पिछले दिनों पद्म-पुरस्कारों की घोषणा हुई। उसमें कुछ "हस्तियां" ऐसी भी थीं जिनके चयन पर यह सारा आयोजन प्रश्नाकिंत हो जाता है। मुझे आशा थी कि इसकी प्रतिक्रिया स्वरूप दिग्गज ब्लागरों की कलम से कुछ निकलेगा पर कहीं सुगबुगाहट हुई भी होगी तो मुझे पता नहीं चला।
अब तो ऐसा ही लगता है कि समय के साथ-साथ इन अलंकारों की गरिमा, साख, इज्जत, जो भी है, सब खत्म होता जा रहा है। एक समय था जब इन्हें पाने वाले को आदर की दृष्टि से देखा जाता था, पर अब तो लोग शायद इस ओर ध्यान ही नहीं देते। यह आयोजन भी महज खाना पूर्ती के लिये रह गया लगता है। बांटना है सो बंट रहा है। किसे देना है, यह पाने वाले की पहुंच या फूहड़ चैनलों में उसके मर्यादाहीन कार्यकलापों से लगातार दर्शकों में उपस्थिति उसकी लोकप्रियता का मापदंड़ बन गया है। बदनाम होंगे तो क्या नाम तो होगा कि तर्ज पर। ना किसी के अपने कार्यक्षेत्र में योगदान की कीमत रह गयी है नाही किसी की वरियता का कोई मोल बचा है।
सबसे ज्यादा मिट्टी पलीद हुई है "पद्मश्री" उपाधी की। किस बिना पर यह “बांटे” जाते हैं, इसका पैमाना किसी को भी नहीं पता, देने वालों को भी नहीं। बिना किसी का नाम लिये आप इस बार के “पद्मश्रीयों” की लिस्ट पर नज़र ड़ालें और उनके अपने क्षेत्रों में किये गये “एहसानों” का अवलोकन करें तो आप भी मेरी बात से सहमत हो जायेंगे।
पर इन सब क्रियाकलापों से एक जोरदार बात धीरे से झटका दे रही है कि ऐसा ही चलता रहा तो आने वाले समय में कुछ "जुगाड़" वगैरह कर अपने नाम के आगे भी "पद्मश्री" जुड़वाया जा सकता है। पर साथ ही फिर दिल में यह ख्याल भी आता है कि कहीं लोग यह ना कहने लगे, हुंह लो एक और आ गया।
15 टिप्पणियां:
शर्मा जी, "…ब्लागरों की कलम से कुछ निकलेगा पर कहीं सुगबुगाहट हुई भी होगी तो मुझे पता नहीं चला…"
इस सम्बन्ध में मैंने आज ही एक हल्का-पतला लेख लिखा है, समय मिले तो देखियेगा…।
कोई बात नहीं अगर इनकी भी बोली लगने लगे :)
ये पद्म पुरस्कार तो "अंधा बाँटे रेवड़ी ..." हैं गगन जी।
शर्मा जी आज सुबह ही मेने इन महान हस्तियो को ब्लांग मै ही पढा था यहां...
http://deshnama.blogspot.com/
पद्मश्री अब चोर उच्च्को को भी मिल रहा है, आखिर इन के पास खरीदने की जो हिम्मत है, हराम के पैसो से... यहां आज सब बिकता है
धन्यवाद
aapkko bhee mil saktha hai :-)
"इसका पैमाना किसी को भी नहीं पता, देने वालों को भी नहीं" बिलकुल सही, यही हो रहा है - किसी को भी मिल सकती है. सोच और आलेख के लिए आभार और धन्यवाद्
अग्रिम बधाई!
आज सबकुछ बिकाऊ है. जिसमें दम हो खरीद सकता है. आपके विचारों से पूर्ण सहमति.
कुछ जुगाड़ बैठ जाये तो हमारा भी नाम सरका देना भाई!
"कुछ तो हुनर रहा होगा
यूं ही मुकाम नही मिलते।"
और मुझे भी ब्लाग रत्न, वगैरा.
रत्न चाहिये तो यत्न करो
श्री चाहिये तो लो पर फ्री
इच्छा न करो जी।
अब ना ही ले तो अच्छा है।
मायने बदल गए हैं।:)
यह सही कहा आपने -
"कहीं लोग यह ना कहने लगे, हुंह लो एक और आ गया।"
आभार ।
श्याम जी, "हुनर" तो था ही तभी तो "मुकाम" मिला। :)
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