शुक्रवार, 19 जून 2020

संकट काल में तो देश की सोच लो, अपने हित साधने के मौके तो आते रहेंगे

अपनी समझ से तो ये सरकार की नाकामी को उजागर कर अपनी उपयोगिता और प्रसांगिकता सिद्ध करना चाहते थे, पर इनको और इनके मूढ़मति सलाहकारों को इस बात का कतई इल्म नहीं रहा कि युद्ध के मंडराते खतरे में अवाम सदा सरकार का साथ देता है, फिर चाहे उसकी आस्था किसी भी पार्टी या नेता में भले ही क्यूँ ना हो ! ऐसा हर बार के युद्ध काल में हुआ है...................!

#हिन्दी_ब्लागिंग 
पहले लाल ने फिर उसकी लाली देख लाल हुई मां ने जब अपने उद्गार उगले तो देश उनके इस अपरिपक्व, अव्यवहारिक, राजनितिक अदूरदर्शिता और बचकानेपन से तो लाल हुआ ही, पार्टी की गिरती-ढहती छवि को भी एक और धचका लग गया ! अपनी समझ से तो ये सरकार की नाकामी को उजागर कर अपनी उपयोगिता और प्रसांगिकता सिद्ध करना चाहते थे, पर इनको और इनके मूढ़मति सलाहकारों को इस बात का कतई इल्म नहीं रहा कि युद्ध के मंडराते खतरे में अवाम सदा सरकार का साथ देता है, फिर चाहे उसकी आस्था किसी भी पार्टी या नेता में भले ही क्यूँ ना हो ! ऐसा हर बार के युद्ध काल में हुआ है। 

आजादी के इतने सालों में हमने कभी ऐसा चौतरफे संकट का सामना नहीं किया ! एक बार में एक,अलग-अलग पड़ोसी से झड़प जरूर हुई पर ऐसा सम्मिलित षड्यंत्र कभी सामने नहीं आया। पाक तो खैर हमारा जन्मजात विरोधी रहा है पर इधर चीनी हथकंडों से ग्रसित और उसके ''एहसानों'' से मजबूर नेपाल भी हमारे आपसी रिश्तों, भाईचारे और सहारे को भूल कुछ अकड़ने लगा है ! उस पर महामारी का कहर ! चारों तरफ से विपदा से घिरे देश को इस समय एकजुटता की जरुरत है ना कि ओछी राजनीति की, इतनी समझ तो आत्मश्लाघि दलों को होनी ही चाहिए ! पर यहां देश की नहीं सत्ता की ज्यादा चिंता महसूसी जा रही है। 

यह समय गहरे चिंतन और सावधानी का है। एक भी गलत या भावावेश में उठाया गया कदम देश और उसके करोड़ों देशवासियों के लिए हादसा सिद्ध हो सकता है। ऐसे में किन्हीं नेता-दव्यों द्वारा बार-बार कोंचा लगा कुछ बोलने और जमीन की जानकारी मांगनेको मजबूर करना, अपरिपक्वता ही कहलाएगी। यहां पुरानी बातों को दोहराना कुछ हल्कापन लग सकता है पर उनकी प्रासांगिकता जरुरी है, यह याद दिलाने को कि बासठ की लड़ाई में इसी चीन ने हमारी करीब पंद्रह हजार वर्ग की.मी. जमीन दखल कर ली थी तो हमारे सर्वकालीन महान नेता ने बड़ी उपेक्षा और लापरवाही से कह दिया था कि उस जमीन की कोई कीमत नहीं है उस पर घास का तिनका तक नहीं उगता ! इस पर काफी लानत-मलानत भी हुई थी उनकी ! हो सकता है कि इन सब बातों का काफी बाद में बाहर से आई महिला को ज्ञान ना हो और शाही रख-रखाव में पले उनके पुत्र को भी शायद वही पता हो जो उन्हें राजमहल में बताया, सिखाया गया था ! 

संकट काल में यह जरुरी है कि सरकार हर बात को सार्वजनिक ना करे ! साथ ही विपक्ष को भी अपनी जिम्मेदारी समझते हुए, सिर्फ विरोध के लिए सरकार की हर बात का विरोध ना कर सावधानी पूर्वक अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त करनी चाहिए ! समय फिरते ही अपनी भड़ास निकालने का अवसर तो मिल ही जाएगा। फिर क्यूँ फिजूल में अभी जनता के आक्रोष और मजाक का वॉयस बनना, जिससे खुद का ही नुक्सान होता हो ! पर देखा गया है यह बात किसी के समझ में नहीं आती या हो सकता है चापलूस या अवसरवादी छुटभईए अपना हित साधने के लिए आने ही नहीं देना चाहते हों ! जो भी हो ऐसी बातें हैं तो आत्मघाती ही !! 

13 टिप्‍पणियां:

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

इंसान को सदव ही सोच-समझकर बोलना चाहिए और जब विपत्तिकाल हो तो विशेष सावधानी रखनी चाहिए।
उपयोगी आलेख।

kuldeep thakur ने कहा…


जय मां हाटेशवरी.......

आप को बताते हुए हर्ष हो रहा है......
आप की इस रचना का लिंक भी......
21/06/2020 रविवार को......
पांच लिंकों का आनंद ब्लौग पर.....
शामिल किया गया है.....
आप भी इस हलचल में. .....
सादर आमंत्रित है......

अधिक जानकारी के लिये ब्लौग का लिंक:
https://www.halchalwith5links.blogspot.com
धन्यवाद

गगन शर्मा, कुछ अलग सा ने कहा…

शास्त्री जी
वही अक्लमंद और सफल होता है

गगन शर्मा, कुछ अलग सा ने कहा…

कुलदीप जी
रचना को मान देने हेतु अनेकानेक धन्यवाद

Marmagya - know the inner self ने कहा…

आ आपने सही लिखा है, भावनाओं से ऊपर रणकौसल होता है। इसलिए सरकार सबकुछ सोच समझकर ही कोई कदम उठाए।--ब्रजेंद्रनाथ

सुशील कुमार जोशी ने कहा…

प्रवृति पीछा नहीं छोड़ती ।

गगन शर्मा, कुछ अलग सा ने कहा…

ब्रजेंन्द्र जी
पर कुछ लोगों की नीयत कभी साफ नहीं हो पाती

गगन शर्मा, कुछ अलग सा ने कहा…

सुशील जी
ऐसे लोग अपने पैरों पर ही कुल्हाड़ी मारते हैं

dj ने कहा…

इतनी सी बात सरकार के समझ से न जान क्यों परे है की ऐसे संकट काल में देश से सम्बंधित बातों को उजागार नहीं किया जा चाहिये इसके विपरीत भारतीय मीडिया सबसे आगे हम की होड़ में हर महत्वपूर्ण जानकारी का ढिंढोरा अपने चैनल के जरिये पीटना चाहत हैं ऐसे समय भी राजनीतिज्ञों को केवल राजनीति ही करनी है और लाल और उसकी लाली देख लाल हुई माँ के बारे में तो कुछ कहा जाना ही

गगन शर्मा, कुछ अलग सा ने कहा…

दिव्या जी
यही तो विडंबना है कि कुछ लोगों को कुर्सी के सिवा और कुछ नहीं सूझता

Kavi ने कहा…

बहुत ही सुंदर लिखा है आप मेरी रचना भी पढना

गगन शर्मा, कुछ अलग सा ने कहा…

कवि जी
जरूर ! यहां सदा स्वागत है

गगन शर्मा, कुछ अलग सा ने कहा…

कुछ लोग अपने मतलब के लिए किसी भी हद तक जाने में गुरेज नहीं करते

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