रविवार, 22 जून 2025

बुड़बक समझ लिए हो ? कोउनो दिन माथा फिरा गिया ना, तो फिर.......😡

अरे ! हम लोग धर्म-भीरु हैं, सरल हैं, भोले हैं ! सभी लोगों पर विश्वास कर लेते हैं ! तभी तो कोई लाल-हरी चटनी खिला कर, कोई पानी छिड़क कर, कोई धुंआ सुंघा कर, कोई हाथ की सफाई दिखा कर हमें भरमा लेता है। हमारी गलती यह है कि उसकी असलियत जानने के बाद भी हम उसे कुछ नहीं कहते, माफ कर देते हैं ! यदि खुले आम सड़क पर उसकी औकात बता एक बार सबक सीखा दिया जाए, तो उस जैसे औरों की कभी हिम्मत नहीं पड़ेगी धोखाधड़ी की................!

#हिन्दी_ब्लागिंग 

सांझ घिर आई थी। मैं बालकनी में खड़ा, हल्की झड़ी के बाद आकाश पर छाए सुरमई बादलों के पल-पल बनते-बदलते आकारों को देख रहा था ! तभी सामने से बिनोद आता दिखाई पड़ा। उसने भी मुझे देख लिया था और वहीं से हाथ हिला अभिवादन भी प्रेषित कर दिया था। अंदर आवाज लगा दरवाजा खोलने को कहते-कहते मैं भी ड्राइंग रूम में आ गया। 

तभी बिनोद अंदर आया और मैं कुछ बोलूं,  इसके पहले ही हाथ का थैला मेज पर रख, अपनी सफाई में उसने बता दिया कि रास्ते में अच्छे हिमसागर दिखे सो ले आया ! वह जानता था कि ऐसा कुछ भी करने-लाने के मैं सख्त खिलाफ हूँ, पर उसे यह भी मालूम था कि लंगड़ा के बाद मुझे हिमसागर आम ही ज्यादा पसंद हैं सो उसने यह हिम्मत की ! 

मैंने ऐसे ही मजाक में उससे पूछ लिया कि आज आम ही लाए हो, कोई समस्या नहीं लाए ?''

बिनोद भी बिनोद ही था, तुरंत बोला, अइसा कैइसे हो सकता है कि बिनोद, भैया जी के पास आए और वह भी बिना किसी समस्या के !''  

तो, आज का मसला क्या है ?''

बिनोद कुछ गंभीर हो गया। जैसे सोच रहा हो, कहां से शुरू करे। फिर चुप्पी तोड़ते हुए कहने लगा, भइया जी ! परसों रात ऐसे ही मोबाइल खंगाल रहा था कि एक हेडिंग दिखी कि एक माचिस की तीली आपका भाग्य बदल सकती है ! जिज्ञासावश आगे देखा तो एक सफेद दाढ़ी वाला बाबा टाइप आदमी तिलक लगाए बैठा था, सबसे पहले मेरा ध्यान उसके तिलक पर ही गया, जो ठीक भृकुटि पर ना हो, जरा सा बाईं ओर लगा हुआ था ! भइया जी, उसको देख पहला ख्याल मेरे मन में यही आया कि जिसको तिलके लगाना नहीं आता ऊ क्या ज्ञान देगा ?'' इतना कह वह मुझे देखने लगा, जैसे मेरी सहमति चाहता हो। 

सुन रहा हूँ, पर नेट की विषय-वस्तुओं को सीरियसली मत लिया करो ! हो सके तो देखा ही मत करो ! वहां नब्बे प्रतिशत सिर्फ बकवास होती है ! फिर भी चलो आगे बताओ।''

भइया जी, उस रील में ऊ आदमी बता रहा था कि राहु-केतु मानव जीवन में काफी उथल-पुथल मचाते हैं ! बहुत क्रूर ग्रह हैं ! उन्हें खुश करने में माचिस की तीली बड़ी सहायक होती है। तीली का सिरा जहां आग लगती है, वो राहु का प्रतीक है और निचला हिस्सा केतु का ! यदि तीली को पूर्णतया जला कर टॉयलेट में बहा दिया जाए तो दोनों ग्रह खुश हो सहायक बन, आपके सहाई हो, जीवन को खुशियों से भर, धन की वर्षा कर देंगे !''

मैं देख रहा था कि बात करते-करते बिनोद कुछ विचलित सा हो रहा था, जैसे तनावग्रस्त हो रहा हो ! 

उसने कहना जारी रखा, भइया जी, अइसे लोग हम सब को बुड़बक समझते हैं का, कि जो कह देंगे उहे सही मान कर इनका विस्वास कर लेंगे ? ठीक है, हम लोग धर्म-भीरु हैं, सरल हैं, भोले हैं, सभी लोगों पर भरोसा कर लेते हैं ! तभी तो कोई लाल-हरी चटनी खिला कर, कोई पानी छिड़क कर, कोई धुंआ सुंघा कर, कोई हाथ की सफाई दिखा कर हमें भरमा लेता है। हमारी गलती ई है कि उसकी असलियत जानने के बाद भी हम उसे कुछ नहीं कहते, माफ कर देते हैं ! यदि खुले आम सड़क पर उसकी औकात बता, सबक सीखा दिया जाए, तो उस जैसे औरों की कभी हिम्मत नहीं पड़ेगी धोखाधड़ी की !''

बिनोद कुछ असहज हो रहा था ! मैंने पानी मंगवा उसे दिया। पानी ने उसे कुछ सहज किया। 

भइया जी, आप ही बताइए यदि आप किसी को  बुरी तरह पीट कर, उसका कचूमर निकाल गंदे नाले में फेंक देंगे तो क्या वह आपसे खुश होगा ? आपको आशीर्वाद देगा ? मैं नहीं जानता कि राहु-केतु कुछ होते हैं कि नहीं ! पर मान लेते हैं कि हैं, तो यदि उसके प्रतीक को जला कर टॉयलेट जैसी गंदी जगह में बहाएंगे तो इससे वह खुश कैसे होगा ? उलटे उसका तो पारा और भी चढ़ जाएगा, वह तो और भी बुरी तरह से आप पर चढ़ बैठेगा ! और वह बाबा, लोगों को ऐसा करने को कह रहा है और कमेंट में लोग यह सब करने पर राजी भी हो रहे हैं ! उपाय बताने पर उसका धन्यवाद दे रहे हैं, कृतज्ञ हो रहे हैं ! सब्बे बिना माथा के हैं क्या ? अरे, कोई आदमी इतना बुड़बक कैसे हो सकता है ?''    

बिनोद तो चुप हो गया ! पर मैं सोच रहा था अब ढोंगी, ठगों के कुदिन आने वाले हैं ! आम इंसान धीरे-धीरे मंद गति से ही सही, सजग हो रहा है ! ढोंगी, फरेबी, धोखेबाज बाबाओं तो क्या तथाकथित नेताओं को भी तात्कालिक रूप से सावधान हो जाना चाहिए, नहीं तो राहु-केतु की युति उनकी कुंडली में सर्पयोग ला देगी ! उनके सारे ग्रह वक्री हो जाएंगे ! ऐसा न हो कि विपरीत ग्रहों की चाल से उनका फैसला न्यायालयों में न हो कर फौरी तौर पर सड़कों पर ही होने लगे !

@चित्र अंतर्जाल के सौजन्य से 

बुधवार, 18 जून 2025

गुरूजी, छतरपुर वाले

छतरपुर के मंदिर में गुरूजी का समाधिस्थल आज भी लोगों को सम्बल प्रदान कर रहा है ! वहां भक्तों की एक परिवार के रूप में रोज ही भीड़ लगी रहती है, जिसका मानना है कि उनके जीवन में कोई भी कठिनाई या संकट आए, गुरुजी की दया और आशीर्वाद हमेशा उन्हें सही रास्ता दिखाएंगे। मंदिर के भव्य परिसर में लगने वाले रोजाना के लंगर में लोगों का आपसी सौहार्द्र और सभी का एक ही परिवार का सदस्य होने का भाव साफ परिलक्षित होता है............!

#हिन्दी_ब्लागिंग

अपने देश में समय-समय पर महान विभूतियों का जन्म होता रहा है। जिन्होंने समाज में पसरी बुराइयों को दूर करने और आम इंसान में चेतना जगाने, उनमें ज्ञान का बीजारोपण करने और जीवन का सही मार्ग दिखाने काम किया है। समय के साथ उनमें से कुछ विलक्षण हस्तियों को उनके अनुयायिओं ने अपना गुरु मान ईश्वर स्वरूप सम्मानित पद पर आसीन कर दिया ! ऐसे ही संतों में एक आध्यात्मिक, सम्मानित तथा अपने भक्तों में अत्यंत लोकप्रिय संत थे, छतरपुर वाले गुरूजी ! जिन्हें डुगरी वाले गुरुजी और शुक्राना गुरुजी के नाम से भी जाना जाता है। उनके अनुयायी तो उन्हें शिव जी का अंश मानते हैं !  

गुरु जी 
गुरु जी का असली नाम निर्मल सिंह था। उनका जन्म 7 जुलाई 1954 को पंजाब के मलेरकोटला जिले के डुगरी गांव में हुआ था। बचपन से ही उनका रुझान आध्यात्मिकता की ओर था, वे साधु-संतों के सान्निध्य में ही अपना समय व्यतीत किया करते थे। पर उनके पिता जी की प्रबल इच्छा थी कि वे खूब पढ़ें, उनकी कामना की कद्र करते हुए गुरु जी ने दो उपाधियां अर्जित कीं। पर उनका ध्येय और लक्ष्य तो कुछ और ही था और उसी के चलते उन्होंने 1975 में गृहत्याग कर खुद को पूर्णतया गहरी आध्यात्मिकता में रमा दिया !

आश्रम, छतरपुर 
दे शाटन पर निकले गुरूजी को उनके आत्मज्ञान और धार्मिक विश्वास ने उन्हें जल्द ही एक महत्वपूर्ण और सम्मानित मार्गदर्शक बना दिया। 1990 के दशक में उन्होंने दिल्ली के छतरपुर के भट्टी माइंस इलाके में एक भव्य शिव मंदिर की स्थापना की ! जिसे आज उनके भक्त बड़ा मंदिर के नाम से जानते हैं। यह मंदिर लाखों लोगों के लिए आस्था और भक्ति का केंद्र बना हुआ है। भक्त यहां प्रार्थना करने आते हैं, अप्रत्यक्ष रूप में उनका आशीर्वाद प्राप्त कर, उनके उपदेशों पर अमल करते हैं।
शिव जी की भव्य प्रतिमा 
गुरु जी ने हमेशा अपने अनुयायियों को, जिनमें देश-विदेश की कई जानी-मानी हस्तियां भी शामिल हैं, प्रेमदया, और करुणा का संदेश दिया। उनका मानना था कि सभी धर्म समान हैं और ईश्वर एक ही है। उन्होंने यह सिखाया कि आध्यात्मिकता का असली अर्थ केवल धार्मिक अनुष्ठान और कर्मकांडों में नहीं है, बल्कि यह मनुष्य के दिल में होता है। उनका कहना था कि हमें अपनी आत्मा के साथ गहरे संबंध बनाने के लिए एक दूसरे से प्रेम करना चाहिए और दूसरों के साथ सौहार्दपूर्ण व्यवहार करना चाहिए।
समाधी 
गुरु जी ने 31 मई 2007 को शरीर त्याग दिया, पर उनके उपदेश आज भी उनके अनुयायियों का सकारात्मक मार्गदर्शन कर उनकी जिंदगी को बेहतर बनाने में सहायक हो रहे हैं ! छतरपुर के मंदिर में गुरूजी का समाधिस्थल आज भी लोगों को सम्बल प्रदान कर रहा है ! वहां भक्तों की एक परिवार के रूप में रोज ही भीड़ लगी रहती है, जिसका मानना है कि उनके जीवन में कोई भी कठिनाई या संकट आए, गुरुजी की दया और आशीर्वाद हमेशा उन्हें सही रास्ता दिखाएंगे। मंदिर के भव्य परिसर में लगने वाले रोजाना के लंगर में लोगों का आपसी सौहार्द्र और सभी का एक ही परिवार का सदस्य होने का भाव साफ परिलक्षित होता है। मंदिर के अंदर-बाहर सैंकड़ों स्वयंसेवक, बिना किसी अपेक्षा के खुशी-खुशी, समर्पित भाव से वहां रोज आने वाले हजारों लोगों की सहायता के लिए तत्पर रहते हैं !  
भीतरी कक्ष 
किसी को भी गुरु, नायक या मार्गदर्शक का दर्जा देने में आम जनता की श्रद्धा-विश्वास तथा आस्था का बड़ा हाथ होता है ! जीवन की आपा-धापी की प्रचंड लपटों में जरा सी ठंडी बयार भी अत्यधिक सकून दे जाती है, भले ही वह प्रकृतिप्रदत्त हो ! पर हताश-निराश सर्वहारा को जब किसी के माध्यम से जरा सी भी राहत का एहसास होता है तो वह आँख मूँद कर उसे ही ईश्वर मान बैठता है ! एक सच्चे मार्गदर्शक, रहबर या समर्पित रहनुमा का मिलना सहरा में जल की उपलब्धि जैसा ही है ! आज के युग में जब कदम-कदम पर छल-कपट-फरेब अपना डेरा डाले बैठे हों तब इंसान को खुद के विवेक का सहारा ले, हंस जैसा होना चाहिए जिससे नीर-क्षीर की पहचान हो सके और प्रभु के सच्चे बंदे का सानिध्य मिल सके !

@संदर्भ व चित्र अंतर्जाल के सौजन्य से 

रविवार, 15 जून 2025

बाबूजी मैं आपसे बहुत प्यार करता था, पर कभी कह नहीं पाया

आज जब आपकी बेपनाह याद आती है और मैं आपसे एकतरफा बात करता हूँ ! तब आँखें फिर किसी भी तरह काबू में नहीं रहतीं !  बाबूजी मैं आपसे बहुत प्यार करता था, पर कभी कह नहीं पाया ! मैं यह भी जानता हूँ कि आप भी मुझसे बहुत स्नेह करते थे, पर आपने भी कभी खुल कर उसका इजहार नहीं किया ! शायद पीढ़ियों की दूरी या उस समय के समाज की मर्यादा सदा आड़े आती रही होगी, कुछ भी रहा हो ! पर जब कुछ-कुछ कोहरा छंटने लगा था, तभी आप मुझे छोड़ गए.....................😢  

 

#हिन्दी_ब्लागिंग
 
मेरी जिंदगी भर एक ही कामना रही कि आपसे कह सकूँ कि बाबूजी मैं आपसे बहुत प्यार करता हूँ ! आप मेरे आदर्श है ! पर कभी भी कह नहीं पाया ! जबकि आप अपने रुतबे को कभी घर नहीं लाए। सदा गंभीर रहते हुए भी सरल, निश्छल, प्रेमल बने रहे ! पर पता नहीं दोष किसका रहा ! मेरी झिझक का, मेरे संकोच का या आज से बिल्कुल विपरीत उस समय का जब पिता के सामने पड़ने के लिए भी काफी हिम्मत की जरुरत होती थी। सारे काम, जरूरतें, संवाद माँ के जरिए ही संपन्न होते थे ! क्या आज की पीढ़ी सोच भी सकती है वैसे हालात के बारे में ! कैसा समय हुआ करता था ! कितनी दूरी होती थी इस पीढ़ी के बीच ! प्यार-स्नेह-ममता-लगाव सब कुछ तो था ! पर जताया नहीं जाता था कभी, पता नहीं क्यूँ ?
मेरे, सबके बाबूजी 
हर बच्चे के लिए उसका पिता ही सर्वश्रेष्ठ व उसका आदर्श  होता है ! पर आप तो सबसे अलग थे ! मैंने जबसे होश संभाला तब से आपको अपनी नहीं सिर्फ दूसरों की फ़िक्र और उनकी बेहतरी में ही लीन देखा ! यहां तक कि छोटी सी उम्र से ही अपने पालकों को भी पालते रहे ता-उम्र आप ! अपने भाई बहन का तो बहुत से लोग जीवन संवारते हैं, पर आपने तो उनके साथ ही माँ के परिवार को भी सहारा दिया ! वह भी बिना किसी अपेक्षा के या कोई अहसान जताए या चेहरे पर शिकन लाए ! यह जानते हुए भी कि बहुत से लोग आपका अनुचित फ़ायदा उठा रहे हैं, आप अपने कर्तव्य पूर्ती में लगे रहे ! आखिर वह दिन भी आ ही गया जब आपको भी आराम की जरुरत महसूस होने लगी ! तब मतलब पूर्ती का स्रोत सूखता देख कइयों ने अपना पल्ला झाड़ रुख बदल लिया ! पर आप नहीं बदले ! जितना भी बन पड़ता था, दूसरों की सहायता करते रहे ! कहने-सुनाने को तो मेरे पास अनगिनत बातें हैं, इतनी कि पन्नों के ढेर लग जाएं पर स्मृतियाँ शेष ना हों !
                                                                                        🙏🙏
जब भी पुरानी यादें मुखर होती हैं, तो बहुत से ऐसे वाकये भी याद आते हैं जब आप मुझसे नाराज हुए ! पर सही मायनों में बताऊँ तो आज तक समझ नहीं पाया कि जिस बात को मैं सोच भी नहीं सकता वैसा कैसे और क्यूँ हुआ ! सब गैर-इरादतन होता चला गया ! किसी दुष्ट ग्रह की वक्र दृष्टि और कुछ विघ्नसंतोषी लोगों का षड्यंत्र, कुछ का कुछ करवाता चला गया ! याद आता है तो बहुत दुःख और अजीब सा लगता है, अपने को सही साबित ना कर पाना और दूसरों के कुचक्र को ना तोड़ सकना ! पर जब कुछ-कुछ कोहरा छंटने लगा था तभी आप मुझे छोड़ गए !   

जब एकांत में आपकी बेपनाह याद आती है और मैं आपसे एकतरफा बात करता हूँ ! तब आँखें फिर किसी भी तरह काबू में नहीं रहतीं !  बाबूजी मैं आपसे बहुत प्यार करता था, पर कभी कह नहीं पाया ! मैं यह भी जानता हूँ की आप मुझसे बहुत स्नेह करते थे, इसका एहसास भी है मुझे, पर आपने कभी खुल कर उसका इजहार नहीं किया ! शायद पीढ़ियों की दूरी या उस समय के समाज की मर्यादा सदा आड़े आती रही ! कुछ भी रहा हो, इसका जिंदगी भर मलाल रहेगा..............! 

शत-शत, अश्रुपूरित प्रणाम 🙏🙏🙏

शुक्रवार, 13 जून 2025

मे-डे ! मे-डे !! मे-डे !!!

अंतरराष्ट्रीय तौर पर मान्य यह एक रेडियो सिग्नल है जिसे फ्रेंच शब्द 'M'aidez' से लिया गया है,  जिसका मतलब होता है "मेरी मदद करो।" यह  शब्द एविएशन और मैरिटाइम इमरजेंसी के लिहाज से बहुत ही अहम होता है ! इसे तभी प्रयोग में लाया जाता है, जब कोई हवाई जहाज या पानी का जहाज बहुत ही गंभीर खतरे में हो ! इसीलिए ऐसे कॉल को सबसे ज्यादा गंभीरता से लिया जाता है............!

#हिन्दी_ब्लागिंग 

12 जून 2025 की दोपहर करीब डेढ़ बजे, गुजरात के अहमदाबाद एयरपोर्ट पर एक भीषण और दर्दनाक दुर्घटना में सिर्फ एक यात्री को छोड़ प्लेन में सवार सभी यात्रियों और क्रू मेंबर की मौत हो गई थी ! इसके अलावा प्लेन के गिरने और उसमें आग लगने से बाहर भी कुछ लोगों की असमय मृत्यु हो गई थी ! उन सभी दिवंगत आत्माओं को समस्त देशवासियों की तरफ से अश्रुपूरित श्रद्धांजलि !!

उस हादसे की खबरों के साथ उन्हीं दिनों जिसकी बहुत चर्चा हुई, वह था एक शब्द, "मे-डे" ! जिसे दुर्घटना के ठीक पहले यान के पायलट ने रेडियो संदेश के रूप में वायु यातायात नियंत्रण केंद्र (ATC) को भेजा था। यह एक इमरजेंसी कॉल थी, जिसका किसी विमान के पायलट या जलयान के कैप्टन के द्वारा सिर्फ तभी इस्तेमाल किया जाता है, जब संकट बहुत ही गंभीर हो और बचने की गुंजाइश बिलकुल कम हो ! इस कॉल के जरिए एयर ट्रैफिक कंट्रोल (ATC) और नजदीकी यानों को संदेश दिया जाता है कि हम संकट में हैं और हमें मदद की  तुरंत जरूरत है। इसे यान के रेडियो पर तीन बार Mayday, Mayday, Mayday बोला जाता है, ताकि स्थिति साफ हो जाए और किसी तरह की गलतफहमी की गुंजाइश न रहे !

अं तरराष्ट्रीय तौर पर मान्य यह एक रेडियो सिग्नल है जिसे फ्रेंच शब्द 'M'aidez' से लिया गया है, जिसका मतलब होता है "मेरी मदद करो।" यह शब्द एविएशन और मैरिटाइम इमरजेंसी के लिहाज से बहुत ही अहम होता है ! इसे तभी प्रयोग में लाया जाता है, जब कोई हवाई जहाज या पानी का जहाज बहुत ही गंभीर खतरे में हो ! इसीलिए ऐसे कॉल को सबसे ज्यादा गंभीरता से लिया जाता है। 

मे-डे शब्द 1920 के दशक के आरंभ में लंदन के क्रॉयडन एयरपोर्ट के रेडियो अधिकारी फ्रेडरिक स्टेनली मॉकफोर्ड द्वारा गढ़ा गया था। उन्होंने इसे फ्रांसीसी फ्रेज m'aider "मेरी मदद करो" से लिया। 1923 तक यह पायलटों और नाविकों के लिए अंतरराष्ट्रीय रेडियो संचार का हिस्सा बन गया। 1927 में मोर्स "SOS" के साथ इसे औपचारिक रूप से अपना लिया गया। आज इसका उपयोग  पूरी दुनिया में विमान से जुड़ी इमरजेंसी के समय किया जाता है। इसमें भाषा की भी कोई बाधा नहीं है, 'मेडे' कॉल सुन कर ही खतरे की खबर मिल जाती है। इसका मई दिवस से कोई संबंध नहीं है।

मे-डे के अलावा एमरजेंसी में एक और शब्द का प्रयोग भी किया जाता है और वह है पैन-पैन ! इस कॉल का मतलब है कि कहीं तात्कालिक रूप से सहायता की जरुरत है ! पर इस कॉल का स्तर मे-डे से कुछ कम होता है, हालांकि बाकी सभी कम्युनिकेशन और कॉल्स पर इसे प्राथमिकता दी जाती है।

@चित्रों और संदर्भ हेतु अंतर्जाल का आभार 

रविवार, 8 जून 2025

नीब करौरी बाबा, कैंची धाम

एक बार अनजाने में बाबा जी को उत्तर प्रदेश के फर्रुखाबाद जिले के नीम करौली गांव के पास ट्रेन से उतार दिए जाने के बाद काफी कोशिशों और जद्दोजहद के बावजूद रेल गाड़ी एक इंच भी चल नहीं पाई थी ! उसके बाद उनसे विनम्रता पूर्वक क्षमा याचना कर, गाड़ी में सवार करवाने के पश्चात ही वह अपनी जगह से हिली थी ! तबसे उस अलौकिक घटनास्थल के नाम पर बाबा जी को नीम करौली बाबा कहा जाने लगा.......! 

#हिन्दी_ब्लागिंग 

कैंची धाम उत्तराखंड राज्य के नैनीताल शहर से 17 की.मी. की दूरी पर अल्मोड़ा-नैनीताल मार्ग पर भवाली नामक स्थान के पास स्थित है। इसकी स्थापना हनुमान जी के परम भक्त, नीब करौरी बाबा, जिनका असली नाम लक्ष्मण नारायण शर्मा था, द्वारा 1964 के दशक में 15 जून को एक छोटी सी पहाड़ी नदी शिप्रा के पास करवाई गई थी। वे अक्सर इस नदी के किनारे अपनी धुन में बैठे रहा करते थे। उस समय यहां दूर-दूर तक कोई आबादी नहीं थी, पर ऐसे दो अनोखे घुमावदार मोड़ थे, जो कैंची जैसा आकार बनाते हैं, इसलिए जगह की पहचान के लिए इस आश्रम को कैंचीधाम का नाम दे दिया गया ! 

कैंची धाम 

नीब करौरी बाबा या महाराज जी की गणना बीसवीं सदी के महान संतों में होती है। अपने जीवन काल में उन्होंने जगह-जगह भ्रमण करते हुए कई आश्रम तथा मंदिर बनवाए थे, जिनमें वृंदावन और कैंची धाम आश्रम प्रमुख हैं। अपने जीवन के उत्तरार्द्ध का काफी समय उन्होंने कैंची धाम में ही बिताया था। इस जगह पर आश्रम और हनुमान जी के मंदिर का निर्माण उन्होंने अपने दो स्थानीय शिष्यों, प्रेमी बाबा और सोमवारी महाराज की पूजा-अर्चना की सुविधा के लिए करवाया था। 

नीब करौरी बाबा 
बाबा जी के पानी को घी में बदलने, बच्चे की जान बचाने, अपने भक्त को धूप से बचाने के लिए बादलों की छतरी बनाने जैसे अनगिनत चमत्कारों की कहानियां हैं ! जिनमें सबसे प्रमुख वह घटना है जब बाबा जी को उत्तर प्रदेश के फर्रुखाबाद जिले के नीम करौली गांव के पास ट्रेन से उतार दिए जाने के बाद काफी कोशिशों और जद्दोजहद के बावजूद रेल गाड़ी एक इंच भी चल नहीं पाई थी और फिर उनसे विनम्रता पूर्वक क्षमा याचना कर, गाड़ी में सवार करवाने के पश्चात ही वह अपनी जगह से हिली थी ! तबसे उस अलौकिक घटनास्थल के नाम पर बाबा जी को नीम करौली बाबा कहा जाने लगा। 
हनुमान प्रतिमा  
हमेशा एक कंबल ओढ़े रहने वाले बाबा के आर्शीवाद के लिए भारतीयों के साथ-साथ बड़ी-बड़ी विदेशी हस्तियां भी उनके आश्रम पर आती रही हैं। पं. गोविंद वल्लभ पंत, डॉ. सम्पूर्णानन्द, राष्ट्रपति वीवी गिरि, उपराष्ट्रपति गोपाल स्वरुप पाठक, जवाहर लाल नेहरू, जुगल किशोर बिड़ला, महाकवि सुमित्रानन्दन पंत, जैसी महान हस्तियों के साथ-साथ कई विदेशी जाने-माने नाम यहां आकर अपने श्रद्धा सुमन अर्पित करते रहे हैं ! जिनमें फेसबुक और एप्पल जैसी कंपनियों के संस्थापक मार्क जुकरबर्ग और स्टीव जॉब भी शामिल हैं ! 
आश्रम में प्रतिष्ठित बाबा जी की प्रतिमा 
वैसे तो सुरम्य, मनोरम, हरियाली से घिरे आश्रम में, जुलाई अगस्त को छोड़, साल भर कभी भी जाया जा सकता है। पर मार्च से जून और सितम्बर से नवंबर का समय सबसे उपयुक्त होता है। यहां का नजदीकी रेलवे स्टेशन काठगोदाम और हवाई मार्ग के लिए पंतनगर हवाई अड्डा है, जहां से सड़क मार्ग से आगे जाया जा सकता है। 
कृतार्थी 
कैंची धाम में साल भर श्रद्धालुओं का तांता लगा रहता है, जो यहां पहुंच कर भक्तिभाव व श्रद्धा से बाबा का दर्शन कर कृतार्थ होते हैं। प्रतिवर्ष 15 जून को आश्रम के स्थापना दिवस के उपलक्ष्य पर यहां एक विशाल मेले व भंडारे का आयोजन किया जाता है। ऐसी दृढ आस्था और मान्यता है कि यहां पर श्रद्धा एवं विनयपूर्वक की गई प्रार्थना कभी भी व्यर्थ नहीं जाती। यहां पर हर मनोकामना हमेशा पूर्ण होती है। 

@एक के अलावा, सभी चित्र अंतर्जाल के सौजन्य से  

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बुड़बक समझ लिए हो ? कोउनो दिन माथा फिरा गिया ना, तो फिर.......😡

अरे ! हम लोग धर्म-भीरु हैं, सरल हैं, भोले हैं ! सभी लोगों पर विश्वास कर लेते हैं ! तभी तो कोई लाल-हरी चटनी खिला कर, कोई पानी छिड़क कर, कोई धु...