बुधवार, 27 अगस्त 2008

टेंशनाए हुए हैं क्या, हल्के ना हो लिजीए

एक पागल एक बिल्ली को रगड़-रगड़ कर नहला रहा था। एक भले आदमी ने उसे ऐसे करते देखा तो उससे बोला कि ऐसे तो बिल्ली मर जायेगी। पागल बोला नहाने से कोई नहीं मरता है। कुछ देर बाद वही आदमी उधर से फ़िर निकला तो कपड़े सुखाने की तार पर बिल्ली को लटकता देख पागल से बोला, देखा मैंने कहा था ना कि बिल्ली मर जायेगी। यह सुन पागल ने जवाब दिया कि वह नहलाने से थोड़ी ही मरी है, वह तो निचोड़ने से मरी है।
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एक सज्जन अपनी पत्नि का दाह-संस्कार कर लौट रहे थे। संगी साथी साथ-साथ चलते हुए उन्हें दिलासा देते जा रहे थे। इतने में मौसम बदलना शुरू हो गया। आंधी-पानी जैसा माहौल बन गया, बिजली चमकने लगी, बादल गर्जने लगे। सज्जन धीरे से बुदबुदाए - लगता है उपर पहुंच गयी। **************************************************************************************
पोता दादाजी से जिद कर रहा था कि शहर में सर्कस आया हुआ है हमें ले चलिए। दादाजी उसे समझा रहे थे कि बेटा सभी सर्कस एक जैसे ही होते हैं। वही जोकर, वही भालू, वही उछलते-कूदते लड़के। पर पोता मान ही नहीं रहा था। बोला, नहीं दादाजी मेरा दोस्त बता रहा था, इस वाले में लड़कियां बिकनी पहन कर घोड़ों की पीठ पर खड़े होकर डांस करती हैं। दादाजी की आंखों में चमक आ गयी। बोले, अब इतनी जिद करते हो तो चलो। मैंने भी एक अर्से से घोड़े नहीं देखे हैं।
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गांव का एक लड़का अपनी नयी-नयी साईकिल ले, शहर मे नये खुले माल में घूमने आया। स्टैंड में सायकिल रख जब काफ़ी देर बाद लौटा तो अपनी साईकिल को काफ़ी कोशिश के बाद भी नहीं खोज पाया। उसको याद ही नहीं आ रहा था कि उसने उसे कहां रखा था। उसकी आंखों में पानी भर आया। उसने सच्चे मन से भगवान से प्रार्थना की कि हे प्रभू मेरी साईकिल मुझे दिलवा दो, मैं ग्यारह रुपये का प्रसाद चढ़ाऊंगा। दैवयोग से उसे एक तरफ़ खड़ी अपनी साईकिल दिख गयी। उसे ले वह तुरंत मंदिर पहुंचा, भगवान को धन्यवाद दे, प्रसाद चढ़ा, जब बाहर आया तो उसकी साईकिल नदारद थी।
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दो दोस्त घने जंगल में घूमने गये तो अचानक उनके पीछे भालू पड़ गया। दोनो जान बचाने के लिए भागने लगे। कुछ दूर दौड़ने पर एक ने दूसरे से कहा कि हम दौड़ कर भालू से नहीं बच सकते। दूसरे ने जवाब दिया भालू से कौन बच रहा है, मैं तो सिर्फ़ तुमसे आगे रहने की कोशिश कर रहा हूं।
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एक बहुत गरीब लड़का रोज पोस्ट आफ़िस आ कर वहां के कर्मचारियों से कहा करता था कि वे भगवान को एक पत्र लिख दें, जिससे वे उसे हजार रुपये भिजवा दें। क्योंकि उसने सुन रखा है कि प्रभू गरीबों की सहायता जरूर करते हैं। रोज-रोज उसकी हालत तथा प्रभू में विश्वास देख वहां के लोगों ने आपस में चंदा कर किसी तरह पांच सौ रुपये इकठ्ठा कर दूसरे दिन एक लिफाफे में रख यह कहते हुएउसको दे दिये कि भगवान ने तुम्हारे लिये मनीआर्डर भेजा है। लडके ने खुशी-खुशी लिफ़ाफ़ा खोल कर देखा तो उसमे पांच सौ रुपये थे। लडका बुदबुदाया - प्रभू तुमने तो पूरे हजार ही भेजे होंगे, इन साले पोस्ट आफ़िस वालों ने अपना कमीशन काट लिया होगा।
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नाइट-शो देख कर पति-पत्नि लौटे ही थे कि कि पतिदेव के दोस्त आ गये। पत्नि पति को एक तरफ ले जा बोली, खाने के लिए सिर्फ दाल पड़ी है, इतनी रात को अब क्या किया जाए? पतिदेव ने अपनी अक्ल दौड़ाई और बोले, एक काम करो, मैं उनसे बातें करता हूं, तुम रसोई में कुछ खटर-पटर कर एक बरतन गिरा देना। मैं बाहर से पुछूंगा कि अरे क्या गिरा। तुम जवाब देना, सारे कोफ्ते गिर गये। थोड़ी देर में तुम एक और बरतन गिरा देना। मैं फिर पुछूंगा, अब क्या हुआ। तुम कहना कि सारा रायता बिखर गया। मैं बोलुंगा, ध्यान से उठाना था ना। चलो कोई बात नहीं, यशजी कौन से पराये हैं, अपने घर के बंदे ही हैं। तुम दाल रोटी ही ले आओ। सेटिंग हो जाने के बाद पति देव बाहर आ अपने दोस्त से बतियाने लगे। इतने में रसोई से कुछ गिरने की आवाज आई, पति देव ने पूछा, अरे क्या हुआ? अंदर से जवाब आया :- दाल गिर गयी।
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संता, बंता तथा कंता एक ही बेड पर सो रहे थे। जगह कम थी। कंता नीचे उतर कर जमीन पर लेट गया। तभी संता बोला, ओये कंते ऊपर आजा, जगह हो गयी है। ************************************************
संता रोज रात को सोते समय कमरे में दो ग्लास रख कर सोता है। एक पानी से भरा हुआ और दूसरा खाली। क्योंकि उसे यह पता नहीं होता कि रात को प्यास लगेगी कि नहीं।
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क्लास में शरारत करने के कारण दो बच्चों को टीचर ने 100-100 बार अपना नाम लिखने की सजा दी। कुछ ही देर बाद उनमें से एक बच्चे ने खड़े हो कर कहा, सर यह सजा ठीक नहीं है। टीचर ने गुस्से से पूछा, क्या ठीक नहीं है ?
बच्चे ने जवाब दिया, सर आप ही देखें, उसका नाम बंटी सिंह है और मेरा नाम विश्वनाथ प्रताप आहलूवालिआ है।
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एक बच्चे को छुटपन से ही, जब भी एक रुपये का सिक्का और पांच का नोट दिखा कर किसी एक को लेने को कहा जाता तो वह सिक्का ही उठाता था। धीरे-धीरे वह कुछ बड़ा हो गया। पर अभी भी वह सिक्का ही उठाता रहा नोट नहीं। घर और बाहर वाले उसकी इस बेवकूफी का मजा ले-ले कर यह खेल खेलते रहते थे। घर में किसी मेहमान वगैरह के आने पर यह तमाशा उसे जरूर दिखाया जाता था। एक दिन बच्चे के दादा जी ने उसे समझाते हुए कहा, बेटा तू इतना बड़ा हो गया है तुझे पता नहीं कि पांच रुपये एक के सिक्के से ज्यादा होते हैं, तू पांच का नोट क्यूं नहीं लेता ?
बच्चे ने जवाब दिया, दादा जी जिस दिन मैंने पांच का नोट उठा लिया, उसी दिन यह खेल और मेरी आमदनी बंद हो जायेगी।
दादा जी का मुंह खुला का खुला रह गया।
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सीधे सरल हृदय ताऊ के सच कहने के बाद छुट्टी कहां मिलनी थी सो बेचारा उदास बैठा था। इतने में संता वहां आया और उसके उदासी की वजह पूछने पर ताऊ ने सारी बात बता दी। इस पर संता बोला, बस इतनी सी बात है, मुझे देख हर 15-20 दिन बाद मुझे छुट्टी मिल जाती है। ताऊ हैरान, बोला, ए भाई मुझे भी तरकीब बता ना। संता बोला, ले सुन -
कमांडर साहब ने मुझे कह रखा है कि जब भी छुट्टी चाहिये हो तो कोई बड़ा काम कर के दिखाओ। तो जब भी ऐसी जरूरत पड़ती है तो मैं दुश्मन का एक टैंक पकड़ कर ला खड़ा करता हूं और छुट्टी मिल जाती है।ताऊ की आंखें आश्चर्य से चौड़ी हो गयीं मुंह खुला रह गया। किसी तरह पूछ पर भाई तु ऐसा करता कैसे है?
संता मुस्कुरा कर बोला, ओ भोले बादशाह, उन लोगों को छुट्टी की जरूरत नहीं पड़ती क्या? जब उन्हें चाहिये होता है तो हमारा ले जाते हैं।
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एक ताऊ और जिन्होनें हास्य की विधा को सम्मानजनक ऊंचाईयों पर पहुंचाया। उन्हीं जेमिनी हरियाणवी जी का एक गुदगुदाता चुटकुला, उन्हीं के शब्दों में (माफ किजियेगा हिंदी में कह पाउंगा) -
एक बार एक पड़ोस का लड़का मेरे पास आ कर बोला, ताऊ, इस्त्री चाहिये। मैने छोरे को ऊपर से नीचे तक देखा, उसकी उम्र देखी। फिर मन में सोचा मुझे क्या और बोला, जा अंदर बैठी है, ले जा। लड़के ने अंदर झांका और बोला वो नहीं, कपड़े वाली चाहिये। मैं बोला, अबे दिखता नहीं क्या, कपड़े पहन कर ही तो बैठी है। छोरा फिर बोला, अरे नहीं ताऊ वो वाली जो करंट मारती है। मैं बोला, एक बार छू कर तो देख।

2 टिप्‍पणियां:

Udan Tashtari ने कहा…

हा हा!! बहुत मजेदार!!

राज भाटिय़ा ने कहा…

मजे दार भाई , बहुत ही सुन्दर
धन्यवाद

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