सोमवार, 11 अगस्त 2008

ओलिंपिक जाने का नहीं ले जाने का त्यौहार

विश्व के दूसरे सबसे बडे आबादी वाले देश के खिलाड़ी ओलिंपिक मे पदक जीतने का नहीं बल्कि वहां अधिकारियों को सैर-सपाटा करवाने के लिए ले जाने का जरिया मात्र बन कर रह गये हैं। इसीलिये हमें बार-बार समझाया जाता है कि ओलिंपिक मे पदक जीतना उतना महत्वपूर्ण नहीं है, जितना उसमे भाग लेना, और इतने महत्वपूर्ण काम मे सरकारी कारिंदे भाग ना ले सकें तो धिक्कार है। सो हे गुणी-जन खिलाडियों से ज्यादा साथ जाने वालों को अपना रिकार्ड अपने आकाओं के पास काफी ऊंचा बनाए रखना पडता है। इसके लिए तरह-तरह से हवा बांधनी पडती है, हवाई किले दिखाने पडते हैं, साम-दाम-दंड-भेद हर तरह की नीति अपनानी पडती है। यह सारा गड़बड़झाला महिनों पहले शुरु हो जाता है, कोई अपनी सीट पक्की करने तथा अपने कैंडिडेट को अपडेट करवाने की जुगत मे उससे बेहतर बकरे को ड़ोपिंग में डुबा बली दिलवा देता है, तो कोई सिरफ़िरा तो अपनी करतूतों के विरुद्ध हुई कार्यवाही से जल-भुन कर देश की इज्जत को ही दांव पर लगा सारी की सारी टीम को ही ना-लायक करवा देता है। पा कोई किसी का कुछ बिगाडता नहीं है, क्योंकी हमाम मे तो सभी निवस्त्र ही हैं। पर असलियत तो उन्हें भी पता है और अपनी पुस्तों का ख्याल भी है सो उलट ब्यान भी साथ-साथ प्रसारित होते रशते हैं। अभी एक ब्यान आया है कि भारत मे खेलों का स्वर्ण युग 2010 से शुरू होगा, यानी अगले कुम्भ के लिए बरतन चमकाने शुरू भी हो गये। कभी-कभी देशवासी ज्यादा हताश ना हों इसलिए खिलाडियों से भी कुछ ऐसा उवचवा दिया जाता है जैसे चीन जाने के पहले ही एक तीरन्दाजनी ने चीन की हवा को दोष दे ड़ाला था गोया चीन की हवा भी हम भारतियों के साथ ही दुश्मनी निभाएगी बाकि चीन के इतर दसियों देशों के लिए हवा हौवा नही बनेगी। भारत चाहे अब तक हुए ओलिंपिक के बराबर भी पदक ना ला पाया हो पर खिलाडियों के साथ सैर-सपाटे के लिए जाने वाले सरकारियों की संख्या उनके द्वारा लाए जाने वाले बैगों के साथ-साथ बढती ही जाती है। पर विडंबना देखिए कि सब जनते समझते हुए भी मेरे जैसे बांगडु टी वी से चिपक रोज लंबी होती पदक तालिका पर किसी चमत्कार की तरह भारत के नाम के उभरने का इंतजार करते-करते पखवाडा गुजार देते हैं। 88888888888888888888888888888888888888888888888888 ओलिंपिक अनंत ओलिंपिक कथा अनंता

1 टिप्पणी:

Udan Tashtari ने कहा…

ओलिंपिक अनंत ओलिंपिक कथा अनंता :)

विशिष्ट पोस्ट

रणछोड़भाई रबारी, One Man Army at the Desert Front

सैम  मानेक शॉ अपने अंतिम दिनों में भी अपने इस ''पागी'' को भूल नहीं पाए थे। 2008 में जब वे तमिलनाडु के वेलिंगटन अस्पताल में भ...