मंगलवार, 30 सितंबर 2008

स्वागत है माँ का

मेहमानों की आवाजाही से हमारे यहां तो रौनक लगी रही। पहले तो गणपतजी पधारे, वैसे तो उनसे संपर्क बना रहता है पर उनका आना साल में एक बार ही हो पाता है। काफी व्यस्त रहते हैं। उनकी आवभगत में समय का पता ही नहीं चल पाया। उनके जाने के दूसरे दिन ही पितरों का आगमन हो गया, कल ही उनकी विदाई हुई और आज माँ के स्वागत का सौभाग्य प्राप्त हो गया। अपनी तो मौजां ही मौजां।
आज से नवरात्र पर्व शुरु हो रहे हैं। आप सब को भी माँ का ढ़ेरों- ढ़ेर प्यार और आशीष मिले। इन नौ दिनों में माँ के नौ स्वरुपों की पूजा होती है। आज पहला दिन है और आज माँ का "शैलपुत्री" के रूप में पूजन होता है। पर्वत राज हिमालय के यहां पुत्री के रूप में जन्म लेने के कारण इनका यह नाम पड़ा। इनका वाहन वृषभ है। इनके दाहिने हाथ में त्रिशूल और बाएं हाथ में कमल पुष्प सुशोभित रहता है। इनका विवाह भी भगवान शिवजी से ही हुआ। नव दुर्गाओं में प्रथम, माँ शैलपुत्री दुर्गा का महत्व और शक्तियां अनंत मानी जाती हैं। इस प्रथम दिन की उपासना में योगी अपने मन को मूलाधार चक्र में स्थित करते हैं। यहीं से उनकी योग साधना का शुभारंभ होता है।
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वन्दे वाच्छितलाभाय चंद्रार्धकृतशेखराम्।
वृषारूढ़ां शूलधरां शैलपुत्रीं यशस्विनीम्।।
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सोमवार, 29 सितंबर 2008

उस दिन तो भगवान् ने ही स्कूटर चलाया

घटना करीब तीस साल पूरानी है। शादी को अभी सात एक महीने ही हुए थे। तब हम दिल्ली के राजौरी गार्डेन में रहते थे। मेरी चचेरी बहन का रिश्ता हरियाणा के करनाल शहर में तय हुआ था। उसी के सिलसिले मे वहां जाना था। मैने नया-नया स्कूटर लिया था, जो अभी तक दो सौ किमी भी नहीं चला था, सो शौक व जोश में स्कूटरों पर ही जाना तय किया गया। हम परिवार के आठ जने चार स्कूटरों पर सवार हो सबेरे सात बजे करनाल के लिए रवाना हो लिए। यात्रा बढ़िया रही, वहां भी सारे कार्यक्रम खुशनुमा माहौल में संपन्न होने के बाद हम सब करीब पांच बजे वापस दिल्ली के लिए रवाना हो लिए। मैं सपत्निक तीसरे क्रम पर था।। सब ठीकठाक ही चल रहा था कि अचानक दिल्ली से करीब 35किमी पहले मेरा स्कूटर बंद हो गया। मेरे आगे दो स्कूटर तथा पीछे एक स्कूटर था , आगे वालों को तो जाहिर है कुछ पता नहीं चलना था सो वे तो चलते चले गये। पर मन में संतोष था कि पीछे दो लोग आ रहे हैं। पर देखते-देखते, मेरे आवाज देने और हाथ हिलाने के बावजूद उनका ध्यान मेरी तरफ नहीं गया, एक तो शाम हो चली थी दूसरा हेल्मेट और फिर उनकी आपसी बातों की तन्मयता की वजह से वे मेरे सामने से निकल गये। इधर लाख कोशिशों के बावजूद स्कूटर चलने का नाम नहीं ले रहा था। जहां गाडी बंद हुए थी, उसके पास एक ढ़ाबा था वहां किसी मेकेनिक मिलने की आशा में मैं वहां तक स्कूटर को ढ़केल कर ले गया, परंतु वहां सिर्फ़ ट्रक ड्राइवरों का जमावड़ा था। अब कुछ-कुछ घबडाहट होने लगी थी। ढ़ाबे में मौजूद लोग सहायता करने की बजाय हमें घूरने में ज्यादा मशरूफ़ थे। मैं लगातार मशीन से जूझ रहा था। मेरी जद्दोजहद को देखने धीरे-धीरे तमाशबीनों का एक घेरा हमारे चारों ओर बन गया था। कदमजी मन ही मन (जैसा कि उन्होंने मुझे बाद में बताया) लगातार महामृत्युंजय का पाठ करे जा रहीं थीं। हम दोनो पसीने से तरबतर थे, मैं स्कूटर के कारण और ये घबडाहट के कारण। अंधेरा घिरना शुरु हो गया था कि अचानक एक स्पार्क हुआ और इजिन में जान आ गयी। मैने चालू हालत में ही स्कूटर को कसा-ढ़का, और प्रभू को याद कर घर की ओर चल पड़े। रात करीब साढ़े दस बजे जब घर पहुंचे तो घर वालों की हालत खस्ता थी। उन दिनों मोबाइल की सुविधा तो थी नहीं और गाडी फिर ना बंद हो जाए इसलिए रास्ते से मैने भी फोन नहीं किया। जैसा भी था हमें सही सलमात देख सबकी जान में जान आई।
दूसरे दिन मेकेनिक ने जब स्कूटर खोला तो सब की आंखे फटी की फटी रह गयीं क्योंकी स्कूटर की पिस्टन रिंग टुकड़े-टुकड़े हो चुकी थी जो कि नये स्कूटर के इतनी दूर चलने का नतीजा था। ऐसी हालत में गाडी कैसे स्टार्ट हुई कैसे उसने दो जनों को 50-55किमी दूर तक पहुंचाया कुछ पता नहीं। यह एक चमत्कार ही था। उस दिन को और उस दिन के माहौल के याद आने पर आज भी मन कैसा-कैसा हो जाता है।
कोई माने या ना माने मेरा दृढ़ विश्वास है कि उस दिन सच्चे मन से निकली गुहार के कारण ही प्रभू ने हमारी सहायता की थी। प्रभू कभी भी अपने बच्चों की अनदेखी नहीं करते और यह मैने सुना नहीं देखा और भोगा है।

रविवार, 28 सितंबर 2008

आंसू, इन्हें यूं ही न बहने दें

दुख के, पीड़ा के, ग्लानी के, परेशानी के, खुशी के आंसू। मन की विभिन्न अवस्थाओं पर शरीर की प्रतिक्रिया के फलस्वरुप आंखों से बहने वाला जल। जब भावनाएं बेकाबू हो जाती हैं तो मन को संभालने, उसको हल्का करने का काम करता है "अश्रु"। इसके साथ-साथ ही यह हमारी आंखों को साफ तथा कीटाणुमुक्त रखता है।
आंसू का उद्गम लैक्रेमेल सैक नाम की ग्रन्थी से होता है। भावनाओं की तीव्रता आंखों में एक रासायनिक क्रिया को जन्म देती है, जिसके फलस्वरुप आंसू बहने लगते हैं। इसका रासायनिक परीक्षण बताता है कि इसका 94 प्रतिशत पानी तथा बाकी का भाग रासायनिक तत्वों का होता है। जिसमें कुछ क्षार और लाईसोजाइम नाम का एक यौगिक रहता है, जो कीटाणुओं को नष्ट करने की क्षमता रखता है। इसी के कारण हमारी आंखें जिवाणुमुक्त रह पाती हैं।
वैज्ञानिकों के अनुसार आंसूओं में इतनी अधिक कीटाणुनाशक क्षमता होती है कि इसके छह हजार गुना जल में भी इसका प्रभाव बना रहता है। एक चम्मच आंसू, सौ गैलन पानी को कीटाणु रहित कर सकता है।
ऐसा समझा जाता है कि कभी ना रोनेवाले या कम रोनेवाले मजबूत दिल के होते हैं। पर डाक्टरों का नजरिया अलग है, उनके अनुसार ऐसे व्यक्ति असामान्य होते हैं। उनका मन रोगी हो सकता है। ऐसे व्यक्तियों को रोने की सलाह दी जाती है। तो जब भी कभी आंसू बहाने का दिल करे (प्रभू की दया से मौके खुशी के ही हों) तो झिझकें नहीं।
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वैधानिक चेतावनी : आंसू की इस परिभाषा का भी ध्यान रखें -
It is a hydrolic force through which Masculine WILL POWER defeated by Feminine WATER POWER.

शनिवार, 27 सितंबर 2008

फिर धमाकों से दहली दिल्ली

पन्द्रह दिनों के अंदर देश की राजधानी में फिर एक धमाका, पुलिस और सरकार के मुंह पर तमाचा। फिर वही शिकंजा कसने की बातें, फिर किस की हरकत इस पर बहस। फिर वही कुछ नाम सामने आएंगे, जिन पर कभी भी कोई कार्यवाही नहीं की जा सकी।
दोपहर दो बजे के बाद दिल्ली के महरौली इलाके में दो बाइक सवार तेज गति से गाड़ी चलाते हुए एक पैकेट एक दुकान के सामने फेंक भागते चले जाते हैं। दुर्भाग्यवश वह पैकट एक मासूम बच्चे, संतोष, के सामने गिरता है। इमानदार बच्चा वह पैकट उठा, "आपका सामान गिर गया है, भाई साहब" कहता हुआ बाइक के पीछे-पीछे दौडता है और फिर इसके पहले कि कोई कुछ समझे, कोई समझने वाला नहीं रहता।
फिर बहसें होगीं, अखबारों के पन्ने काले किए जाएंगे, फिर टीवी पर टी आर पी के लिए जोर आजमाइश होगी, फिर कत्ले आम की निंदा होगी, फिर नेतागण अफसोस जाहिर करेंगे, मुआवजे आदि की घोषणाएं होगीं, फिर इस पर ब्लोग लिखे जाएंगे, फिर कोई चिढ़ कर उल्टे सीधे कमेंट करेगा, फिर उस कमेंट पर तरह-तरह की टिप्पणियां आयेंगी। पर क्या यह सब संतोष के घरवालों के जख्मों को भर पाएंगें। __________________________________________________
इसी के साथ एक और बुरी खबर, अपनी तरह के अनोखे गायक, रफी, मुकेश, किशोर के संगी, महेंद्र कपूरजी नहीं रहे ।

पंछी बनुं उड़ता फिरूं खुले गगन में

हमारे वेद-पुराणों की एक-एक बात अब सच हो सामने आती जा रहीं है। उसमें नयी कडी है, इंसान का पंछी बन कर उड़ना। खुले आकाश में पंछियों की तरह उड़ने के सपने को साकार करने की कयी कोशिशें की गयीं थीं पर सफलता हासिल ना हो पाई थी। पर स्विट्जरलैंड के 49 वर्षिय इव्स रासी ने पिछले शुक्रवार को इस सपने को हकीकत में बदल दिया। ब्रिटेन और फ्रांस के बीच फैले इंगलिश चैनल को इन्होंने करीब 150किमी की रफ़्तार से 12 मिनट में पार कर, मानव जाति के इतिहास में एक सुनहरा अध्याय लिख दिया। यह दूरी करीब 32किमी की है। इस कारनामे को इन्होंने धरती से लगभग 10000फ़िट उपर उड़ते हुए अंजाम दिया। पर यह सब इतना आसान नहीं था। अपने गैराज में मशीन के पंखों के ड़िजाइन पर तथा उसे मुर्तरूप देने में इव्स को अपने जीवन के 15 बेशकीमती साल खपाने पड़े। पर अपनी धुन के पक्के इस इंसान ने कभी हार नहीं मानी और असंभव को संभव कर दिखाया।
हमारे लिए यह आविष्कार इस लिए सुखद है क्योंकी रामायण आदि ग्रंथों में, हनुमानजी, जटायू या संपाती आदि पात्रों के आकाशगमन को कोरी कल्पना मानने वालों के मुंह पर ताला लग जाएगा।

शुक्रवार, 26 सितंबर 2008

फिर टेंशन, क्या यार

संताजी ने घर आये, अपने पशु चिकित्सक से आश्चर्यचकित हो पूछा कि पता नहीं मेरी बिल्ली के बच्चे कैसे हो गये, मैं तो इसे कभी बाहर ही नहीं जाने देता हूं। तभी एक बिल्ला कमरे में आया। उसे देख चिकित्सक ने पूछा, तो यह कौन है? संताजी तुरंत बोले, कुछ तो शर्म कीजिए, डाक्टर, यह तो बिल्ली का भाई है।
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गांव से नये-नये आये नौकर को पानी का गिलास यूंही हाथ में उठा कर लाते देख संताजी चिल्लाए, अरे गधे पानी कहीं इस तरह लाया जाता है? नौकर ने घबडा कर पूछा, फिर कैसे लाऊं, मालिक? संताजी बोले, प्लेट में रख कर लाओ। सहमा हुआ नौकर, मालिक चम्मच भी लाऊं या ऐसे ही चाट लेंगे?
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बास अपनी सेक्रेटरी के साथ टूर पर था। एक शहर में संयोगवश एक ही डबल रूम उपलब्ध हो सका। सोते समय बास ने पूछा कि यदि मैं तुमसे अपनी पत्नी की तरह व्यवहार करूं तो बुरा तो नहीं मानोगी? सेक्रेटरी मन-ही-मन खुश हुई कि प्रोमोशन का समय आ गया, वह बोली, नहीं सर जैसा आप चाहें। तो ठीक है, उठ कर खिडकी बंद कर दो, ठंडी हवा आ रही है,

गुरुवार, 25 सितंबर 2008

यहाँ रावण की पूजा होती है

मध्य प्रदेश के विदिशा जिले के एक गांव, जिसका नाम ही रावणग्राम है, के किसी भी समारोह के पहले राक्षसराज रावण की पूजा होती है। जो गांव के बाहर लेटी हुई प्रतिमा, जिसकी लम्बाई करीब दस फुट की है तथा जिसे रोज खीर और पूड़ी का भोग लगाया जाता है, के रूप में विराजमान है। यहां की दो-तिहाई आबादी,   कान्यकुब्ज ब्राह्मणों की है।जिनकी संख्या करीब  5000 से 6000 तक है.  ये सभी गांववासी दशानन के अनन्य भक्त हैं।

रावण गांव के अलावा आस-पास के गांव सेउ, नटेरन आदि में भी जब शादी-ब्याह या कोई शुभ कार्य होना होता है तो रावण गांव के बाहर लेटी रावण की प्रतिमा के चरणों में पहले नैवेद्य अर्पित कर उसकी पूजा की जाती है। दुल्हन के गृह प्रवेश के पूर्व, तथा दुल्हे की बारात जाने से पहले तो पूजा करना बहुत जरूरी समझा जाता है। पहले यहाँ शादी-ब्याह के मौकों पर ही पूजा-अर्चना की जाती थी पर अब दशहरे पर भी आराधना शुरू हो गयी है. 

कठोर लाल व सफ़ेद पत्थर से बनी रावण की यह प्रतिमा परमार काल .की मुर्ती कला का अद्भुत नमूना है। इसे रावण का विशाल रूप, दस सिर, बीस हाथ, हाथों में गदा, तलवार, त्रिशूल आदि और भव्य बनाते हैं। पुरातत्वविद  इस प्रतिमा की प्राचीनता का अभी आकलन नहीं कर पाये

ऐसी ही एक जगह कानपुर में भी है जहां रावण की पूजा होती है वहाँ भक्तों की इच्छा है की रावण के जीवन के उज्जवल पक्ष को भी दुनिया के सामने उजागर  होना चाहिए.  एक मजे की बात और भी है। दशहरे के दिन गांववासी रावण की प्रतिमा की पूजा अर्चना करते हैं, फिर शाम को कागज के रावण का दहन भी किया जाता है, जो अभी पिछले कुछ बरसों से शुरु हुआ है। हो सकता है कि कान्यकुब्ज ब्राह्मणों के अलावा और जाति के लोगों की बढ़ती आबादी के कारण ऐसा होने लग गया हो।

इसी तरह जोधपुर में भी रावण के एक मन्दिर का निर्माण हो रहा है जिसे अपने आप को रावण की पत्नी मन्दोदरी का वंशज मानने वाले, जोधपुर से कुछ दूर स्थित मंदोर  नामक जगह के लोग करवा रहे  हैं।  

      

बुधवार, 24 सितंबर 2008

आज रावण का श्राद्ध है

अपने आप को रावण का वंशज मानने वाले दवे गोधा श्रीमाली समाज के सैंकडों परिवार जो जोधपुर में रहते हैं, वे श्राद्ध पक्ष के दौरान लंकापति रावण का हेमकरण की नाडी पर, बुधवार को तर्पण और पिंडदान करेंगे। उनके मंदिरों में पूजा-अर्चना के बाद ब्राह्मणों को भोजन भी करवाया जाएगा। इनका मानना है कि रावण महान शिवभक्त, प्रकांड पंडित और विद्वान राजा था और पूरा समाज उस पर अटूट आस्था रखता है।

महादेव अमरनाथ मंदिर में पिछले साल स्थापित रावण की प्रतिमा की विशेष पूजा के बाद हेमकरण की नाडी पर तर्पण और चावल का पिंडदान किया जाएगा। फिर भोग लगा कर ग्यारह पंडितों को भोजन करवाया जाएगा।
विजयादशमी के दिन रावण दहन पर जहां हर कोई खुशी मनाता है वहीं जोधपुर में बसे उनके वंशज रावणदहन के तुरंत बाद सुतक स्नान कर शोक मनाते हैं। पिछले साल रावणदहन के समय पुतले के अंग भंग हो गये थे, जिसे अपशकुन मानते हुए दवे गोधा श्रीमाली समाज के लोगों ने पुतल वद्ध विधि से विशेष पूजा अर्चना की थी।
* कल चलेंगे एक ऐसी जगह, जहां हर शुभ कार्य के पहले रावण की पूजा होती है।

प्रभू भी धोखा खा गए

राजजी के युवक को मिले दादी माँ के आशीर्वाद से एक बात याद आ गयी -------
वैसी ही एक दादी मां मरने से बहुत डरती थीं। सो भगवान से सदा प्रार्थना करती रहती थीं। एक बार प्रभू ने तंग आकर उन्हें दर्शन दे ही दिए और बता दिया कि उनकी उम्र अभी चालीस साल और तीन महिने बाकी है। दादी मां खुश। अगले दिन से ही सुखमय जिंदगी की तैयारियां शुरु कर दीं। ब्युटी-पार्लर में जा बाल डाई करवाये, मसाज करवाई, फ़ेशिअल, पैडी और ना जाने क्या-क्या करवा कर जैसे ही बाहर निकलीं एक बस की चपेट में आ स्वर्ग सिधार गयीं। ऊपर जाते ही प्रभू का गला पकड़ लिया, कि तुमने तो मेरी उम्र अभी चालीस साल और बताई थी, तो यह क्या कर दिया। प्रभू भी हड़बड़ा गये, बोले "अरे माई तुम्हें तो मैं पहचान ही नहीं पाया।"

मंगलवार, 23 सितंबर 2008

तारे जमीं पर और आस्कर

कुछ दिन पहले फ़िल्म अभिनेता राजपाल यादव ने एक चुटकुला सुनाया था कि एक बाप अपने संघर्षरत बेटे को टी वी पर एनिमल किंगडम देखते देख पूछता है कि अब तो कुत्ते बिल्लीयां भी पर्दे पर आ गये तुम कब आओगे। पढ़ सुन कर हंसी आती है पर सच यह है कि माता-पिता कि अपनी संतानों से अपेक्षायें काफी बढ़ गयी हैं। जिसका नज़ारा हम आये दिन छोटे पर्दे पर बढ़ते रियाल्टी शोज़ के रूप में देखते हैं। भाग लेने वाले बच्चों से ज्यादा उनके माँ-बाप टेंश्नाए रहते हैं। अपनी जिंदगी के अधूरे सपनों को वह अपनी संतानों द्वारा पूरा होता देखना चाहते हैं उसके लिए चाहे कोई भी कीमत चुकानी पड़े।
तारे जमीं पर मैने भी देखी है, अच्छी भी लगी थी। उस समय भी एक प्रश्न मन में उठा था, आज यह समाचार पढ़ कर फिर उस सवाल ने सर उठाया कि फ़िल्म का नायक बच्चा यदि अच्छा चित्रकार ना होता तो पिक्चर का अंत क्या होता। आज हजारों ऐसे बच्चे हैं जिन्हें डिस्लेक्सिया नाम की बिमारी नहीं है, पर वह सब ना पढ़ने में अच्छे हैं नाही किसी कला में, यहां तक कि उनकी किसी चीज विशेष में रुचि तक नहीं है। पर उनके माता-पिता, पालक, परिवार तारे---, या रियाल्टी शोज़ देख कर सफलता के दिवाने हो कर अपने बच्चों से अपेक्षा करने लग जायें कि पढ़ाई ना सही खेल में, खेल ना सही नाच में, गाने में कहीं तो कुछ करो। आमीर ने बहुत अच्छी फ़िल्म बनाई पर उनकी यह बात गले नहीं उतरती कि हर बच्चे में कुछ विलक्षण प्रतिभा छुपी होती है। उल्टे वह महत्वाकाक्षीं मां-बाप की सुप्त कामनाओं को हवा दे देते हैं। उन्होंने तो जिद पकड़ कर अपने नायक को हीरो बना दिया पर आम जिंदगी में ऐसा होना क्या संभव है।
आस्कर पाने वाली फ़िल्में जिंदगी के काफी करीब होती रही हैं। इसलिए तारे----, क्युंकि हमारी फ़िल्म है, सिर्फ़ इसलिए उससे ज्यादा अपेक्षा करना ठीक नहीं होगा।
मेरे अनुसार अब तक आस्कर के लिए भेजी गयीं फ़िल्मों में सर्वश्रेष्ठ फ़िल्म "मदर इंडिया" थी। पर उस समय जूरी को यह समझाना मुश्किल हो गया था कि एक माँ अपने भूख से बिलखते बच्चों को बचाने के लिए साहूकार का प्रस्ताव क्यों नहीं मान लेती है।

टेंशन है, ना भाई ना

ट्रेन कभी धीमी हो कभी तेज, फिर कभी इतनी धीमी हो जाए कि लगे रुकने वाली है। फिर पता नहीं क्या हुअ कि पूरी गाडी डगमगाने लगी, यात्री एक दूसरे पर गिरने लगे, सारा सामान ऊपर नीचे हो गया, लगा जोर का भूंकंप आ गया हो। फिर अचानक ट्रेन खडी हो गयी। लोगों ने देखा गाडी पटरी से उतर खेतनुमा जगह में खडी है। गुस्से से भरे लोगों ने उतर कर ड़्राईवर को घेर लिया और इस दुर्घटना का कारण पूछने लगे। ड़्राईवर बोला, अरे साहब पता नहीं कहां से एक पागल पटरियों पर आ गया था, कभी चलने लगता, कभी दौड़ने, कभी नाचने। परेशान कर रख दिया। भीड चिल्लाई, तो गाडी चढ़ा देनी थी उसके ऊपर।
ड्राईवर बोला 'वही तो कर रहा था'
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श्रीमतीजी अपने बच्चों को पुराना फ़ोटो-एलबम दिखा रहीं थी। एक फोटो को देख बच्चे ने पूछा, मम्मी, ये बालों वाले अंकल कौन हैं। श्रीमतीजी बोलीं, बेटा ये तुम्हारे पापा हैं। पापा! तो हमारे साथ जो गंजा रहता है, वो कौन है। बेटे ने पूछा।

सोमवार, 22 सितंबर 2008

हिचकी, कारण और निवारण

दूध पीते बच्चे को परेशान करती हिचकी, बड़ों को अचानक शुरु हो तंग करती हिचकी, शराबियों की पहचान बनी हिचकी और कभी-कभी जिंदगी की अंतिम हरकत हिचकी। देखने सुनने में शरीर की एक सामान्य सी हलचल, परन्तु ज्यादा देर तक टिक जाये तो मुसीबत।
सांस अंदर लेने से उतकों की कठोर परतों से बना, वक्षस्थल के निचले हिस्से में स्थित, 'डायाफ़्राम' पेट की ओर संकुचित हो फेफडों में हवा भरने देता है। इससे भोजन को श्वास नली में जाने से रोकने वाला 'एपिग्लाटिस' और वाक तंतुओं का प्रवेशद्वार 'ग्लाटिस' दोनो खुल जाते हैं। इस क्रिया में व्यवधान आने पर हिचकी शुरु हो जाती है। इसके आने पर 'डायाफ्राम' में ऐंठन शुरु हो जाती है जिससे हवा तेजी से ग्लाटिस और एपिग्लाटिस पर पडती है, जिससे दोनों झटके से बंद होते हैं और वही आवाज हिचकी के रूप में सुनाई पड़ती है। जब तक व्यवधान दूर नहीं हो जाता यह क्रिया चलती रहती है।
कुछ क्षण सांस रोकने, चीनी चूसने, ठंडा पानी पीने या गिलास के बाहर वाले किनारे से पानी पीने या एक लिफ़ाफ़े को मुंह से फुलाकर उसमें सांस लेने से राहत मिलती है। कागज़ के थैले में नाक द्वारा सांस लेने से कार्बन डाई आक्साईड के मस्तिष्क में पहुंचने से तंत्रिकाओं की क्रियाशीलता में कमी आने के कारण हिचकी रुक जाती है। यदि मस्तिष्क को भ्रमित या अचंभित कर दिया जाए तो भी फ़र्क पडता है। शायद इसीलिए हमारे देश में हिचकी आने पर कहा जाता है कि कोई याद कर रहा है, इस तरह दिमाग का ध्यान बटाने से फ़र्क पड जाता है।
एलोपैथी में उपचार तब ही किया जाता है, जब हिचकी ना रुकने से मनुष्य तनाव में आ जाता है। इन परिस्थितियों में क्लोरप्रोमेज़िन या एमाइल नाइट्रेट जैसी दवाएं प्रयोग में लाई जाती हैं। इनसे फायदा ना होने पर आप्रेशन द्वारा फ्रेनिक तंत्रिका के डायाफ्राम तक जाने वाले भाग को निकाल दिया जाता है। पर इससे सांस लेने की क्षमता कम हो जाती है।

रविवार, 21 सितंबर 2008

द्वादस ज्योतिर्लिंग, एक यात्रा

पुराणों के अनुसार शिवजी जहां-जहां खुद प्रगट हुए उन बारह स्थानों पर स्थित शिवलिंगों को ज्योतिर्लिंगों के रूप में पूजा जाता है।  
     
सौराष्ट्रे सोमनाथ च श्री शैले मल्लिकार्जुनम, उज्जयिन्या महाकाल, मोंधारे परमेश्वरम, केदार हिमवत्पृष्ठे, डाकिन्या भीमशंकरम वारासास्था च विश्वेश, त्र्यम्बक गौतमी तीरे, वैद्यनाथ चिता भूमौनागेश द्वारका वने। सेतुबन्धे च रामेशं घुश्मेशं च शिवाल्ये। द्वादशेतानिनामानि प्रातरुत्थायय: पठेत, सर्व पापैर्विनिर्मुक्त: सर्व सिद्धि फल लभत्।
1, सौराष्ट्र में सोमनाथ :- काठियावाड के प्रभाष क्षेत्र में विराजमान हैं। दक्ष के श्राप से चंद्रमा को क्षय रोग से मुक्त करने के लिए यहां प्रगट हुए थे।
2, श्री शैल :- नारदजी के भ्रमित करने से नाराज, अपने पुत्र कार्तिकेय को, मनाने के लिए, दक्षिण भारत में मल्लिकार्जुन के रूप में प्रगट हुए थे।
3, महाकालेश्वर :- दूषण नामक दैत्य द्वारा अवन्तीनगर (उज्जैन) पर आक्रमण करने पर काल रूप में भगवान शिव ने सारे दैत्यों का नाश कर जहां से उजागर हुए थे उसी गड्ढे में अपना स्थान बना लिया।
4, ओंकारेश्वर :- मध्य प्रदेश के मांन्धाता पर्वत पर नर्मदा नदी के उद्गम स्थल पर पर्वतराज विंध्य की कठोर तपस्या से खुश हो, वरदान देने हेतु, यहां प्रगट हुए थे।
5, केदारेश्वर :- हिमालय के केदार नामक स्थान पर विराजमान हैं। यह स्थान हरिद्वार से 150मील दूर है। विष्णुजी के अवतार नर-नारायण की प्रार्थना पर यहां स्थान ग्रहण किया था।
6, भीमशंकर :- यह स्थान मुंबाई से 60मील दूर है। यहां कुंभकर्ण के पुत्र भीम का वध करने के लिये अवतरित हुए थे।
7, विश्वेश्वर :- विश्वेश्वर महादेव काशी में विराजमान हैं। प्रभू ने माँ पार्वती को बताया कि मनुष्यों के कल्याण के लिये उन्होंने इस जगह पर निवास किया है।
8, त्र्यम्बकेश्वर :- महाराष्ट्र में नासिक रोड स्टेशन से 25किमी की दूरी पर स्थित हैं। गौतम ऋषी और उनकी पत्नी अहिल्या की तपस्या से प्रसन्न हो कर यहां विराजमान हुए थे।
9, वैद्यनाथेश्वर :- बिहार में वैद्यनाथधाम में विराजमान हैं। रावण को लंका ले जाकर स्थापित करने के लिए शिवजी ने एक शिवलिंग दिया था, जिससे वह अजेय हो जाता। पर विष्णुजी ने उसको अजेय ना होने देने के कारण शिवलिंग को यहां स्थापित करवा लिया था।
10, नागेश्वर :- द्वारका के समीप दारुकावन मेँ स्थित हैं। यहां शिवजी तथा पार्वतीजी की पूजा नागेश्वर और नागेश्वारी के रूप में होती है।
11, रामेश्वर :- दक्षिण भारत के समुंद्र तट पर पाम्बन स्थान के निकट स्थित है। लंकाविजय के समय भगवान राम ने इनकी स्थापना की थी।
12, घुश्मेश्वर :- महाराष्ट्र के मनमाड से 100किमी दूर दौलताबाद स्टेशन से 20किमी की दूरी पर वेरुल गांव में स्थित हैं। घुश्मा नाम की अपनी भक्त की पूजा से प्रसन्न हो कर यहां प्रगट हुए और घुश्मेश्वर कहलाये।
* पूरी कथाएं फिर कभी।

अति तो आक्सीजन की भी खतरनाक है

आक्सीजन मिलना यानि नयी जिंदगी मिलना। यह एक मुहावरा ही बन गया है। परंतु वैज्ञानिकों के अनुसार वही आक्सीजन जिसके बिना जिंदा नहीं रहा जा सकता, प्राणियों के लिए खतरनाक भी हो सकती है। सौ साल के भी पहले वैज्ञानिक पाल बर्ट ने यह चेतावनी दी थी कि शुद्ध आक्सीजन में सांस लेना जानलेवा हो सकता है। ज्यादा खोज करने पर वैज्ञानिकों ने पाया कि हम ज्यादा से ज्यादा 24 घंटे तक शुद्ध आक्सीजन सहन कर सकते हैं, उसके बाद निमोनिया हो जाता है। यह भी पाया गया है कि मनुष्य सिर्फ़ दो घंटों तक ही दो-तीन वायुमंडलीय दवाब सहन कर सकता है, इसके बाद आक्सीजन की अधिकता से उसका मानसिक संतुलन बिगडने लगता है, उसकी यादाश्त लुप्त हो जाती है। अगर यह दवाब और बढ़ जाए तो दौरे पड़ने शुरु हो जाते हैं। अंत में मृत्यु हो जाती है।
शुद्ध आक्सीजन ऐसे प्राणियों के लिए भी हानिकारक होती है जो प्राकृतिक तौर पर कम आक्सीजन वाली दशाओं में रहते हैं। इस बात का उपयोग हमारी आंतों में रहनेवाले बहुत से खतरनाक कृमियों को खत्म करने में किया जाता है।
क्या तमाशा है भाई, हो तो मुसीबत और नहो तब तो है ही। सब प्रभू की माया है।

शनिवार, 20 सितंबर 2008

टेंशन मुक्त होने के लिए

दो चलाकू टाईप के आदमी दिल्ली से, रात में कहीं जाने के लिए ट्रेन के डिब्बे में चढ़े, तो पाया कि कहीं बैठने तक की जगह नहीं है। तभी उनमें से एक चिल्लाने लगा, सांप-साप, भागो-भागो। इतना सुनना था कि सारे यात्री सर पर पैर रख भग लिए। दोंनो ने एक दूसरे को मुस्करा कर देखा और ऊपर की बर्थ पर चादर बिछा कर सो गये। सबेरे नींद खुलने पर उन्होने पाया कि गाड़ी कहीं खड़ी है, उन्होनें बाहर झाड़ु देते आदमी से पूछा कि भाई कौन सा स्टेशन है? उसने जवाब दिया, दिल्ली। अरे दिल्ली तो कल रात में थी, इन्होंने पूछा। तो जवाब मिला, साहब, कल रात इस डिब्बे में सांप निकल आया था तो इस डिब्बे को काट कर अलग कर बाकी गाडी चली गयी थी।
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संताजी का स्टेशन रात दो बजे आता था, सो वे अटैंडेंट को रात में उठाने को कह सो गये। पर जब आंख खुली तो सबेरा हो चुका था। इनका पारा गरम, जा कर अटैंडेंट का गला पकड लिया और दुनिया भर की सुना उस की ऐसी की तैसी कर दी। अटैंडेंट को चुप देख संताजी दहाडे कि बोलता क्यूं नहीं कि मुझे क्यों नहीं जगाया? अटैंडेंट बोला क्या बोलुं सर, आप तो फिर भी ट्रेन में हैं, मैं तो उस बेचारे का सोच कर परेशान हूं, जिसको मैने जबरदस्ती रात को सुनसान स्टेशन पर उतार दिया है।

शुक्रवार, 19 सितंबर 2008

हैप्पी बर्थडे स्माइली :-)

चलिए आज एक अनोखे जन्मदिन पर चलते हैं। आज प्रोफेसर स्काट ई फ़ालमैन के मानस पुत्र :-) स्माइली (-: की 26वीं सालगिरह है। उनकी गुजारिश है कि आप सब जरूर आएं। वैसे भी ना-नुकुर का सवाल ही नहीं उठता है।
आज से करीब 26 साल पहले कारनेगी मेलन यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर स्काट ई फालमेन ने अपनी भावनाओं को इंटरनेट के जरिए संदेश भेजते समय प्रदर्शित करने का एक रोचक तरीका इजाद किया। उन्होंने की बोर्ड़ के तीन चिन्हों की मदद से स्माइली को जन्म दिया। ये चिन्ह थे - कोलन " : ", हायफ़न " - ", और पैरेंथीसिस" ) "।
प्रो फ़ालमैन ने एक बहस में हिस्सा लेते समय पहली बार 19 सितम्बर को इस टिप्पणी के साथ स्माइली को पोस्ट किया "मैं चेहरे पर हल्की सी मुस्कान लाने के लिए यह चिन्ह :-) प्रस्तावित करता हूं।" उनके इस प्रस्ताव को बहस में मौजूद सभी विशेषज्ञों ने हर्ष ध्वनी के साथ सहारा और स्वीकार किया। उस बहस का विषय था "इंटरनेट पर मैसेज भेजते समय अपनी भावनाओं को किस तरह प्रदर्शित किया जाए।
भाषा विशेषज्ञों का मानना है कि स्माइली और उस जैसे दूसरे चिन्हों की मदद से ई-मेल करने वालों को अपनी भावनाएं व्यक्त करने का आसान रास्ता मिल गया है। आज इंटरनेट का उपयोग करने वालों को इन चिन्हों का प्रयोग बेहद सुविधाजनक साबित हो रहा है।
जाहिर है अपने मानस पुत्र की इतनी सफलता देख प्रो फ़ालमैन फूले नहीं समाते हैं।

बुधवार, 17 सितंबर 2008

हल्का-फुल्का

जब आदमी की तबियत ठीक नहीं होती तो उसे खाने में परहेज़ करने को कहा जाता है। आज टिप्पणियों के चक्कर में परेशान दिमागों के लिए हल्का-फुल्का ही ठीक रहेगा शायद---------------------

गांधीजी के तीन बंदरों को तो सब जानते हैं। आज उनके नाम भी जान लिजिए। इन जापानी गुरुओं के नाम हैं - 1:- मिजारु {बुरा मत देखो}2:- मिकाजारु {बुरा मत सुनो}3:- माजारु {बुरा मत कहो}

बीस करोड़ में कोइ एक इंसान 115 साल या ज्यादा की उम्र पाता है।

स्वचालित कांच साफ करने वाले कार वाइपर का उपयोग सबसे पहले 1916 में किया गया था।

ज़ेबरा क्रासिंग का उपयोग सर्वप्रथम 1911 में अमेरिका में किया गया था।

दुनिया में सबसे पहले इजिप्ट में ताले का आविष्कार किया गया। यह एक लकड़ी का बोल्ट था जो एक खांचे में फ़िट होता था। चाबी के लिए लम्बे राड़ में एक खूंटी {पेग} लगी रहती थी, जिससे घुमा कर बोल्ट को खोला जाता था. 

हर मिनट करीब 6000 बार आकाशीय बिजली हमारी धरती से टकराती है।

आयरलैंड के सर ह्यु बीपर ने अपने दोस्तों, नोटिस एवं रसमैक हिवरटर के साथ मिल कर 1955 में "गिनिज़ बुक" का प्रकाशन शुरु किया था। 1974 में खुद इस पुस्तक का नाम भी गिनिज़ बुक में, अपनी दो करोड़ 39 लाख प्रतियों की बिक्री के कारण आ गया था। आज यह करीब 26 भाषाओं में प्रकाशित होती है।

एस्प्रीन का आविष्कार 1888 में जर्मनी में हुआ था।

150 टन की व्हेल का दिल एक मिनट में 7 बार, 3 टन के हाथी का एक मिनट में 46 बार, ड़ेढ़ किलो की बिल्ली का 240 बार तथा 8 ग्राम के शुद्र कोलटिट का 1200 बार धड़कता है।

मिठास, बँगला भाषा की

स्मार्ट इंडियन के अनुरागजी के ब्लाग में बांग्ला भाषा की मिठास को चखते ही कुछ याद आ गया, लिखने तो कुछ और जा रहा था, पर इसे पहले बांटने की इच्छा हो आयी ----
एक बार हरियाणा में दो बंगाली झगडा करते पकडे गये। कांस्टेबल राम सिंह उन्हें पकड़ कर थाने ले गया। थानेदार शेर सिंह ने पूछा, हाँ भाई क्या नाम है तुम्हारा? जी, अजय मुखर्जी और विनय चटर्जी। थानेदार ने अपना डंडा जोर से मेज पर मारा और बोला, साले दिन दहाडे गुंड़ा गर्दी करते हो और नाम के साथ जी लगाते हो। राम सिंह बंद कर दो चटर मखर को।
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एक पार्क में दो जने बैठे हुए थे। कुछ देर बाद एक उठ कर चला गया। कुछ देर बाद दूसरे सज्जन भी चलने को हुए तो उनका ध्यान अपनी जेब पर गया, जो कट चुकी थी। उन्हें अपने साथ बैठे व्यक्ति पर शक हुआ, पर वह कहीं दिखाई नहीं पड़ा, तो उन्होंने बाग के माली से पूछा कि भाई, तुमने यहां बैठे आदमी को देखा है? माली बोला नहीं तो, पर क्या हुआ? सज्जन ने जवाब दिया, अरे भाई वह भद्र पुरुष मेरी पोकेट मार कर चला गया है। {ओ भद्रलोक आमार पोकेट मेरे चोले गैछे}
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यह तो हुई चुटकुलों की बातें अब एक सच्ची बात बतलाता हूं ------- बांग्ला भाषा में उच्चारण थोड़ा बदल जाता है जैसे, गगन - गोगोन हो जाता है, जल - ज़ोल, कदम - कोदोम, विनय - विनोय, लक्ष्मी का उच्चारण लोक्खी के रूप में होता है, इत्यादि-इत्यादि।
कलकत्ते में सियाल्दा स्टेशन के पास एक मशहूर सुनार लक्ष्मी बाबु की दुकान है। दुकान के दरवाजे के एक तरफ बंग्ला में तथा दूसरी तरफ हिन्दी में ब्योरा लिखा हुआ है। यह मजाक नहीं सच बात है।
बंग्ला में लिखा गया है - लोक्खी बाबुर सोना-चांदिर दोकान। यानि लक्ष्मी बाबु की सोने-चांदी की दुकान।
हिंदी में उसका अनुवाद किया गया है - लोक्खी बाबु का सोना-चांदी का दोकान। {एक कान सोने का एक चांदी का?}

बहुत से लोग जानते होंगे

एक ऐसा झंडा, जिसे एक बार लगने पर वर्षों ना चढ़ाया गया और ना उतारा गया, ना उसे आधा फ़हराया गया और नाही कभी सलामी दी गयी, यह था चाँद पर लगा अमेरिका का झंडा। जहां 12 अंतरिक्ष यात्रियों ने 170घंटे, करीब 100कीमी घूमते हुए बिताए। वे वहां से 400केजी मिट्टी तथा करीब 30000 फोटोग्राफ ले कर आए। 11 दिसम्बर 1972 का अपोलो 17 का अभियान, चंद्रमा पर अंतिम मानव अभियान था। जिसमे हैरिसन एच श्मिट ने चंन्द्रतल पर करीब 34किमी तक चंन्द्र बग्घी चला कर अपनी खोज पूरी की थी। वे वहां एक संदेश भी छोड कर आये थे जिसमें कहा गया था कि "दिसम्बर 1972 में धरतीवासियों द्वारा चंद्र अभियान पूरा किया गया और हमारा शांति संदेश चारों ओर फैले।"
चाँद पर कहे गये पहले शब्द तो पूरी दुनिया में मशहूर हैं पर वहां कहे गये अंतिम शब्द थे, कमांडर इयुगेन सरमन के - "अमेरिका का यह अभियान मानव जाति का भविष्य निर्धारित करेगा"।

मंगलवार, 16 सितंबर 2008

दिल, इसे कमजोर ना समझें

हमारे शरीर की सबसे मजबूत मांसपेशीयां दिल की होती हैं। माँ के पेट में 18वें दिन से जो यह काम करना शुरु करता है तो जीवन भर धडकता रहता है। सौ साल की उम्र पाए इंसान में यह करीब पांच अरब बार धडक चुका होता है। यह एक मिनट में 72 बार धडकता है और एक साल में करीब तीन करोड़ सत्तर लाख बार और साठ साल की औसत आयु में करीब 220 करोड़ बार धडक चुका होता है। अब तक यह 1800 टन खून 62000 मील लंबी रक्तनलिकायों में ढ़केलता है, जिन्हें अगर जोडा जाए तो सारी दुनिया का ढ़ाई बार चक्कर लग जाए। हमारे आराम करते समय भी यह प्रति मिनट 6 लीटर खून पंप करता है यानी 6 से 10 टन रोज। पूरे जीवन काल में यह ड़ेढ़ से अढ़ाई लाख टन खून पंप कर चुका होता है। ऐसा नहीं है कि यह आराम नहीं करता। दिल की धड़कन '49सेकंड तक रहती है फिर '31 सेकंड का आराम देकर दूसरी धड़कन पैदा होती है। यह "औरिकल्स" के संकुचन से आरम्भ होती है, जबकी इस बीच "वैंट्रिकल्स" आराम करते हैं। "औरिकल्स" को संकुचन में '11 से '14सेकंड का समय लगता है फिर वे '66सेकंड तक आराम करते हैं। यानि 24 घंटे में साढ़े तीन से चार घंटे काम और 20 घंटे आराम। वहीं "वैंटिकल्स" को संकुचन में '27 से '35सेकंड लगते हैं जिसके बाद वह '45 से '53 सेकंड तक आराम करते हैं। यानि 24 घंटे में साढ़े आठ से दस घंटे काम और साढ़े तेरह से 15 घंटे आराम।

बच्चे के जन्म के समय दिल एक मिनट में 140 बार धडकता है। उम्र के साथ-साथ यह गति कम होती चली जाती है जो व्यस्क होते-होते एक मिनट में 72 बार रह जाती है। हां श्रम करते समय यह अढ़ाई गुना बढ़ सकती है। हमारे शरीर में दिल खून का एक दौरा 23 सेकंड में पूरा करवा देता है। यानि एक दिन में करीब 3700 चक्कर लगवा देता है।

है ना आश्चर्यजनक प्रभू की देन ? यदि हम इसके साथ छेडखानी ना करें तो यह हमारा साथ सौ साल से भी ज्यादा दिनों तक देती रह सकती है। क्या कोई मानव निर्मित मशीन इसकी बराबरी कर सकती है ?

सोमवार, 15 सितंबर 2008

दस साल बाद की दुनिया

वर्तमान समय बदलाव का समय है, हर पांच दस सालों में नयी-नयी इजादें सामने आती चली जा रही हैं। आने वाले दस सालों में भी हमारी दुनिया की तस्वीर में कुछ नये बदलाव आने वाले हैं। जिनमें प्रमुख हैं --

1:- विज्ञापन आकाश में छा जाएंगे। जी हां आकाश में लेज़र के जरिए विज्ञापन दिखाने की तकनीक पर बाकायदा काम चल रहा है।
2:- कैंसर और एड्स का निदान संभव हो जाएगा।
3:- विमानों का रूप उडनतश्तरी की तरह हो जाएगा। इसके उपर भारतीय मूल के सुब्रत राय शोध कर रहे हैं। उन्होंने इस विमान को "वीव" नाम दिया है।
4:- आने वाले समय में कारें हाइड्रोजन गैस से चलेंगी। हाइड्रोजन इंजन काम करेंगे प्रोटोन एक्सचेंज में बने फ़्यूल सेल से। जमाना होगा छोटी कारों का। नयी तकनीक जीवन को सुविधाजनक और सुरक्षित बना देगी।
5:- जोखिम के काम रोबोट करने लग जाएंगे। खान, निर्माण, बिजली, नाभिकीय संयंत्रों, हथियारों के परीक्षण, सेना, ट्रैफ़िक पुलिस जैसे स्थानों में रोबोट्स छा जाएंगे। अफसोस की बात यह हो जाएगी कि इन पर किसी नेता या उनके चमचों की धौंस नहीं चलेगी। आपको यह जान कर हैरानी के साथ-साथ खुशी भी होगी कि बहुत सी भारतीय कंपनियां घरेलू रोबोट के विकास में जुटी हुई हैं।
6:- प्रदूषण रहित सौर ऊर्जा का इस्तेमाल होने लगेगा।
7:- बुढ़ापे को रोकना तो नहीं पर जवानी को देर तक कायम रखना संभव हो जाएगा। शरीर पर बढ़ती उम्र के असर को काफी हद तक कम करने में सफ़लता मिल जाएगी।
8:- हो सकता है कि किसी अंजान सभ्यता के रेडिओ संदेश पाने में हम सफ़ल रहें। यूरोपियन अंतरिक्ष एजेंसी ने तीन ऐसे सौरमंडल खोज निकाले हैं, जिनमें दर्जनों विशाल ग्रह मौजूद हैं। इनमें से 45 प्रकाश वर्ष दूर तो एक सितारा ऐसा है, जिसकी पृथ्वी जैसे तीन ग्रह परिक्रमा कर रहे हैं। पृथ्वी जैसा एक ग्रह तो महज 15 प्रकाश वर्ष दूर मिला है।
9:- कंप्युटर और भी शक्तीशाली हो जाएंगे। ऊर्जा की खपत काफी घट जाएगी। यह संभव हो पाएगा गैलियम नाईट्राइड से जो सिलिकन चिप का स्थान ले लेगा।

पर अच्छाइयों के साथ-साथ हमें कुछ बुराईयों का भी सामना करना पडेगा जैसे, पानी की कमी का सामना करना पड सकता है। आक्सीजन खरीदनी पड सकती है। कुछ नयी बिमारियां सामने आ सकती हैं। संतानोत्पति की क्षमता घटने का डर है। सार्स और बर्ड फ्लू के अलावा चेचक,प्लेग, मलेरिया, और हैजा जैसी पुरानी बिमारियां नये रूप में धावा बोल सकती हैं। रोबोट के आने से घरेलू नौकरों की वजह से होने वाले अपराध तो कम हो जायेंगे पर किसी और जोखिम के बारे में तो अभी सिर्फ़ अंदाजा ही लगाया जा सकता है। फिर भी हमें यही आशा रखनी है कि इंसान सारी मुसीबतों से पार पाने का रास्ता निकाल ही लेगा।

तथ्य व कर्म जो खबर नहीं बनना चाहते

गांव - अंजनी, जिला - मैनपुरी, राज्य - उत्तर प्रदेश।
हनुमानजी की माता अंजनी के नाम पर बसे इस गांव में दूध बेचना पाप समझा जाता है। आज जबकी देश में पानी भी खरीद कर पीना पडता है, इस दो हजार भैंसों वाले गांव में यदि कोई चोरी-छिपे दूध बेचता पाया जाता है तो उसे सार्वजनिक रूप से माफी मांगनी पडती है नहीं तो गांव छोड कर जाना पडता है। हजारों लीटर दूध का उत्पादन करने वाला यह गांव सार्वजनिक उत्सवों या कार्यक्रमों में मुफ़्त दूध दे उस जमाने की याद ताजा करता रहता है, जब कहा जाता था कि इस देश में दूध की नदियां बहा करती थीं। यहां की आबादी मेँ 99 प्रतिशत यदुवंशियों का है जो दूध बेचने को बेटा बेचने जैसा जघन्य काम मानते हैं। यह गांव आर्थिक रूप से काफी संपन्न है।
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नाम - जब्बार हुसैन , उम्र - 66 साल, निवास - फ़तहपुर बिंदकी।
लगन हो तो हुसैन साहब की तरह। 42 बार हाईस्कूल की परीक्षा में फ़ेल हो जाने के बावजूद इन्होंने हिम्मत नहीं हारी है और एक बार फिर ये पूरे जोशोखरोश के साथ परीक्षा की तैयारियों में जुटे हुए हैं। उनकी जिद है कि वह हाईस्कूल की परीक्षा जरूर पास करेंगे वह भी बिना गलत तरीकों को अपनाये। इस जनून के चलते उनकी बीवी ने उनसे तलाक ले लिया है पर हुसैन साहब अपनी धुन पर कायम हैं। इसके चलते उन्होंने जूतों की दुकान की, ट्युशन लगाई, कडी मेहनत की। उनके हौसले बुलंद हैं, वह एक-न-एक दिन अपनी मंजिल जरूर पा लेंगे। आमीन ।
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सही समय पर इलाज ना हो पाने के कारण कमला अमरनानी के पति तथा पुत्र की असमय मौत हो गयी थी। उस भीषण दुख से उबरते हुए उन्होंने ऐसे लोगों की मदद करने का संकल्प लिया जो किसी भी कारणवश अपनों की जिंदगी बचा पाने में असमर्थ होते हैं। उल्हास नगर में गरीबों के बीच माता के नाम से लोकप्रिय कमलाजी से शहर के रिश्वतखोर डाक्टर भी घबड़ाते हैं। यदी उन्हें किसी भी डाक्टर के रिश्वत लेने या अपने काम के प्रति लापरवाह होने का पता चलता है तो फिर उस डाक्टर की खैर नहीं रहती। 44 साल पहले उन्होंने डाक्टरों की हड़ताल के कारण अपने पति और पुत्र को खोया था और अब वे नहीं चाहती कि उनकी तरह किसी और को उस विभीषीका का सामना करना पड़े। आज 96 साल की उम्र में भी वे पूरी तरह सक्रिय हैं।
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अमेरिकी सेना में तैनात सार्जेंन्ट जानी कैंपेंन इराक गया तो था लोगों की मौत का पैगाम लेकर, पर इंसान के मन को कौन जान सका है। अपने इराक अभियान के दौरान जानी की मुलाकात वहां के राहत कैंप में एक आंख की बिमारी से ग्रस्त बच्ची, जाहिरा, से हुई, जिसका इलाज हो सकता था। जानी ने अपने गृह नगर में अपने दोस्तों और नगरवासियों से अपील कर एक बडी राशी एकत्र कर उसे अस्पताल में भर्ती करवाया। आप्रेशन सफ़ल रहा। आज जाहिरा दुनिया देख सकती है। उसकी दादी कहती है कि युद्ध चाहे तबाही लाया हो, पर मेरी पोती के लिये उसी फौज का सिपाही भगवान बन कर आया।
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बैंकाक में तीन पहिया स्कूटर को "टुक-टुक" कहते हैं। इसी पर सवार हो कर जो हवस्टर और एन्टोनियो बोलिंगब्रोक केंट ने बैंकाक से ब्रिटेन तक 12 हजार मील की यात्रा सिर्फ़ इस लिए की जिससे मानसिक तौर पर विकलांगों की सहायता की जा सके। इसमे वे सफ़ल भी रहीं और उन्होंने 50 हजार पौंड जुटा अपना मिशन पूरा किया।

शनिवार, 6 सितंबर 2008

टेंशन से शर्तिया राहत पायें, इन्हें आजमायें

शिक्षक दिवस पर दिल्ली में बच्चों को हवाई यात्रा का आंनद दिलाने के लिए सरकार ने हेलिकाप्टर मुहैया करवाया। एक बार में दो बच्चे और एक शिक्षक को घूमाने का इंतजाम था। अभी कुछ ही ट्रिप लगी थीं कि एक स्थानीय नेताजी भी पहुंच गये और उन्होंने भी घूमने की इच्छा जाहिर की। मजबूरीवश एक बच्चे को हटा उनका इंतजाम किया गया। पर इस बार हेलिकाप्टर के उडते ही उसमे खराबी आ गयी। पायलट ने बताया कि सिर्फ़ तीन ही पैराशूट हैं, चूंकी सरकार को मेरी बहुत जरूरत है सो मैं एक ले कर कूदता हूं और वह कूद गया। इधर नेताजी बोले कि देश को मेरी बहुत जरूरत है सो एक मुझे चाहिए यह कह कर उन्होंने आव देखा ना ताव वे भी यह जा वह जा। ऐसी मुसीबत में भी शिक्षक ने अपनी मर्यादा कायम रक्खी और बच्चे से कहा, बेटा, मैंने तो अपनी जिंदगी जी ली। तुम देश का भविष्य हो तुम बाकी बचा पैराशूट ले कर कूद जाओ। बच्चे ने जवाब दिया नहीं सर हम दोनों ही कूदेंगें। शिक्षक बोले कैसे। तो छात्र ने बताया कि नेताजी मेरा स्कूल बैग ले कर कूद गये हैं।
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बाढ़ग्रस्त इलाके में तैनात कर्मचारियों से वायूसेना ने पूछा कि लोगों को निकालने के लिये कितनी ट्रिप लगेंगी। जवाब दिया गया कि तीस-एक ट्रिप में गांव खाली हो जायेगा। बचाव अभियान शुरु हो गया। एक-दो-तीन-पांच-दस-बीस, पचास फेरे लगने के बाद भी लोग नज़र आते रहे, तो सेना ने पुछा कि आपने तीस फेरों की बात कही थी यहां तो पचास फेरों के बाद भी लोग बचे हुए हैं ऐसा कैसे।नीचे से आवाज आयी कि सर, गांव वाले पहली बार हेलिकप्टर में बैठे हैं तो जैसे ही उन्हें बचाव क्षेत्र में छोड़ कर आते हैं, वे फिर तैर कर वापस यहीं पहुंच जाते हैं।
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नमस्ते सर, मैं आपका पियानो ठीक करने आया हूं। पर मैने तो आप को नहीं बुलवाया। नहीं सर, आपके पडोसियों ने मुझे बुलवाया है।
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अरे भाई, ये सेव कैसे दिये। सर साठ रुपये किलो। पर वह तुम्हारा सामने वाला तो पचास में दे रहा है। तो सर उसीसे ले लिजीए। ले तो लेता पर उसके पास खत्म हो गये हैं। सर जब मेरे पास खत्म हो जाते हैं तो मैं भी पचास में देता हूं ।
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बेटे की नौकरी चेन्नाई मे लग गयी। अच्छी पगार थी, सो उसने पांच हजार की एक साडी माँ के लिये ले ली। पर वह माँ का स्वभाव जानता था, सो उसने साडी के साथ एक पत्र भी भेज दिया कि पहली पगार से यह साडी भेज रहा हूं, दिखने में मंहगी है पर सिर्फ़ दो हजार की है, कैसी लगी बतलाना। अगले हफ़्ते ही माँ का फोन आ गया, बेटा खुश रहो। साडी बहुत ही अच्छी थी। मैने उसे तीन हजार में बेच दिया है, तुरंत वैसी दस साडियां और भिजवा दे, अच्छी मांग है।
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बसंती बीरू के साथ शहर चली गयी तो मासी और धन्नो के लिए रामपुर में तांगा चलाने का जिम्मा संता ने ले लिया था। बरसात के दिन थे, संता ठाकुर की पेंशन लाने वाले को ले रामपुर जा रहा था कि अचानक तांगे का चक्का कीचड़ में फंस गया। संता ने काफ़ी कोशिश की पर सफ़ल ना हो सका। अंत में वह नीचे उतरा और धन्नो के पास जा बोलने लगा कि चल मेरे शेरू, शाब्बाश मेरे हीरे, जोर लगा मेरे कालू, चल मेरी धन्नो। उसके इतना कहते ही धन्नो ने जोर लगाया और तांगे का चक्का बाहर आ गया। यह देख सुन यात्री ने पूछा कि तुमने चार-चार घोड़ों के नाम क्युं लिए जब कि यहां सिर्फ़ धन्नो ही है तो संता बोला, जनाब इसे अब दिखाई नहीं पड़ता है। इसे यदि पता चल जाए कि ये अकेली तांगा खींच रही है तो एक कदम भी आगे नहीं बढ़ती है सो--------
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एक बार धन्नो बिमार पड़ गयी तो संता वैद्यजी के पास उसकी दवाई लेने गया। वैद्यजी ने उसे एक पुडिया दी और कहा कि इसे एक नली में रख देना और नली का एक सिरा धन्नो के मुंह मे रख जोर से फूंक मार देना, दवा अंदर चली जायेगी। दूसरे दिन संता फिर वैद्यजी के पास आया, उसका सारा शरीर लाल हो गया था, मुंह सूजा हुआ था। उसकी यह हालत देख वैद्यजी ने पूछा, अरे यह क्या हो गया तुम्हे? संता बोला, धन्नो ने पहले ही फूंक मार दी।
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संता कभी-कभी धन्नो को किराये पर भी देता था। एक बार एक ऐसा आदमी उससे घोडी लेने आया जिससे संता की पटती नहीं थी। संता ने अभी इंकार किया ही था कि अंदर से हिनहिनाने की आवाज आई। ग्राहक बोला कि घोडी अंदर है फ़िर भी तुम झूठ बोल रहे हो। संता बोला, कि कैसे इंसान हो आदमी की बात का विश्वास नहीं करते और जानवर की बात का भरोसा करते हो।
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एक पागल एक बिल्ली को रगड़-रगड़ कर नहला रहा था। एक भले आदमी ने उसे ऐसे करते देखा तो उससे बोला कि ऐसे तो बिल्ली मर जायेगी। पागल बोला नहाने से कोई नहीं मरता है। कुछ देर बाद वही आदमी उधर से फ़िर निकला तो कपड़े सुखाने की तार पर बिल्ली को लटकता देख पागल से बोला, देखा मैंने कहा था ना कि बिल्ली मर जायेगी। यह सुन पागल ने जवाब दिया कि वह नहलाने से थोड़ी ही मरी है, वह तो निचोड़ने से मरी है।
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एक सज्जन अपनी पत्नि का दाह-संस्कार कर लौट रहे थे। संगी साथी साथ-साथ चलते हुए उन्हें दिलासा देते जा रहे थे। इतने में मौसम बदलना शुरू हो गया। आंधी-पानी जैसा माहौल बन गया, बिजली चमकने लगी, बादल गर्जने लगे। सज्जन धीरे से बुदबुदाए - लगता है उपर पहुंच गयी। *******************************************************
पोता दादाजी से जिद कर रहा था कि शहर में सर्कस आया हुआ है हमें ले चलिए। दादाजी उसे समझा रहे थे कि बेटा सभी सर्कस एक जैसे ही होते हैं। वही जोकर, वही भालू, वही उछलते-कूदते लड़के। पर पोता मान ही नहीं रहा था। बोला, नहीं दादाजी मेरा दोस्त बता रहा था, इस वाले में लड़कियां बिकनी पहन कर घोड़ों की पीठ पर खड़े होकर डांस करती हैं। दादाजी की आंखों में चमक आ गयी। बोले, अब इतनी जिद करते हो तो चलो। मैंने भी एक अर्से से घोड़े नहीं देखे हैं।
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भाटिया जी ने अपने स्कूल की छत गिरने की बात तो बताई, पर उसके बाद वाली बात शायद भूल गये। हुआ क्या कि छत के कारण स्कूल की छुट्टी हो गयी तो बहुत से बच्चे पास लगी सर्कस देखने चले गये। जिनमें राज जी और अपने ताऊ जी के साथ संता तथा बंता भी थे। यह आज तक राज की बात ही रही आज भी घर पर पता ना चले सो मैने इन दोनों का नाम ना ले सिर्फ संता बंता का ही नाम लिया है।
सर्कस शुरु हुआ। तरह-तरह के खेल देख सभी खुश हो रहे थे। तभी घोषणा हुई कि अब सबसे खतरनाक खेल होने जा रहा है। खेल के बीच में कोई ताली ना बजाये।
खेल शुरु हुआ। एक बड़े से सीधे खड़े चक्र पर एक लड़की को बांध कर चक्के को घुमा दिया गया। इधर एक उस्ताद टाईप के आदमी ने अपनी आंखों पर पट्टी बांध कर लड़की पर धारदार चाकू फेंकने शुरु किये। चाकू जा-जा कर लड़की को बिना छुए लकड़ी के चक्के में धंसते गये। यहां तक की बीस एक चाकूओं से लड़की पूरी तरह घिर गयी पर उसे खरोंच तक नहीं आयी। खेल खत्म हुआ, सबने खड़े हो कर तालियां बजा कर कलाकारों की प्रशंसा की।
पर संता और बंता चुप चाप खड़े थे। उनकी समझ में यह नहीं आ रहा था कि जब एक भी चाकू निशाने पर नहीं लगा तो तालियां किस बात की भाई।
*विघ्नहर्ता आप सब को स्वस्थ एवं प्रसन्न रखें*

मंगलवार, 2 सितंबर 2008

लक्ष्मीजी; अपने कमलासन को बचाएं!

अपनी धर्मनिरपेक्ष छवि को चमकाने के लिए मां सं वि मंत्री श्री अर्जुन सिंह ने तरह-तरह के पांसे फेंके, पर हर दांव उल्टा ही पडा। कभी दस जनपथ से झिडकियां मिलीं कभी कोर्ट ने डांट पिलाई। परन्तु अपने ठाकुर साहब कर्मठ हैं लगे हुए हैं कुछ नया कर हाई कमान की नज़रों में जगह बना अपनी अगली पीढ़ी का स्थान सुरक्षित करने के लिए।
अब उन्होंने अपने सबसे बड़े दुश्मन के खिलाफ़ कदम उठाया है। भाजपा को परिदृश्य से हटाने का सपना देखने वाले सिंह साहब ने एक नया फ़रमान जारी कर सभी 980 केंद्रीय विद्यालयों को अपना स्कूल लोगो "कमल का फूल" बदलने का आदेश दिया है, जो स्वाभाविक तौर से भाजपा की याद दिलाता रहता है। विडंबना देखिए कि यह चिन्ह भारत के पहले प्रधान मंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू ने तैयार करवाया था। अब उन्हें कहां पता था कि प्रकृति की इस अनमोल भेंट को सांप्रदायिकता का प्रतीक मान लिया जायेगा।
अब कौन किसे समझाए कि कमल को बदलने से या भगवा रंग हटाने से यदी बदलाव आ जाता तो इन जेलों, इन कोर्टों, पुलिस आदि की क्या जरूरत रह जाती।
अब तो यही ड़र है कि सदियों से कमल के आसन पर विराजमान लक्ष्मीजी को भी कहीं अपने अपने आसन को बदलने का नोटिस ना मिल जाए।

विशिष्ट पोस्ट

"मोबिकेट" यानी मोबाइल शिष्टाचार

आज मोबाइल शिष्टाचार पर बात करना  करना ठीक ऐसा ही है जैसे किसी कॉलेज के छात्र को पांचवीं क्लास का कोर्स समझाया जा रहा हो ! अधिकाँश लोग इन सब ...