गुरुवार, 21 अगस्त 2008

कलयुगी श्रवण कुमार

आज हरिया अपने बेटे डा0 गोविंद के साथ शहर जा रहा था। गाँव वाले अचंभित थे, गोविंद के वर्षों के बाद गांव आने पर। वह शहर में बहुत बड़ा डाक्टर था, दो-दो नर्सिंग होम चलते थे उसके। इतना व्यस्त रहता था, कि अपनी माँ के मरने पर भी गाँव नहीं आ सका था। पर आज खुश भी थे, हरिया को चाहने वाले, यह सोच कर कि बिमार हरिया शहर में अपने बेटे के पास रह कर अपनी जिंदगी के शेष दिन आराम से गुजार सकेगा।
इधर गोविंद अपने बाप को देख कर ही समझ गया था कि महिने दो महिने का ही खेल बचा है। उसे अपने बाप की देह का हरेक अंग अपने बैंक बैलेंस में तब्दील होता नज़र आ रहा था।

2 टिप्‍पणियां:

राज भाटिय़ा ने कहा…

क्या ऎसे भी होते हे बेटे ? तो सच मे ही कलयुगी कपूत हुआ,
धन्यवाद

Udan Tashtari ने कहा…

Afsosjanak.

Dukhad!!

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