बुधवार, 27 जनवरी 2010

जज और अभियुक्त

जज ने चोर से पूछा कि तुमने इतनी चोरियां कीं, बिना किसी साथी के?
" साहब आप तो जानते ही हैं कि आजकल ईमानदार साथी मिलते ही कहां हैं," चोर ने जवाब दिया।

जज : क्या तुमने कभी जेल काटी है?
चोर : दो बार प्रयास कर चुका हूं, पर सलाखें बहुत मोटी थीं। काट नहीं पाया।

जज : जानते हो दो-दो शादियां करने की सजा क्या है?
अभियुक्त : जी श्रीमान, दो-दो सासों को झेलना पड़ता है।

जज : सजा सुनने के पहले क्या तुम अदालत के सामने कुछ पेश करना चाहते हो?
अभियुक्त : अब क्या पेश करूंगा सरकार, जो था वह तो पहले ही वकील साहब को भेंट कर चुका हूं।

जज : तुमने पति के सिर पर कुर्सी मारी और वह टूट गयी।
अभियुक्ता : पर सर, मेरा ऐसा इरादा नहीं था।
जज : क्या मतलब है तुम्हारा? क्या तुम्हारी नीयत हमला करने की नहीं थी?अभियुक्ता : नहीं, मेरी नीयत कुर्सी तोड़ने की नहीं थी।

जज : तो तुम्हारा कहना है कि तुमने यह कार नहीं चुराई है?
चोर : वकील साहब की हफ्ते भर की जिरह से तो मुझे भी अब ऐसा ही लगने लगा है।

7 टिप्‍पणियां:

लोकेश Lokesh ने कहा…

मज़ेदार :-)

Udan Tashtari ने कहा…

हा हा!! कार चोर खुद कन्फ्यूज हो गया...वाह रे वकीलों की सॉलिड जिरह!!

प्रवीण शुक्ल (प्रार्थी) ने कहा…

हाँ हाँ हाँ क्या बात है चोर भी कम जीनियस नहीं होते
सादर
प्रवीण पथिक
9971969084

Unknown ने कहा…

वाह!

सभी एक से बढ़कर एक!!

मजा आ गया!!!

राज भाटिय़ा ने कहा…

बहुत खुब जी... बेचारा जज

कडुवासच ने कहा…

... बेहद रोचक !!!

Himanshu Pandey ने कहा…

बेहतरीन !
आभार ।

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