वैसे माँ को कोई फर्क नहीं पड़ता कि उसके लिए कोई ख़ास दिन बनाया गया है कि नहीं। उसे न तोहफों की लालसा होती है नाहीं उपहारों की ख्वाहिश। मिल जाएं तो ठीक, ना मिलें तो और भी ठीक। भगवान से भले ही वह नाखुश हो जाए पर अपने बच्चों के लिए उसके मुख पर सदा आशीष ही रहती है। इसीलिए ऊपर वाले से कुछ मांगना हो तो सदा हमें अपनी माँ की सलामती मांगनी चाहिए, हमारे लिए तो माँ हर वक़्त दुआ मांगती ही रहती है...........!
#हिन्दी_ब्लागिंग
माँ एक शब्द नहीं पूरी दुनिया है, जो सिर्फ देना जानती है, लेना नहीं ! उसकी ममता का, निस्वार्थ प्रेम कोई ओर-छोर नहीं होता। सागर से गहरे, धरती से सहनशील और आकाश से भी विशाल उसके स्नेहसिक्त आँचल में तो तीनों लोक समाए रहते हैं। मनुष्य को प्रकृति प्रदत्त यह सबसे बड़ी नेमत है, जिसका कोई सिला नहीं ! माँ इस धरती पर ईश्वर का प्रत्यक्ष रूप है। जिस घर में माँ खुश रहती है, वहां खुशियों का खजाना कभी खाली नहीं होता। कोई कष्ट, कोई व्याधि, कोई मुसीबत नहीं व्यापति ! अपने बच्चों को खुश देख खुश रह लेने वाली माँ अपनी ख़ुशी के एवज में भी बच्चों की ख़ुशी ही मांगती है !
माँ, पिकासो की अमर कृति |
वैसे माँ को कोई फर्क नहीं पड़ता कि उसके लिए कोई ख़ास दिन बनाया गया है कि नहीं। उसे न तोहफों की लालसा होती है नाहीं उपहारों की ख्वाहिश। मिल जाएं तो ठीक, ना मिलें तो और भी ठीक। वह तो निस्वार्थ रह बिना किसी चाहत के अपना प्यार उड़ेलती रहेगी। ख़ुशी में सबके साथ खुश और दुःख में आगे बढ़, ढाढस दे आंसू पोछंती रहेगी। भगवान से भले ही वह नाखुश हो जाए पर अपने बच्चों के लिए उसके मुख पर सदा आशीष ही रहती है। इसीलिए ऊपर वाले से कुछ मांगना हो तो सदा हमें अपनी माँ की सलामती मांगनी चाहिए, हमारे लिए तो माँ हर वक़्त दुआ मांगती ही रहती है।
12 टिप्पणियां:
माँ एक शब्द नहीं पूरी दुनिया है ..सत्य कथन । माँँ की निस्वार्थ ममता के आगे सब कुछ तुच्छ है । अत्यंत सुन्दर सृजन ।
सही कहा.
जी नमस्ते,
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा सोमवार (04 मई 2020) को 'ममता की मूरत माता' (चर्चा अंक-3698) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित हैं।
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रवीन्द्र सिंह यादव
मीना जी
हार्दिक आभार
शबनम जी
ब्लाॅग पर सदा स्वागत है
रवीन्द्र जी
मान देने हेतु अनेकानेक धन्यवाद
मातृ दिवस पर सुन्दर प्रस्तुति।
शास्त्री जी
हार्दिक आभार
मां शब्द ही ऐसा है जिसके कारण सब अधूरा सा लगता है ।
बहुत सुंदर प्रस्तुति ...
" जिस घर में माँ खुश रहती है, वहां खुशियों का खजाना कभी खाली नहीं होता।" बिलकुल सही , जहाँ माँ का मान हैं वही स्वर्ग हैं ,आज धरा से स्वर्ग लुप्त हो चूका हैं और खुशियों का खजाना खाली हो चूका हैं क्योकि अधिकांश घरो में माँ दुखी हैं। भावपूर्ण सृजन सर ,सादर नमन
महेन्द्र जी
ब्लॉग पर पधारने का हार्दिक आभार
कामिनी जी
माँ जैसा या उसके बराबर कोई नहीं ¡ कोई भी नहीं
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