शिक्षक दिवस पर दिल्ली में बच्चों को हवाई यात्रा का आंनद दिलाने के लिए सरकार ने हेलिकाप्टर मुहैया करवाया। एक बार में दो बच्चे और एक शिक्षक को घूमाने का इंतजाम था। अभी कुछ ही ट्रिप लगी थीं कि एक स्थानीय नेताजी भी पहुंच गये और उन्होंने भी घूमने की इच्छा जाहिर की। मजबूरीवश एक बच्चे को हटा उनका इंतजाम किया गया। पर इस बार हेलिकाप्टर के उडते ही उसमे खराबी आ गयी। पायलट ने बताया कि सिर्फ़ तीन ही पैराशूट हैं, चूंकी सरकार को मेरी बहुत जरूरत है सो मैं एक ले कर कूदता हूं और वह कूद गया। इधर नेताजी बोले कि देश को मेरी बहुत जरूरत है सो एक मुझे चाहिए यह कह कर उन्होंने आव देखा ना ताव वे भी यह जा वह जा। ऐसी मुसीबत में भी शिक्षक ने अपनी मर्यादा कायम रक्खी और बच्चे से कहा, बेटा, मैंने तो अपनी जिंदगी जी ली। तुम देश का भविष्य हो तुम बाकी बचा पैराशूट ले कर कूद जाओ। बच्चे ने जवाब दिया नहीं सर हम दोनों ही कूदेंगें। शिक्षक बोले कैसे। तो छात्र ने बताया कि नेताजी मेरा स्कूल बैग ले कर कूद गये हैं।
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बाढ़ग्रस्त इलाके में तैनात कर्मचारियों से वायूसेना ने पूछा कि लोगों को निकालने के लिये कितनी ट्रिप लगेंगी। जवाब दिया गया कि तीस-एक ट्रिप में गांव खाली हो जायेगा। बचाव अभियान शुरु हो गया। एक-दो-तीन-पांच-दस-बीस, पचास फेरे लगने के बाद भी लोग नज़र आते रहे, तो सेना ने पुछा कि आपने तीस फेरों की बात कही थी यहां तो पचास फेरों के बाद भी लोग बचे हुए हैं ऐसा कैसे।नीचे से आवाज आयी कि सर, गांव वाले पहली बार हेलिकप्टर में बैठे हैं तो जैसे ही उन्हें बचाव क्षेत्र में छोड़ कर आते हैं, वे फिर तैर कर वापस यहीं पहुंच जाते हैं।
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नमस्ते सर, मैं आपका पियानो ठीक करने आया हूं। पर मैने तो आप को नहीं बुलवाया। नहीं सर, आपके पडोसियों ने मुझे बुलवाया है।
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अरे भाई, ये सेव कैसे दिये। सर साठ रुपये किलो। पर वह तुम्हारा सामने वाला तो पचास में दे रहा है। तो सर उसीसे ले लिजीए। ले तो लेता पर उसके पास खत्म हो गये हैं। सर जब मेरे पास खत्म हो जाते हैं तो मैं भी पचास में देता हूं ।
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बेटे की नौकरी चेन्नाई मे लग गयी। अच्छी पगार थी, सो उसने पांच हजार की एक साडी माँ के लिये ले ली। पर वह माँ का स्वभाव जानता था, सो उसने साडी के साथ एक पत्र भी भेज दिया कि पहली पगार से यह साडी भेज रहा हूं, दिखने में मंहगी है पर सिर्फ़ दो हजार की है, कैसी लगी बतलाना। अगले हफ़्ते ही माँ का फोन आ गया, बेटा खुश रहो। साडी बहुत ही अच्छी थी। मैने उसे तीन हजार में बेच दिया है, तुरंत वैसी दस साडियां और भिजवा दे, अच्छी मांग है।
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बसंती बीरू के साथ शहर चली गयी तो मासी और धन्नो के लिए रामपुर में तांगा चलाने का जिम्मा संता ने ले लिया था। बरसात के दिन थे, संता ठाकुर की पेंशन लाने वाले को ले रामपुर जा रहा था कि अचानक तांगे का चक्का कीचड़ में फंस गया। संता ने काफ़ी कोशिश की पर सफ़ल ना हो सका। अंत में वह नीचे उतरा और धन्नो के पास जा बोलने लगा कि चल मेरे शेरू, शाब्बाश मेरे हीरे, जोर लगा मेरे कालू, चल मेरी धन्नो। उसके इतना कहते ही धन्नो ने जोर लगाया और तांगे का चक्का बाहर आ गया। यह देख सुन यात्री ने पूछा कि तुमने चार-चार घोड़ों के नाम क्युं लिए जब कि यहां सिर्फ़ धन्नो ही है तो संता बोला, जनाब इसे अब दिखाई नहीं पड़ता है। इसे यदि पता चल जाए कि ये अकेली तांगा खींच रही है तो एक कदम भी आगे नहीं बढ़ती है सो--------
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एक बार धन्नो बिमार पड़ गयी तो संता वैद्यजी के पास उसकी दवाई लेने गया। वैद्यजी ने उसे एक पुडिया दी और कहा कि इसे एक नली में रख देना और नली का एक सिरा धन्नो के मुंह मे रख जोर से फूंक मार देना, दवा अंदर चली जायेगी। दूसरे दिन संता फिर वैद्यजी के पास आया, उसका सारा शरीर लाल हो गया था, मुंह सूजा हुआ था। उसकी यह हालत देख वैद्यजी ने पूछा, अरे यह क्या हो गया तुम्हे? संता बोला, धन्नो ने पहले ही फूंक मार दी।
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संता कभी-कभी धन्नो को किराये पर भी देता था। एक बार एक ऐसा आदमी उससे घोडी लेने आया जिससे संता की पटती नहीं थी। संता ने अभी इंकार किया ही था कि अंदर से हिनहिनाने की आवाज आई। ग्राहक बोला कि घोडी अंदर है फ़िर भी तुम झूठ बोल रहे हो। संता बोला, कि कैसे इंसान हो आदमी की बात का विश्वास नहीं करते और जानवर की बात का भरोसा करते हो।
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एक पागल एक बिल्ली को रगड़-रगड़ कर नहला रहा था। एक भले आदमी ने उसे ऐसे करते देखा तो उससे बोला कि ऐसे तो बिल्ली मर जायेगी। पागल बोला नहाने से कोई नहीं मरता है। कुछ देर बाद वही आदमी उधर से फ़िर निकला तो कपड़े सुखाने की तार पर बिल्ली को लटकता देख पागल से बोला, देखा मैंने कहा था ना कि बिल्ली मर जायेगी। यह सुन पागल ने जवाब दिया कि वह नहलाने से थोड़ी ही मरी है, वह तो निचोड़ने से मरी है।
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एक सज्जन अपनी पत्नि का दाह-संस्कार कर लौट रहे थे। संगी साथी साथ-साथ चलते हुए उन्हें दिलासा देते जा रहे थे। इतने में मौसम बदलना शुरू हो गया। आंधी-पानी जैसा माहौल बन गया, बिजली चमकने लगी, बादल गर्जने लगे। सज्जन धीरे से बुदबुदाए - लगता है उपर पहुंच गयी। *******************************************************
पोता दादाजी से जिद कर रहा था कि शहर में सर्कस आया हुआ है हमें ले चलिए। दादाजी उसे समझा रहे थे कि बेटा सभी सर्कस एक जैसे ही होते हैं। वही जोकर, वही भालू, वही उछलते-कूदते लड़के। पर पोता मान ही नहीं रहा था। बोला, नहीं दादाजी मेरा दोस्त बता रहा था, इस वाले में लड़कियां बिकनी पहन कर घोड़ों की पीठ पर खड़े होकर डांस करती हैं। दादाजी की आंखों में चमक आ गयी। बोले, अब इतनी जिद करते हो तो चलो। मैंने भी एक अर्से से घोड़े नहीं देखे हैं।
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भाटिया जी ने अपने स्कूल की छत गिरने की बात तो बताई, पर उसके बाद वाली बात शायद भूल गये। हुआ क्या कि छत के कारण स्कूल की छुट्टी हो गयी तो बहुत से बच्चे पास लगी सर्कस देखने चले गये। जिनमें राज जी और अपने ताऊ जी के साथ संता तथा बंता भी थे। यह आज तक राज की बात ही रही आज भी घर पर पता ना चले सो मैने इन दोनों का नाम ना ले सिर्फ संता बंता का ही नाम लिया है।
सर्कस शुरु हुआ। तरह-तरह के खेल देख सभी खुश हो रहे थे। तभी घोषणा हुई कि अब सबसे खतरनाक खेल होने जा रहा है। खेल के बीच में कोई ताली ना बजाये।
खेल शुरु हुआ। एक बड़े से सीधे खड़े चक्र पर एक लड़की को बांध कर चक्के को घुमा दिया गया। इधर एक उस्ताद टाईप के आदमी ने अपनी आंखों पर पट्टी बांध कर लड़की पर धारदार चाकू फेंकने शुरु किये। चाकू जा-जा कर लड़की को बिना छुए लकड़ी के चक्के में धंसते गये। यहां तक की बीस एक चाकूओं से लड़की पूरी तरह घिर गयी पर उसे खरोंच तक नहीं आयी। खेल खत्म हुआ, सबने खड़े हो कर तालियां बजा कर कलाकारों की प्रशंसा की।
पर संता और बंता चुप चाप खड़े थे। उनकी समझ में यह नहीं आ रहा था कि जब एक भी चाकू निशाने पर नहीं लगा तो तालियां किस बात की भाई।
*विघ्नहर्ता आप सब को स्वस्थ एवं प्रसन्न रखें*