शुरुआत में नौसिखिए खिलाड़ियों के मारे गए बेतरतीब शॉट्स के कैच लपक जो वाम पंथी पूरी तरह से मैच पर हावी हो, उद्दंडता, हठधर्मिता के बाउंसर फेंक रहे थे; दर्शक-दीर्घाओं से अपने लिए समर्थन जुटा रहे थे, वे मैदान के बाहर हो गए ! सारा परिदृश्य ही बदल गया। परिस्थियाँ बदल गईं।बागडोर अब टिकैत के हाथ में आ गई थी। पंजाब का आंदोलन अब यू पी के नाम हो गया। उसी पश्चिमी यू.पी. के नाम जिसने भाजपा को 44 में से 37 सीटें दीं ! लोकसभा की 9 में से सात सीटों से नवाजा था ! अब जो सहमति होगी उसका सारा श्रेय भी उत्तर प्रदेश को ही मिलेगा .............!
#हिन्दी_ब्लागिंग
कुछ हो तो जरूर रहा है ! कोई जरुरी नहीं कि मैं सही ही होऊँ ! मैं गलत भी हो सकता हूँ ! पर पता नहीं क्यों मुझे ऐसा लग रहा है कि जो दिख रहा है वैसा हो नहीं रहा और जो हो रहा है वह दिख नहीं रहा ! यवनिका के पीछे बहुत ही सोच-समझ कर, समझदारी और चतुराई से समस्या का आकलन कर उससे पार पाने की तरकीब निकाली जा रही है। जिन्होंने वर्षों-वर्ष से चली आ रही अड़चनों को एक झटके में दूर कर दिया हो वे क्या देश की अस्मिता के साथ खिलवाड़ करने वालों की हरकतों पर हाथ पर हाथ धरे बैठे होंगे !
फिर सहमति का सारा श्रेय भी पंजाब के वामियों-कांगियों ने ले उड़ना था ! पर अब जो भी होगा उसका सारा श्रेय उत्तर प्रदेश को मिलेगा। उसके किसानों को मिलेगा
करीब दो अढ़ाई महीने पहले जो किसान आंदोलन पंजाब से शुरू हुआ जिसे कुछ स्पोर्ट हरियाणा से मिला उसमें सबसे ज्यादा प्रतिशत पंजाब के वाम पंथी और उग्रवादी नेताओं का था ! जिनका मुख्य उद्देश्य शायद किसानों की सहायता से ज्यादा केंद्र सरकार को नीचा दिखाना था। इसीलिए दसियों बैठकें हुईं सरकार के साथ पर कोई नतीजा नहीं निकला या निकलने नहीं दिया गया ! फिर गणतंत्र दिवस पर जो हुआ उसे विश्व ने देखा !
26 जनवरी के कांड के दो दिन बाद एकबारगी तो लगा कि नौटंकी का पटाक्षेप हो गया है और सरकार ने पूरी तरह स्थिति पर काबू पा लिया है। पर अचानक नाटक में जुटे बीसियों किसान नेताओं में से एक, पश्चिमी उतर प्रदेश के राकेश टिकैत, जो अपने दल का मुख्य प्रवक्ता था, मुखिया नहीं, ने अपने अभिनय का कौशल दिखलाया और इस बार पंजाब के बदले उत्तर प्रदेश के किसानों के हुजूम को दिल्ली बार्डर पर ला, चरित्र अभिनेता से नायक बन गया ! यहीं से लगने लगा कि शतरंज पर एक नए व्यूह की रचना कर दी गई है !
शुरुआत में नौसिखिए खिलाड़ियों के मारे गए बेतरतीब शॉट्स के कैच लपक जो वाम पंथी पूरी तरह से मैच पर हावी हो, उद्दंडता, हठधर्मिता के बाउंसर फेंक रहे थे; दर्शक-दीर्घाओं से अपने लिए समर्थन जुटा रहे थे वे मैदान के बाहर हो गए ! सारा परिदृश्य ही बदल गया। परिस्थियाँ बदल गईं। बागडोर अब टिकैत के हाथ में आ गई थी। पंजाब का आंदोलन अब यू पी के नाम हो गया। उसी पश्चिमी यू.पी. के नाम जिसने भाजपा को 44 में से 37 सीटें दीं ! लोकसभा की 9 में से सात सीटों से नवाजा था। जहां वोट प्रतिशत क्रमश: 43.6 और 53.1 हो, वहीं के किसानों से बात होगी। हो सकता है कि इस बार सरकार दो कदम पीछे भी हटे ! किसानों को संतुष्ट किया जाएगा ! सरकार और किसान दोनों का सम्मान बचा रहेगा ! उधर वामियों-कांगियों को, जो अभी तक मोदी जी को समझ ही नहीं पा रहे, फिर कहीं मुंह छुपाने की जगह खोजनी होगी।
यदि 28 की रात को दिल्ली बॉर्डर खाली करवा लिया जाता तो उसका एक संदेश यह भी जा सकता था कि सरकार ने जबरदस्ती दमनकारी रुख अख्तियार कर आंदोलन ख़त्म करवाया। तानाशाही काआरोप जड़ दिया जाता। लुटे-पिटे विपक्ष को तो मौका चाहिए ही होता है। फिर सहमति का सारा श्रेय भी पंजाब के वामियों-कांगियों ने ले उड़ना था ! पर अब जो भी होगा उसका सारा श्रेय उत्तर प्रदेश को मिलेगा। उसके किसानों को मिलेगा ! अभी भले ही सरकार की मुश्किलें बढ़ी हुई लग रही हों पर मुझे लगता है कि बहुत जल्द इस समस्या का हल निकाल लिया जाएगा ! क्योंकि आगामी साल यू.पी. में फिर चुनाव हैं उन पर भी इस बात का सकारात्मक प्रभाव पडेगा।
13 टिप्पणियां:
आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज रविवार 07 फरवरी को साझा की गई है......... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
यशोदा जी
सम्मिलित करने हेतु अनेकानेक धन्यवाद और आभार
कुछ होता ही रहता है हां हो रहा है कुछ सहमत :)
नमस्ते,
आपकी इस प्रविष्टि के लिंक की चर्चा सोमवार 08 फ़रवरी 2021 को 'पश्चिम के दिन-वार' (चर्चा अंक- 3971) पर भी होगी।--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्त्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाए।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
#रवीन्द्र_सिंह_यादव
आपका लेख पढ़कर कुछ राहत सी मिल रही है गगन जी,सच में अगर ऐसा ही हो तो कुछ और बात देश में हो जिससे देश की प्रगति हो वर्ना ये रोज रोज का आंदोलन तो हर किसी को सिरदर्द बनता जा रहा है..समसामयिक लेख के लिए आपको शुभकामनायें एवं नमन..
सुशील जी
ऐसा लग रहा है कि मंचावतार के पहले की रिहर्सल हो रही है
रवीन्द्र जी
सम्मिलित कर मान देने हेतु अनेकानेक धन्यवाद
जिज्ञासा जी
आम आदमी की अपनी ही पचासों परेशानियां होती हैं ऊपर से एक और मुसीबत! वह तो सदा अमन-चैन ही चाहता है
अच्छे सुझाव दिये हैं आपने।
पर पता नहीं क्यों मुझे ऐसा लग रहा है कि जो दिख रहा है वैसा हो नहीं रहा और जो हो रहा है वह दिख नहीं रहा ! यवनिका के पीछे बहुत ही सोच-समझ कर, समझदारी और चतुराई से समस्या का आकलन कर उससे पार पाने की तरकीब निकाली जा रही है।...वाह!बेहतरीन आलेख।
सादर
अनीता जी
कैसे भी हो देश में अमन-चैन रहना चाहिए
प्रभावशाली लेखन।
हार्दिक आभार, शांतनु जी
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