अक्सर सुनने मे आता है कि भगवान को छप्पनभोग का प्रसाद चढ़ाया जाता है। इनमे किन-किन खाद्य पदार्थों का समावेश होता है, आईए देखते हैं --
1-रसगुल्ला, 2-चन्द्रकला, 3-रबड़ी, 4-शूली, 5-दधी, 6-भात, 7-दाल, 8-चटनी, 9-कढ़ी, 10-साग-कढ़ी, 11-मठरी, 12-बड़ा, 13-कोणिका, 14- पूरी, 15-खजरा, 16-अवलेह, 17-वाटी, 18-सिखरिणी, 19-मुरब्बा, 20-मधुर, 21-कषाय, 22-तिक्त, 23-कटु पदार्थ, 24-अम्ल {खट्टा पदार्थ}, 25-शक्करपारा, 26-घेवर, 27-चिला, 28-मालपुआ, 29-जलेबी, 30-मेसूब, 31-पापड़, 32-सीरा, 33-मोहनथाल, 34-लौंगपूरी, 35-खुरमा, 36-गेहूं दलिया, 37-पारिखा, 38-सौंफ़लघा, 39-लड़्ड़ू, 40-दुधीरुप, 41-खीर, 42-घी, 43-मक्खन, 44-मलाई, 45-शाक, 46-शहद, 47-मोहनभोग, 48-अचार, 49-सूबत, 50-मंड़का, 51-फल, 52-लस्सी, 53-मठ्ठा, 54-पान, 55-सुपारी, 56-इलायची,-----------------------------------------------------------------------------------------भगवान हैं भाई, हजम करते होंगे। अपन तो पढ़-सुन कर ही अघा गये।
इस ब्लॉग में एक छोटी सी कोशिश की गई है कि अपने संस्मरणों के साथ-साथ समाज में चली आ रही मान्यताओं, कथा-कहानियों को, बगैर किसी पूर्वाग्रह के, एक अलग नजरिए से देखने, समझने और सामने लाने की ! इसके साथ ही यह कोशिश भी रहेगी कि कुछ अलग सी, रोचक, अविदित सी जानकारी मिलते ही उसे साझा कर ज्यादा से ज्यादा लोगों तक पहुंचाया जा सके ! अब इसमें इसको सफलता मिले, ना मिले, प्रयास तो सदा जारी रहेगा !
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4 टिप्पणियां:
छप्पन भोग का नाम पहली बार जाना। इस जुमले का इस्तेमाल तो अक्सर करता हूं। लेकिन, ये क्या एक साथ खाया जाता है।
भाई अपने को तो गड़बड़ लग रही है. इसमें तिक्त, कसाय कोई व्यंजन नहीं स्वाद है. लस्सी जैसे शब्द तो आज प्रचलित हुए हैं और छप्पन भोग की परंपरा पुरानी है.
गलत जानकारी.
यह जानकारी जगन्नाथ पुरी के एक पुजारीजी से ली थी। कषाय, तिक्त जैसे स्वादों वाले व्यंजनों का समावेश होना चाहिए, यह अर्थ हो सकता है।
रही लस्सी की बात तो उन्होंने घोल शब्द का प्रयोग किया था। बंगाल, ओडिसा, असम तथा बिहार के कुछ इलाकों मे दही-चीनी-पानी के मिश्रण को घोल का नाम दिया जाता है। लस्सी खासकर उत्तर भारत में प्रचलित शब्द है। इस मिश्रण को तो उतना ही पुराना होना चाहिए जितना पुराना दही है। नाम चाहे कुछ भी हो। प्रसाद का निर्माण दिए गये नाम वाले पदार्थों से मिलते-जुलते स्वाद, तासीर तथा उपलब्धता पर निर्भर करता है ना कि सिर्फ़ नाम पर।
शुक्र है किसी ने रसगुल्ले के नाम पर एतराज नहीं किया, जिसका जन्म दो एक सौ साल पहले ही हुआ है।
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