कुछ ज्यादा समय नहीं हुआ है जब हर देशवासी प्रत्येक ओलिम्पिकोत्सव पर निश्चिंत रहता था कम से कम एक स्वर्ण पदक की आवक को लेकर। फिर उसे नज़र लग गयी जमाने की। रही सही कसर पूरी कर दी एक इंसान के अक्खड़पन ने। कैसे क्या हुआ था उसे सभी जानते हैं।
लगता है इतिहास अपने को फिर दोहरवा रहा है। इस बार निशाने पर वह पात्र है जिसने अपने बल-बूते पर स्वर्ण पदक हासिल किया है। जैसी की खबरें निकल कर आ रहीं हैं कि अहमों के टकराव से फिर एक खेल को नुक्सान होने जा रहा है। इस बार निशानेबाजी के खेल पर बुरी नज़र का निशाना है।
हर बार की तरह बहती गंगा में हाथ धोने वाले लोगों की मंशाओं पर ओलम्पिक स्वर्ण पदक विजेता बिंद्रा ने तब पानी फेर दिया जब अपने स्वागत समारोह में उसने नेशनल राइफल एसोसिएशन द्वारा क्रेडिट लेने की कोशिशों को यह कह कर नाकाम कर दिया कि इस सारी उपलब्धि का श्रेय सिर्फ उसके पिताजी को है जिनके द्वारा विदेशों में प्रशिक्षण पर करोंड़ों का खर्च किया गया। यह बात एसोसिएशन के अध्यक्ष और राजनेताओं को खल गयी। अखबारें बताती हैं कि बिंद्रा पर बहुत उल्टे-सीधे दवाब बनाने की कोशिश की गयी। इसी कारण दोनों पक्षों में कटुता बढती चली गयी। पर जब कुछ और ना हो सका तो अब मौका मिलते ही बिंद्रा को रास्ता दिखा दिया गया। अपने व्यक्तिगत अहम या टकराव पर देश के गौरव को क्यों दांव पर लगाया जाता है यह समझ के बाहर की चीज है।
यहां सवाल यह उठता है कि इस अहम के टकराव का फल किसे भुगतना पड़ेगा? क्यों नहीं उपर बैठे राजनेता देश हित में फैसला लेते? आज से नहीं वर्षों से खिलाड़ियों के साथ दुर्व्यवहार होता आया है। बहुतेरी बार सुना जाता रहा है कि खिलाड़ियों के साथ गये राजनयिक, जिनकी संख्या खिलाड़ियों से भी ज्यादा होती थी, अपना सामान साथ गये खिलाड़ियों से उठवाया करते थे। खिलाड़ियों का ध्यान या उनकी सुविधा को नकार अपने परिवार के साथ घूमने-फिरने में समय व्यतीत करते थे। पर आज तक नहीं सुना गया कि उन अधिकारियों से कोई सवाल जवाब किया गया हो, कोई सफाई मांगी गयी हो या दोषी पाये जाने पर उन पर कोई "एक्शन" लिया गया हो।
अब तो यही लगता है कि समय आ गया है कि जनता ही इस तरह के लोगों से जिनके कारण देश का नाम बदनाम होता हो, जिनके कारण समाज में तनाव पैदा होता हो, जिनके कारण घूसखोरों अपराधियों को संरक्षण मिलता हो, अपराध में पकड़े गये अपराधी को छुड़ाने की सिफारिश करने वाले ऐसे लोगों को कटघरे में खड़ा कर उनसे जवाब-तलब करे और उनकी असलियत समाज के सामने लाये और उनका दंड़ भी खुद ही निर्धारित करे।
लगता है इतिहास अपने को फिर दोहरवा रहा है। इस बार निशाने पर वह पात्र है जिसने अपने बल-बूते पर स्वर्ण पदक हासिल किया है। जैसी की खबरें निकल कर आ रहीं हैं कि अहमों के टकराव से फिर एक खेल को नुक्सान होने जा रहा है। इस बार निशानेबाजी के खेल पर बुरी नज़र का निशाना है।
हर बार की तरह बहती गंगा में हाथ धोने वाले लोगों की मंशाओं पर ओलम्पिक स्वर्ण पदक विजेता बिंद्रा ने तब पानी फेर दिया जब अपने स्वागत समारोह में उसने नेशनल राइफल एसोसिएशन द्वारा क्रेडिट लेने की कोशिशों को यह कह कर नाकाम कर दिया कि इस सारी उपलब्धि का श्रेय सिर्फ उसके पिताजी को है जिनके द्वारा विदेशों में प्रशिक्षण पर करोंड़ों का खर्च किया गया। यह बात एसोसिएशन के अध्यक्ष और राजनेताओं को खल गयी। अखबारें बताती हैं कि बिंद्रा पर बहुत उल्टे-सीधे दवाब बनाने की कोशिश की गयी। इसी कारण दोनों पक्षों में कटुता बढती चली गयी। पर जब कुछ और ना हो सका तो अब मौका मिलते ही बिंद्रा को रास्ता दिखा दिया गया। अपने व्यक्तिगत अहम या टकराव पर देश के गौरव को क्यों दांव पर लगाया जाता है यह समझ के बाहर की चीज है।
यहां सवाल यह उठता है कि इस अहम के टकराव का फल किसे भुगतना पड़ेगा? क्यों नहीं उपर बैठे राजनेता देश हित में फैसला लेते? आज से नहीं वर्षों से खिलाड़ियों के साथ दुर्व्यवहार होता आया है। बहुतेरी बार सुना जाता रहा है कि खिलाड़ियों के साथ गये राजनयिक, जिनकी संख्या खिलाड़ियों से भी ज्यादा होती थी, अपना सामान साथ गये खिलाड़ियों से उठवाया करते थे। खिलाड़ियों का ध्यान या उनकी सुविधा को नकार अपने परिवार के साथ घूमने-फिरने में समय व्यतीत करते थे। पर आज तक नहीं सुना गया कि उन अधिकारियों से कोई सवाल जवाब किया गया हो, कोई सफाई मांगी गयी हो या दोषी पाये जाने पर उन पर कोई "एक्शन" लिया गया हो।
अब तो यही लगता है कि समय आ गया है कि जनता ही इस तरह के लोगों से जिनके कारण देश का नाम बदनाम होता हो, जिनके कारण समाज में तनाव पैदा होता हो, जिनके कारण घूसखोरों अपराधियों को संरक्षण मिलता हो, अपराध में पकड़े गये अपराधी को छुड़ाने की सिफारिश करने वाले ऐसे लोगों को कटघरे में खड़ा कर उनसे जवाब-तलब करे और उनकी असलियत समाज के सामने लाये और उनका दंड़ भी खुद ही निर्धारित करे।
6 टिप्पणियां:
कोई सुधरना नहीं चाहता. जब तक शीर्ष में बदलाव नहीं होगा सब नूरा कुश्ती मात्र है.
शर्मा जी जब खिलाडी ही चम्चा गिरी करे तो? असल मै जब तक हम सब जागरुक नही होते जब तक हम अपना हित बाद मै पहले देश का हित सोचे, दुसरे को धकेल कर आगे निकलनए की आदत को बदलेगे नही तब तक यह सब होता रहे गा, मैने बडे बडे अफ़सरो को देखा है अपने से बढे अफ़सर की चम्म्चा गिरी करते, यह खिलाडी क्या चीज है, वेसे बिंदरा के संग ठीक हुया है.
बसंत पंचमी की बधाई
बिलकुल ठीक कहा आपने !
आलेख का आभार ।
बढ़िया आलेख...सही कह रहे हैं.
बिल्कुल सत्य कहा आपने.
रामराम.
तत्व-ज्ञान की बाते बढ़िया लगीं!
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