रह गया। वाम पंथ और कम्युनिस्ट दल यही उसका घर-संसार था। पार्टी के प्रति उसका समर्पण ऐसा था कि पिता निशिकांतजी को यदि रुपया पैसा देना होता था तो वह अपनी पुत्रवधु को ही देते थे उन्हें लगता था कि ज्योति के पास पैसा गया तो वह पार्टी फंड में चला जायेगा। पर विड़म्बना को क्या कहें उसी पार्टी ने उससे प्रधान मंत्री बनने का सुयोग छीन लिया। पर ज्योति बाबू ने एक मिनट भी नहीं लगाया पार्टी के फैसले को मानने में। इसी समर्पण और आम जनता से जुड़ाव ही उन्हें सदा लोकप्रियता प्रदान करता रहा।क्या था ऐसा जिसने सम्पन्न पिता और सफल व्यवसायी पुत्र के बीच इन्हें सर्वहारा वर्ग से जोड़े रखा।
ऐसा नहीं था कि उनके साथ विवाद नहीं जुड़े थे। कभी-कभी तो ऐसा भी लगता था कि क्या देश से भी ज्यादा पार्टी की अहमियत उनके लिये ज्यादा तो नहीं। इस बात को तब बहुत हवा मिली जब 1962 में चीन के द्वारा धोखेबाजी से कड़वी तथा शर्मनाक हार पर सारा देश स्तब्ध, दुखी तथा शर्मसार था तब इनकी तरफ से चीन की अलोचना ना होने से पूरे बंगाल तथा देश में कड़वाहट फैल गयी थी। बातें तो बहुत सी हैं पर हमारी परम्परा रही है कि दिवंगत होने के बाद किसी की आलोचना नहीं करनी चाहिये। भगवान उनकी आत्मा को शांति प्रदान करे।
इस ब्लॉग में एक छोटी सी कोशिश की गई है कि अपने संस्मरणों के साथ-साथ समाज में चली आ रही मान्यताओं, कथा-कहानियों को, बगैर किसी पूर्वाग्रह के, एक अलग नजरिए से देखने, समझने और सामने लाने की ! इसके साथ ही यह कोशिश भी रहेगी कि कुछ अलग सी, रोचक, अविदित सी जानकारी मिलते ही उसे साझा कर ज्यादा से ज्यादा लोगों तक पहुंचाया जा सके ! अब इसमें इसको सफलता मिले, ना मिले, प्रयास तो सदा जारी रहेगा !
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4 टिप्पणियां:
दिवंगत होने के बाद किसी की आलोचना नहीं करनी चाहिये??? लेकिन क्यो नही करनी चाहिये, जब हम दिवंगत लोगो की अच्छी बाते कर सकते है तो आलोचना क्यो नही??
भाटिया जी से सहमत
par aapne aalochna kar to di is post mei.....fir aisa kehnaa ka kya taatparya?
नेहा जी,
यह आलोचना नहीं है, सच्चाई ब्यान की है। आलोचना तब होती जब उनकी या उनके दल के कार्यों पर असहमती जता कर अपना पक्ष रखा जाता। वैसे मैं इन राजनितिज्ञों और इनकी राजनीति से दूर रह कर ही राहत महसूस करता हूं।
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